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  • Uttarayani - उत्तरायणी कौतिक(मकर संक्रान्ति): January 14, 2014

Author Topic: Uttarayani घुघुतिया उत्तरायणी (मकर संक्रान्ति) उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा पर्व  (Read 128559 times)

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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wah wah ho pankaj guru bhaute bhali jankari,, yo najkari dine lizi sukariya.. wah wah...

हेम पन्त

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Mahasankranti ke din Maagh Mahine ki shuruwaat hoti hai.....
Pehli raat ko (Poos Mahine ka antim din) sabhi gahro me aate se Ghughuti, khajure sail-puva  aadi pakwaan bannaye jaate hain... Jinhe subah Kauvvo ko khaane ke liye chhat par rakha jata hai.... bade utsaah se bachche apne gale mein ghghutiyo ko latka kar gaav bhar mein ghume hai...

kaale kauwwa ka-ka, poos ki roti maaghe kha.....

 

पंकज सिंह महर

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The Uttarayani Fair

Uttrayani fair is held in a number of places including Bageshwar, Rameshwar, Sult Mahadev, Chitrashila (Ranibagh) and Hanseshwar etc. on Uttarayani day. At Pancheshwar the dola of Chaumu comes down to the temple. The fair at Bageshwar attracts maximum people. Its commercial, cultural and political importance is still very high. Goods like iron and copper pots, baskets, casks, bamboo articles, mats, mattresses, carpets, blankets, herbs and spices are sold during this fair.

The Uttarayani fairs are often used as platforms by social and political workers and the Bageshwar fair specially has played an important role in all the local movements, as also in the freedom movement. In 1921 activists had given a call for the eventual eradication of the system of bonded labour known as coolie begar. In 1929 Gandhi ji came to Bageshwar. Many freedom fighters and folk singers have been closely associated with the Bageshwar fair. Even today the fair attracts a large number of people, who spend the whole night dancing and singing Jhoras, Chancharis and Bairas

from-euttaranchal

पंकज सिंह महर

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GINDI MELA : GARHWAL (मकर संक्रान्ति के अवसर पर मनाया जाने वाला त्यौहार)
"Gindi Mela" is a major fair held in the southern part of Garhwal in Uttarakhand. This fair is celebrated during the auspicious festival of Makara Sankranti. It is a major event, attracting people from far and near to the villages where this fair is celebrated.
The Gindi fair is synonymous with bravery, joy and competitive spirits. The word ‘gindi’ means ‘ball’ in the local language. As the name suggests, this fair is marked by a ball game. The game involves teams from two different villages. The main aim in this game is to capture the ball. The team that succeeds to get the ball over its side is declared the winner. The winning team takes home the ball, amidst celebrations and dances.
I belongs to Patty Maniyarsuin (East) and I have been part of these melas and enjoys a lot. This time also, I am planning to go to my native place for celebrating/watch this auspicious festival.


pauri-garhwal-group.blogspot.com
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bahut sal ho gaye... Ghar Mai Ghughuti Nahi manayee...

Anyway pradesh mae bhi hum ghughuti manate hai..


हेम पन्त

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घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई

हलिया

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य:
गजब हो पन्त ज्यू
इतू बढिया बात बतै आफ़ू ले।  धन्य हो महाराज। एक कर्मा तो अल्लै ल्ही लियो और घुघुतिया आब ऊनौ पै, घुघुता ले कै खिलूलो आफ़ू कै।

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hem Da,

Great information about Kale Kawa - Kale.. .. (1 karma). Hope a lot of people will now come to know about this secret of "Kale Kawa Kale, Ghughti Mawa Kha la".

Jai tumari.


घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई

पुछारी

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महराज..

मै तो ठहरा पुजारी साधू,  लेकिन इसके बारे मै मुझे भी पता नही था.. यदि कोई मेरे पास पूछ कराने आता तो ...

मेरी तो वाट लग जाती .

