Linked Events

  • Uttarayani - उत्तरायणी कौतिक(मकर संक्रान्ति): January 14, 2014

Author Topic: Uttarayani घुघुतिया उत्तरायणी (मकर संक्रान्ति) उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा पर्व  (Read 124711 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
[justify]साथियो,
        मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और यही त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है।  इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में यह त्यौहार घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। यह पर्व हमारा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और मैं समझता हूं कि यह हमारा FOLK FESTIVAL  भी  है।
     इस पर्व पर पिथौरागढ़ और बागेश्वर को छोड़कर कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति को आटे के घुघुत बनाये जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को दिये जाते हैं (यह पितरों को अर्पण माना जाता है) बच्चे घुघुत की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं;

काले कौवा का-का, ये घुघुती खा जा   
   
       वहीं पिथौरागढ़ और बागेश्वर अंचल में मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (मशान्ति) को ही घुघुत बनाये जाते हैं और मकर संक्रान्ति के दिन उन्हें कौवे को खिलाया जाता है। बच्चे कौवे को बुलाते हैं

काले कौव्वा का-का, पूस की रोटी माघे खा

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....

कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई|
   


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तरायणी मेला- बागेश्वर

यूँ तो मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी के अवसर पर नदियों के किनारे जहाँ-तहाँ मेले लगते हैं, लेकिन उत्तरांचल तीर्थ बागेश्वर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली उतरैणी की रौनक ही कुछ अलग है ।

उत्तराखंड में बागेश्वर की मान्यता 'तीर्थराज' की है । भगवान शंकर की इस भूमि में सरयू और गोमती का भौतिक संगम होने के अतिरिक्त लुप्त सरस्वती का भी मानस मिलन है । नदियों की इस त्रिवेणी के कारण ही उत्तरांचलवासी बागेश्वर को
तीर्थराज प्रयाग के समकक्ष मानते आये हैं ।

बागेश्वर का कस्बा पुराने इतिहास और सुनहरे अतीत को संजोये हुए है । स्कन्द पुराण के मानस खण्ड में कूमचिल के विभिन्न स्थानों का विशद् वर्णन उपलब्ध होता है । बागेश्वर के गौरव का भी गुणगान किया गया है । पौराणिक आख्यानों के अनुसार बागेश्वर शिव की लीला स्थली है । इसकी स्थापना भगवान शिव के गण चंडीस ने महादेव की इच्छानुसार 'दूसरी काशी' के रुप में की और बाद में शंकर-पार्वती ने अपना निवास बनाया । शिव की उपस्थिति में आकाश में स्वयंभू लिंग भी उत्पन्न हुआ जिसकी ॠषियों ने बागीश्वर रुप में अराधना की ।

स्कन्दपुराण के ही अनुसार मार्कण्डेय ॠषि यहाँ तपस्यारत थे । ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जब देवलोक से विष्णु की मानसपुत्री सरयू को लेकर आये तो सार्कण्डेय ॠषि के कारण सरयू को आगे बढ़ने से रुकना पड़ा । ॠषि की तपस्या भी भंग न हो और सरयू को भी मार्ग मिल जाये, इस आशय से पार्वती ने गाय और शिव ने व्याघ्र का रुप धारण किया और तपस्यारत ॠषि से सरयू को मार्ग दिलाया । कालान्तर व्याघ्रेश्वर ही बागेश्वर बन गया ।

विष्णु की मानस पुत्री सरयू का स्नान पापियों को मोक्ष और सद्गति प्रदान करने वाला है । सरयू पापनाशक है । यम मार्ग को रोकने वाली सरयू के जल का पान करने से सोमपान का फल और स्नान अश्वमेघ का फल प्रदान करता है । बागेश्वर तीर्थ में मृत्यु से प्राणी शिव को प्राप्त होता है । इस प्रकार सूर्य तीर्थ तथा अग्नि तीर्थ के बीच स्थित विश्वेश्वर ही बागेश्वर है । सरयू का निर्मल जल सतोगुणी फल देता है । नदी की दूसरी धारा गोमती है जो अम्बरीष मुनि के आश्रम में पालित नन्दनी गाय के सींगों के प्रहार से उत्पन्न हुई । इसके जल को तमोगुण की वृद्धि करने वाला माना गया है । सरस्वती यहाँ केवल आस्था है । भौतिक रुप से जलधारा कही दृष्टिगोचर नहीं होती ।

