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  • Uttarayani - उत्तरायणी कौतिक(मकर संक्रान्ति): January 14, 2014

Author Topic: Uttarayani घुघुतिया उत्तरायणी (मकर संक्रान्ति) उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा पर्व  (Read 128160 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तरायणी मेले की तैयारियों का निरीक्षण



बागेश्वर। 13 जनवरी से लगने वाले उत्तरायणी मेले की तैयारियों का जिलाधिकारी डीएस गब्र्याल ने निरीक्षण किया उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्यक्रम को देखते हुए उनक प्रस्तावित मार्गो का भी निरीक्षण किया। जिलाधिकारी ने कहा कि 10 जनवरी तक सभी कार्य पूर्ण करा लिए जाएं।

जिलाधिकारी श्री गब्र्याल ने उत्तरायणी मेला स्थल का निरीक्षण किया उन्होंने कहा कि मेलार्थियों को किसी प्रकार की दिक्कतें न हों इसके लिए प्रभावी उपाय किए जाएं साथ ही उन्होंने पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए कि वे कानून व्यवस्था बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करे कहा कि व्यवसायी को सुरक्षा प्रदान की जाय। श्री गब्र्याल ने कहा कि मेले के दौरान सफाई व्यवस्था पर भी ध्यान देने को कहा।

 इस दौरान नगर पालिकाध्यक्ष सुबोध लाल साह ने मेले के लिए पालिका द्वारा की गई तैयारियों की जानकारी देते हुए कहा कि मेलार्थियों की हर सुविधा का ख्याल रखा जा रहा है। जिलाधिकारी ने मेलाध्यक्ष के साथ मुख्यमंत्री के आने के मार्गो आदि पर विचार किया।

खीमसिंह रावत

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पहाड़ में उत्तरैनी सज्ञान (सक्रांति ) कब है 

 ;D  ;D

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarayani Fair Bageshwar.

The fair also is connected with history, in the past also this fair has played key role, during the freedom movement. Gandhiji came here in Bageshwar fair in 1929.



Devbhoomi,Uttarakhand

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क्यों मनाते है मकर संक्रांति?

कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है। ऐसा मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है।

मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करना व गंगा तट पर दान देना बहुत हीं शुभ होता है। धार्मिक दृष्टि से देखे तो इस दिन सूर्य मकर व कर्क राशियों में प्रवेश करते हैं जो की बहुत हीं अच्छा होता है। इस दिन से दिन बड़ी व रातें छोटी होने लगती है क्योंकि मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है यही कारण है कि यहां रात बड़ी व दिन छोटी होती है और जाड़े का मौसम शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति के बाद सूर्य उतरी गोलार्ध में आने लगता है जिससे गर्मी का मौसम शुरू हो ताजा है।

बताया जाता है कि तिथियां चंद्रमा के गति को आधार मानकर तय कि जाती है लेकिन संक्रांति से इसे सूर्य की गति को आधार मान कर तय किया जाता है। इसीलिए इसे प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।

मकर संक्रांति को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके से मानाया जाता है। हरियाणा व पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। उतर प्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है। उप्र में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है। वहीं तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है तथा यह पर्व चार दिन तक वहां चलता है। असम में मकर संक्रांति को माघ- बिहू के नाम से जाना जाता है।

माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि से खुद मिलने जाते है। चुकी शनि भगवान मकर राशी के स्वामी है अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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नमस्कार,
सभी को उत्तरायणी/घूगूतिया त्यार की शुभकामनाऎं! कुमाऊं में यह पर्व उत्तरायणी/घूगूतिया और गढ़वाल में खिचड़ी सन्क्रान्त के रूप में मनाया जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The fact of Celebrating Ghughutia is mentioned below by Mahar Ji.

