Author Topic: Our Tradition Vs. New Generation - हमारे संस्कार: आज की पीढी को कितने स्वीकार्य  (Read 10484 times)

Risky Pathak

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संस्कारों को आजकल  के युवक भुला रहे है| ये बड़े बुजुर्गो और माता-पिता का कर्तव्य है कि वो अपनी संतान को इन संस्कारों के बारे मे बताए| और अपनी परिस्थितियो  अनुसार उन संस्कारों को अपने बच्चो  मे डाले| अब तो बस केवल १ संस्कार ही रह गया है जो कि विवाह है और ये भी इसलिए मनाया जाता है कि इसके बिना जीवन सम्भव नही है| विवाह के तौर तरीको मे भी बदलाव आया है| पहले नामकरण होता था, किसी ब्राह्मं को बुलाकर उसकी राशी व नक्षत्र देखकर पीले, सफ़ेद या लाल कपड़े मे  बालक का नाम लिखा जाता था| अब तो लोग हॉस्पिटल मे ही या जन्म से पहले ही बच्चो का नाम रख देते है|   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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It seems that everybody has shortage of time. In this sequence, people want to adopt the shortcut ways to perform their rituals bypassing the traditional norms. 

संस्कारों को आजकल  के युवक भुला रहे है| ये बड़े बुजुर्गो और माता-पिता का कर्तव्य है कि वो अपनी संतान को इन संस्कारों के बारे मे बताए| और अपनी परिस्थितियो  अनुसार उन संस्कारों को अपने बच्चो  मे डाले| अब तो बस केवल १ संस्कार ही रह गया है जो कि विवाह है और ये भी इसलिए मनाया जाता है कि इसके बिना जीवन सम्भव नही है| विवाह के तौर तरीको मे भी बदलाव आया है| पहले नामकरण होता था, किसी ब्राह्मं को बुलाकर उसकी राशी व नक्षत्र देखकर पीले, सफ़ेद या लाल कपड़े मे  बालक का नाम लिखा जाता था| अब तो लोग हॉस्पिटल मे ही या जन्म से पहले ही बच्चो का नाम रख देते है|   

हेम पन्त

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वेदों में वस्तुतः मनुष्य के जीवन में 16 संस्कार होना बताया गया है. लेकिन अब तो लगता है कि इस आपाधापी के जीवन में सब जगह shortcut से ही काम चला दिया जाता है.

किसी शिशु को अन्न खिलाने की शुरुआत करने के लिये "अन्नप्रासन" संस्कार करने का रिवाज है. लेकिन मुझे लगता है यह अब सिर्फ गांव के ही लोगों द्वारा किया जाता है. "उपनयन" संस्कार भी बालक/बालिका की शिक्षा शुरु होने से पहले किया जाने वाला संस्कार है लेकिन इसे सिर्फ औपचारिकतावश शादी से ठीक पहले (या शादी के दिन ही) "निपटा" दिया जाता है.

मुझे लगता है कि संस्कार युवा पीढी तक पहुंचाने का दायित्व अभिवावकों का है. माता-पिता ही संस्कारों का आदर नही करेंगे तो नयी पीढी से इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think today’s scenario new generation finds it difficult to follow-up some norms of our cultural. See in gone, Janew Sansar used to be performed at the residences. Now people take a short-cut and do this at the bank of any river that too without removing the hairs.

There are many other cases where people wants to take short-cuts.

खीमसिंह रावत

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देश काल के अनुसार हमारे संस्कार भी बदल गए हैं/  शहरी करण से कुछ येसी परिस्थितियां  बन गयी है कि चाहते हुए भी हम वेवश होते हैं / जैसे व्रतबंध हो जाने के बाद खाना खाने के लिए बड़ों कि पंक्ति में बैठता है / आज खड़े खड़े खाने का चलन हो गया है फिर कौन सी पंक्ति / गावों में भी दाल भात सस्कृति लगभग समाप्त को ओर है/  दाल भात कि जगह पुलाव का आनंद ले रहे है पहाडी लोग/
आपने ध्यान दिया होगा स्वास्थ विभाग वाले भी विज्ञापन देते है बच्चों को ६ महीने तक माँ का दूध ही देना चाहिए / किन्तु हमारे पहाड़ में तो पहले से ही यह प्रथा है कि ५ वें महीने कि सक्रांति के दिन बच्चे को अन्न दिया जाता है उसे कहते है "जूठ लगाण" / पर शहरों में इस प्रथा को कोई नहीं मान रहा है / बच्चे के पैदा होने के दिन से नामकरण (९ दिन या  ११ दिन में) के दिन तक जच्चा बच्चा अलग रहते थे उन पर अन्य कोई नहीं लगता था हाँ सुए (दाई) या माँ ही नवजात शिशु को नहलाती थी / अगर गलती से कोई छू जाता तो उसे नहाना व् गोअत (गोमूत्र) से  सुद्ध करते  थे/ शहरों में यक ही कमरा फिर ये संस्कार कैसे निभाए जाँय/ कुछ संस्कार येशे भी है जिन्हें निभाया जा सकता है / जैसे व्रतबंध के बाद हमें जो भी संध्या सिखाई जाती है उसे हम कर सकते है खाने से पूर्व सिर्फ १ से ५ मिनट का समय चाहिए / किन्तु अब हमें येसा वातावरण नहीं मिलाता है/  या फिर मन तो है नहीं समय का बहाना लगा देते हैं बच्चों का जन्म दिन को ही लो किस तरह से हम लोग मना रहे हैं पता भी है फिर भी बना रहे है/ तर्क कुछ भी हो सकते हैं/

 मै पक्षधर हूँ कि संस्कारों को बनाए रखा जाय / उसके लिए हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए /

हलिया

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महाराज, ऐसा नहीं ठैरा कि संस्कार तहां (शहरों) में ही बदल रहे हैं.  महाराज..... यहाँ तो गाँव में भी सब कुछ बहुत जल्दी-जल्दी बदल रहा है.  अब बताओ पहले 'जनमबार' को पंडित जी आते थे, घर के सब लोग श्रधा से पूजा पाठ करते थे लेकिन महाराज अब?  अब 'जनमबार' हो गया है वो क्या कहते हैं 'बर्डे'.  प्रसाद की जगह शराब और मीट (ये जरूरी) हो गया ठैरा हो.   लेकिन जिस घर का सयाना ठीक होगा वहां अभी भी पहले वाला सिस्टम चलने वाला ठैरा.  इसलिए जरूरी है कि आप अपने घर के बड़े हो तो अपना सिस्टम ठीक बनाये रखो महाराज  बच्चे तभी सीखेंगे....

 

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