देहरादून। घराट का आटा खाइए और सेहत बनाइए। जी हां, अगर आप बिजली से चलने वाली चक्कियों और मिलों का आटा खाते-खाते ऊब चुके हैं तो आपके लिए घराट का आटा उत्तम विकल्प है। घराट में पानी के वेग से ढाई से तीन सौ आरपीएम पर पिसने वाले गेहूं के आटे में प्रोटीन समेत अन्य पौष्टिक तत्वों की अधिकता होती है। साथ ही यह पारंपरिक उद्योग गांव के विकेंद्रीकृत विकास की वह कड़ी भी साबित होगा, जिसकी संपूर्ण बागडोर अन्यत्र न होकर सीधे समुदाय या व्यक्ति विशेष के हाथों में निहित है।
घराट परंपरागत ऐसी विधा है, जो जरूरतों को पूरा करने के साथ ही रोजगार की कड़ी से भी जोड़ती है। स्थानीय संसाधनों पर आधारित यह उद्योग गांव व समाज की भागीदारी का उत्कृष्ट उदाहरण है। सदियों से लोग गाड-गदेरों के किनारे स्थित घराटों को गेहूं, मक्का, जौ, मंडुवा, कौंणी से आटा प्राप्त करने के लिए उपयोग में ला रहे हैं। एक दौर वह भी था, जब लोग घंटों तक घराट में अनाज पिसने का इंतजार करते थे। बाद में अन्य साधनों के विकसित होने पर इस विधा का लोप होने लगा। बदली परिस्थितियों में आज एक बार फिर घराट की जरूरत महसूस की जाने लगी है। लोग घराट का पिसा आटा पसंद कर रहे हैं। इसकी वजह बताते हुए शोध संस्था हेस्को की महिला समन्वयक डा.किरन नेगी बताती हैं कि घराट का पिसा आटा आधुनिक चक्कियों के आटे की अपेक्षा कई गुना अधिक पौष्टिक होता है। डा. किरन के अनसार विद्युतचालित चक्कियों व मिलों से 12 सौ से 15 सौ गति चक्र प्रति मिनट पर गरम व जला आटा प्राप्त होता है। इन चक्कियों से चार भागों में चोकर, आटा, मैदा व रफ आटा तैयार किया जाता है। गेहूं के भीतरी हिस्से से मैदा व बाहर के हिस्से से मुर्गी दाना बनता है। गेहूं के इन्हीं दो हिस्सों में प्रोटीन का बाहुल्य है, जबकि घराट में पानी के वेग से 250 से 300 गति पर पिसे आटे में प्रोटीन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट्स, रबर व निकोटिनिक अम्ल, थायमीन, कोलीन फ्लोराइड जैसे रासायनिक संघटक मिलते हैं। वे बताती हैं कि देहरादून में फिलहाल दो उन्नत घराटों में रोजाना दो क्विंटल गेहूं पीसा जा रहा है। इसकी डिमांड दिनोदिन बढ़ रही है। घराट से पिसे आटे से बिस्कुट आदि भी बनाए जा रहे हैं।