कौव्वों को पकवान खिलाने के लिये लोकगाथायें भी हैं और मान्यता भी कि कौव्वे के रुप में हमारे पितर आकर इन घुघुतों को स्वीकारते हैं। लेकिन पुराने लोगों का तर्क इसके पीछे शायद यह रहा होगा कि जहां मौसम के बदलते ही अन्य पंछी प्रवास पर जाते हैं या आते रहते हैं। लेकिन कौव्वा ही एक ऐसा पक्षी है, जो सुख-दुःख, हर मौसम में हमारे इर्द-गिर्द रहता है, सो इस सर्द मौसम में उसे एक दिन अपने साथ त्यौहार में शामिल करने की परम्परा बनी हो।