खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता मां बाराही का तेज
लोहाघाट। सृष्टि से पूर्व संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न थी। प्रजापति ने बराह बनकर उसका दोनों दांतों से उद्धार किया। भगवान विष्णु के अवतार बराह के शरीर से मां बाराही की उत्पत्ति हुई तथा इसी स्थान में मां ने अपने दिव्य और तेज स्वरूप को स्थापित किया। यही मां बाराही देवीधुरा में तीन विशाल शिलाखंडों के मध्य विराजमान हो गई। मां में वज्र के समान तेज था कि उन्हें खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता। उन्हें वज्र बाराही कहा जाने लगा। मां की इस मूर्ति को वर्षभर तांबे की पिटारी में रखा जाता है, जहां वर्ष में एक बार भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा के दिन पुरोहित और पुजारी आंखों में काली पट्टी बांधकर उन्हें बाहर निकालते हैं। दूध से स्नान कराकर नए परिधान और आभूषण पहनाकर मां वज्र बाराही अपने भक्त मुचकंद ऋषि को स्वयं दर्शन देने डोले के रूप में जाती हैं।
कुमाऊं के हृदय में बसे बाराहीधाम देवीधुरा में मां वज्र बाराही की अपनी अलौकिक एवं विशिष्ट मान्यताएं रही हैं। मां के दरबार में वर्षभर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। यहां आने पर भक्ति में शक्ति एवं ईश्वरीय सत्ता से साक्षात्कार होता है। चैत्रीय और अश्विन नवरातों में यहां भक्ति और शक्ति का संगम होता है। लोहाघाट से 45 किमी दूर पश्चिम दिशा में स्थित वज्र बाराही के मंदिर से पूर्व पूर्णागिरि एवं मां अखिलतारिणी के दर्शन करने के बाद यहां पहुंचने पर व्यक्ति की यात्रा पूरी होती है। स्कंद पुराण के मानस खंड सहित बराह पुराण, मत्स्य पुराण में मां वज्र बाराही का विशेष उल्लेख किया गया है। यहां गब्यूरी में शक्ति पीठ के रूप में विराजमान मां के दर्शन वही कर सकता है, जिसको मां का बुलावा होता है।
बराह रूपिणी देवी, दष्ट्रोघृत वसुन्धराम।
शुभदां नील बसनां, बाराही तां नमाम्यहम।
(Amar Ujala)