Author Topic: Upcoming Festivals - आने वाले स्थानीय त्यौहार  (Read 60781 times)

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रविवार को मनाई जाएगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी संशय बरकरार है। सरकारी गजट व कैलेंडर के हिसाब से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सोमवार को है, जबकि शहर के तमाम पंडित ने रविवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाने का निर्णय लिया है। इस बाबत अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा की बैठक में विचार विमर्श करने के बाद पंडितों ने रविवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाने की घोषणा की है।

वैसे तो पिछले कई वर्षो से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर संशय बना रहता है। इसलिए दो-दो पर्व मनने लगे हैं। इस बार भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को लेकर संशय बना हुआ है। तमाम सरकारी विभागों में सोमवार को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का अवकाश घोषित किया है। इसके अलावा तमाम कैलेंडर में भी 22 अगस्त को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अंकित हैं लेकिन शहर के अधिकांश पंडितों की माने तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व रविवार को ही मनाया जाएगा। शुक्रवार को देर रात अखिल भारतीय ब्राह्मण सभा की ओर से एक बैठक बुलाई गई। जिसमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व को लेकर चर्चा की गई। पंडित जगदीश प्रसाद पैन्यूली ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अ‌र्द्ध रात्रि अष्टमी तिथि चंद्र व्यापनी रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। 21 अगस्त को कातिक नक्षत्र एवं अष्टमी तिथि है। जबकि रोहिणी नक्षत्र 22 अगस्त को है। पंडित रजनीश शास्त्री ने कहा कि उदय व्यापनी अष्टमी को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में लिया जाना है। विचार विमर्श के बाद बैठक में निर्णय लिया गया कि 21 अगस्त को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाए। इस मौके पर पंडित अमृत लाल, दिनेशचंद्र सेमवाल, जगदीश भट्ट, दिनेश रतूड़ी, जयप्रकाश, प्रकाश नौटियाल, गंगा प्रसाद पैन्यूली आदि मौजूद रहे।

दोपहर दो बजे के बाद लगेगी अष्टमी

रुड़की: पंडित राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि 21 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी। इसलिए श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 21 अगस्त को ही श्रेष्ठ होगा। संन्यासियों के लिए 22 अगस्त को व्रत होगा तथा गोकुल उत्सव भी 22 अगस्त को ही है। उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण बाल स्वरूप दूध, दही, शहद, घी व शक्कर से स्नान कराकर दही, मक्खन एवं मिश्री के साथ लड्डू का भी भोग लगाना श्रेष्ठकर होगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6311551.html

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                  आस्था व सामूहिकता का समागम फूलडोल मेला

चम्पावत: चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रही चम्पावत को टेंपल सिटी के नाम से भी जाना जाता है। भाद्र कृष्ण पक्ष की दशमी को होने वाला फूलडोल मेला कई वर्षो से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस बार मेला 23 अगस्त को आयोजित होगा।

  मेले की शुरुआत वर्ष 1944 में तत्कालीन तहसीलदार बीडी भंडारी के प्रयासों से हुई। मेला समिति का गठन कर इसका आयोजन कराया गया और नागनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से तीन दिवसीय अखंड कीर्तन के बाद दशमी को बालेश्वर मंदिर तक श्रीकृष्ण डोले की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। तब से यह मेला हर वर्ष आस्था के सैलाब के साथ बढ़ता चला जा रहा है। पूर्व प्रमुख व कमेटी के सदस्य नारायण लाल साह,अमरनाथ वर्मा, भुवन पचौली बताते हैं कि शुरुआती दौर में इस मेले को संचालित करने के लिए जो सामूहिकता की भावना पैदा हुई थी, वह आज भी जिंदा है।


