Author Topic: Mangal Chaupaiyan From Ramcharit Manas - मंगल चौपाइयां (श्री रामचरित मानस से)  (Read 54614 times)

हलिया

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मंगल चौपाइयां

बचपन में, गांव में, हम श्री रामचरित मानस का खूब सस्वर पाठ करते थे।  कुछ चौपाइयां रह रह कर जुबान में आ जाती हैं।  कुछ प्रचलित चौपाइयौं को यहां लिखने का प्रयास करता हूं।  उम्मीद है आप सज्जन भी इसमें भाग अवश्य भागीदारी करेंगे।


मंगल भवन अमंगल हारी ।  द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥


मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथ राजू ॥


हरि अनंत हरि कथा अनंता ।  कहहि सुनहि बहु बिधि संता ॥


रामहि केवल प्रेम पियारा ।  जानि लेहु जो जाननि हारा ॥

हलिया

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मंगल चौपाइयां



कोमल चित अति दीनदयाला ।  कारन बिनु रघुनाथ कॄपाला ॥



अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ॥



दीन दयाल बिरिदु संभारी ।  हरहु नाथ मम संकट भारी ॥



प्रभु की कॄपा भयहु सब काजू ।  जन्म हमार सुफ़ल भा आजू ॥

पंकज सिंह महर

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शिवजी की महिमा का वर्णन किया श्री राम ने

आशुतोष तुम औढ़रदानी, आरती हरहुं दीनु जनु जानी।

पंकज सिंह महर

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कीन्हि प्रसन्न जेहि भाँति भवानी, जेहि बिधि शंकर कहा बखानी।


hem

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बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ||   (बाल कांड)

सीय राममय सब जग जानी |  करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी ||  (बाल कांड)

मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी ||  (बाल कांड)

महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)


hem

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नहिं कलि करम न भगति बिबेकू | राम नाम अवलंबन एकू || (बाल कांड)

समरथ कहुँ नहिं दोष गोसाईं  | रवि पावक सुरसरि की नाईं || (बाल कांड)

गुरु के बचन प्रतीति न जेही | सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही || (बाल कांड)

जो नहिं करइ राम गुन गाना | जीह सो दादुर जीह समाना || (बाल कांड)

रामकथा सुंदर कर तारी | संसय बिहग उडावनिहारी || (बाल कांड ) 

हलिया

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मंगल चौपाइयां


जय जय गिरिबर राज किशोरी । जय महेश मुख चंद्र चकोरी ॥


उल्टा नामु जपत जग जाना ।  बालमिकि भए ब्रह्म समाना ॥


उमा कहेहु मैं अनुभव अपना । सत हरि भजनु जगत सब सपना  ॥



अब मोहि भा भरोस हनुमंता ।  बिनु हरि कॄपा मिलहिं नहि संता ॥


सियाबर रामचन्द्र की जै पद शरणम

Lalit Mohan Pandey

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बहुत खूब राजु दा, पहाड़ मैं वैसे भी knowledge वाले पंडीतु का अभाव हो रहा है

hem

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हरि अनंत हरि कथा अनंता | कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता || (बाल काण्ड)

अति प्रचंड रघुपति कै माया | जेहि न मोह अस को जग जाया || (बाल काण्ड)

जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा | करहु सो बेगि दास मैं तोरा || (बाल काण्ड)

बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं | गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं || (बाल काण्ड)

जाके हृदयँ भगति जस प्रीती | प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहि रीति || (बाल काण्ड)         

Rajen

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धीरज धर्म मित्र अरू नारी।
आपद काल परिखिअहिं चारी ॥

 

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