Author Topic: Rami Baurani - रामी बौराणी: त्याग व समर्पण की प्रतिमूर्ति पहाङ की नारी  (Read 46375 times)

shailesh

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why there is so much fuss over Rami baurani . The so called champions of women right should first support and campaign to put ban on Ramayan, Mahabharat,Homer's Iliad, the story of Adam & eve, Heer ranjha.......because all those and many other epics and stories are full of women harassment and exploitation. As all we know the whole history of civilisation is the history of male domination and exploitation of women, it doesn't mean that we should stop reading and studying history. It is an art and should be respected as a great peace of art, it has got nothing to do with virtuousness, virginity, purity and women rights. folk art is a pure and a primitive art, it has its own beauty it always helps us to understand the basic instinct and spirit of human being, and i would suggest that everyone should  understand nuances of art and its emotions, and  shouldn't denigrate or misinterpret a great folk song or story by just giving an absurd logic.

Dinesh Bijalwan

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That's the sprit. Thanks Saileshji.

पंकज सिंह महर

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देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूं-

रामी बौराणी, केवल एक महिला का नाम भर नहीं है, बल्कि रामी बौराणी उत्तराखण्ड के परिवेश के अनुसार वहां की महिलाओं की स्थिति को बयां करती पात्र भी है। वह उत्तराखण्डी महिला के त्याग, समर्पण, स्त्रीत्व और सतीत्व को परिभाषित करती महिला है। अर्थात रामी बौराणी में हर उत्तराखण्डी महिला को देखा और समझा जा सकता है। यह पात्र हमारे उत्तराखण्ड की महिलाओं की दृढ़ता, त्याग, समर्पण, स्त्रीत्व और सतीत्व की प्रतीक है।
        और इस हेतु हमें किसी के सर्टिफिकेट की आवश्यकता तो कतई भी नहीं है। जहां तक कुकरेती जी की बात है, हमने तो उनके बारे में अच्छा-अच्छा ही सुना था, लेकिन अब उनके विचारों को जानकर ऎसा लगता है कि उन्हें उत्तराखण्ड की वास्तविक समझ नहीं है, उन्होंने उत्तराखण्ड को करीब से नहीं जाना है, अगर वे पहाड़ में रह रही अकेली महिला, जिसके सिर पर खेती-बाड़ी, बाल-बच्चों से लेकर बूढ़े सास-ससुर की सेवा का भी भार है, यदि उसके बारे में कुकरेती जी जरा भी जानते तो शायद ऎसा नहीं लिखते।
        जहां तक शारीरिक आवश्यकओं को पूर्ति की बात है, प्रेक्टिकली अभी हमारे समाज में इसका महत्व संतानोत्त्पत्ति तक ही सीमित है, ग्रामीण पति-पत्नी एक साथ रहने पर भी शारीरिक आवश्यकताओ से ज्यादा घर की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर ज्यादा फोकस रखते हैं, क्योंकि इन्हीं दो महीने में उस पुरुष ने पूरे घर की जिम्मेदारी के साथ-साथ नातेदारी-रिश्तेदारी, बच्चों के भविष्य, खेतों की देखभाल आदि दायित्वों का निर्वहन करना होता है। अकेली महिला के शेडयूल को कुकरेती जी जरुर देखें और समझॆं, उस महिला का कार्य सुबह ४ बजे गोठ से जानवरों का गोबर निकालने से शुरु होता है, उस गोबर को खेत तक पहुंचाना वापस आते समय घास और फिर जानवरों को बाहर निकालकर चारा देना........इसके बाद वह चाय-दूध लेकर सास-ससुर और बच्चों को उठाती है दिन भर खेतों पर काम करना खाना बनाना, लकड़ी लाना, पानी लाना............सब मिलाकर वह रात १० बजे तक सोने जा पाती है और उसके बाद वह ऎसे बेसुध होकर सोती है कि उसे दीन-दुनिया का होश नहीं रहता......अपने इष्ट देव का स्मरण कर वह महिला दिन भर की थकान से चूर होकर सोने चली जाती है। ऎसे में उसे क्या सूझता होगा? कुकरेती जी कभी गांव जाकर देखिये, कैसा जीवन जीते हैं हमारे लोग और हमारी महिलायें, फिर कुछ लिखियेगा। बम्बई के वातानुकूलित कमरे से उत्तराखण्ड के गांव को सिर्फ जाना जा सकता है समझा नहीं।