 मेले का नाम फूलडोल क्यों पड़ा? इस पर पुजारी कैलाश नाथ, सुरेश नाथ बताते हैं कि श्रीकृष्ण डोले को फूलों से आकर्षक रूप से सजाने पर ही इस को फूलडोल नाम दिया गया। शुरुआती दौर में इसे डोल मेला ही कहा जाता था। मेले में रूहेलखंड, बुंदेलखंड व कुमाऊं के साथ ही उत्तरप्रदेश के अन्य कस्बों से आने वाले व्यापारियों के कारण यह व्यावसायिक मेले के रूप में पहचान बनाने लगा है।



वहीं डोल यात्रा में हिस्सा लेने के लिए जनपद के ओर छोर से भारी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। हालांकि बदलते परिवेश के चलते अब तीन दिवसीय होने वाले अखंड कीर्तन के स्वर धीमे पड़े हैं, लेकिन भक्ति संगीत की स्वर लहरियां अब भी गुंजायमान रहती है। कई सालों तक हरे रामा हरे कृष्णा के अखंड कीर्तन की एक टोली होती थी। बकायदा उसे पारिश्रमिक मिलता था। पहले मल्लीहाट और तल्लीहाट में श्रीकृष्ण के डोले सजाए जाते थे।


 बाद में मेले को विस्तृत रूप मिलने से मल्लीहाट के डोले को नागनाथ में तथा तल्लीहाट के डोले को बालेश्वर मंदिर में रखा जाने लगा। पिछले एक दशक से बालेश्वर मंदिर से भी झांकियां निकलनी शुरू हो गई है।

Source dainik jagran

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तीन दिवसीय होगा सोर घाटी का प्रसिद्ध मोस्टामानूं मेला
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पिथौरागढ़: सोर घाटी के प्रसिद्ध मोस्टामानूं मेले की तैयारियां शुरू हो गई हैं। शुक्रवार को हुई बैठक में तीन दिवसीय मेले की रूपरेखा तय की गई।

जिला पंचायत उपाध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह बोहरा की अध्यक्षता में हुई बैठक में मंदिर कमेटी के अध्यक्ष गणेश दत्त काण्डपाल ने बताया कि इस वर्ष मेल की शुरुआत एक सितम्बर को होगी। मुख्य मेला दो सितम्बर को होगा, इसी दिन डोला उठेगा। तीन सितम्बर को विभिन्न खेलकूद प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। मेले का मुख्य आकर्षण वॉलीबाल प्रतियोगिता रहेगी। इसके लिए जिले भर से टीमों को आमंत्रित किया गया है।

प्रतियोगिता की विजेता और उपविजेता टीमों को नकद पुरस्कार दिया जायेगा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जिले भर से टीमें बुलाई जायेंगी। एक सितम्बर को प्रदेश के पेयजल मंत्री प्रकाश पंत मेले का विधिवत उद्घाटन करेंगे। बैठक में जिला पंचायत उपाध्यक्ष ने कहा मोस्टमानूं मेला जिले की विशेष पहचान है और इस मेले को और समृद्ध करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जायेगी।

 उन्होंने क्षेत्र के लोगों से मेला आयोजन में हरसंभव सहयोग देने की अपील की है। बैठक में पीताम्बर जोशी, प्रयाग दत्त पाटनी, तुलसी प्रसाद पांडे, भवान सिंह, त्रिलोक सिंह, सुभाष फुलारा, चन्द्र सिंह, मनोज सिंह सहित दर्जनों लोग मौजूद थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6345884.html

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मेले सदियों से पहाड़ों की सांस्कृतिक विरासत
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उत्तराखंड भेड़ पालन संगठन के अध्यक्ष सबर सिंह कुंवर ने कहा पहाड़ों में सदियों से आयोजित होने वाले मेले कौथिग यहां की सांस्कृतिक विरासत रही है। यही कारण है कि आज भी पहाड़ी संस्कृति हर मंच पर अपनी अलग पहचान बनाये हुये है।