बागेश्वर के सुनहरे अतीत में ही उतरैणी का भी गौरवमय पृष्ठ है । प्राप्त प्रमाणों के आधार पर माना जाता है कि चंद वंशीय राजाओं के शासनकाल में ही माघ मेले की नींव पड़ी थी । बागेश्वर की समस्त भूमि का स्वामित्व था । भूमि से उत्पन्न उपज का एक बड़ा भाग मंदिरों का रख-रखाव में खर्च होता था ।

चंद राजाओं ने ऐतिहासिक बागनाथ मंदिर में पुजारी नियुक्त किये । तब शिव की इस भूमि में कन्यादान नहीं होता था ।

मेले की सांकृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि का स्वरुप संगम पर नहाने का था । मकर स्नान एक महीने का होते था । सरयू के तट को सरयू बगड़ कहा जाता है । सरयू बगड़ के आक-पास स्नानार्थी माघ स्नान के लिए छप्पर डालना प्रारंभ कर देते थे । दूर-दराज के लोग मोहर मार्ग के अभाव में स्नान और कुटुम्बियों से मिलने की लालसा में पैदल रास्ता लगते । बड़-बूढ़े बताते हैं कि महीनों पूर्व से कौतिक में चलने का क्रम शुरु होता । धीरे-धीरे स्वजनों से मिलने के आह्मलाद ने हुड़के का थाप को ऊँचा किया । फलस्वरुप लोकगीतों और नृत्य की महफिलें जमनें लगीं . हुड़के की थाप पर कमर लचकाना, हाथ में हाथ डाल स्वजनों के मिलने की खुशी से नृत्य-गीतों के बोल का क्रम मेले का अनिवार्य अंग बनता गया । लोगों को आज भी याद है उस समय मेले की रातें किस तरह समां बाँध देती थी । प्रकाश की व्यवस्था अलाव जलाकर होती । काँपती सर्द रातों में अलाव जलते ही ढोड़े, चांचरी, भगनौले, छपेली जैसे नृत्यों का अलाव के चारों ओर स्वयं ही विस्तार होता जाता । तब बागेश्वर ही मेले में नृत्य की महफिलों से सजता रहता । दानपुर और नाकुरु पट्टी की चांचली होती । नुमाइश खेत में रांग-बांग होता जिसमें दारमा लोग अपने यहाँ के गीत गाते । सबके अपने-अपने नियत स्थान थे । नाचने गाने का सिलसिला जो एक बार शुरु होता तो चिड़ियों के चहकने और सूर्योदय से पहले खत्म ही नहीं होता । परम्परागत गायकी में प्रश्नोत्तर करने वाले बैरिये भी न जाने कहाँ-कहाँ से इकट्ठे हो जाते । काली कुमाऊँ, मुक्तेश्वर, रीठआगाड़, सोमेश्वर और कव्यूर के बैरिये झुटपूटा शुरु होने का ही जैसे इन्तजार करते । इनकी कहफिलें भी बस सूरज की किरणें ही उखाड़ पातीं । कौतिक आये लोगों की रात कब कट जाती मालूम ही नहीं पड़ता था ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

काले - २ कावा काले ..
घुघत मावा खा ले ..

उत्तरयानी - मकर सक्रंती बहुत बड़ा पर्व है ! खास तौर से बागेश्वर मे उत्तरयानी का बहुत महत्व  है. .

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
बागेश्वर का मेला

धीरे-धीरे धार्मिक और आर्थिक रुप से समृद्ध यह मेला व्यापारिक गतिविधियों का भी प्रमुख केन्द्र बन गया । भारत और नेपाल के व्यापारिक सम्बन्धों के कारण दोनों ही ओर के व्यापारी इसका इन्तजार तरते । तिब्बती व्यापारी यहाँ ऊनी माल, चँवर, नमक व जानवरों की खालें लेकर आते । भोटिया-जौहारी लोग गलीचे, दन, चुटके, ऊनी कम्बल, जड़ी बूटियाँ लेकर आते । नेपाल के व्यापारी लाते शिलाजीत, कस्तूरी, शेर व बाघ की खालें । स्थानीय व्यापार भी अपने चरमोत्कर्ष पर था । दानपुर की चटाइयाँ, नाकुरी के डाल-सूपे, खरदी के ताँबे के बर्तन, काली कुमाऊँ के लोहे के भदेले, गढ़वाल और लोहाघाट के जूते आदि सामानों का तब यह प्रमुख बाजार था । गुड़ की भेली से लेकर मिश्री और चूड़ी चरेऊ से लेकर टिकूली बिन्दी तक की खरीद फरोख्त होती । माघ मेला तब डेढ़ माह चलता । दानपुर के सन्तरों, केलों व बागेश्वर के गन्नों का भी बाजार लगता और इनके साथ ही साल भर के खेती के औजारों का भी मोल भाव होता । बीस बाईस वर्ष पहले तक करनाल, ब्यावर, लुधियाना और अमृतसर के व्यापारी यहाँ ऊनी माल खरीदने आते थे ।