Lalit Mohan Pandey

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It Seems like Kukreti ji wanted to write an article on **ual needs and desire of a Women and men, and he used this song as a base to make it popular.. its shame...By the way is he from a medical background?..how can he state if someone doesn't show **ual interest for a year.. he needs a doctor..He is forgetting a basic thing that still women of our country are "Murti of Tyag and Tapasya", he touches the lowest limit in his article when he compares all the women with Prostitute, Agreed eveyone has a **ual desire, but thats why we are human beings, and Human being are expected to have control on their desire. I must say its disgusting attempt to blemish all those women, who spent their whole life for the welfare of family, husband, kids...

umeshbani

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पंकज दा कि बातों से मै पूर्ण रूप से सहमत हूँ म्बई के वातानुकूलित कमरे से उत्तराखण्ड के गांव को सिर्फ जाना जा सकता है समझा नहीं। .........  क्या जनून होता है अपनी खेती के लिय वो किसी को देखना है तो कभी भी पहाड़ कि महिलाओं को खेत मै काम करते हुए  देख   सकते है ......... जबकि अनाज पुरे साल के लिय भी न हो पाए .........
जितना काम हमारे यहाँ कि महिला करती है उतना काम शायद एक थेट बिहारी भी नहीं करता होगा ..........
और किसी राज्य कि महिला को देखो सिर्फ चारपाई में ही बठी रहती है ......... शायद वाहं  पर   कुकरेती जी के विचार शायद सही भी साबित हो जाए मगर जहां मेरे पहाड़ कि महिलाओं के पास खाने की भी फुर्सत न हो ............... एसा कहना भी पाप है .
देखा मेने दिन रात हमारे याहं कि महिलाओं को कितना काम करना पड़ता है .... अगर पति शराबी हो तो उसका तो और भी बुरा हाल होता है दिन भर काम करो रात को गाली ......... खाओ ............... लकिन सूरज निकले से पहले जेसे वो कल रात कि सब बातों को भूल कर जिस जोश से  काम करना शुरु करती है उससे शाबित होता है कि कितना बढा दिल भी रखती है ...........

Devbhoomi,Uttarakhand

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पहाङी समाज में नारी की भूमिका पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण है. खेतों में कमरतोङ मेहनत करना, जंगलों में पशुओं के चारे के लिये भटकना और घर में बच्चों का पालन पोषन करना लगभग हर पहाङी स्त्री के जीवनचक्र में शामिल है. यह संघर्षपूर्ण जिन्दगी कुछ आसान लगती, अगर हर औरत को अपने पति का साथ मिलता. लेकिन पहाङ के अधिकांश पुरुष रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिये अपने परिवार से दूर मैदानों में जाकर रहते हैं. कई दशकों से चली आ रही इस परिपाटी को अभी भी विराम नहीं लगा है.पति के इन्तजार में अपने यौवन के दिन गुजार देने वाली पहाङ की इन स्त्रियों को लोककथाओं में भी स्थान मिला है.

रामी (रामी बौराणी*) नाम की एक स्त्री एक गांव में अपनी सास के साथ रहती थी, उसके ससुर का देहान्त हो गया था और पति बीरू देश की सीमा पर दुश्मन से मुकाबला करता रहा. दिन, सप्ताह और महीने बीते, इस तरह 12 साल गुजर गये. बारह साल का यह लम्बा समय रामी ने जंगलों और खेतों में काम करते हुए, एक-एक दिन बेसब्री से अपने पति का इन्तजार करते हुए बङी मुसीबत से व्यतीत किया.(*रामी बौराणी- बौराणी शब्द ’बहूरानी’ का अपभ्रंश है)


बारह साल के बाद जब बीरू लौटा तो उसने एक जोगी का वेष धारण किया और गांव में प्रवेश किया. उसका इरादा अपनी स्त्री के पतिव्रत की परीक्षा लेने का था. खेतों में काम करती हुई अपनी पत्नी को देख कर जोगी रूपी बीरु बोला-

रामी बौराणी 01

बाटा गौङाइ कख तेरो गौं च?
बोल बौराणि क्या तेरो नौं च?
घाम दुपरि अब होइ ऐगे, एकुलि नारि तू खेतों मां रैगे....

