Author Topic: Mangal Chaupaiyan From Ramcharit Manas - मंगल चौपाइयां (श्री रामचरित मानस से)  (Read 54616 times)

hem

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उत्तर काण्ड से कुछ अन्य चौपाइयां :

हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या | प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या ||

भगति हीन गुन सब सुख ऐसे | लवन बिना बहु बिंजन जैसे ||

सब मम प्रिय सब मम उपजाए | सब ते अधिक मनुज मोहि भाए ||

भगतिवन्त अति नीचउ प्रानी | मोहि प्रानप्रिय अस मम बानी ||

तब ते मोहि न ब्यापी माया | जब ते रघुनायक अपनाया ||

बिनु संतोष न काम नसाहीं | काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं ||

श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई | बिनु महि गंध कि पावइ कोई ||

         
     
     

hem

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उत्तर काण्ड से ही कुछ और चौपाइयां :

गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई |  जों बिरंचि संकर सम होई ||

कलिजुग केवल हरि गुन गाहा | गावत नर पावहिं भव थाहा ||

कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना | एक अधार राम गुन गाना ||

जेहिं ते नीच बड़ाई पावा | सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा || 

जे सठ गुर सन इरिषा करहीं | रौरव नरक कोटि जुग परहीं ||

जो इच्छा करिहहु मन माहीं | हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं ||   
   
नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं |संत मिलन सम सुख जग नाहीं ||

संत सहहिं दुःख पर हित लागी | पर दुख हेतु असंत अभागी ||

भूर्ज तरू सम संत कृपाला | पर हित निति सह बिपति बिसाला ||

खल बिनु स्वारथ पर अपकारी | अहि मूषक इव सुनु उरगारी ||

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला | तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला ||

संत बिटप सरिता गिरि धरनी | पर हित हेतु सबन्ह कै करनी ||

shailikajoshi

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Kah Sita Vidhi Bha Prikula
Milahi na Pawak Mitahi Naa Sula

पंकज सिंह महर

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आनलाइन श्री रामचरित मानस
« Reply #33 on: June 25, 2008, 01:13:30 PM »
आप लोगों के लिये खुशखबरी.....आज मुझे आनलाइन रामचरित मान्स का लिंक मिला है। पूरी रामचरित मानस पढि़ये
गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस भारतीय संस्कृति मे एक विशेष स्थान रखती है। वैसे तो श्री रामचरित मानस के बहुत सारे संस्करण इन्टरनैट पर दिख जायेंगे, परन्तु यूनिकोड का संस्करण उपलब्ध ना होने के कारण मैने इसके संकलन का एक छोटा सा प्रयास किया है।

http://ramayan.wordpress.com/


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Thanks Mahar ji for sharing this link :)

hem

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राम चरित  मानस की चौपाइयां ही नहीं दोहे भी उतने ही महत्वपूर्ण और सारगर्भित हैं. -


भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु |
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु ||


( भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण किये  रहता है | अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष की मारने में ||)

Devbhoomi,Uttarakhand

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* हरषि मुनीस कहेउ मृदु बानी। आनहु सकल सुतीरथ पानी॥
औषध मूल फूल फल पाना। कहे नाम गनि मंगल नाना॥1॥

भावार्थ:-मुनिराज ने हर्षित होकर कोमल वाणी से कहा कि सम्पूर्ण श्रेष्ठ तीर्थों का जल ले आओ। फिर उन्होंने औषधि, मूल, फूल, फल और पत्र आदि अनेकों मांगलिक वस्तुओं के नाम गिनकर बताए॥1॥

* चामर चरम बसन बहु भाँती। रोम पाट पट अगनित जाती॥
मनिगन मंगल बस्तु अनेका। जो जग जोगु भूप अभिषेका॥2॥

भावार्थ:-चँवर, मृगचर्म, बहुत प्रकार के वस्त्र, असंख्यों जातियों के ऊनी और रेशमी कपड़े, (नाना प्रकार की) मणियाँ (रत्न) तथा और भी बहुत सी मंगल वस्तुएँ, जो जगत में राज्याभिषेक के योग्य होती हैं, (सबको मँगाने की उन्होंने आज्ञा दी)॥2॥

* बेद बिदित कहि सकल बिधाना। कहेउ रचहु पुर बिबिध बिताना॥
सफल रसाल पूगफल केरा। रोपहु बीथिन्ह पुर चहुँ फेरा॥3॥

भावार्थ:-मुनि ने वेदों में कहा हुआ सब विधान बताकर कहा- नगर में बहुत से मंडप (चँदोवे) सजाओ। फलों समेत आम, सुपारी और केले के वृक्ष नगर की गलियों में चारों ओर रोप दो॥3॥

* रचहु मंजु मनि चौकें चारू। कहहु बनावन बेगि बजारू॥
पूजहु गनपति गुर कुलदेवा। सब बिधि करहु भूमिसुर सेवा॥4॥

भावार्थ:-सुंदर मणियों के मनोहर चौक पुरवाओ और बाजार को तुरंत सजाने के लिए कह दो। श्री गणेशजी, गुरु और कुलदेवता की पूजा करो और भूदेव ब्राह्मणों की सब प्रकार से सेवा करो॥4॥
दोहा :

* ध्वज पताक तोरन कलस सजहु तुरग रथ नाग।
सिर धरि मुनिबर बचन सबु निज निज काजहिं लाग॥6॥

भावार्थ:-ध्वजा, पताका, तोरण, कलश, घोड़े, रथ और हाथी सबको सजाओ! मुनि श्रेष्ठ वशिष्ठजी के वचनों को शिरो

Rajen

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सियावर रामचंद्र पद जै शरणम्.

Devbhoomi,Uttarakhand

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सियावर रामचंद्र पद जै शरणम्.

hem

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जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन करतार |
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार ||


( विधाता ने इस जड़-चेतन विश्व को गुण-दोषमय रचा है | किन्तु संत रूपी हंस दोषरूपी जल को छोड़ कर गुणरूपी दूध ही ग्रहण करते हैं || )

 

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