Author Topic: Vat Savitri - वट सावित्री व्रत  (Read 15120 times)

Risky Pathak

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Vat Savitri - वट सावित्री व्रत
« on: June 07, 2008, 02:39:16 PM »

वट सावित्री व्रत जेठ  मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है| जितना महत्व प्लैन्स मे करवा चौथ  का   है, वही महत्त्व पहाडो मे वट सावित्री का है| वट सावित्री व्रत पति की लम्बी आयु हेतु किया जाता है|

इस व्रत का सम्बन्ध पतिव्रता स्त्री सावित्री से है, जिसने अपने पति(सत्यवान) के प्राण उड़ जाने पर भी, यमराज से प्राण मांग कर ले आई थी|


आज के इस दौर मे पहाडी महिलाए इस व्रत को भूल सी  गई है| पति की लम्बी  आयु के लिए किया जाना वाला ये व्रत अब विलुप्ता के कागार पे है|

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मेरा सभी सदस्यों से अनुरोध है की आप इस व्रत के बारे मे जितनी भी इन्फोर्मेशन आपके पास है| वो यहा प्रस्तुत  करे|

Risky Pathak

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #1 on: June 07, 2008, 02:41:45 PM »
अभी गत तीन जून को वट सावित्री अमावस्या थी|

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #2 on: June 07, 2008, 02:48:28 PM »
Himanshu jahan tak mujhe jaankari hai hai yeh mainly Almora ke aas paas ke ilaako main manaya jaata tha.

Risky Pathak

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #3 on: June 07, 2008, 02:52:46 PM »
इस दिन विवाहित  स्त्रिया सुबह उठकर स्नान  करने के पश्चात नए वस्त्र व आभूषण पहनती है| फ़िर वट वृक्ष के पास जाकर उसकी पूजा करती है|  वट वृक्ष को तिलक आदि लगाया जाता है| उसके बाद विभिन्न देवी  मंदिरों मे जाकर चुनरी, चुडिया व अन्य आभूषण चडाये   जाते है| देवी के समक्ष प्राथना की जाती है कि उनके पति को हर कार्य मे सफलता मिले, उनकी उमर लम्बी  हो| माँ सावित्री को भी याद किया जाता है| और उन्ही कि तरह पतिव्रता  बनने का आशीर्वाद भी लिया जाता है|

Risky Pathak

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #4 on: June 07, 2008, 02:53:42 PM »
Anubhav daa.... Waise ye Pure Kumaun or Garhwaal kshetra me manaaya jaata hai. Par ab log ise bhoolte jaa rahe hai...

Himanshu jahan tak mujhe jaankari hai hai yeh mainly Almora ke aas paas ke ilaako main manaya jaata tha.

Risky Pathak

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #5 on: June 07, 2008, 02:58:53 PM »
उत्तराखंड देव भूमि है| यहा कई देवियो का निवास है| नंदा देवी, कोट्गारी देवी, हट्कालिका देवी, कमेड़ी देवी आदि | इन्ही देवियो के विभिन्न स्थानों मे कई मन्दिर है| वट सावित्री के दिन इन मंदिरों मे बड़ी भीड़ लगी रहती है| दूर दूर से लोग आकर इन मंदिरों मे वस्त्र आभूषण चडाते है और पति एवं  परिवार की मंगल कामना करती है|

Risky Pathak

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #6 on: June 07, 2008, 03:04:04 PM »
स्त्रिया अपने पुरोहित को भी चुनरी आदि देती है| इस दिन स्त्रिया शाम को पति का आशीर्वाद लेकर ही भोजन ग्रहण करती है|

वैसे इसका विधान बहुत कुछ करवा चौथ जैसा ही है| फ़िर भी इसका अपना महत्त्व है|

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #7 on: June 07, 2008, 04:12:39 PM »

In bageshwar area, this Fast is not observed. My be in some part of UK, it might be observed.

पंकज सिंह महर

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #8 on: June 11, 2008, 02:32:18 PM »

वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।

तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है : सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।

वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है।

संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूप में विकसित हो गई हो। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।

वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सावित्री भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि 'राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।'

सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी, जिसका फल उन्हें बाद में मिला था।

पुराण, व्रत व साहित्य में सावित्री की अविस्मरणीय साधना की गई है। सौभाय के लिए किया जाने वाले वट-सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व के प्रतीक के नाते स्वीकार किया गया है।

पंकज सिंह महर

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Re: वट सावित्री व्रत-Pahaadi Karwa Chauth
« Reply #9 on: June 11, 2008, 02:37:27 PM »
कुमाऊं में वट सावित्री व्रत की निम्न प्रक्रिया प्रचलित है।

स्रियों का व्रत होता हैं। सती सावित्री तथा सत्यवान की कथा सुनी जाती है। बट-वृक्ष के तले मृतक सत्यवान, यमराज तथा सती सिरोमणि सावित्री देवी के चित्र लिखकर इनकी पूजा का जाती है। द्वादश ग्रंथ के डोर की प्रतिष्ठा करके स्रियाँ गले में बाँधती है।

 

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