Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति

Phool Deyi: Folk Festival Of Uttarakhand - फूल देई: एक लोक त्यौहार

<< < (19/20) > >>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
यो देई सौ बार , बारम्बार नमस्कार,
फूल देई-छ्म्मा देई

Devbhoomi,Uttarakhand:
आप सभी को फूलदेई की ढेरों शुभकामनाये
 बसंती उल्लास के पर्व फूलदेई सक्रांति से एक माह तक अनवरत घर की दहलीज को रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू से महकाने वाला चैत्र मास आ गया है
 वर्तमान समय में बच्चों के सूर्य ढलने के बाद फ्यूंली, बुरांश, पंय्या आदि फूलों को रिंगाल की बनी टोकरियों में सजाया जाता था, लेकिन टोकरियां की जगह अब पॉलीथिन की थैलियों ने ले ली है। बच्चे आठ दिनों तक प्रात: उठकर गांव में स्थित मठ मंदिरों व घर की चौखट पर फूल डाल कर गीत गाते हैं। इसके बदले ग्रामीण फुलारी बच्चों को परंपरागत ढंग से चौलाई से बने खील व गुड़ बच्चों में वितरित करते हैं। बच्चों के समूह में घोगा देवता (फूलदेई) की डोली को भी सजाकर बसंत गीतों के साथ झूम-झूमकर नचाया जाता है। कई स्थानों पर यह कार्यक्रम एक माह तथा अधिकांश स्थानों पर यह प्रक्रिया आठ दिनों तक चलती रहती है। आठवें दिन बच्चे सभी घरों से भोजन सामग्री व पूजा सामग्री को इकट्ठा कर सामूहिक भोज तैयार किया जाता है। इसके बाद बच्चे घोगा देवता की पूजा-अर्चना एवं भोजन चढ़ाकर तब खुद ग्रहण करते हैं। विभिन्न गांवों में केवल डोली देवता की डोलियों न ले जाकर पत्थरों पर बने देवता की मूर्ति की पूजा की जाती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dr Anil Karki
 
फुलदेली की बधाई
'हिमाल की बेटियाँ'
किसी सुबह
ठिठुरते हुए
वे आयेंगी हिमाल से
सबसे ठन्डे दिनों में भी
अपने लत्तर झगुले की कुट्टी में
भिटाऊ
आडू-मेल-केशिया
बुरांश के फूल छुपाये
बिना कुछ मांगे
बिखरा जायेंगी वे
देहरी पर
पंखुड़ियाँ फूलों की
देहरी पर रख के फूल
देते हुए प्रेम का पैगाम
वे एक दिन चुपके से
पार चल देंगी
देहरी के
हिमाल लगा लेगा
गले से उन्हें
लौटेगा फिर बसन्त
पहाड़ों पर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
'फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।'
आप सभी लोक पर्व #फूलदेई की मंगलकामनाएं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
फूल देई-छम्मा देई, दैंणि द्वार- भर भकार,
यौ देळी कैं बार-बार नमस्कार।
एक लोक गीत
फूलदेई -फूलदेई -फूल संग्रान्द
सुफल करी नयो साल तुमको श्रीभगवान
रंगीला सजीला फूल फूल ऐगी , डाल़ा बोटाल़ा हर्या ह्व़ेगीं
पौन पन्छ , दौड़ी गेन, डाल्युं फूल हंसदा ऐन ,
तुमारा भण्डार भर्यान, अन्न धन बरकत ह्वेन
औंद राउ ऋतू मॉस , होंद राउ सबकू संगरांद
बच्यां रौला तुम हम त फिर होली फूल संगरांद
फूलदेई -फूलदेई -फूल संग्रान्द
फूल संगरांद का यह दिन आज उत्तराखंड में कन्याओं द्वारा प्रसन्नता के साथ मान्या जाता है कन्याएं बैसाखी तक रोज सुबह सुबह देहरी में फूल डालती हैं
-
आभार स्व श्री शिवा नन्द नौटियाल (लोकगीत )
एवम श्री कैलाश पांडे

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version