जोगी- खेत गोङने वाली हे रूपमती! तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा गांव कौन सा है? ऐसी भरी दुपहरी में तुम अकेले खेतों में काम कर रही हो.

रामी- हे बटोही जोगी! तू यह जानकर क्या करेगा? लम्बे समय से परदेश में रह रहे मेरे पतिदेव की कोई खबर नहीं है, तू अगर सच्चा जोगी है तो यह बता कि वो कब वापस आयेंगे?

जोगी- मैं एक सिद्ध जोगी हूँ, तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दूंगा. पहले तुम अपना पता बताओ.

रामी- मैं रावतों की बेटी हूँ. मेरा नाम रामी है. पाली के सेठों की बहू हूँ , मेरे श्वसुर जी का देहान्त हो गया है सास घर पर हैं. मेरे पति मेरी कम उम्र में ही मुझे छोङ कर परदेश काम करने गये थे.12 साल से उनकी कोई कुशल-क्षेम नहीं मिली.

जोगी रूपी बीरु ने रामी की परीक्षा लेनी चाही.

जोगी- अरे ऐसे पति का क्या मोह करना जिसने इतने लम्बे समय तक तुम्हारी कोई खोज-खबर नहीं ली. आओ तुम और मैं खेत के किनारे बुँरांश के पेङ की छांव में बैठ कर बातें करेंगे.

रामी- हे जोगी तू कपटी है तेरे मन में खोट है. तू कैसी बातें कर रहा है? अब ऐसी बात मत दुहराना.

जोगी- मैं सही कह रहा हूँ, तुमने अपनी यौवनावस्था के महत्वपूर्ण दिन तो उसके इन्तजार में व्यर्थ गुजार दिये, साथ बैठ कर बातें करने में क्या बुराई है?

रामी बौराणी 02

देवतों को चौरों, माया को मैं भूखों छौं
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों
सिन्दूर कि डब्बि, सिन्दूर कि डब्बि,
ग्यान ध्यान भुलि जौंलो, त्वै ने भूलो कब्बि
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों

रामी- धूर्त! तू अपनी बहनों को अपने साथ बैठा. मैं पतिव्रता नारी हूँ, मुझे कमजोर समझने की भूल मत कर. अब चुपचाप अपना रास्ता देख वरना मेरे मुँह से बहुत गन्दी गालियां सुनने को मिलेंगी.

ऐसी बातें सुन कर जोगी आगे बढ कर गांव में पहुँचा. उसने दूर से ही अपना घर देखा तो उसकी आंखें भर आयी. उसकी माँ आंगन की सफाई कर रही थी. इस लम्बे अन्तराल में वैधव्य व बेटे के शोक से माँ के चेहरे पर वृद्धावस्था हावी हो गयी थी. जोगी रूप में ही बीरु माँ के पास पहुँचा और भिक्षा के लिये पुकार लगायी.“अलख-निरंजन”

रामी बौराणी 03


कागज पत्री सबनां बांचे, करम नां बांचे कै ना
धर्म का सच्चा जग वाला ते, अमर जगत में ह्वै ना.
हो माता जोगि तै भिक्षा दे दे, तेरो सवाल बतालो....

वृद्ध आंखें अपने पुत्र को पहचान नहीं पाई. माँ घर के अन्दर से कुछ अनाज निकाल कर जोगी को देने के लिये लाई.

जोगी- हे माता! ये अन्न-धन मेरे किस काम का है? मैं दो दिन से भूखा हूँ,मुझे खाना बना कर खिलाओ. यही मेरी भिक्षा होगी.

तब तक रामी भी खेतों का काम खतम करके घर वापस आयी. उस जोगी को अपने घर के आंगन में बैठा देख कर रामी को गुस्सा आ गया.

रामी- अरे कपटी जोगी! तू मेरे घर तक भी पहुँच गया. चल यहाँ से भाग जा वरना.....

आंगन में शोर सुन कर रामी की सास बाहर आयी. रामी अब भी जोगी पर बरस रही थी.

सास- बहू! तू ये क्या कर रही है? घर पर आये अतिथि से क्या ऐसे बात की जाती है? चल तू अन्दर जा.

रामी- आप इस कपटी का असली रूप नहीं पहचानती. यह साधू के वेश में एक कुटिल आदमी है.

