मातु पिता गुरु स्वामी सिख सिर धरि करहिं सुभायँ |
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ ||
(जो लोग माता, पिता, गुरु, स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढा कर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है; नहीं तो जगत में जन्म व्यर्थ ही है |)