उत्तरायणी कौतिक का आजादी की लड़ाई से संबंध

मेले की इस समृद्ध पृष्ठभूमि का लाभ आजादी के दीवानों ने स्वराज की बात को आम जन मालस तक पहुँचाने में उठाया । बागेश्वर की उतरैणी आजादी से पहले ही राजनैतिक जन जागरण के लिए प्रयुक्त होने लगी थी । 'स्वराज हुनैर छु' - स्वराज्य होने वाला है, की भावना गाँव-गाँव में पहुँच रही थी । सरयू बगड़ राजनैतिक हलचलों का केन्द्र था । काँग्रेसी झंड़े के यहाँ लगते ही हलचल प्रारम्भ हो जातीं । झंडा फहरता देख लोगों के झुंड के झुंड आ इकट्ठे होते । मीटिंग प्रारम्भ हो जाती । जुलूस उठते । गाँव-गाँव से स्वयं सेवक आते । खद्दर का कुर्त्ता-पायजामा, सफेद टोपी उनकी पहचान होती । लोग विक्टर मोहन जोशी, बद्रीदत्त पाण्डे सरीखे-नेताओं को सुनने सरयू बगड़ का रुख करते । स्वतंत्रता की भावना को गाँव-गाँव तक पहुँचाने का यह सबसे श्रेष्ठ अवसर होता ।

अँग्रेजों ने कुली उतार एवं कुली बेगार जैसी अमानवीय प्रथायें पहड़वासियों पर लादी थी । एक समय था जब पहाड़ में अँग्रेजों को अपना सामान लादने के लिए कुली मिलना कठिन था । इस प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक गाँव में बोझा ढोने के लिए कुलियों के रजिस्टर बनाये गये थे । अँग्रेज साहब के आने पर ग्राम प्रधान या पटवारी 'घात' आवाज लगाता । जिसके नाम की आवाज़ पड़ती उसे अपना सारा काम छोड़कर जाना अनिवार्यता थी । बच्चे, बूढ़े, बीमार होने का भी प्रश्न न था । सन् १८५७ में कमिश्नर हैनरी रैमजे ने ४० कैदियों से क्षमादान की शर्त पर कुलियों का काम लिया था । लेकिन ज्यों-ज्यों अँग्रेज बढ़ते गये समस्या विकट होती गयी । तब ज़ोर ज़बरदस्ती से मैनुअल आॅफ़ गवर्नमेंट आडर्स में कुली प्रथा को निर्धारित किया गया । लेकिन भूमिहीन और कर्मचारियों को कुली नहीं माना गया । कुली का कार्य वह करता था जिसके पास जमीन होती । इस तरह कुमाऊँ का प्रत्येक भूमिपति अँग्रेजों की न में कुली था । यही नहीं कुली का काम करने वाले व्यक्ति को साहब के शिविरों में खाद्य पदार्थ इत्यादि भी ले जाने पड़ते । यह भार 'बर्दायश' कहलाता ।

सन् १९२९ में कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पाण्डे के नेतृत्व में इसी सरयू बगड़ में कुली बेगार के रजिस्टरों को डुबोया गया । तब से लेकर आज तक राजनैतिक दल इस पर्व का उपयोग अपनी आवाज बुलन्द करने में करते हैं ।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तरायणी कौतिका ओ दीपा, हिट दीपुली बागेशरा
 
तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है मान्यता है कि इस दिन  सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते है बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960  मीटर की ऊचांई पर स्थित है। 
         उत्तरायणी मेला सम्पूर्ण कुमायू का प्रसिद्ध मेला है। मेला अवधि में संगम तट पर दूर-दूर से श्रद्धालु, भक्तजन आकर मुडंन, जनेंऊ सरंकार, स्नान पूजा अर्चना करते है तथा पूण्य लाभ  कमाते है विशेषकर मकर संक्रान्ति के दिन प्रातःकाल से ही हजारों की संख्या में स्त्री पुरूष बच्चे बूढें महिलाऐ संगम मे डुबकी लगाते है। मानयता है कि वर्ष में सूर्य छः माह दक्षिणायन में व छः माह  उत्तरायण में रहता है। मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरायण मे प्रवेश करता है इस समय संगम में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते है। 
मेला अवधि मे बाहर से आये हुये कलाकारों द्वारा विशेष नाटको का आयोजन होता है स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान स्थानीय संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता  हैं। दिन में शैक्षिणिक संस्थानों के बालक बालिकाओं द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते है।
     उत्तरायणी मेंला बागेश्वर कमायू का प्रसिद्ध व प्राचीनतम मेला है। यहॉ पर खरीद फरोख्त हेतु व्यापारी पर्यटक, श्रृद्धालु धारचूला, पिथौरागढ, अल्मोड़ा, लोहाघाट, चम्पावत, गढवाल,  बरेली, बदॉयू, रामपुर, मुरादाबाद, नजीबाबाद, दिल्ली व उत्तर प्रदेश के अन्य स्थलों से आते है श्रृद्धालु दर्शनार्थी पर्यटक हजारों की संख्या में भाग लेते है।
 
