Author Topic: Makrain Fair celerbated in Gahrwal गढवाल में मकरैण (मकर संक्रांति)&गेंद का मेला  (Read 3879 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

Our Senior Member Bhishma Kukreti has provided this information about Makrain Fair which is generally held several parts of Garhwal. Makrain Festival is celeberated on Makarsangrati as per hindu calender.

गढवाल में मकरैण (मकर संक्रांति) और गेंद का मेला

गंगासलाण याने लंगूर, ढांगु, डबरालस्युं, उदयपुर, अजमेर में मकरसंक्रांति का कुछ अधिक ही महत्व है। सेख या पूस के मासांत के दिन इस क्षेत्र में दोपहर से पहले कई गाँव वाले मिलकर एक स्थान पर हिंगोड़ खेलते हैं। हिंगोड़ हॉकी जैसा खेल है। खेल में बांस कि हॉकी जैसी स्टिक होती है तो गेंद कपड़े कि होती है। मेले के स्थान पर मेला अपने आप उमड़ जाता है। क्योंकि सैकड़ो लोग इसमें भाग लेते हैं। शाम को हथगिंदी (चमड़े की) की क्षेत्रीय प्रतियोगिता होती है और यह हथगिंदी का खेल रात तक चलता है हथगिंदी कुछ-कुछ रग्बी जैसा होता है। पूर्व में हर पट्टी में दसेक जगह ऐसे मेले सेख के दिन होते थे। सेख की रात को लोग स्वाळ पकोड़ी बनाते हैं और इसी के साथ मकर संक्रांति की शुरुआत हो जाती है। मकर संक्रांति की सुबह भी स्वाळ पकोड़ी बनाये जाते हैं। दिन में खिचड़ी बनाई जाती है व तिल गुड़ भी खाया जाता है। इस दिन स्नान का भी महत्व है।

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
इस दिन गंगा स्नान के लिए लोग देवप्रयाग, ब्यास चट्टी, महादेव चट्टी, बंदर भेळ, गूलर गाड़, फूलचट्टी, ऋषिकेश या हरिद्वार जाते हैं। इन जगहों पर स्नान का धार्मिक महत्व है। गंगा सलाण में संक्रांति के दिन कटघर, थलनदी, देवीखेत व डाडामंडी में हथगिंदी की प्रतियोगिता होती है। इस दिन यहां मेला लगता है। कटघर में ढांगु व उदयपुर वासियों के बीच व थलनदी में उदयपुर व अजमेर पट्टी के मध्य, देवीखेत में डबरालस्यूं के दो भागों के मध्य व डाडामंडी में लंगूर पट्टी के दो भागों के मध्य हथगिंदी की प्रतियोगिता होती है। गेंद के मेले में धार्मिक भावना भी सम्पूर्ण रूप से निहित है। सभी जगहों पर देवी व भैरव कि पूजा की जाती है।(by Bhishma Kukreti)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
इस दिन खेल के लिए चमड़े की गेंद बनायी जाती है। जिस पर पकड़ने हेतु कंगड़ें बने होते हैं। इस गेंद को शिल्पकार ही बनाना जानते हैं। दोपहर तक गाँवों से सभी लोग अपने-अपने औजियों, मंगलेरों, खिलाडियों व दर्शकों के साथ तलहटियों में गेंद मेले के स्थान पर पहुँच जाते है। देवी, भैरव, देवपूजन के साथ गेंद का मेला शुरू होता है। प्रतियोगिता का सरल नियम है कि गेंद को अपने पाले में स्वतंत्र रूप से ल़े जाना होता है। जो गेंद को स्वतंत्र रूप से अपने गधेरे में ल़े जाय वही पट्टी जीतती है। गेंद पर दसियों सैक्दाक लोग पिलच पड़ते हैं और गेंद लोगों के बीच ही दबी रहती है। कई बार गेंद के एक-एक इंच सरकने में घंटो लग जाते हैं अधिकतर यह देखा जाता है कि देर रात तक भी कोई जीत नहीं पता है। जीतने वाले को बहुत इनाम मिलता है। यदि निर्णय नहीं हुआ तो गेंद को मिटटी में दबा दिया जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
इसी दौरान मेले में रौनक भी बढ़ती रहती है। दास/औजी पांडव शैली में ढोल दमौं बजाते हैं। लोग पांडव, कैंतुरा, नरसिंह (वीर रस के नृत्य) नाचते हैं। मंगल़ेर मांगल (पारंपरिक गीत) लगाते हैं। बादी ढ्वलकी गहराते हैं और टाल में बादण नाचती हैं। लोग झूमते हुए उन्हें इनाम देते रहते हैं। कहीं पुछेर या बाक्की बाक बोलते हैं। कहीं छाया पूजन भी होता है। तो कहीं रखवाळी भी होती रहती है। मेले में मिठाई, खिलोनों की खरीदारी होती है। पुराने ज़माने में तो जलेबी मिठाईयों कि राणी बनी रहती थी। बकरे कटते थे और शराब का प्रचलन तो चालीस साल पहले भी था अब तो ...... गेंद के मेलों में बादी-बादण के गीत प्रसिद्ध थे। (by Bhishma Kukreti)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
मटियाली कालेज के प्रधानाध्यापक श्री पीताम्बर दत्त देवरानी व श्री शिवानन्द नौटियाल द्वारा संकलित एक लोकगीत जो गेंद के मेलों अधिक प्रचलित था-
 