Please go through the post

साथियो,
        मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है और यही त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है।  इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में यह त्यौहार घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। यह पर्व हमारा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और मैं समझता हूं कि यह हमारा FOLK FESTIVAL  भी  है।
     इस पर्व पर पिथौरागढ़ और बागेश्वर को छोड़कर कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति को आटे के घुघुत बनाये जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को दिये जाते हैं (यह पितरों को अर्पण माना जाता है) बच्चे घुघुत की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं;

काले कौवा का-का, ये घुघुती खा जा   
   
       वहीं पिथौरागढ़ और बागेश्वर अंचल में मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (मशान्ति) को ही घुघुत बनाये जाते हैं और मकर संक्रान्ति के दिन उन्हें कौवे को खिलाया जाता है। बच्चे कौवे को बुलाते हैं

काले कौव्वा का-का, पूस की रोटी माघे खा

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....

कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई|

 

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखंड का पानी व जवानी जाया न हो



उत्तरकाशी। मकर संक्रांति स्नान व देवडोलियों के मिलन के साथ गुरुवार को माघ मेले का भव्य आगाज हुआ। मेले का औपचारिक उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने जनपदवासियों को मकर संक्रांति पर्व की शुभकामना देते हुए उत्तरकाशी में शीघ्र ही जड़ी बूटी शोध संस्थान की शाखा खोलने व उत्तरकाशी से नगुण भवान व देहरादून मोटरमार्ग को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करवाने की घोषणा की।

रामलीला मैदान पर माघ मेला मंच से उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उत्तराखंड के पानी व जवानी को जाया न होने देने का संकल्प लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं समेटे जिले में दयारा, रैथल, वार्सू, हर्षिल, डोडीताल, नचिकेताताल सहित मनेरी भाली परियोजनाओं की दोनों झीलों को पर्यटन सर्किट से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई जा रही है, जिससे यह क्षेत्र दुनिया के नक्शे में जगह बनाएगा और स्थानीय युवाओं को रोजगार की कमी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि रोजगार की दिशा में सरकार की सूबे में निवेश कर रहे बड़े उद्योगपतियों से बातचीत चल रही है। उनके सहयोग से तकनीकी संस्थान खोले जाने की योजना है, ताकि उद्योगों के लिये यहीं पर तकनीकी रूप से दक्ष श्रम शक्ति उपलब्ध हो सके।

समारोह को जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान, क्षेत्रीय विधायक व संसदीय सचिव गोपाल सिंह रावत तथा चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल ने भी संबोधित किया। इससे पूर्व तड़के चार बजे जड़भरत घाट पर क्षेत्र के आराध्य कंडार देवता की डोली स्नान के साथ मकर संक्रांति का स्नान शुरू हुआ। मणिकर्णिका घाट, गंगा घाट आदि पर सुबह से ही हजारों श्रद्धालुओं सहित देवडोलियों का तांता लगा रहा। मुख्यमंत्री के पहुंचने मेला मंच पर पहुंचने तक मेला परिसर में देवडोलियों का नृत्य देख श्रद्धालु अभिभूत होते रहे। इस अवसर पर भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बीडी रतूड़ी, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रेम बुड़ाकोटी, भाजपा जिलाध्यक्ष स्वराज विद्वान, जिला पंचायत सदस्य सुरेश चौहान, हरीश सेमवाल, भारती चौहान, ब्लाक प्रमुख भटवाड़ी विनीता रावत, चिन्यालीसौड़ बलवीर सिंह बिष्ट, डुंडा बरदेई रावत, डीएम बीवी आरसी पुरुषोत्तम, एसपी मुख्तार मोहसिन, एसडीएम एसएल सेमवाल सहित अनेक लोग मौजूद रहे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6103315.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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तराई में जीवंत हुई उत्तराखंड की लोक संस्कृति