विकासखंड घाट के सुदूरवर्ती गांव रामणी में आयोजित तीन दिवसीय नंदादेवी पर्यटन विकास मेले के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि कुंवर ने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति आज भी हर मंच पर अपनी अलौकिकता के लिए जानी जाती है। जिसका मुख्य कारण यहां समय-समय पर लगने वाले मेले कौथिग ही है। मेले के पहले दिन जहां स्थानीय युवक तथा महिला मंगल दलों से ग्रामीण परिवेश में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई वहीं मेले में आयोजित कार्यक्रमों में स्थानीय विद्यालयों के नन्हें मुन्हें नौनिहालों ने भी एकांकी, लोकगीत आदि का मंचन कर मेले को चार चांद लगा दिये। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में जहां बालीबाल, कैरम, बैडमिंटन प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी वहीं वर्षो से चली आ रही परंपरा को संजीदा रखते हुये ग्रामीण रस्साकशी प्रतियोगिता का आयोजन करेंगे। इस मौके पर मेला कमेटी के अध्यक्ष कुंवर लाल, भागवत सिंह पंवार, पूरण सिंह नेगी, रणजीत सिंह, विक्रम सिंह पंवार, कुंवर सिंह, कमला देवी, मोहन शाह, सुखबीर रोतैला सहित कई लोग मौजूद थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8151990.html

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मां कोट भ्रामरी मंदिर में मेला आज से
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गरुड़ (बागेश्वर): प्रसिद्ध कोट भ्रामरी मेला धार्मिक रूप से शनिवार से प्रारम्भ होगा। जबकि प्रशासनिक रूप से मेले का शुभारम्भ रविवार की सायं विधायक चंदन राम दास करेंगे। मेले में व्यवसाय के लिए विभिन्न स्थानों से दर्जनों व्यवसायी यहां पहुंच गए हैं।

मां नंदा के मंदिर कोट भ्रामरी में लगने वाला मेला धार्मिक रूप से शनिवार को प्रारम्भ होगा। जबकि मेले का विधिवत शुभारम्भ संसदीय सचिव व विधायक चंदन राम दास करेंगे। जबकि आपदा प्रबंधन समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष हीरा धपोला विशिष्ट अतिथि होंगे। इधर तैयारियों की मेलाधिकारी व एसडीएम श्रीष कुमार ने जायजा लिया।

उन्होंने कहा कि बाहर से आने वाले संदिग्धों पर कड़ी नजर रखी जाएगी साथ ही जो भी मेले में कानून का उल्लंघन करता पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। इधर थानाध्यक्ष संजय पाठक ने बताया कि मेले में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस की तैयारियां पूर्ण कर ली हैं।

मेलाध्यक्ष शिव सिंह बिष्ट ने बताया कि मेले को आकर्षक बनाने के लिए पूर्ण प्रयास किए गए हैं विभिन्न स्थानों के सांस्कृतिक दलों द्वारा रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

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मां नंदा-सुनंदा की स्तुति
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चम्पावत: चंद राजाओं की राजधानी रही चम्पावत में चल रहे नंदाष्टमी मेले के पांचवें रोज कन्या पूजन के साथ ही पूरे दिन मां नंदा-सुनंदा की विशेष पूजा अर्चना हुई। बालेश्वर में श्रद्घालुओं का तांता लगा रहा। बुधवार को डोल यात्रा निकाली जाएगी।

पांचवें रोज पूजा अर्चना के साथ ही पं. दीपक कुलेठा, गिरीश कलौनी, विनोद पांडेय ने वैदिक मंत्रों के बीच मां नंदा सुनंदा की पूजा करवाई और कन्या पूजन हुआ। यजमान के रूप में लक्ष्मण तड़ागी, आइडी कोटिया, हीराबल्लभ पांडेय, नारायणदत्त गड़कोटी, मोहन अधिकारी, प्रदीप साह, विमल साह, नरेश जोशी आदि ने अनुष्ठान में हिस्सा लिया। महंत भैरव गिरी की अगुवाई में शिवमंदिर में पूजा अर्चना चलती रही। महिलाओं ने पूरे दिन भजन कीर्तन केस्वर गुंजायमान किए थे। बुधवार को हवनयज्ञ के साथ ही डोल यात्रा निकाली जाएगी। जिसके लिए समिति द्वारा तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

