उत्तराखंड में शादी के रीति रिवाज-प्रथम भाग
दोस्तो जैसे की आप लोग भली भांति जानते है कि हमारे यहा शादी-ब्याह का अपना एक अलग ही महत्व है. शादी का समय सबसे खुशी देने वाला समय होता है. छोटा हो या बड़ा, सभी लोग शादी के उत्सव को बड़े ही उत्साह और खुशी के साथ मनाते है. शादी के समय गाँव, घर परिवार में एक अलग ही माहोल देखने को मिलता है.
वैसे शादी तो हर समुदाय में बड़े ही धूम धाम से मनाई जाती है लेकिन उत्तराखंडी शादी की अपनी एक अलग ही विशेषता होती है जो इसको दूसरों से अलग करता है.
मेरे गाँव में शादी किस प्रकार से मनाई जाती है, शादी के दिन घर परिवार, गाँव का माहोल कैसा रहता है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी लेकर आप लोगों के सामने आ रहा हूँ
मेंहदी का दिन
दोस्तो हमारे यह शादी की धूम धाम मेंहदी की रात से ही शुरू हो जाती है. अगर जो लोग आर्थिक रूप से सम्म्पन होते है तो मेंहदी की रात से ही पूरे गाँव के लिए सामूहिक भोज का प्रबंध शादी वाले परिवार द्वारा किया जाता है जो कि तब तक चलता है जब तक बरात की विदाई (यदि लड़की की शादी है ) और बरात की वापसी (यदि लड़के की शादी है ) न हो जाती है.
सबसे पहले मेंहदी के दिन की बात करता हूँ. मेंहदी का जश्न दोनों शादियों (लड़का और लड़की ) में एक ही प्रकार से मनाया जाता है. सबसे पहले शाम को ४ बजे के बाद सामूहिक भोज के लिए भोजन का प्रबंधन शुरू हो जाता है. गाँव के एक ब्यक्ति को राशन का घरबारी बनाया जाता है जो कि पूरे कार्य के लिए राशन देता है. उसको एक अलग कमरा दिया जाता है जहा पर सारी खाद्य सामग्री रखी जाती है और उस कमरे की चाबी उस मुख्य ब्यक्ति (घरबारी ) को दी जाती है. उसके बाद परिवार वाला कोई भी सदस्य उसके कार्य में हस्त्छेप नही कर सकता है. पूरी राशन-पाणी की जिम्मेदारी उसी ब्यक्ति के कन्धों पर सोंप दी जाती है.
फ़िर गाँव के नोजवान सब्जी काटते है और सब्जी -दाल बानाने की जिम्मेदारी गाँव के नाज्वान और बुजुर्गों(पुरूष समाज) की होती है. फ़िर रोटी बानाने के लिए गाँव की महिलाओं को आवाज (धो) लगाई जाती है. गाँव की सभी महिलाएं अपने अपने तवे, परात, चकला-बेलन, जानती के साथ रोटी बनाने के लिए एक चोक में एकत्त्रित हो जाती है. फ़िर घरबारी के द्वारा प्रत्येक महिला को १ पाथी आटा गूंदने के लिए दिया जाता है और साथ में ये भी ख़बर दार किया जाता है कि १ पाथी पर कम से कम ७० रोटियां बनानी चाहिए और जो सबसे ज्यादा रोटी बनाएगा उसको कुछ इनाम दिया जाएगा. ये इसलिए किया जाता है कि तब महिलाएं रोटियां अच्छी बनाये, ताल्बरई न करें.
रोटियां बनाते समय गाँव के नव युवक मंगल दल द्वारा सभी लोगों के लिए चाय का वितरण किया जाता है. रोटियां बनाने के बाद अब बारी आती है हलवा (सूजी) बनाने की. ये काम थोड़ा सा कठिन लगता है आज की युवा पीड़ी को लेकिन फ़िर भी सभी लोग सूजी भूनते है, बारी बारी से सभी लोग सूजी भूनने में अपना योगदान करते है. हलवा पकाने के बाद उसको घरबारी के कमरे में रख दिया जाता है और थोड़ा थोड़ा सा हलवा सबको बाँट दिया जाता है.
इस प्रकार भोजन का बंदोबस्त किया जाता है, भोजन बनाने की ये परिक्रिया लगभग सभी दिनों के लिए समान होती है.
रात को ८ बजे के बाद गाँव के सभी लोगों को आवाज लगाई जाती है कि अपने अपने परोशा (अपने अपने हिस्से का खाना (पूरे परिवार के लिए )) ले जाय. इस प्रकार सभी गाँव वालों को परोषा दिया जाता है, चोक पर केवल नव युवक मंगल दल और शादी वाले परिवार वाले भोजन करते है (केवल रात के भोज में ).
भोजन करने के बाद सभी लोग चोक में इकठ्ठा हो जाते है और मेंहदी की रस्म शुरू करते है, सभी सभी अपने अपने हाथों में मेंहदी लगाते है (जो इच्छुक होते है). मेंहदी की रस्म भी दोनों शादियों (लड़का और लड़की ) में समान होती है. जो लोग मेंहदी नही लगाते है वो नाच -गाने में मस्त रहते है. पहाडी , हिन्दी और पंजाबी गानों पर सभी युवा पीड़ी थिरकती है. लगभग रात के १२-१ बजे तक नाच गाने का ये कार्यक्रम चलता है जिसमे कि सभी लोग नाचते है, लड़के लड़कियां. यहा तक कि कभी कभी घर गाँव के बुजुर्ग पुरूष महिला भी पहाडी गानों में हामारे साथ नाचते है. इस प्रकार मेंहदी की रस्म पूरी होती है.
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