Author Topic: Let Us Know Fact About Our Culture - आएये पता करे अपनी संस्कृति के तथ्य  (Read 24728 times)

हेम पन्त

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पंकज दा! पिथौरागढ के नाम के बारे में डा. राम सिंह व कुछ अन्य विद्वानों का मत इन सब मतों से भिन्न है. उनके अनुसार पिथौरागढ नाम 'पितरौटा' का विभ्रंश है. पितरौटा पिथौरागढ शहर के नजदीक बसा एक प्राचीन गांव है.

पिथौरागढ़ के इतिहास का एक अन्य विवादास्पद वर्णन है। एटकिंस के अनुसार, चंद वंश के एक सामंत पीरू गोसाई ने पिथौरागढ़ की स्थापना की। ऐसा लगता है कि चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल (वर्ष 1437 से 1450) में उसके पुत्र रत्न चंद ने नेपाल के राजा दोती को परास्त कर सौर घाटी पर कब्जा कर लिया एवं वर्ष 1449 में इसे कुमाऊं या कुर्मांचल में मिला लिया। उसी के शासनकाल में पीरू या पृथ्वी गोसांई ने पिथौरागढ़ नाम से यहां एक किला बनाया। किले के नाम पर ही बाद में इसका नाम पिथौरागढ़ हुआ।

पंकज सिंह महर

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बलि में काटे गये बकरे का पूंछ की तरफ का हिस्सा काटने वाले को और सिर का हिस्सा पूजा करने वाले पण्डित को दिया जाता है. शेष धड का भाग पूजा वाली जगह पर ही पका कर पूजा में शामिल लोगों के बीच प्रसाद की तरह खाया जाता है.

बकरे की जली हुयी खाल भी 'पंचोल' (तेल व मसाले में मिला कर) बनाकर प्रसाद के रूप में बंटती है.


पंचोली को पूरी के साथ खाया जाता है और आजकल पहाड़ों में इसे होटलों में नाश्ते के तौर पर भी बनाया जाने लगा है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I have seen this in many places of Uttarakhand.

उत्तराखण्ड के कई मंदिरों में बकरे की बलि दी जाती है, बलिदान के समय बकरे को रोली लगाते हैं, उसको पुष्प चढ़ाते हैं और फिर उस पर पानी छिड़का (पनधार- पानी हाथ में लेकर सिर से पूंछ तक) जाता है और यह मंत्र बकरे के कान में पढ़ा जाता है-

             "अश्वं नैव, गजं नैव, सिंहं नैव च नैव च।
          अजा पुत्र बलिं दद्दात, देवो दुर्बल घातकः॥
 अर्थात- हे बकरे! तू न हाथी है, न घोड़ा, न शेर, तू सिर्फ बकरे का बच्चा है, मैं तेरी बलि चढा़ता हूं, देवता दुर्बल का नाश करते हैं।

      पानी के छींटों से जब बकरा अपने को हिलाता है (बरक जाता है) तो माना जाता है कि देवता ने बलि को स्वीकार कर लिया है। तब खुखरी से या अन्य अस्त्र से उसकी गर्दन को काटा जाता है और उसकी पूंछ काटकर उसके मुंह में डाला जाता है।


पंकज सिंह महर

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पंकज दा! पिथौरागढ के नाम के बारे में डा. राम सिंह व कुछ अन्य विद्वानों का मत इन सब मतों से भिन्न है. उनके अनुसार पिथौरागढ नाम 'पितरौटा' का विभ्रंश है. पितरौटा पिथौरागढ शहर के नजदीक बसा एक प्राचीन गांव है.

पिथौरागढ़ के इतिहास का एक अन्य विवादास्पद वर्णन है। एटकिंस के अनुसार, चंद वंश के एक सामंत पीरू गोसाई ने पिथौरागढ़ की स्थापना की। ऐसा लगता है कि चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल (वर्ष 1437 से 1450) में उसके पुत्र रत्न चंद ने नेपाल के राजा दोती को परास्त कर सौर घाटी पर कब्जा कर लिया एवं वर्ष 1449 में इसे कुमाऊं या कुर्मांचल में मिला लिया। उसी के शासनकाल में पीरू या पृथ्वी गोसांई ने पिथौरागढ़ नाम से यहां एक किला बनाया। किले के नाम पर ही बाद में इसका नाम पिथौरागढ़ हुआ।

हेम दा,
       मुझे भी यह तथ्य सत्य के सबसे नजदीक जान पड़्ता है, जहां तक मैंने उत्तराखण्ड का इतिहास पढ़ा है, कहीं भी राजा पिथौरा का नाम नहीं है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हमारी संस्कृति मे यह जुडा हुवा है.

जब अपने ससुराल जाते है तो जाने वकत अपने माता पिता का घर के दरवाजे की और चावल गिराते है ! इसे शुभ माना जाता है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दूसरा एक और रीति ..

