Linked Events

  • Uttarayani - उत्तरायणी कौतिक(मकर संक्रान्ति): January 14, 2014

Author Topic: Uttarayani घुघुतिया उत्तरायणी (मकर संक्रान्ति) उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा पर्व  (Read 128623 times)

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
I m going to Bageshwar for "Uttaraini Kauthig" with Charu da. I will put some photos in forum by this weekend...

राजेश जोशी/rajesh.joshee

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 406
  • Karma: +10/-0
पंत जी,
पर हमारे वहां नैनीताल में घुघूते कल बनाये जायेंगे

आज पूष (पौष) मास का अन्तिम दिन है, आज बनाये गये घुघुते और पुवे कल सुबह(माघ में) खाये जायेंगे. बच्चे कव्वों को इस आवाज से न्यौता देंगे.

काले कव्वा का-का, पूष कि रोटी माघ खा...

आप सभी को उत्तरायणी पर्व की शुभकामनायें


हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
अच्छा!!! सौर (पिथोरागढ) में आज शाम को घुघुत बना लेंगे, लेकिन उनको तल कर रख लेंगे और त्यौहार मनाया जायेगा. कल सुबह घुघुते और बङे-पुवे कौव्वे को खिलाने के बाद सब लोग बांट कर खाना शुरु करेंगे,,, 

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
घुघुतिया त्यार से सम्बन्धित एक लोककथा एक बार फिर से

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....

कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था... एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया.... मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे......तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई...

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
वैसे तो  त्यौहारों के प्रति बच्चों उत्सुकता और कुतुहल स्वाभाविक है लेकिन घुघुतिया त्यौहार की सुबह जो जोश और उमंग बच्चों में इस सादगी भरे त्यौहार के प्रति दिखता है, उसकी बात ही अलग है. तभी तो बच्चे सुबह सबेरे उठकर जनवरी की कडाके की ठण्ड में भी नहाने को सिर्फ तत्पर ही नहीं रहते बल्कि पहले नहाने के लिये उनमें होड लगी रहती है.

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
"काले कौव्वा का-का, पूष की रोटी माघे खा"     
ये आवाजें कल सुबह ही पिथौरागढ़ और बागेश्वर में सुनाईं देंगी। ये आवाज देंगे गले में ढाल, तलवार, दाड़िम का फूल, डमरु, खजूरे और घुघुति, नारंगी नारियल के टुकड़ों की माला पहने....छोटे-छोटे बच्चे।

काले कौव्वा, का - ले, का-का,
ले कौव्वा पूड़ी,
मै कें दे ठुलि-ठुले कूड़ी,
ले कौव्वा ढाल,
मैं के दे सुना को थाल,
ले कौव्वा तलवार,
 मैं के बना दे होश्यार।

Mukesh Joshi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 789
  • Karma: +18/-1
Makar Sankranti (Ghughutiya) : According to the Hindu religious texts, on the day of Uttarayani, the sun enters the Zodiacal sign of 'Makar' (Capricon) from the Zodiacal sign of the Kark (Cancer), i.e. from this day onwards the sun becomes 'Uttarayan' or it starts moving to the north. O this festival Crow has to be invited & serve the 'Ghughte' which has been prepared with sweet flour. Children use to wear garlend which is to be prepared by 'Ghugnte', Oranges and peanuts. On this day fairs are also organised. This is the famous festival of kumaon.


आप सभी को उत्तरायणी पर्व की शुभकामनायें

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तराखण्ड के सबसे बड़े त्यौहार "उत्तरायणी" के पावन अवसर पर मेरा पहाड़ परिवार की ओर से सभी सदस्यो एवं उत्तराखण्डियों को हार्दिक शुभकामनायें।

Mukesh Joshi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 789
  • Karma: +18/-1
The Uttarayani Mela : This fair is held in a number of places including Bageshwar, Rameshwar, Suit Mahadev, Chitrashila (Ranibagh) and Hanseshwar etc. on Uttarayani day, but Bageshwar Uttarayani mela is much popular then others. This fair is also related with the history of uttaranchal. At Pancheshwar the dola of kumayon comes down to the temple.Its commercial, cultural and political importance is still very high. Goods like iron and copper pots, baskets, casks, bamboo articles, mats, mattresses, carpets, blankets, herbs and spices are sold during this fair.The fair attracts a large number of people, who spend the whole night dancing and singing Jhoras, Chancharis and Bairas.


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मकर संक्रान्ति का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्त करवाता है। यथा-

माघे मासि महादेव यो दाद घृतकंबलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अंते मोक्षं च विंदति॥


मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व

माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22