Author Topic: Lokoktiyon main Uttarakhand ka Atit,लोकोक्तियों में उत्तराखंड का अतीत  (Read 17482 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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९-"रवाँइ का फौदार"-पंवार शासनकाल मैं रंवाँइ (उत्तरकाशी जनपद)मैं तैनाद फोजदार बहुत अत्याचारी और निरंकुश था,उक्त लोकोक्ति अत्याचार की प्रतीक हैं !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के जोहार (पिथोरागढ़) पर यह कहावत :

आधा संसार, आधा मुन्सार

यहाँ के लोग अपने आप को बहुत बड़ा होना मानते है! (कुमाउ के इतिहास में उल्लेख)

यानी

आधे में तो परमात्मा ने मुन्सार या जोहार में ग्राम बसाये है और आधे में शेष जगत! गोरी नदी के दाहिने तरफ वर्फ का दका पहाड़ है ! उसका नाम पुरानो में जीवर है, इसी से इस परगने का नाम जोहार भी पड़ा है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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१०-गौर्ख्यानी मचिं छ

१८०३ से १८१५ तक गढ़वाल पर गौर्खाओं का क्रूर बबब्र्तापूरण शासन रहा उनके अत्याचारों को आज भी उक्त लोकोक्ति द्वारा स्मरण किया जाता है

Devbhoomi,Uttarakhand

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11-नादिर सै मचिं छ

दिली के निरंकुश शासक नादिर शाह के किस्से उत्तराखंड मैं भी सुने जाते थे इसलिए यह युक्ति नादिर शाह के अत्याचारों का बख्यान करती है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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11-मारी बाँधी मुशलमान बनोदू

ओरंजेब के शासन काल मैं हिन्दुओं का बलात इस्लाम मैं धर्म परिवर्तन किया हाता था बहुत से हिन्दू मैदानों से भागकर पहाड़ों मैं आ गए थे,धर्म परिवर्तन की विवशता इस लोकोक्ति द्वारा प्रकट की जाती है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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१२- नबाब कु बच्चा बनियूं छ

उत्तराखंड के दक्षिण भाग तराई पर मुगल नबाबों का अधिकार रहा है ,उनकी शानौ-शौकत पर उक्त लोकोक्ति आज भी प्रचलित है!

 इसी प्रकार अंग्रेजी राज मैं उनके ठाट बाट देखकर तथा उनकी जीवन शैली जीने वाले को नबाब के स्थान पर "लाट" का प्रयोग करके इसी लोकोक्ति से अलंकृत किया जाता है !

विनोद सिंह गढ़िया

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द्याप्त देखण जागश्यर, गंग नाण बागश्यर

कुमाऊं में यह धारणा काफी पुरानी है कि द्याप्त देखण जागश्यर, गंग नाण बागश्यर, अर्थात जागेश्वर में देवता के दर्शन होते हैं जबकि बागेश्वर में गंगा स्नान किया जाता है।

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]कितना भाईचारा था उन दिनों भी जब हमारे क्षेत्रों के राजा एक दूसरे पर आक्रमण करते थे और प्रजा (हम लोग) इनके युद्धों से त्रस्त होकर एक दूसरे के यहाँ पलायन करते थे। जब कुमाऊं का राजा गढ़वाल पर आक्रमण करता था तो गढ़वाल की स्थाई प्रजा कुमाऊं चली जाती थी और जब गढ़वाल का राजा कुमाऊं पर आक्रमण करता था तो कुमाऊं की प्रजा गढ़वाल का रुख करती थी।  तब यह लोकोक्ति काफी प्रचलन में थी -   


Pawan Pathak

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1872 में पाल राजा ने स्थापित किया था झूला
अस्कोट में 143 साल पुरानी है झूला झूलने की परंपरा

केबी पाल
अस्कोट (पिथौरागढ़)। सावन में झूला झूलने की परंपरा देश में रही है। पहाड़ में इसका कम प्रचलन है लेकिन, सैकड़ों साल तक राजशाही के ठाठबाट का दीदार करने वाले अस्कोट में 143 साल पहले से सावन में झूला झूलने की परंपरा है। झूले को यहां हिंडोला कहा जाता है।
1872 में अस्कोट रियासत के तत्कालीन राजा पुष्कर पाल ने अस्कोट में मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर की स्थापना की। मंदिर स्थापना के साथ ही मंदिर परिसर में भगवान शंकर और मां पार्वती को लकड़ी का झूला अर्पित किया गया। इस झूले की खास बात यह है कि झूले में बैठने से पहले लोग झूले का पूजन करते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भगवान शंकर के दर्शन, पूजन के बाद मंदिर परिसर में स्थापित ऐतिहासिक झूले में अवश्य झूलते हैं। मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर में झूला झूलना हर आयु वर्ग के लोग अपना सौभाग्य समझते हैं। सावन में झूला झूलने के लिए लोगों की लंबी लाइन लगती है।
पाल शासनकाल में झूले की मरम्मत का काम राजकोष से होता था। वर्ष 1945 में राजा विक्रम पाल के शासन के दौरान राजरानी त्रिभुवनेश्वरी देवी ने झूले का जीर्णोद्धार कराया था। 10 साल पहले तक झूला लकड़ी का हुआ करता था। पुल लकड़ी का था तो झूला बनाने के लिए नेपाल से साल के वृक्ष लाए जाते थे। मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर पर नेपाल के लोगों की भी अगाध श्रद्धा है। मंदिर समिति ने 10 साल पहले पर्यटन विभाग के सहयोग से 25 फीट लंबा लोहे का झूला स्थापित किया। झूले की जंजीरें वही 143 साल पुरानी है।


Scource-
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150804a_005115005&ileft=168&itop=1144&zoomRatio=219&AN=20150804a_005115005

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुछ गढ़वाली औखाण (मुहावरों) का मजा आप भी लीजिये

 

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