Author Topic: Marriages Customs Of Uttarakhand - उत्तराखंड के वैवाहिक रीति रिवाज  (Read 99256 times)

Risky Pathak

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वन डे विवाह:


पहाडो में आजकल एक दिवसीय विवाह का प्रचालन जोरो पर है(इस विषय में अधिक जानकारी http://www.merapahad.com/forum/culture-of-uttarakhand/!-system-of-one-day-marriages-in-pahad/ इस लिंक पर उपलब्ध है )| वन दे विवाह में कुछ विधान छोड़ दिए जाते है|(क्योंकि वो विधान रात्रि में ही संभव है))| जैसे एक ध्रुव तारा नामक विधान होता है अंत में| जिसमे ध्रुव तारा निकलने के बाद  रीत निभायी जाती है| पर जैसा आप जानते ही है दिन में ध्रुव तारा दीखना असम्भव है|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दुण वियोल (दूसरा दूल्हा)
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मैंने अपने बागेश्वर और अन्य इलाकों में यह कई शादियों में यह देखा है जब बरात लडकी के घर पहुंचती है तो एक छोटे बच्चे को दूल्हा बनाया जाता है जो लड़की की तरफ से होता है, जिसे लड़की वाले डोली पर बैठा के लाते है और इसके हाथ में एक छाता होता और दुल्हे के हाथ में भी ! जब बारात घर पर पहुंचती है तो इन दोनों के छाते एक्सचेंज किया जाते है ! इस प्रथा के बारे बहुत सहज जानकारी नहीं है लेकिन बहुत लम्बे समय से यह चलते आ रही है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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परखना
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यहाँ पर भी निशान (झंडे) की पूजा सबसे पहले होता है लड़की की ओर से २-३ महिलाये निशान की पूजा सबसे पहले करते है और अक्स्यत यानी कोरे चावल से पूजा करते है! फिर ये दूल्हा को मुठीbhar चावल से दुल्हे की ओर और निशान की ओर चावल को घुमाते है और अंत में चावल को अपने सिर से पीछे की ओर गिराते है !

इस प्रथा को कहते है परखना !  



हेम पन्त

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सुंवाल पथाई

सुंवाल पथाई भी हमारे समाज का एक विशिष्ट वैवाहिक रिवाज है. सुंवाल पथाई वर व वधु दोनों पक्षों द्वारा अपने घर में की जाती है. सुवाल एक तरह की बहुत पतली पूरियां होती हैं, जिन्हें घर की स्त्रियां नाते-रिश्तेदारो व गांव की महिलाओं के साथ मिलकर बनाती है. इसी समय तिल व आटे से बना प्रसाद और लड्डू भी बांटे जाते हैं. सुवाल पथाई के दौरान महिलाओं के द्वारा समधा-समधि की प्रतीकात्मक मूर्ति भी बनाई जाती हैं. दोनों पक्ष इन मूर्तियों का आदान-प्रदान मुख्य शादी के समय करते हैं.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आचव यानी (सात फेरे)
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शादी में सबसे महत्वपूर्ण रस्म सात फेरे को माना जाता है ! अगर आपने हिंदी फिल्म नदिया के पार देखी है तो उसमे एक गाना है!

           " जब तक पूर ना हो फेरे सात, ना तब तक दूल्हा न दुल्हन के साथ"

उत्तराखंड की भाषाओ में सात फेरो को अलग-२ दंग कहा जाता है कुमाओं की और इसे आचव ( यानी सात फेरे)  कहते है! शादी के बाद, आचव की रस्म होती है जो इस प्रकार से है :

       -   कभी कभी आचव दुल्हन के घर भी होता, और अक्सर यह दुल्हे के घर जब बारात वापस लौट आती है !
     
       -   इस प्रथा में पंडित जी हवन पूजा भी करते है !

       -    एक चीड का पेड (छोटा वाला जिसे बुनिया कहते है) उसे भी वहां पर रखा जाता है !

       -    एक सफ़ेद पत्थर पर सिक्का रखा जाता है और हर फेरे पर दुल्हन इस सिक्के को पत्थर से गिरती है और दूल्हा को उसे डूड के इस पर वापस रखना होता है ! 
 