जब कोई दुल्हन डोली मे बैठ कर विदा होती है डोली का मुह कुछ देर के लिए अपने माता पिता के घर की ओर होता है !

पंकज सिंह महर

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नातक-शुतक
« Reply #46 on: May 07, 2008, 03:55:11 PM »
नातक- घर में बच्चे के आगमन होने पर घर में अशुद्धि(छूंत) होती है तो उसे नातक कहा जाता है, सातवें दिन "पंचगप" छिड़क कर घर की शुद्धि की जाती है और ११ वें नामकरण के बाद पूर्ण शुद्धि मानी जाती है। लेकिन छः माह तक किसी भी बडे़ मंदिर या धाम में जाना निषेध होता है।

शुतक- घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर जो अशुद्धि होती है, उसे शुतक कहा जाता है। १२ वें दिन में ब्रह्म भोज के बाद शुद्धि होती है।

गांव में सामान्यतः नातक और शुतक तीन दिन का माना जाता है, कुछ गांव वाले १० दिनी बिरादर होते हैं, जिन्हें १० दिन की अशुद्धि होती है और कुछ १२ दिनी होते हैं, जिन्हें १२ दिन की अशुद्धि मानी जाती है।

Lalit Mohan Pandey

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दज्यु इसको पहाड़ी भाषा मै बारदोख (या फ़िर बर्दोश) कहते है...ये अभी भी काफी माना जाता है स्पेसिअल्ली अगर आप किसी काम से यात्रा कर रहे हो तो जरुर देखा जाता है की बर्दोख न हो 

कहीं आने-जाने के लिये दिशाओं का बहुत ख्याल रखा जाता है, जिसके लिये निम्न श्लोक भी लिखा जाता है-
उत्तरे बुध भौमे च रवि शुक्रे तु पश्चिमे।
पूर्वे शनि सोमे च दक्षिणे तु वृहस्पति॥

मंगल, बुधवार को उत्तर यात्रा, रविवार व शुक्रवार को पश्चिम न जाना, शनिवार और सोमवार को पूर्व की यात्रा और वृहस्पति को दक्षिण दिशा की यात्रा का निषेध है।


पंकज सिंह महर

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दज्यु इसको पहाड़ी भाषा मै बारदोख (या फ़िर बर्दोश) कहते है...ये अभी भी काफी माना जाता है स्पेसिअल्ली अगर आप किसी काम से यात्रा कर रहे हो तो जरुर देखा जाता है की बर्दोख न हो 

कहीं आने-जाने के लिये दिशाओं का बहुत ख्याल रखा जाता है, जिसके लिये निम्न श्लोक भी लिखा जाता है-
उत्तरे बुध भौमे च रवि शुक्रे तु पश्चिमे।
पूर्वे शनि सोमे च दक्षिणे तु वृहस्पति॥

मंगल, बुधवार को उत्तर यात्रा, रविवार व शुक्रवार को पश्चिम न जाना, शनिवार और सोमवार को पूर्व की यात्रा और वृहस्पति को दक्षिण दिशा की यात्रा का निषेध है।



सच्ची कौ हो लल्दा, तुमुले ये कें बारदोख कुनी।

Lalit Mohan Pandey

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दज्यु जो आपने सूतक के बारे मै लिखा है उसमे एक छोटी से जानकारी और add करना चाहता हू,  actually ब्रह्म भोज से पहले शराद होता है मरने वाले का, और फ़िर पीपल के पत्ते को छुआ जाता है, इसी पीपल के पत्ते को छुने को शुद्दी कहते है,  इसे पीपल ठसक लगना बोलते है पहाड़ी भाषा मै, जिसने भी तीपानी दिया होगा और जो भी १० दिनिया होंगे उनके लिए  पीपल ठसक लगना जरुरी माना जाता है. और भोज के लिए जीतने भी लोग मलामी गए होंगे उन्हें बुलाना जरुरी माना जाता है

नातक- घर में बच्चे के आगमन होने पर घर में अशुद्धि(छूंत) होती है तो उसे नातक कहा जाता है, सातवें दिन "पंचगप" छिड़क कर घर की शुद्धि की जाती है और ११ वें नामकरण के बाद पूर्ण शुद्धि मानी जाती है। लेकिन छः माह तक किसी भी बडे़ मंदिर या धाम में जाना निषेध होता है।

शुतक- घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर जो अशुद्धि होती है, उसे शुतक कहा जाता है। १२ वें दिन में ब्रह्म भोज के बाद शुद्धि होती है।

गांव में सामान्यतः नातक और शुतक तीन दिन का माना जाता है, कुछ गांव वाले १० दिनी बिरादर होते हैं, जिन्हें १० दिन की अशुद्धि होती है और कुछ १२ दिनी होते हैं, जिन्हें १२ दिन की अशुद्धि मानी जाती है।


 

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