धन्यवाद .. हेम जिउ  .

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासूती क्या है, कौन है ?

उत्तराखंड का एक भाग है कुमाऊँ ! वही कुमाऊँ जिसने हिन्दी को बहुत से कवि, लेखक व लेखिकाएँ दीं, जैसे सुमित्रानंदन पंत,मनोहर श्याम जोशी,शिवानी आदि ।
वहाँ की भाषा है कुमाऊँनी । वहाँ एक चिड़िया पाई जाती है जिसे कहते हैं घुघुति । एक सुन्दर सौम्य चिड़िया । मेरी स्व दीदी की प्रिय चिड़िया । जिसे मामाजी रानी बेटी की यानी दीदी की चिड़िया कहते थे । घुघुति का कुमाऊँ के लोकगीतों में विशेष स्थान है ।
कुछ गीत तो तरुण जी ने अपने चिट्ठे में दे रखे हैं । मेरा एक प्रिय गीत है ....
घूर घुघूती घूर घूर
घूर घुघूती घूर,
मैत की नौराई लागी
मैत मेरो दूर ।
मैत =मायका, नौराई =याद आना, होम सिक महसूस करना ।
किन्तु जो गहराई, जो भावना, जो दर्द नौराई शब्द में है वह याद में नहीं है । नौराई जब लगती है तो मन आत्मा सब भीग जाती है , हृदय में एक कसक उठती है । शायद नौराई लगती भी केवल अपने मायके, बचपन या पहाड़ की ही है । जब कोई कहे कि पहाड़ की नौराई लग रही है तो इसका अर्थ है कि यह भावना इतनी प्रबल है कि न जा पाने से हृदय में दर्द हो रहा है । घुघूती बासूती भी नौराई की श्रेणी का शब्द है ।
और भी बहुत से गीत हैं । एक की पंक्तियां हैं ...
घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती ।
या भै भूक गो, मैं सूती ।
भै = भाई
आलो=आया
भूक गो =भूखा चला गया
सूती=सोई हुई थी
यह एक लोक कथा का अंश है । जो कुछ ऐसे है , एक विवाहिता से मिलने उसका भाई आया । बहन सो रही थी सो भाई ने उसे उठाना उचित नहीं समझा । वह पास बैठा उसके उठने की प्रतीक्षा करता रहा । जब जाने का समय हुआ तो उसने बहन के चरयो (मंगलसूत्र) को उसके गले में में आगे से पीछे कर दिया और चला गया । जब वह उठी तो चरयो देखा । शायद अनुमान लगाया या किसी से पूछा या फिर भाई कुछ बाल मिठाई (अल्मोड़ा, कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध मिठाई) आदि छोड़ गया होगा । उसे बहुत दुख हुआ कि भाई आया और भूखा उससे मिले बिना चला गया , वह सोती ही रह गई । वह रो रोकर यह पंक्तियाँ गाती हुई मर गई । उसने ही फिर चिड़िया बन घुघुति के रूप में जन्म लिया । घुघुति के गले में, चरयो के मोती जैसे पिरो रखे हों, वैसे चिन्ह होते हैं । ऐसा लगता है कि चरयो पहना हो और आज भी वह यही गीत गाती है :
घुघूती बासूती
भै आलो मैं सूती ।
किन्तु कहीं घुघुति और कहीं घुघूती क्यों ? जब भी यह शब्द किसी गीत में प्रयुक्त होता है तो घुघूती बन जाता है अर्थात उच्चारण बदल जाता है ।
इस शब्द के साथ लगभग प्रत्येक कुमाऊँनी बच्चे की और माँ की यादें भी जुड़ी होती हैं । हर कुमाऊँनी माँ लेटकर , बच्चे को अपने पैरों पर कुछ इस प्रकार से बैठाकर जिससे उसका शरीर माँ के घुटनों तक चिपका रहता है, बच्चे को झुलाती है और गाती है :