 चरखी टूटी जाली गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 चरखी मा त्यारो जिठाणो गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 ना बैठ ना बैठ गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 पाणि च गरम गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 त्वेकू नि च शरम गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 मरे जालो मैर गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 मरण कि च डौर गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 ताल की कुखडी गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 तेरी दिखेली मुखडी गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 खेली जाला तास गोविंदी ना बैठ चरखी मा
 शरील च उदास गोविंदी ना बैठ चरखी मा गोविंदी ना बैठ चरखी मा॥
 इस तरह गेंद के मेलों में उत्साह, उमंग एक दुसरे से मिलना सभी कुछ होता था।
 
 Copyright @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com
You might also like:


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
 देवभूमि में मकरैण
कुमाऊं में घुघुतिया और जौनसार में मरोज त्योहार,गढवाल मा खिचड़ी संगरांद उत्तराखंडी पर्व-त्योहारों की विशिष्टता यह है कि यह सीधे-सीधे ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़े हैं। मकर संक्रांति इन्हीं में से एक है। इस संक्रांति को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और इसी तिथि से दिन बड़े व रातें छोटी होने लगती हैं। लेकिन, सबसे अहम् बात है मकर संक्रांति से लोकजीवन का पक्ष जुड़ा होना। यही वजह है कि कोई इसे उत्तरायणी, कोई मकरैणी, कोई खिचड़ी संगरांद तो गिंदी कौथिग के रूप में मनाता है। गढ़वाल में इसके यही रूप हैं, जबकि कुमाऊं में घुघुतिया और जौनसार में मरोज त्योहार के रूप में मनाया जाता है। दरअसल, त्योहार एवं उत्सव देवभूमि के संस्कारों रचे-बसे हैं। पहाड़ की पहाड़ जैसी जीवन शैली में वर्षभर किसी न किसी बहाने आने वाले ये पर्व-त्योहार अपने साथ उल्लास एवं उमंगों का खजाना लेकर भी आते हैं। जब पहाड़ में आवागमन के लिए सड़कें नहीं थीं, काम-काज से फुर्सत नहीं मिलती थी, तब यही पर्व-त्योहार जीवन में उल्लास का संचार करते थे। ये ही ऐसे अवसर होते थे जब घरों में पकवानों की खुशबू आसपास के वातावरण को महका देती थी। दूर-दराज ब्याही बेटियों को इन मौकों पर लगने वाले मेलों का बेसब्री से इंतजार रहता था। यही मौके रिश्ते तलाशने के बहाने भी बनते थे। चुपचाप से लड़का-लड़की एक-दूसरे को देखकर पसंद-नापसंद घरवालों के सामने जाहिर कर देते थे। आज भी मकरैण पर पूरे उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर इसी तरह मेलों का आयोजन होता है। मकरैण पर पौड़ी जनपद के अंतर्गत यमकेश्र्वर ब्लाक के थलनदी नामक स्थान पर लगने वाले गिंदी कौथिग का पौराणिक स्वरूप स्थानीय लोग आज भी कायम रखे हुए हैं। इसके अलावा उत्तरायण में हिंदू परंपरा अपने मांगलिक कार्यो का शुभारंभ कर देती है, जो दक्षिणायन के कारण रुके रहते हैं। रत्‍‌नमाला में कहा गया है कि व्रतबंध, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश, देव प्रतिष्ठा, विवाह, चौल, मंुडन आदि शुभकार्य उत्तरायणी में करें। ऋतु परिवर्तन के प्रतीक इस पर्व पर किए जाने वाले स्नान आदि के कारण व्यक्ति में जो उत्साह पैदा होता है, उसका महत्व भी सर्वविदित है। वास्तविकता यह है कि पर्व और त्योहार हमारे जीवन की निष्कि्रयता और उदासीनता को दूर कर हमें जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्रिय होने के प्रेरणा देते हैं और व्यक्ति एवं समाज की जीवनधारा को निरंतर गतिमान बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
मकरैण शुभ हो...
 मैनो मा कू मैना मौ कु मैना हे...
 ऎसूं दा का मौ मा चुनौ हुरैन्या हे..
 खिंचड़ी संकराँद नेता घर आंदा,
 आस-विकास की लम्बी छ्वीं लगांदा
 सौं मकरैण की वोट मिथैं दियां है.

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22