 
 

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तरायणी के अवसर पर बागेश्वर के अलावा उत्तरकाशी में भी मेला लगता है, जिसे माघ मेला कहा जाता है।

माघ मेला, उत्तरकाशी 
 
माघ मेला उत्तरकाशी इस जनपद का काफी पुराना धार्मिक/सांस्कृति तथा व्यावसायिक मेले के रूप में प्रसिद्ध है। इस मेले का प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन पाटा-संग्राली गांवों से कंडार  देवता के साथ -साथ अन्य देवी देवताओं की डोलियों का उत्तरकाशी पहुंचने पर शुभारम्भ होता है। यह मेला 14 जनवरी मकर संक्राति से प्रारम्भ हो 21 जनवरी तक चलता है। इस मेले में जनपद के  दूर दराज से धार्मिक प्रवृत्ति के लोग जहाँ गंगा स्नान के लिये आते है। वहीं सुदूर गांव के ग्रामवासी अपने-अपने क्षेत्र के ऊन एवं अन्य हस्तनिर्मत उत्पादों को बेचन के लिये भी इस मेले में आते है।  इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में यहाँ के लोग स्थानीय जडी-बूटियों को भी उपचार के लिये लाते थे किन्तु वर्तमान समय में इस पर प्रतिबन्ध लगने के कार. अब मात्र ऊन आदि के उत्पादों को ही  यहाँ पर विक्रय होता है।

उत्तरकाशी माघ मेले का महत्व मात्र जनपद उत्तरकाशी तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस मेले का धार्मिकता के आधार पर भी अन्य जनपदों/प्रदेश स्तर पर पहचान एवं आस्था है,  इसका मुख्य कारण इस मेले का विश्वनाथ जी की नगरी में हिन्दू धर्म के आधार पर महात्म्य माह माघ मे होना है।

वर्तमान समय मे यह मेला धार्मिक/ सांस्कृतिक एवं विकास मेले के अतिरिक्त पर्यटक मेले के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है। इसका मुख्य कारण वर्तमान विभाग द्वारा यहाँ के  पर्यटक स्थलों के विकास एवं प्रचार/प्रसार की मुख्य भूमिका रही है। चूंकि यह मेला माह जनवरी में आयोजित होता है जिसके कारण उस समय पहाडों में अत्यधिक बर्फ रहती है पर्यटन विभाग द्वारा  दयारा बुग्याल को स्कीइंग सेंटर के रूप में विकसित/प्रचारित करने के कारण इस क्षेत्र में काफी पर्यटकों का आवागमन होता है।
 
 

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
बागेश्वर का मेला राजनैतिक रूप में भी कुछ अलग स्वरुप लिये है, मेले के अवसर पर सभी प्रमुख राजनैतिक दल यहां पर अपना-अपना पंडाल लगाते है और अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।


उत्तरायणी कौतिक की कुछ तस्वीरें

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
बागेश्वर का मेला जनकवि "गिर्दा" की नजर से

हमले देखो जै बै यारो, भारी म्याला बागेश्वर,
और जो देखि कौतिक माजा, कसि-कसि काला बागेश्वर,
सौर-जवांई, सासू-ब्वारी, भिन्ज्यू-साला, बागेश्वर,
शौक-भोटिया, लामा दरमी, गोरा-काला, बागेश्वर,
चोर-जुवारी, पुलिस पटवारी, छन मतवाला, बागेश्वर,
डूना-कांणा, बुडिया-खुडिया, लाटा-काला बागेश्वर,
डोका, फरूवा, हुडको, काठिया, ठेकी-पाला बागेश्वर,
मेवा मिश्री, किशमिश, छुहारा, बदाम, ग्वाला बागेश्वर

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
Pankaj Da is bahumauly jaankaari ke liye Dhanyawaad.... +1 karma aapko samarpit hai


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Bahut hi achhi jaankari di hai aapne Pankaj Da. +1 karma aapko is info ke liye.

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22