सास- तू अन्दर जा कर खाना बना. हे जोगी जी! आप इसकी बात का बुरा न माने, पति के वियोग में इसका दिमाग खराब हो गया है.

रामी ने अन्दर जा कर खाना बनाया और उसकी सास ने मालू के पत्ते में रख कर खाना साधु को परोसा.

रामी बौराणी 04

मालू का पात मां धरि भात, इन खाणा मां नि लौन्दु हाथ...
रामि का स्वामि की थालि मांज, ल्याला भात में तब खोलों भात..

जोगी- ये क्या? मुझे क्या तुमने ऐरा-गैरा समझ रखा है? मैं पत्ते में दिये गये खाने को तो हाथ भी नहीं लगाउंगा. मुझे रामी के पति बीरु की थाली में खाना परोसो.

यह सुनकर रामी अपना आपा खो बैठी.

रामी- नीच आदमी! अब तो तू निर्लज्जता पर उतर आया है. मै अपने पति की थाली में तुझे खाना क्यों दूंगी? तेरे जैसे जोगी हजारों देखे हैं. तू अपना झोला पकङ कर जाता है या मैं ही इन्हें उठा कर फेंक दूँ?

ऐसे कठोर वचन बोलते हुए उस पतिव्रता नारी ने सत् का स्मरण किया. रामी के सतीत्व की शक्ति से जोगी का पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा और उसके चेहरे पर पसीना छलक गया. वह झट से अपनी माँ के चरणों में जा गिरा. जोगी का चोला उतारता हुआ बोला-

बीरु- अरे माँ! मुझे पहचानो! मैं तुम्हारा बेटा बीरू हूँ. माँ!! देखो मैं वापस आ गया.

बेटे को अप्रत्याशित तरीके से इतने सालों बाद अपने सामने देख कर माँ हक्की-बक्की रह गई. उसने बीरु को झट अपने गले से लगा लिया.बुढिया ने रामी को बाहर बुलाने के लिये आवाज दी.

ओ रामि देख तू कख रैगे, बेटा हरच्यूं मेरो घर ऐगे

रामी भी अपने पति को देखकर भौंचक रह गयी. उसकी खुशी का ठिकाना न रहा, आज उसकी वर्षों की तपस्या का फल मिल गया था.इस तरह रामी ने एक सच्ची भारतीय नारी के पतिव्रत, त्याग व समर्पण की एक अद्वितीय मिसाल कायम की.



खीमसिंह रावत

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१९९० से पहले का एक दृश्य :-  रफी मार्ग में स्थित आई फैक्स हाल में पहाडी गीतों का कार्यक्रम होता है और दर्शक पहाडी अपने परिवार के साथ आते हैं पार्किंग में नजर आती हैं सायकिलें और एकाद एम्बासडर कार / कार भी वे ही लोग लाते थे जो लोग सरकारी दफ्तरों में वाहन चालक थे /

आज   का दृश्य एकदम उल्टा है / हम पहाडियों का रहन सहन का स्तर काफी बढ़ गया है / फिर आज जो पीढी है शहरों में दूसरी से चौथी है

रामी बौराणी गीत का मुख्य उदेश्य पहाड़ की पीडा को उजागर करना है और यह कोशिश की गई है की विकट परिस्थितियों में भी आपसी रिश्तो की डोर को बनाये रखा जा सकता है / मै समझता हूँ की इस गीत के द्वारा पहाडी नारी का सम्मान ही हुवा है गौरव की बात है की रामी जैसी महिला हमारे पहाड़ से है/
कवि भाउ़क होता है आज की परिस्थितियों से गीत की परिस्थितियों से तुलना करना उचित नहीं है एक पहाडी होने के नाते मैं कुकरेती जी के विचारों से सहमत नहीं हूँ/

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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dajyu 4th jan 09 ko ek program kiya tha usme hum logo ne Rami baurani program bhi play kiya tha usi ka last ka kuch bhaag video ko bhaij raha hoon jarur dekhana baki pura baad mai bhaij dunga..


[youtube]Rami baurani

खीमसिंह रावत

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bisht ji aap hi to fauji/sadhu bane the/

rami baurani ko jis *ual engal se dekha ja raha hai, purush aur aurat ka paksh vipaksh ki bat ki ja rahi hai kya vah thik hai/

 

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