द्रपुर, ऊधमसिंह नगर। हुड़के की गमक, दमाऊं की धमक और ढोल की थाप। उस पर थिरकते कलाकार जो उत्तराखंडी संस्कृति की अद्भुत छटा बिखेर रहे थे। भूमि देवता की 'सुफल है जाया देवा कुमाऊं क भूमियाला देवा' स्तुति व गणेश वंदन ने जहां भक्ति की रसधार बहाई वहीं मां दुर्गा का 'देवीधुरा' घंटे घड़ियालों से भी गूंजा। वहीं कलाकारों ने 'सगुन आंखर' के साथ देवभूमि के अप्रतिम सौंदर्य व महा गौरवशाली इतिहास से भी रूबरू कराया।

ऐसा ही कुछ मोहक नजारा रामलीला मैदान में गुरुवार को उत्तरायणी पर्व पर देखने को मिला। वीर रस सा आभास कराता कुमाऊंनी पारंपरिक वाद्य यंत्र 'रणसिंह' के बीच मशकबीन की मधुर धुन ने सुदूर पर्वतीय अंचलों में रचीबसी देवभूमि संस्कृति के जीवंत दर्शन कराये। पारंपरिक वेशभूषा में सजेधजे कलाकारों ने 'लाली हो लाली हौंसिया, पधानी चेली तीलै धारौ बौला' से लोगों को झूमने पर विवश किया।

इसके अलावा मां भगवती की महिमा बखान करते गीतों ने भी मुग्ध किया। इसके अलावा 'ऐगे ऋतु बसंत, बेडूं पाको बारा मासा, हाय तेरो रुमाला' आदि गीत नृत्यों ने भी समां बांधा।

कार्यक्रम में नव ज्योति उत्थान समिति लालपुर, शील विद्या निकेतन, शिशु भारती विद्या मंदिर, विज्डम पब्लिक स्कूल, सनातन धर्म व गुरुनानक कन्या इंटर कालेज, श्री गुरु पब्लिक स्कूल तथा मोनार्ड पब्लिक स्कूल गदरपुर के बच्चों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी। इसके अतिरिक्त युवक मंगल दल देवरिया, खटीमा, भगवानपुर व नव युवक मंगल दल बसंती दिनेशपुर के कलाकारों की नाटय प्रस्तुति व कुमाऊंनी लोक नृत्य ने भी दर्शकों को बांधे रखा।

इससे पूर्व मुख्य अतिथि सांसद केसी सिंह बाबा, कार्यक्रम अध्यक्ष विधायक तिलक राज बेहड़, पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बीएस बिष्ट पालिकाध्यक्ष मीना शर्मा ने संयुक्त रूप से दीप जलाकर शुभारंभ किया।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6103310.html

Rajen

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What Is Makar Sakranti
 
 
Makar Sankranti is celebrated every year on JANUARY 14th. Makar Sankranti marks the end of a long winter with the return
Of the Sun to the Northern Hemisphere. Makara literally means 'Capricorn' and Sankranti Is the day when the sun passes from

One sign of the zodiac to the next.

 

The Sankranti of any month is considered auspicious as it

Signifies a fresh start. However Makara Sankranti is celebrated

In the month of Magha when the sun passes through the winter solstice, from the Tropic of Cancer to the Tropic of Capricorn.

 

This festival has been celebrated for thousands of years. Initially, this was probably a festival celebrated in the cold climate, when people prayed for the warmth of the sun. In all likelihood, the Aryans celebrated it, and continued to do so after migrating to India. Today, Makara Sankranti is celebrated throughout India As a harvest festival.

 
...   

 

खीमसिंह रावत

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राजेन जी नमस्कार
मकर सक्रांति को ही हमारे पहाड़ में उत्तरायणी सज्ञान (सक्रांति) कहते हैं मैं जहां तक जानता हूँ हमारे यहाँ  उत्तरायणी सज्ञान (सक्रांति) अग्रेजी कलेंडर के हिसाब से १४ जनवरी को ही नहीं मनाई जाती है बल्कि पहाड़ के पचांग के हिसाब से माघ एक गते को मनाते हैं यह दिन हो सकता है ज्यादा बार १४ जनवरी को पड़ जाता होगा |

 

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