घुघूती बासूती
माम काँ छू =मामा कहाँ है
मालकोटी =मामा के घर
के ल्यालो =क्या लाएँगे
दूध भाती =दूध भात
को खालो = कौन खाएगा
फिर बच्चे का नाम लेकर ........ खालो ,....... खालो कहती है और बच्चा खुशी से किलकारियाँ मारता है ।
मैं अपने प्रिय पहाड़, कुमाऊँ से बहुत दूर हूँ । पहाड़ की हूँ और समुद्र के पास रहती हूँ । कुमाऊँ से मेरा नाता टूट गया है । लम्बे समय से वहाँ नहीं गई हूँ । शायद कभी जाना भी न हो । किन्तु भावनात्मक रूप से वहाँ से जुड़ी हूँ । आज भी यदि बाल मिठाई मिल जाए तो ........
वहाँ का घर का बनाया चूड़ा ( पोहा जो मशीनों से नहीं बनता , धान को पूरा पकने से पहले ही तोड़ लिया जाता है ,फिर आग में थोड़ा भूनकर ऊखल में कूट कर बनाया जाता है ।) अखरोट के साथ खाने को जी ललचाता है । आज भी उस चूड़े की , गाँव की मिट्टी की महक मेरे मन में बसी है । मुझे याद है उसकी कुछ ऐसी सुगन्ध होती थी कभी विद्यालय से घर लौटने पर वह सुगन्ध आती थी तो मैं पूछती थी कि माँ कोई गाँव से आया है क्या ? मैं कभी भी गलत नहीं होती थी । यदि कोई आता तो साथ में चूड़ा , अखरोट , जम्बू (एक तरह की सूखी पत्तियाँ जो छौंका लगाने के काम आती हैं और जिन्हें नमक के सा पीसकर मसालेदार नमक बनाया जाता है ।), भट्ट (एक तरह की साबुत दाल) , आदि लाता था और साथ में लाता था पहाड़ की मिट्टी की महक ।
वहाँ के फल , फूल, सीढ़ीनुमा खेत , धरती, छोटे दरवाजे व खिड़कियों वाले दुमंजला मकान ,गोबर से लिपे फर्श , उस फर्श व घर की चौखट पर दिये एँपण , ये सब कहीं और नहीं मिलेंगे । एँपण एक तरह की रंगोली है जो कुछ कुछ बंगाल की अल्पना जैसी है । यह फर्श को गेरू से लेप कर भीगे पिसे चावल के घोल से तीन या चार उँगलियों से बनी रेखाओं से बने चित्र होते हैं । किसी भी कुमाऊँनी घर की चौखट को इस एँपण से पहचाना जा सकता है । दिवाली के दिन हाथ की मुट्ठियों से बने लक्ष्मी के पाँव ,
जो मेरे घर में भी हैं बनते हैं । वे जंगलों में फलों से लदे काफल, किलमोड़े, व हिसालू के वृक्ष । जहाँ पहाड़ों में दिन भर घूम फिर कर अपनी भूख प्यास मिटाने के लिए घर नहीं जाना पड़ता, बस फल तोड़ो और खाओ और किसी स्रोत या नौले से पानी पियो और वापिस मस्ती में लग जाओ । वे ठंडी हवाएँ ,वह बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ, चीड़ व देवदार के वृक्ष !
बस इन्हीं यादों को , अपने छूटे कुमाऊँ को , अपनी स्व दीदी की याद को श्रद्धा व स्नेह के सुमन अर्पण करने के लिए मैंने स्वयं को नाम दिया है घुघूती बासूती ! है न काव्यात्मक व संगीतमय, मेरे कुमाऊँ की तरह !
घुघूती बासूती
पुनश्च : यह पढ़ने के बाद यदि अब आप मेरी कविता उड़ने की चाहत पढ़ें तो आपको उसके भाव सुगमता से समझ आएँगें ।
घुघूती बासूती

 

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