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Rami Baurani - रामी बौराणी: त्याग व समर्पण की प्रतिमूर्ति पहाङ की नारी

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हेम पन्त:
पहाङी समाज में नारी की भूमिका  पुरुषों से अधिक महत्वपूर्ण है. खेतों में कमरतोङ मेहनत करना, जंगलों में पशुओं के चारे के लिये भटकना और घर में बच्चों का पालन पोषन करना लगभग हर पहाङी स्त्री के जीवनचक्र में शामिल है. यह संघर्षपूर्ण जिन्दगी कुछ आसान लगती, अगर हर औरत को अपने पति का साथ मिलता. लेकिन पहाङ के अधिकांश पुरुष रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिये अपने परिवार से दूर मैदानों में जाकर रहते हैं. कई दशकों से चली आ रही इस परिपाटी को अभी भी विराम नहीं लगा है.

पति के इन्तजार में अपने यौवन के दिन गुजार देने वाली पहाङ की इन स्त्रियों को लोककथाओं में भी स्थान मिला है.

रामी (रामी बौराणी*) नाम की एक स्त्री एक गांव में अपनी सास के साथ रहती थी, उसके ससुर का देहान्त हो गया था और पति बीरू देश की सीमा पर दुश्मन से मुकाबला करता रहा. दिन, सप्ताह और महीने बीते,  इस तरह 12 साल गुजर गये.  बारह साल का यह लम्बा समय रामी ने जंगलों और खेतों में काम करते हुए, एक-एक दिन बेसब्री से अपने पति का इन्तजार करते हुए बङी मुसीबत से व्यतीत किया.

(*रामी बौराणी- बौराणी शब्द ’बहूरानी’ का अपभ्रंश है)

हेम पन्त:
बारह साल के बाद जब बीरू लौटा तो उसने एक जोगी का वेष धारण किया और गांव में प्रवेश किया. उसका इरादा अपनी स्त्री के पतिव्रत की परीक्षा लेने का था. खेतों में काम करती हुई अपनी पत्नी को देख कर जोगी रूपी बीरु बोला-

बाटा गौङाइ कख तेरो गौं च?
बोल बौराणि क्या तेरो नौं च?

घाम दुपरि अब होइ ऐगे,
 एकुलि नारि तू खेतों मां रैगे....
जोगी- खेत गोङने वाली हे रूपमती! तुम्हारा नाम क्या है? तुम्हारा गांव कौन सा है? ऐसी भरी दुपहरी में तुम अकेले खेतों में काम कर रही हो.

रामी- हे बटोही जोगी! तू यह जानकर क्या करेगा? लम्बे समय से परदेश में रह रहे मेरे पतिदेव की कोई खबर नहीं है, तू अगर सच्चा जोगी है तो यह बता कि वो कब वापस आयेंगे?

जोगी- मैं एक सिद्ध जोगी हूँ, तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दूंगा. पहले तुम अपना पता बताओ.

Cont...

हेम पन्त:
रामी- मैं रावतों की बेटी हूँ. मेरा नाम रामी है. पाली के सेठों की बहू हूँ , मेरे श्वसुर जी का देहान्त हो गया है सास घर पर हैं. मेरे पति मेरी कम उम्र में ही मुझे छोङ कर परदेश काम करने गये थे.12 साल से उनकी कोई कुशल-क्षेम नहीं मिली.

जोगी रूपी बीरु ने रामी की परीक्षा लेनी चाही.

जोगी- अरे ऐसे पति का क्या मोह करना जिसने इतने लम्बे समय तक तुम्हारी कोई खोज-खबर नहीं ली. आओ तुम और मैं खेत के किनारे बुँरांश के पेङ की छांव में बैठ कर बातें करेंगे.

रामी- हे जोगी तू कपटी है तेरे मन में खोट है. तू कैसी बातें कर रहा है? अब ऐसी बात मत दुहराना.

जोगी- मैं सही कह रहा हूँ, तुमने अपनी यौवनावस्था के महत्वपूर्ण दिन तो उसके इन्तजार में व्यर्थ गुजार दिये, साथ बैठ कर बातें करने में क्या बुराई है?

देवतों को चौरों, माया को मैं भूखों छौं
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों

सिन्दूर कि डब्बि, सिन्दूर कि डब्बि,
ग्यान ध्यान भुलि जौंलो, त्वै ने भूलो कब्बि
परदेSSशि भौंरों, रंगिलो जोगि छों
रामी- धूर्त! तू अपनी बहनों को अपने साथ बैठा. मैं पतिव्रता नारी हूँ, मुझे कमजोर समझने की भूल मत कर. अब चुपचाप अपना रास्ता देख वरना मेरे मुँह से बहुत गन्दी गालियां सुनने को मिलेंगी.

हेम पन्त:
ऐसी बातें सुन कर जोगी आगे बढ कर गांव में पहुँचा. उसने दूर से ही अपना घर देखा तो उसकी आंखें भर आयी. उसकी माँ आंगन की सफाई कर रही थी. इस लम्बे अन्तराल में वैधव्य व बेटे के शोक से माँ के चेहरे पर वृद्धावस्था हावी हो गयी थी.

जोगी रूप में ही बीरु माँ के पास पहुँचा और भिक्षा के लिये पुकार लगायी.

“अलख-निरंजन”

कागज पत्री सबनां बांचे, करम नां बांचे कै ना
धर्म का सच्चा जग वाला ते, अमर जगत में ह्वै ना.

हो माता जोगि तै भिक्षा दे दे, तेरो सवाल बतालो....
वृद्ध आंखें अपने पुत्र को पहचान नहीं पाई. माँ घर के अन्दर से कुछ अनाज निकाल कर जोगी को देने के लिये लाई.

जोगी- हे माता! ये अन्न-धन मेरे किस काम का है? मैं दो दिन से भूखा हूँ,मुझे खाना बना कर खिलाओ. यही मेरी भिक्षा होगी.

तब तक रामी भी खेतों का काम खतम करके घर वापस आयी. उस जोगी को अपने घर के आंगन में बैठा देख कर रामी को गुस्सा आ गया.

रामी- अरे कपटी जोगी! तू मेरे घर तक भी पहुँच गया. चल यहाँ से भाग जा वरना.....

हेम पन्त:
आंगन में शोर सुन कर रामी की सास बाहर आयी. रामी अब भी जोगी पर बरस रही थी.

सास- बहू! तू ये क्या कर रही है? घर पर आये अतिथि से क्या ऐसे बात की जाती है? चल तू अन्दर जा.

रामी- आप इस कपटी का असली रूप नहीं पहचानती. यह साधू के वेश में एक कुटिल आदमी है.

सास- तू अन्दर जा कर खाना बना. हे जोगी जी! आप इसकी बात का बुरा न माने, पति के वियोग में इसका दिमाग खराब हो गया है.

रामी ने अन्दर जा कर खाना बनाया और उसकी सास ने मालू के पत्ते में रख कर खाना साधु को परोसा.

मालू का पात मां धरि भात,  इन खाणा मां नि लौन्दु हाथ
रामि का स्वामि की थालि मांज, ल्याला भात में तब खोलों भात
जोगी- ये क्या? मुझे क्या तुमने ऐरा-गैरा समझ रखा है? मैं पत्ते में दिये गये खाने को तो हाथ भी नहीं लगाउंगा. मुझे रामी के पति बीरु की थाली में खाना परोसो.

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