Author Topic: Let Us Know Fact About Our Culture - आएये पता करे अपनी संस्कृति के तथ्य  (Read 46723 times)

Mukesh Joshi

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pandit ji dhoti pehan ke bhat banate hai ........
per khane wale undile kapde ..
is  ka jabab to mehar ji hi de sakte hai .
mehar ji pl...


यह आम तौर से देखा गया है की पहाडो मे लोग चावल खाते वक्त सिले हुए कपड़े नही पहनते ! और पंडित जी लोग को रोटी खाते वक्त भी यही नियम अपनाते है !

इसका क्या कारण हो सकता है ?


अरुण/Sajwan

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garhwal ke kai bhagon me mangni ko " Haldu Pithai" bhi kaha jata hai.


उत्तराखंड के अलग भागो मे मगनी को अलग नाम से जाना जाता है.

   जैसे कुमोँउ मे मगनी को - पिठा लगना कहते है
  गडवाल की तरफ़ कही इसे रोका कहते है 


Lalit Mohan Pandey

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Mehta ji, पहले जब किसी के घर मै भिटोली आती थी तो उस दिन उनके घर मै रात को त्यार होता था (जिसे भिटोली पकाना बोलते है ) और फ़िर पूरे गाव मै पूरी बाटी जाती थी, आज ये बहुत सीमित हो गया है क्युकी ज्यादा तर लोग भिटोली देने के बदले पैसे भेज देते है. शायद यह जानकारी सभी को ना हो की भिटोली कुवारी लड़कियु  ko भी दियी जाती थी (मतलब शादी से पहले भी दियी जाती थी) ..
 देली (दरवाजा) पूजन का जो तैय्हार होता है उसमे लड़किया हर घर मै जा के डेली पूजती है, और घर वाले उन्हें चावल, गुड (आजकल मिताई ) और पैसे देते है, उन्ही चावलू से लड़की के लिए उसके घर वाले एक दिन पकवान बनाते है ज्यादातर चावलू का सया , उसे ही लड़की का भिटोला कहते है. 
इसीलिए शादी के बाद भी जब भिटोली आती थी तो लड़की के मायके वाले कुछ पका हुआ पकवान जरुर लाते थे.


भिटोली - चैत के महीनो में लोग अपने बेटी के घर जाते है और उसे उपहार देते है ! इस भिटोली यानी भेट करना कहते है !

Lalit Mohan Pandey

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भिटोली के बारे मै एक और महत्वपूर्ण जानकारी ये है की किसी भी लड़की का शादी के बाद पहली भिटोली बैसाख के महीने मै आती है, और उसके बाद से चैत के महीने मै.
पर शायद आज ये रिवाज ख़तम होने के कगार मै है, सभी formality poori karne ke liye paise bej dete hai. इसलिए इसका महत्त्व अब कम हो गया है..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घात डालना (धतूनी)

उत्तराखंड में लोगो के अपने ईष्ट देवताओं में अटूट विश्वास है ! पुराने समय आमतौर से जब लोगो को कहानी न्याय नही मिलता था और कोई किसी पर अत्याचार कर रहा है तो लोगो देवताओं के पास घात डालते थे !

मतलब न्याय के लिए देवताओ को आह्वान करना जिसे घात डालना भी कहते है !

खीमसिंह रावत

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मजैठी 

हमारे यहाँ पर सावन में मजैठी (एक प्रकार की मेहंदी ) पैर और हाथों में लगाईं जाती है मजैठी लगाने का सिलसिला जन्माष्टमी तक चलता है जन्माष्टमी के बाद मजैठी नहीं लगाईं जाती है\ मजैठी का पौधा सदाबहार नहीं है यह अषाढ़ माह में जमाना शुरू हो जाता है तीन चार महीने बाद अपने आप सुख जाता है उसके बीज जमीन में गिर जाते है फिर अषाढ़ माह में ही अंकुरित होते है / मजैठी का रंग ज्यादा गहरा लगे मजैठी को पिसते समय नीबू का रस भी मिलाया जाता है/ एक लोकोक्ति परचलित है की मजैठी को माथे पर लगावो तो उसका रंग माथे पर नहीं लगता है जिसके माथे पर लग गया उसे भाग्यशाली मन जाता है/[/size]

Devbhoomi,Uttarakhand

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                    क्या आप इस कला  के बारे में जानते है ?

