Author Topic: Let Us Know Fact About Our Culture - आएये पता करे अपनी संस्कृति के तथ्य  (Read 26299 times)

Lalit Mohan Pandey

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हेम भाई आज से कुछ साल पहले तक दो और हिस्से बनाये जाते थे
1) Chest वाला हिस्सा जिसे पहाड़ी भाषा मै कुल्डी बोलते थे इसे पधान को दिया जाता था (हर गाव मै राजशाही के टाइम से एक पधान नियुक्त होता था.. जो किसी किसी गाव मै अभी भी चला आ रहा है, इसके लिए कोए इलेक्शन नही होता है, ये राजा की तरह पुश्तेनी पदवी होती है , please do not mistake it with ग्राम प्रधान) 

२) Legs : इसे जिसे भी पूजा मै दम्मू बजाने के लिए बुलाया जाता है उसे देते थे.

महर जी अगर आपको पधान परम्परा के बारे मै कुछ detail जानकरी हो तो please share कीजिये.  मेरे पास थोड़ा बहुत जो जानकारी है मै कोशिश करूँगा बाद मै एक पोस्ट लिख कर शेयर कर पाऊ (क्युकी मेरे पिताजी के बाद मुजे ही गाव का पधान बनाना है ha ha ha )
पंचोल मै बकरे के शरीर के पाच अलग अलग हिस्सू मिले होते ही शायद इसी लिए इसको  पचोल बोला जाता ही


बलि में काटे गये बकरे का पूंछ की तरफ का हिस्सा काटने वाले को और सिर का हिस्सा पूजा करने वाले पण्डित को दिया जाता है. शेष धड का भाग पूजा वाली जगह पर ही पका कर पूजा में शामिल लोगों के बीच प्रसाद की तरह खाया जाता है.

बकरे की जली हुयी खाल भी 'पंचोल' (तेल व मसाले में मिला कर) बनाकर प्रसाद के रूप में बंटती है.


उत्तराखण्ड के कई मंदिरों में बकरे की बलि दी जाती है, बलिदान के समय बकरे को रोली लगाते हैं, उसको पुष्प चढ़ाते हैं और फिर उस पर पानी छिड़का (पनधार- पानी हाथ में लेकर सिर से पूंछ तक) जाता है और यह मंत्र बकरे के कान में पढ़ा जाता है-

             "अश्वं नैव, गजं नैव, सिंहं नैव च नैव च।
          अजा पुत्र बलिं दद्दात, देवो दुर्बल घातकः॥
 अर्थात- हे बकरे! तू न हाथी है, न घोड़ा, न शेर, तू सिर्फ बकरे का बच्चा है, मैं तेरी बलि चढा़ता हूं, देवता दुर्बल का नाश करते हैं।

      पानी के छींटों से जब बकरा अपने को हिलाता है (बरक जाता है) तो माना जाता है कि देवता ने बलि को स्वीकार कर लिया है। तब खुखरी से या अन्य अस्त्र से उसकी गर्दन को काटा जाता है और उसकी पूंछ काटकर उसके मुंह में डाला जाता है।

बलि में काटे गये बकरे का पूंछ की तरफ का हिस्सा काटने वाले को और सिर का हिस्सा पूजा करने वाले पण्डित को दिया जाता है. शेष धड का भाग पूजा वाली जगह पर ही पका कर पूजा में शामिल लोगों के बीच प्रसाद की तरह खाया जाता है.

बकरे की जली हुयी खाल भी 'पंचोल' (तेल व मसाले में मिला कर) बनाकर प्रसाद के रूप में बंटती है.


उत्तराखण्ड के कई मंदिरों में बकरे की बलि दी जाती है, बलिदान के समय बकरे को रोली लगाते हैं, उसको पुष्प चढ़ाते हैं और फिर उस पर पानी छिड़का (पनधार- पानी हाथ में लेकर सिर से पूंछ तक) जाता है और यह मंत्र बकरे के कान में पढ़ा जाता है-

             "अश्वं नैव, गजं नैव, सिंहं नैव च नैव च।
          अजा पुत्र बलिं दद्दात, देवो दुर्बल घातकः॥
 अर्थात- हे बकरे! तू न हाथी है, न घोड़ा, न शेर, तू सिर्फ बकरे का बच्चा है, मैं तेरी बलि चढा़ता हूं, देवता दुर्बल का नाश करते हैं।

