Author Topic: Spiritual UK- उत्तराखंड की लोक संस्किर्ति पर दैविक प्रभाव & वैदिक कालीन प्रथायें  (Read 16531 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हिमालय की विराटता,शुचिता भाब्य्ता एवं शुभ्रता के समक्ष हिमालय की गोद में निवास करने वाले पर्वतवासियों की चेतना ब्यापक हो जाती है !
वह परमसत्ता की अनुभूति स्वयम अपने अन्ड़ान्र करने लगते हैं !उनके लिए प्रकिती,मनुष्य और देवता,तीनों उत्तराखंड के लिए चेतन्य हैं !

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                                 १-थात,भूमयाल एवं ग्राम देवता
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पहाड़ी लोक्संस्किर्ती की आधार भूत  विशेषता है उसकी क्षेत्रीयता का आधार है !ग्रामीण देवता, उनसे जुडी दैवीय आस्थाएं उनके प्रभाव की भौगोलिक -सांस्किर्तिक सीमाएं उनसे जुडी मेले और त्यौहार तथा जातीय ब्यवस्था उस ओर स्पस्ट संकेत करते हैं !प्रतेक गाँव का अपना क्षेत्रीय रक्षक देवता होता है !

जिसे भूमियाल या क्षेत्रपाल कहते हैं हर गाँव का ग्राम देवता होता है जो गाँव की सभी अधिभौतिक आवास्य्क्ताओं के संचालन का प्रमुख नियंता होता है !

थात भूमयाल या क्षेत्रपाल ओर ग्राम देवता तीनों मिलकर एक ग्रामीण क्षेत्र को सांस्किर्तिक  पहचान प्रदान करते हैं !थात हर गाँव की मूल होती है इस स्थान की मिटटी प्रवित्र होती हैं !

गाँव की थात यमुना संस्किर्ति से जुड़े इलाके जौनसार,जौनपुर ओर रंवाई में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र मानी जाती है शतुरुओं से इसकी रक्षा करने के लिए पूरा गाँव चेतन्य रहता है !

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            २-दुःख-सुख का साथी
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पहाड़ी जनजीवन में देवता सहज एवं प्राकिर्तिक रूप से उपस्तिथ है !जिस तरह घर,गाँव,जंगल,माँ बाप ,भाई बहन हैं उसी तरह सहज रूप से देवता भी हैं !देवता निराकार और सूक्छ्म शरीर अवस्य है !

किन्तु उनके साथ मनुष्यों के सम्बन्ध उसी तरह हैं,जैसे किसी सम्मानीय ब्यक्ति के साथ होते हैं !उसके साथ वह लड़ते भी हैं,झगड़ते भी हैं और रुठते भी हैं !अपने ग्राम देवता को वह दुःख सुख का साथी मानते है !

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                ३-मित्र तथा रिश्तेदार     
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उत्त्ताराखंड के पहाड़ी गाँव के सामान्य आदमी के लिए देवता एक साक्षात जिविती सत्ता है !यह देवता किसी प्राचीन युग के अति विशिस्ट और अद्भुत प्राणी नहीं है !ये आज भी उनके साथ है !देवी-देवताओं के साथ समाज के अपने रिश्ते-नाते है !बूटोलाओं के लिए नंदा देवी ध्यान( बेटी) हैं !

राणाओं के लिए वह भांजी है और रावतों के लिए ब्वारी (बहु)है !नंदा देवी केवल पौराणिक देवी मात्र नहीं है !यह चांदपुर की बेटी और बधाण की बहु है !देवी-देवताओं के केवल मनुष्यों से ही सम्बन्ध नहीं हैं !वरन देवताओं की भी परस्पर रिश्तेदारियां हैं !

कमलेश्वर का अम्बन्ध चन्द्रबदनी से हैं !इसी प्रकार कांडा देवी का किल्केस्वर से ,ये सभी देवता केदार नाथ तथा गंगोत्री से जुड़े हैं !इन सब देवताओं का भुम्याल,क्षेत्र पाल ,आछरियाँ आदि से सम्बन्ध जुड़ा हवा है !

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              ४-गतिशील देवता
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 पहाड़ी देवताओं की मुख्य विशेषता इनकी गतिशीलता है हिमालय के आंतरिक क्षेत्रों में जौनसार,उत्तरकाशी,चमोली और पिथौरागढ़ में जिस तरह आदमी पशुचालक के रूप में सीमित घुमतु गीवाँ ब्यतीत करता है !उसी तरह यहाँ देवी-देवता भी घुमने के लिए और तीर्थटन के लिए यात्रा करते हैं !