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नंदाष्टमी मेला: आज के कार्यक्रम

- बालेश्वर परिसर में सुबह पूजन, हवनयज्ञ, पूर्णाहुति।

- दो बजे देवडंगरियों का अवतरण।

- दिन में तीन बजे से डोल यात्रा।

- पांच बजे रानी नौले में मूर्ति विसर्जन।

-रात 9 बजे से स्थानीय कलाकारों द्वारा भजन संध्या।

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धूमधाम से मनाया दुबड़ी का त्योहार


 


   नैनबाग : ग्राम खैराड़ में दुबड़ी त्योहार धूमधाम से मनाया गया जिसमें दूर-दराज क्षेत्रों से लोगों ने शिरकत कर देर रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रम का लुत्फ उठाया।
प्रखंड जौनपुर के अंतर्गत पट्टी लालूर के ग्राम खैराड़ में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर फसलों की अधिक पैदावार व क्षेत्र की खुशहाली को लेकर दुबड़ी त्योहार मनाया जाता है, जिसमें समस्त गांव की महिलाएं पूजा का थाल लेकर पंचायत चौक में दुबड़ी की पूजा अर्चना करती हैं साथ ही फसल की अधिक पैदावार की कामना करते हैं। दुबड़ी तोड़ने के बाद देर रात तक प्रसिद्ध लोकनृत्य रासौं, तांदी, हारूल आदि का दौर चलता है जिसमें लोग नाच-गाना गाकर मनोरंजन करते है।


 इस मौके पर खेल परिषद के अध्यक्ष नारायण सिंह राणा, भाजयुमो के प्रदेश संयोजन राजेश नौटियाल, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष मसूरी मनमोहन सिंह मल्ल, प्रदीप कवि, गंभीर सिंह रावत आदि उपस्थित थे।
   
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आंठू महोत्सव में दिखी सांस्कृतिकप्रेम की झलक
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पिथौरागढ़: जिला मुख्यालय में हुए आंठू महोत्सव में जुटी भीड़ से आयोजक गदगद हैं। आयोजकों को मानना है कि महोत्सव जिले की सांस्कृतिक परम्परा आंठू को समृद्ध करने में सफल रहा।

अखिल भारतीय एकता कमेटी के अध्यक्ष शिवराज सिंह अधिकारी की अध्यक्षता में हुई बैठक में वक्ताओं ने कहा रामलीला कमेटी पिछले दो वर्षो से आंठू महोत्सव का आयोजन कर रही है। कमेटी का उद्देश्य आंठू की सांस्कृतिक परम्परा को और समृद्ध करने के साथ ही नयी पीढ़ी को इस संस्कृति से परिचित कराना भी है। आयोजन में जिस तरह की भीड़ जुटी और दूरदराज के क्षेत्रों से आये ग्रामीणों ने अपनी प्रस्तुतियां दी वह इस महोत्सव की सफलता का प्रतीक है।

 बैठक में आयोजन कमेटी के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह माहरा का आभार जताते हुए वक्ताओं ने कहा इस वर्ष उनके प्रयासों से आयोजन के दौरान विशाल भण्डारे का भी आयोजन हो सका।

बैठक में इस्लाम अहमद, बहार अली, रमेश बिष्ट, वजीर अहमद, नरेन्द्र लाल, मोहन सिंह रावत, मिलाप सिंह, कुशल सिंह, कौस्तुभ चंद, बुद्धिबल्लभ, लक्ष्मण बसेड़ा, महिपाल सिंह, माधो सिंह, इन्द्रलाल वर्मा, सहित तमाम लोग मौजूद थे। बैठक के अंत में तय हुआ कि अगले वर्ष कमेटी आयोजन को सफल बनाने के लिए और बढ़चढ़ कर भागीदारी करेगी।