      पानी के छींटों से जब बकरा अपने को हिलाता है (बरक जाता है) तो माना जाता है कि देवता ने बलि को स्वीकार कर लिया है। तब खुखरी से या अन्य अस्त्र से उसकी गर्दन को काटा जाता है और उसकी पूंछ काटकर उसके मुंह में डाला जाता है।


Risky Pathak

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Naatak or sootak ka effect Pushto ke hisaab se hota hai....
1 Din ka Naatak sootak to pure gaanv waalo ko maante hai.. Iske baad aate hai 3 dini biraadar.. jo 3 din tak maante hai
10 dini biraadar... 7 pusht ke andar..

at last Saake Biraadar means 12 dini biraadar


नातक- घर में बच्चे के आगमन होने पर घर में अशुद्धि(छूंत) होती है तो उसे नातक कहा जाता है, सातवें दिन "पंचगप" छिड़क कर घर की शुद्धि की जाती है और ११ वें नामकरण के बाद पूर्ण शुद्धि मानी जाती है। लेकिन छः माह तक किसी भी बडे़ मंदिर या धाम में जाना निषेध होता है।

शुतक- घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर जो अशुद्धि होती है, उसे शुतक कहा जाता है। १२ वें दिन में ब्रह्म भोज के बाद शुद्धि होती है।

गांव में सामान्यतः नातक और शुतक तीन दिन का माना जाता है, कुछ गांव वाले १० दिनी बिरादर होते हैं, जिन्हें १० दिन की अशुद्धि होती है और कुछ १२ दिनी होते हैं, जिन्हें १२ दिन की अशुद्धि मानी जाती है।


Risky Pathak

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Mehta Jee Ise
Acchat Barkoon kehte hai...


हमारी संस्कृति मे यह जुडा हुवा है.

जब अपने ससुराल जाते है तो जाने वकत अपने माता पिता का घर के दरवाजे की और चावल गिराते है ! इसे शुभ माना जाता है.


Risky Pathak

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Re: शगुन-अशुगन
« Reply #53 on: May 07, 2008, 06:03:04 PM »
Biraav Baat Kaatde to wo bhi apshakun maana jaata hai..


कहीं जाने पर यदि पानी का भरा घड़ा मिला तो शगुन माना जाता है और खाली घड़ा मिलने अपशगुन माना जाता है। इसके अलावा छींकने पर भी अपशगुन माना जाता है।

sanjupahari

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waah kya information laaye hoo Mehta jee, Mahar ji, Lallit bhaiji and Pathak jee....waah mandiroon ka bhi pata chal gaya, pithoragarh ki history aur natak-chutak sab....kya kamaal ke hoo sabhi loog,,,thnx for taking time and making this forum a big pahari encyclopedia...cheers for you all...
JAI UTTARAKHAND

पंकज सिंह महर

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waah kya information laaye hoo Mehta jee, Mahar ji, Lallit bhaiji and Pathak jee....waah mandiroon ka bhi pata chal gaya, pithoragarh ki history aur natak-chutak sab....kya kamaal ke hoo sabhi loog,,,thnx for taking time and making this forum a big pahari encyclopedia...cheers for you all...
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उ त ठीक ठेरा डागदर सैप, पैली ये बताओ आप कि अच्छयालन आप फोरम में क्यों नहीं आ रहे ठेरे, लगातार। सच्ची बतकौ बता रहा हूं भल कि आप आने वाले ठैरे तो हम सबको और ज्यादा ताकत मिल जाने वाली ठैरी।
   तो डाग्दर सैप अपने भाईयों के बीच आना है भल आपको।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के अलग भागो मे मगनी को अलग नाम से जाना जाता है.

   जैसे कुमोँउ मे मगनी को - पिठा लगना कहते है
  गडवाल की तरफ़ कही इसे रोका कहते है 

annupama89

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उत्तराखंड के अलग भागो मे मगनी को अलग नाम से जाना जाता है.

   जैसे कुमोँउ मे मगनी को - पिठा लगना कहते है
  गडवाल की तरफ़ कही इसे रोका कहते है 













chamoli me ise mangan/ mangani bolte hai

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यह आम तौर से देखा गया है की पहाडो मे लोग चावल खाते वक्त सिले हुए कपड़े नही पहनते ! और पंडित जी लोग को रोटी खाते वक्त भी यही नियम अपनाते है !

इसका क्या कारण हो सकता है ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भिटोली - चैत के महीनो में लोग अपने बेटी के घर जाते है और उसे उपहार देते है ! इस भिटोली यानी भेट करना कहते है !

 

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