जौनसार का प्रसिद्ध "चाल्दा महासू" साथी और पासी क्षेत्रों में बारह-बारह वर्षों तक यात्रा करते हैं !प्रति वर्ष चाल्दा महासू एक गाँव में निवास करता है !उसी तरह एनी ग्रामीण देवता भी अपने प्रभाव क्षेत्र की यात्रा करते हैं !

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         ५-पहाड़ी महिला तथा दैवीय अम्बन्ध
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  गढ़वाल-कुमाऊँ की ध्यानि-ब्वारी और जौनसार-जौनपुर -रंवाई की धयांटी -रोंटी पहाड़ी संस्किर्ति में स्त्री के स्थान को स्पस्ट रेकांकित करते हैं !पहाड़ की स्त्री को अपने माइके के प्रति विशेस आग्रह और स्नेह होता है !बेटी के साथ माइके का सम्बन्ध घनिष्ठ एवं अटूट होता है !

नंदा देवी की जात के साथ माइके का बिम्ब गहराई से जुडा है !सारे प्रवतीय क्षेत्र में ध्यानि मैत के अंतर्संबंधों का तात्रम्य देवताओं से भी है !जौनसार में माइके की दिष्टाशादी के बाद लड़की को बैचेन करती है !

दिष्टा पूजा के बाद शांत हो जाती है १इस प्रकरण में दिष्टा पति-पत्नी के बीच घनिश्ता को सशक्त करने का काम करती है !यह दैवी शक्तियाँ संभवत ,मनौवैह्यानिक स्तर पर स्त्री को माइके के मोहपाश से उबारने की और ससुराल की य्थास्तिथि से समझौता करने का एक सांस्किर्तिक साधन उपलब्ध कराती है !

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                              ६-प्रकिर्ति के प्रति किर्तग्य्ता   
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  पर्वतीय संस्किर्ति में प्रकिरती को देवता माना जाता है !भूमि का देवता भुम्याल है,जब फसलें तैयार हो जाती हैं !तो इनकी रक्षा के लिए भुम्याल के पास "हर्याल्का" किया जाता है !नया अनाज भुम्याल की पूजा किये बिना खाना वर्जित है !अत "नौनाज" किया जाता है !

बरसात में धान की रौपाई से पहले पानी के देवता की पूजा "गधेरा पूजन " कर पानी के प्रति कितग्न्य्ता प्रकट की जाती है !इसी प्रकार खेत की शक्तियों की पूजा "लुगाला " पूजन भी किया जाता है !

जंगल या खेत का कोई बड़ा पेडजैसे पीपल,बरगद आदि गिर गए तो उसे कल्पविर्क्ष मानकर उसकी शांति श्रीमदभागवत पुराण  जलयात्रा और यज्ञं से की जाती है !और पुंह पौधे का रोपण कर उसे सींचकर बड़ा किया जाता है !और फिर एकादसी व्रतकथा,जलयात्रा,यज्ञं और ब्रह्मभोज  के साथ पीपल या बरगद का विवाह तुलसी या आम से कर दिया जाता है !

यहाँ सांप को मारना अशुभ माना जाता है !और हिरन के जोड़े का शिकार नहीं किया जाता है!इस प्रकार उत्तराखंड की लोक संस्किर्ति पूर्ण रूपेण देवता,प्रकिरती,धर्म और आस्था से जुडी है !

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                             ७-स्त्री सम्मान
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यत्र नार्युस्त पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता,

मन्त्र पर्वतीय प्रदेशों में आज भी प्रभावी है,नवरात्र के समय बालिकाओं तथा प्रौढ़ महिलाओं का धियान  के रूप में पूजन किया जाता है !गाँव का कोई भी उत्सव या शुभकारी धयां (ब्य्ह्ता बेटी ) के बिना संपन्न नहीं होता है !

देवी-देवताओं की डोलियाँ उन गाँवों में जाती है,झाहन धयान की शादी हुई होती है !धियानों  को माइके बुलाकर उन्हें धियान भात दिया जाता है !पहाड़ी समाज में देहज लेना या देना पाप समझा जाता है !

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                                     वैदिककालीन पुरातन प्रथायें
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उत्तराखंड के पर्वतीय भागों में आज भी अनेक पुरातन प्रथाएं विद्यमान हैं !जिसका प्रचलन वैदिककाल में था इनमें कुछ प्रथाएं निम्नवत है !

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१-भवन और पत्थर का प्रचलन   

आर्यों के पत्थर व काष्ठ के बने घरों को रिग्वैदिक्काल में दुपुरे व तिपुरे कहा जाता था !आज भी उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों में पत्थर व लकड़ी से निर्मित आवास होते है !और इन्हें इन्हीं अथवा इखंडा,दुखंडा नामों से पुकारा जाता है !

 

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