संस्कारों को आजकल के युवक भुला रहे है| ये बड़े बुजुर्गो और माता-पिता का कर्तव्य है कि वो अपनी संतान को इन संस्कारों के बारे मे बताए| और अपनी परिस्थितियो अनुसार उन संस्कारों को अपने बच्चो मे डाले| अब तो बस केवल १ संस्कार ही रह गया है जो कि विवाह है और ये भी इसलिए मनाया जाता है कि इसके बिना जीवन सम्भव नही है| विवाह के तौर तरीको मे भी बदलाव आया है| पहले नामकरण होता था, किसी ब्राह्मं को बुलाकर उसकी राशी व नक्षत्र देखकर पीले, सफ़ेद या लाल कपड़े मे बालक का नाम लिखा जाता था| अब तो लोग हॉस्पिटल मे ही या जन्म से पहले ही बच्चो का नाम रख देते है|