वशुधारा

उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों मैं घर के मंदिर,दहलीज को गेरू से लीपकर बिस्वार की अनेक धाराएँ डाली जाती हैं ! जो दुग्ध धाराओं की तरह प्रतीत होती हैं !
इस प्रकार का चित्रांकन वाशुधारा कहलाता है !इनके अतरिक्त जीवमात्रिका पट्टा,गंगा दशहरे पत्र ,वेदी अंकन सेली (थाली) षष्ठी चौकी,पौ खोड़िया आदि का भी प्रचलन है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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नात--रसोई घर की दीवारों पर गेरू तथा बिस्वार से लक्ष्मी-नारायण चैतुआ तथा बिखौती के चित्र बनाकर धन-धान्य की कामना की जाती है !इन प्रतीकात्मक चित्रों को टुपुकभी कहा जाता है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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कुमाऊंनी व जौनसार भावर की संस्कृति का होगा समागम



नैनीताल। श्रीराम सेवक सभा के तत्वावधान में आयोजित होली महोत्सव में इस बार कुमाऊंनी होली के साथ ही जौनसार-भाबर की होली के अनूठे रंग भी देखने को मिलेंगे। महोत्सव का मुख्य आकर्षण महिला होली अब 22 फरवरी से होगी।

श्रीराम सेवक सभा के पूर्व अध्यक्ष गंगा प्रसाद साह ने बताया कि 21 फरवरी को सायं 4 बजे बैठकी होली के साथ महोत्सव का आगाज होगा। पिछले कार्यक्रम में बदलाव करते हुए अब 22 व 23 फरवरी को अल्मोड़ा, हल्द्वानी, काठगोदाम व चंपावत की महिला होल्यारों द्वारा होली गायन किया जाएगा। 23 को बैठकी होली का एकल गायन होगा जिसमें कुमाऊं के चार नामी कलाकार हिस्सा लेंगे। 24 को रंग धारण व चीरबंधन, 25 को आंवला एकादशी पूजन तथा 26 को गीत एवं नाटक प्रभाग के कलाकारों द्वारा होली पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे। 27 को स्थानीय महिलाओं की होली होगी।

28 को होली स्वांग के अलावा अपराह्न 2.30 बजे से पारितोषिक वितरण समारोह आयोजित किया जाएगा। पहली मार्च को छरड़ी के साथ महोत्सव का समापन होगा। श्री साह ने बताया कि महोत्सव की तैयारियां अंतिम दौर में है। महिला होली को सफल बनाने के लिए स्थानीय महिलाओं की कमेटी का गठन किया गया है।


SOURS DAINIK JAGRAN

हेम पन्त

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आपके वर्णन के अनुसार मुझे तो "वशुधारा" ऐपण का ही दूसरा नाम लग रहा है.

                    क्या आप इस कला  के बारे में जानते है ?

वशुधारा

उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों मैं घर के मंदिर,दहलीज को गेरू से लीपकर बिस्वार की अनेक धाराएँ डाली जाती हैं ! जो दुग्ध धाराओं की तरह प्रतीत होती हैं !
इस प्रकार का चित्रांकन वाशुधारा कहलाता है !इनके अतरिक्त जीवमात्रिका पट्टा,गंगा दशहरे पत्र ,वेदी अंकन सेली (थाली) षष्ठी चौकी,पौ खोड़िया आदि का भी प्रचलन है !


 

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