कई बार १ दिवसीय शादी करना मजबूरी भी हो जाती है जैसे मेरे भाई की शादी पिथौरागढ़ से तय हुयी तो, भीमताल से पिथौरागढ़ तक बारात लेकर जाना और फ़िर वहां से दूसरे दिन बारात लेकर आना काफ़ी मुशकिल था इसलीए अल्मोड़ा में चितई गोलू देवता के मन्दिर में एक दिनी शादी की रस्में हुयी। पर वैसे शादी का समारोह पूरे चार दिन चला पहले दिन महिला संगीत फ़िर सुवाल पथाई, दूसरे दिन स्नान और ह्ल्दी के रस्म, तीसरे दिन बारात (करीब साठ सत्तर लोग) मंदिर में और चौथे दिन रिशेप्सन जिसमें लन्च और नाचने गाने का प्रोग्राम था। अब बताईये इस शादी को आप किस श्रेणी में रखेंगे?
हां मन्दिर की शादी के बारे में एक बात जरुर कहना चाहुन्गा कि शादी की रस्में मन्दिर के मुख्य परिसर से बाहर होनी चाहिये, क्योंकि शादियों के दौरान मन्दिर की प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है। यह बात मैं अपने निजी अनुभव से कह रहा हुं, मेरे भाई की शादी में जब मै चितई गोलू मन्दिर में था तो इतने प्रतिष्ठित मन्दिर का वातावरण एक मन्दिर की बजाय एक बैक्वेट हौल काम्प्लेक्स जैसा ज्यादा लग रहा था क्योंकि उस समय वहां एक दिन में ही ३ - ४ शादियां हो रही थी। एक बात आपको माननी पड़ेगी कि शादी में लोग किसी और मानसिकता के साथ जाते हैं मतलब एक समारोह में सम्मिलित होना और किसी प्रतिष्ठित मंदिर में काफ़ी श्रद्धा और आस से जाने में काफ़ी फ़र्क है।
मेहता जी चाहें तो इस सम्बन्ध में एक थ्रेड शुरु कर सकते हैं कि क्या मन्दिरों में होने वाली शादियों के लिए भी कोई कोड होना चाहिये जिससे मन्दिर की प्रतिष्ठा को ठेस ना पहुंचे। मंदिर समितियां तो इस सम्बन्ध में बिल्कुल लापरवाह नजर आती हैं इसलिए मंदिरों को बैंक्वेट हौल बनने से रोका जाना होगा।