   

पंकज सिंह महर

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दुण वियोल (dusra दूल्हा)
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मैंने अपने बागेश्वर और अन्य इलाकों में यह कई शादियों में यह देखा है जब बरात लडकी के घर पहुचती है तो तो एक छोटे बच्चे को दूल्हा बनाया जाता है जो लड़की की taraf से होता है जिसे ladki waale doli पर बैठा के लाते है और इसके हाथ में एक छाता होता और दुल्हे के हाथ में भी ! जब बारात घर पर पचती है तो एन दोनों के छाते एक्सचेंज किया जाते है ! इस प्रथा के बारे बहुत सहज jaankari नहीं है लेकिन बहुत sambe समय से यह चलते aa रही है !


मेहता जी,
      इस विषय पर प्रमाणिक जानकारी तो हमें कम ही है, क्योंकि आज तक बारात में हमने नाचने के अलावा और कुछ किया नहीं। :D ;D
उक्त सूचना पर एक संशोधन है कि लड़की के घर पर बारात पहुंचने पर लड़की का छोटा भाई दूल्हे के साथ छाता बदलता है। इसका आशय क्या है.....जानकारी की प्रतीक्षा है।

पंकज सिंह महर

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निशाण (झण्डे) की परम्परा-

उत्तराखण्डी वैवाहिक रीति में निशाण का भी काफी महत्व है, लड़के के घर से जब बारात निकलती है तो लाल रंग का निशाण बारात के आगे चलता है, जो युद्ध के लिये उद्दत होने का प्रतीक है।
बारात के आखिरी में सफेद रंग का निशाण चलता है, जो संभवतः सीज-फायर के लिये होगा। जब बारात लड़की के घर (गेट) पर पहुंचती है तो वहां पर एक और रस्म निभाई जाती है जिसे दौर-बरात कहते हैं, जिसमें दोनों पक्षों के बीच वाद्य यंत्रों का मुकाबला भी होता है, वहां पर अमूमन वर पक्ष की ही जीत होती है।  उसके बाद ही सफेद निशाण बारात के आगे चलता है।
बारात वापसी के समय सफेद रंग का निशाण बारात के आगे चलता है, जो कि सुख-समृद्धि की कामना का प्रतीक है, इसका यह भी अर्थ हो सकता है कि आने वाली वधू अपने साथ सुख-समृद्धि, सम्पन्नता और ऎश्वर्य लेकर आये।

Please see the Photo:


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

In our area this system is followed. As i mentioned there is slight changes in different areas.

However, i also tried to know the reason behind this tradition from some senior citizen but nobody could give me the satisfactory answer.

Similar is the case of a pine tree (small called buniya) required during the Saat Phere (called Aachav). I am trying to get information from old books and some people and put the detail here.


दुण वियोल (dusra दूल्हा)
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मैंने अपने बागेश्वर और अन्य इलाकों में यह कई शादियों में यह देखा है जब बरात लडकी के घर पहुचती है तो तो एक छोटे बच्चे को दूल्हा बनाया जाता है जो लड़की की taraf से होता है जिसे ladki waale doli पर बैठा के लाते है और इसके हाथ में एक छाता होता और दुल्हे के हाथ में भी ! जब बारात घर पर पचती है तो एन दोनों के छाते एक्सचेंज किया जाते है ! इस प्रथा के बारे बहुत सहज jaankari नहीं है लेकिन बहुत sambe समय से यह चलते aa रही है !


मेहता जी,
      इस विषय पर प्रमाणिक जानकारी तो हमें कम ही है, क्योंकि आज तक बारात में हमने नाचने के अलावा और कुछ किया नहीं। :D ;D
उक्त सूचना पर एक संशोधन है कि लड़की के घर पर बारात पहुंचने पर लड़की का छोटा भाई दूल्हे के साथ छाता बदलता है। इसका आशय क्या है.....जानकारी की प्रतीक्षा है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भिटोली - शादी के दिन

हमारे यहाँ पर एक और प्रथा है जिस दिन लड़की की विदाई होती है उसी दिन बरात के बिदा होने के बाद शाम को लड़की की तरफ कुछ लोग दुल्हन के साथ जाते है !  जिसे भिटोली भी कहते है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उरकून - दुरकून प्रथा
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यह प्रथा भी समय से चली आ रही है ! बार के दुसरे दिन दुल्हन दुल्हे के साथ अपने माता पिता के घर जाती है और एक दिन वहां ठहर फिर से वापस आती है ! दुल्हे दुल्हन का एक बार फिर दुल्हन के मायके पहुचने पर उनकी आरती उतारी जाती है ! दूल्हा कुछ गिफ्ट अपने सासू ससुर के लिए ले जाते है !

इस प्रथा को उरकून - दुरकून कहते है !
 

 

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