Author Topic: Vaayurath Festival: कुमाऊँ का एक मात्र आसारी वायुरथ महोत्सव: सुई बिशंग, लोहाघाट  (Read 54303 times)









सुधीर चतुर्वेदी

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एक प्राचीन परम्परा को आज की युवा  पीडी उसी धूमधाम  से अशारी महोत्सव को मना रही है कुछ एक बदलावों को लेकर जो आज की समय की जरुरत है लेकिन उसी विशवाश और उसी आस्था के साथ   असारी वायुरथ महोत्सव का जो वायुरथ तैयार किया जाता है उसमे देव डांगर अवतरित होते है और अपनी अनमोल शक्ति से लगभग २० से २५ किमी की यात्रा करता है अपने जोशीले भक्तो के साथ जो उबर - खाबड़ , पथरिलो और ऊँचे - नीचे रास्तो को पार  करता हुआ अपने भक्तो को आशीर्वाद देते हुये और लोगो की मनोकामनाओ को सुनते हुये  आगे बढता रहता है /

सुधीर चतुर्वेदी

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मां के जय कारे से गूंजा क्षेत्र  (Aug 09/11 news by Dainik Jagran)
 
 जागरण कार्यालय, लोहाघाट: पांच गांव सुई व बीस गांव विशुंग के ऐतिहासिक अषाड़ी वायुरथ महोत्सव का मंगलवार को भव्य कलश यात्रा व मां भगवती की गुप्त प्योली उठने के साथ आगाज हो गया है। इस मौके पर जनपद के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने अद्भूत गुप्त प्योली के दर्शन कर मन्नतें मांगी।

महोत्सव का आगाज चार दयोली की पूजा अर्चना के साथ सांसद प्रतिनिधि डा. महेश ढ़ेक, विधायक प्रतिनिधि डीडी पाण्डेय, जिला पंचायत सदस्य सचिन जोशी, पूर्व जिपं सदस्य पूरन सिंह फत्र्याल व मण्डी समिति के पूर्व चैयरमेंन सुभाष बगौली ने संयुक्त रूप से किया। इससे पूर्व मां भगवती, मां कड़ाई देवी, आदित्य महादेव तथा मस्टा मण्डाली के देव डांगरों व पुजारियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर सभी को आर्शीवाद प्रदान किया। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष एकादशी की प्रात: से ही सुई विशुंग के सभी मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना शुरू हो गयी। अपराह्न तीन बजे से पांच गांव सुई व बीस गांव बिशुंग की सैकड़ों महिलाओं ने कुमाऊंनी परिधान में सजधज कर मागंलिक गीतों के साथ भव्य कलश यात्रा निकाली। विशुंग से निकली कलश यात्रा मां कड़ाई मंदिर होते हुए सुई के ऐतिहासिक मां भगवती मंदिर पहुंची। सुईं के पऊ, चनकाण्डे, डुंगरी, सातखाल, चौबे गांव, खैसकाण्डे गांवों से भी भारी संख्या में महिलाओं ने कलश यात्रा निकालकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया।

कलश यात्रा में शामिल एक हजार से अधिक महिलाओं ने सामूहिक रूप से चार दयोली के आयुधों पर पुष्प वर्षा कर गुप्त प्योली के पीछे चलते हुए मांगलिक गीत गाये। इससे पूर्व मां भगवती के मंदिर से बाघम्बर परिधान में सजे अधिकृत पुजारी हीरा बल्लभ जोशी द्वारा मां की गुप्त प्योली (मूर्ति) को आंखों में पट्टी बांधकर बाहर निकाला गया तथा बक्से में आरूढ़ कर उसे दूध व गंगा जल से नहलाने के बाद शिव मंदिर लाया गया। इस बीच पऊ स्थित मस्टा मण्डाली मंदिर से पहुंचे देवीय हथियार (आयुधों) को चार देयोली के अन्य आयुधों में शामिल कर पूजा अर्चना की गई। गुप्त प्योली ने शिव मंदिर प्रागंण में श्रद्धालुओं को दर्शन देकर विशुंग को प्रस्थान किया। भगवती पांच दिन तक अपने ससुराल शिव मन्दिर में विराजमान रहेंगी। इससे पूर्व महोत्सव का उद्घाटन करते हुए अतिथियों ने कहा कि पांच गांव सुई व बीस गांव विशुंग की एकता व भाईचारे का प्रतीक बना यह महोत्सव दिनों दिन विकास के नये आयाम छू रहा है। उन्होने कहा कि बाराही धाम देवीधुरा के बग्वाल मेले से इस मेले की तुलना की जा सकती है। देवीधुरा में पत्थर युद्ध आकर्षण का केन्द्र है तो सुई विशुंग का यह मेला बिना रस्सों के सहारे चलने वाले वायुरथ के कारण प्रसिद्ध है। उद्घाटन समारोह का संचालन कैलाश फत्र्याल व कैलाश पाण्डेय ने संयुक्त रूप से किया। इस मौके पर आयोजन समिति सांस्कृतिक उत्थान व खेल समिति के अध्यक्ष श्याम दत्त चौबे, सचिव विनोद चतुर्वेदी, संरक्षक सचिन जोशी, भुवन चौबे आरपी ओली, कैलाश पांडे, मदन पुजारी, नवीन चौबे, हयात सिंह माहरा, अशोक तिवारी, प्रेम चौबे, सुनील चौबे, रतन सिंह, कै. कालू सिंह करायत आदि ने भी अपने विचार रखे। एसओ बीसी शर्मा दल बल के साथ पहुंचे हुए थे।

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श्रद्धालुओं के लिए की प्याऊ की व्यवस्था

लोहाघाट: अषाड़ी वायुरथ महोत्सव के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता आरपी ओली, राजेश चन्द्र चौबे, राजू चौबे व ललित चौबे द्वारा श्रद्धालुओं के लिए अपनी ओर से प्याऊ की व्यवस्था की जा रही है।

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नहीं बची तिल रखने को जगह

लोहाघाट: अषाड़ी वायुरथ महोत्सव के उद्घाटन के दौरान मंगलवार को सुई के ऐतिहासिक मां भगतवी परिसर व मेला स्थल शिव मन्दिर प्रांगण में तिल रखने को जगह नहीं बची। भीड़ इतनी अधिक थी कि आयोजकों को व्यवस्था करना मुश्किल हो गया।

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महोत्सव में आज

प्रात: 6 बजे से सुई विंशुग के सभी मन्दिरों में पूजा अर्चना व हवन यज्ञ

प्रात: 11 बजे से आईटीबीपी द्वारा नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर

प्रात: 11 बजे से जूनियर व सीनियर वॉलीबाल प्रतियोगिता का उद्घाटन

सायं 7 बजे से सार्प संास्कृतिक कला मंच थराली चमोली तथा उत्तराखण्ड पर्वतीय कला केन्द्र अल्मोड़ा के कलाकारों के अलावा स्थानीय कलाकारों द्वारा रंगा-रंग सांस्कृतिक कार्यक्रम

 

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