Author Topic: Spiritual UK- उत्तराखंड की लोक संस्किर्ति पर दैविक प्रभाव & वैदिक कालीन प्रथायें  (Read 13530 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
२-वनोशधियाँ       

आर्यों के देश में जड़ी बूटियों का बाहुल्य था,और इनका प्रयोग रोग निवारण के लिए किया जाता था !उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी जड़ी बूटियों का आगार है !और पुराने लोग आज भी रोग निवारण में जड़ी बूटियों का प्रयोग करते हैं !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
३-गौ-पालन   

वैदिक काल में गाय हमारी सभ्यता और संस्किर्ति की प्रतीक है!
सर्वे देवा स्तिथा देहे सूर्य्देवात्रयी गौ :


के सूत्र का सम्मान होता है !आर्य,गायों  को शोधन और गायों  से युक्त जगह गोष्ट कहते हैं !उत्तराखंड में आज भी इसी प्रकार गायों को गोधन व गायों के बाड़ों को गोठ या गोष्ट कहा जाता है !

आर्य बर्हद वनों में अस्थाई घर बनाकर वहां पशु लेकर रहते थे !ऋग्वेद में इन्हें अर्न्न्यानी कहा जाता था !आज भी उत्तराखंड में इस ब्यवस्था को मरोड़ा,खरक या गोठ कगते हैं !

Dinesh Bijalwan

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 305
  • Karma: +13/-0
jakhiji ko  itne rochak jaankari  ka anusandhaan karke prastoot karne ke liye dhynyabad-     kharak   - bhaiso  our goth  gaayon ke   liye  prayog karte hai.   Maruda aisa charagah hai jahan paaltu pashuoon ko  charne ke liye   bhejte  hai. wahan suvidha ke liye chaan bana lete hain.

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
4-उत्तराखंड मैं भेड पालन

वैदिक काल मैं उत्तराखंड भेड़ पालन के लिए विख्यात था,यहाँ भेड़ व बकरियां पाली जाती थीं !और उनके ऊन से कम्बल तथा वस्त्र बनाते थे!सुदूर उत्तरी क्षेत्रों मैं आज भ भेड़ बकरियों की अधिकता है !
और सीमान्त के निवासियों का मुख्य ब्यवसाय आज भी भेड़ व बकरी पालन है !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
५-अन्न साटी   

आर्यों के देश में धान तथा जौ अधिक होता था,आर्य महिलायें जौ भूनती थीं !जौ को सूप से छानकर "सतु" बनता था !और आर्य उसमें घी मिलाकर खाते थे!

 हमारी संसकिरती और अमाज में जौ को देवान्न माना जाता है !इसकिये तब से आज तक हवन में जौ का प्रयोग किया जाता है !आज भी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जौ की खेती होती है!और सतु आर्यों के मुख्य आहारों में से एक है !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
६-सुरा

 आर्य सोम -सुरा थे,सोम के अतिरिक्त अन्न से निर्मित एक स्वतंत्र मादक पेय था !जो सुरा के नाम से बिख्यात था! आज भी सीमान्त क्षेत्रों के लोग वैदिक आर्यों की भांति सतु  मिलाकर सुरा का सेवन करते हैं !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
७-सोने और तांबा का प्रयोग

ऋग्वैदिक काल मैं आर्यों के देश मैं सोने का प्रयोग होता था सप्त शिन्धु क्षेत्र जो आज का मध्य हिमालय है !स्वर्ण का भंडार माना जाता था

!आज भी ग्रामीण अंचलों मैं तांबे की गागर व बर्तनों का परम्परागत प्रचलन है !और ऋग्वैदिक काल की भाँती तांम्बे के बर्तन मैं पानी शुद्ध माना जाता है !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
वैदिक मंत्रोचारण के साथ कराया जनेऊ धारण




   रुद्रप्रयाग : संस्कृत दिवस के अवसर पर 108 स्वामी सच्चिदानंद वेदभवन संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में पांच छात्रों को विधि विधान पूर्व वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञोपवीत धारण करवाया गया। साथ ही इसके क्रियाकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।   
गुरुवार को संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में विद्यालय के आचार्यो ने सर्वप्रथम इन सभी छात्रों का अलकनंदा एवं मंदाकिनी के पावन संगम पर मुंडन एवं गंगा स्नान कराया।


फिर छात्रों के सूर्यदेव को प्रणाम करने के पश्चात आचार्य शशि बमोला, जयप्रकाश गौड, भगवती प्रसाद नौटियाल व सुखदेव सिलोडी की ओर से पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ इन्हें यज्ञोपवीत धारण कराया गया। रुद्रनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना भी की गई। आचार्यो ने बताया कि भारतीय पद्वति में संस्कारों का बहुत बड़ा महत्व है जिसमें 16 संस्कारों में से उपनयन संस्कार भी है।

इसी संस्कार से ब्राह्मण को द्विज कहा जाता है। उन्होंने कहा कि 25 वर्ष की अवस्था तक शास्त्रों का अध्ययन कर उत्कृष्ट मानव जीवन पद्धति को प्राप्त करना इस संस्कार का लक्ष्य है।





Jagran

   

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22