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चंडिका देवी की बन्याथ यात्रा शुरू
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पोखरी ब्लॉक के 22 गांवों की आराध्य देवी अपने मूल मंदिर जिलासू में वैदिक मंत्रोच्चार के बाद सोमवार को अपराह्न 1 बजे गर्भगृह से क्षेत्रीय भ्रमण पर निकली। इसी के साथ मां चंडिका का बन्याथ उत्सव भी शुरू हो गया है।

बन्याथ उत्सव के लिए जिलासू स्थित शिव-शक्ति मंदिर को भव्य रूप से सजाया गया है। सोमवार को मंदिर में विशेष पूजा कार्यक्रम ब्रह्म मुहूर्त में शुरू हुआ। इसमें आचार्य राकेश खाली, राकेश बेंजवाल, मोहन प्रसाद, अनुसूया प्रसाद, वासुदेव, नीलकंठ खाली, दीर्घायु प्रसाद खाली, हरिबल्लभ सती, पीतांबर दत्त ने देवी के फरसे व ब्रह्म में प्राण प्रतिष्ठा डाल जागृति कार्यक्रम किया।

मंदिर कमेटी के मढ़ापति मथुरा प्रसाद, प्रबंधक विक्रम ंिसह, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह व संयोजक देवी प्रसाद, राजा चौहान ने बताया कि देवी सोमवार अपने मायके सरमोला में रात्रि विश्राम के लिए जाएगी। इसके साथ ही 22 गांवों का भ्रमण कार्यक्रम पूर्ण करने के बाद देवी वापस बनातोली में रुककर पंचप्रयाग व चारधामों की यात्रा की ओर रूख करेगी।

काबीना मंत्री भी हुए पूजा में शामिल

कर्णप्रयाग: चंडिका देवी लंगासू के बन्याथ कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक व काबीना मंत्री राजेन्द्र सिंह भंडारी ने भी विशेष पूजा व डोली जागृति व ब्रह्म पूजा में भाग लेकर देवी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

Source dainik jagran

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औंसी की रात दिवों की बरात, उज्यालू आज ब्योला बणयू च..
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अगस्त्यमुनि। पहाड़ों में हर्षोल्लास के साथ परंपरागत रूप से दीपावली (बगवाल) मनाने की परंपरा है। बगवाल में भैला का आयोजन सबसे उल्लासमयी माना जाता है। बुधवार शाम को इसका आयोजन किया जाएगा। लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी दीवाली आगमन को गीतों में इस प्रकार बयां किया है। ‘औंसी की रात दिवों की बरात, उज्यालू आज ब्योला बणयू च’। भैला ओ भैला चला खेली औला, नाचा दौड़ा मारा फाला फिर ऐगी बौणी बग्वाल।


भैला बनाने को लेकर गांवों में दौली (चीड़ के छिल्ले) को चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गांवों के बुजुर्ग लोग जंगलों में चीड़ के पुराने ठूंठ खोजकर उनका भैला बना रहे हैं। फलईं गांव के बुजुर्ग हुकुम सिंह भंडारी और मदन सिंह बताते हैं कि भैला अनिष्ट, रोग निवारण और अंधेरे पर उजाले की विजय के रूप में बनाया जाता है।


पहाड़ की दीवाली को लोकगीत और नृत्य उल्लास मय बनाते हैं। गांवों में परंपरागत भैला के साथ आधौ का भेला भी बनाया जाता है। चीड़ की लकड़ियों से बने आधौ का वजन 15 से 25 किलो तक होता है। जिसे दोनों हाथों में पकड़ते हुए बैठकर घुमाया जाता है।

 घुमाने वाले व्यक्ति के चारों ओर युवा और बुजुर्ग घेरा बनाकर हर्षध्वनि करते हैं। आधौ खेलने के साथ झुमैलों गीत भी लगाए जाते हैं। इसमें सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर प्रहार किए जाते हैं।

Source Amarujala

 

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