Author Topic: What Changes Have Occured In Our Culture? - क्या बदलाव आया है हमारी संस्कृति मे?  (Read 12760 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तो,

परिवर्तन सृष्टि का नियम है. बदलते समय से साथ कुछ अच्छे बदलाव आते और कुछ अच्छी छीजे भी बदलते समय से बहाव मे बह जाती है. !

आएये वार्तालाव करे कि हमारे संस्कृति मे क्या - २ बदलाव आये है और ये बदलाव कहाँ तक सही है ? (Let us discuss what all has changed in the flow of changing time).



आपका सहयोगी .

एम एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यह स्पष्ट है कि तीव्र बदलते समय मे हमारे रहन सहन एव संस्कृति काफ़ी बदलाव आ रहे है. जैसे कि ,...

अ)  एक दिवस्यीय शादिया
ब )  पुराने पह्नावो का लुप्त होना

और बहुत सारे परिवर्तन है जो हम बाद मे जिक्र करेगे !

हेम पन्त

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हमारी भाषा में भी काफी बदलाव आ रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि गढवाली-कुमाऊनी बोली का प्रचलन आम लोगों के बीच कम होता जा रहा है. इसके साथ ही हिन्दी अंग्रेजी के शब्दों का बोली में समावेश हुआ है और कुछ पुराने शब्द अब प्रयोग से हट गये हैं....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Absolutely right Hem Da....

हम लोगो को इस ध्यान देना चाहिए ! मे जब की किसी पहाडी भाई से मिलता हूँ तो कोशिश  करता हूँ आपनी भाषा मे ही बात करूं  !

Generally, we see Punjabi / Bangali and other peole when meet, talk in this regional languages. We must also do the same.

हमारी भाषा में भी काफी बदलाव आ रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि गढवाली-कुमाऊनी बोली का प्रचलन आम लोगों के बीच कम होता जा रहा है. इसके साथ ही हिन्दी अंग्रेजी के शब्दों का बोली में समावेश हुआ है और कुछ पुराने शब्द अब प्रयोग से हट गये हैं....

पंकज सिंह महर

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हम रिश्ते भूल रहे हैं,
मुझे याद है बचपन में जब गांव का कोई फौजी भाई अपनी युनिट में जाता था तो पूरा गांव उसे गाड़ी तक छोड़ने जाता था और जब वह घर आता था तो पूरे गांव में उत्सव सा होता था, वह सबके लिये कुछ न कुछ लाता ही था, उस दिन उसके घर के बाहर चौपाल होती थी जिसकी शुरुआत मिठाई, मिश्री और गोले से होती थी और समाप्ति XXX की घूंटों से होती थी,
 ???   ???   ???  लेकिन अब कौन कब आया, कब गया, पता ही नही रहता. लोगों में पुराना प्रेमभाव नहीं रहा......................हेम दा ये राग द्वेष, मैं समझता हूं, जब से पधानचारी खत्म हुई और गांवों में ग्राम प्रधानों के चुनाव शुरु हुये, तभी से गांव का माहौल खराब हुआ.....मैने अब गांव जाना ही छोड़ दिया है..... हम तो प्यार पाने और देने गांव जाते थे, लेकिन राजनीति ने सब चौपट कर दिया......

      दिगौ कस थीं उ दिन ............... आब कब आल उ दिन..मेर गौ में....??

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar JI,

Very sad. Same is the condition of our my village also. A drastic change has come there which really hurt me.

हम रिश्ते भूल रहे हैं,
मुझे याद है बचपन में जब गांव का कोई फौजी भाई अपनी युनिट में जाता था तो पूरा गांव उसे गाड़ी तक छोड़ने जाता था और जब वह घर आता था तो पूरे गांव में उत्सव सा होता था, वह सबके लिये कुछ न कुछ लाता ही था, उस दिन उसके घर के बाहर चौपाल होती थी जिसकी शुरुआत मिठाई, मिश्री और गोले से होती थी और समाप्ति XXX की घूंटों से होती थी,
 ???   ???   ???  लेकिन अब कौन कब आया, कब गया, पता ही नही रहता. लोगों में पुराना प्रेमभाव नहीं रहा......................हेम दा ये राग द्वेष, मैं समझता हूं, जब से पधानचारी खत्म हुई और गांवों में ग्राम प्रधानों के चुनाव शुरु हुये, तभी से गांव का माहौल खराब हुआ.....मैने अब गांव जाना ही छोड़ दिया है..... हम तो प्यार पाने और देने गांव जाते थे, लेकिन राजनीति ने सब चौपट कर दिया......

      दिगौ कस थीं उ दिन ............... आब कब आल उ दिन..मेर गौ में....??


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महर जी,

गाँव मे विरादरी का भी बुरा हाल है. भाईचारा चीज बहुत कम हो रही है. ! कोई किसी की मदद करने नही आते लोग और पैसो से काम कराने लगे है जो की बहुत दुखद बाद है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यह रिवाज अभी थोडी बहुत बची पहाडो मे कि खाने खाते वक्त लोगो विशेष परहेज करते है सिले हुए कपडे उत्तारते है ! यह आमतौर पर चावल खाते वक्त किया जाता है ! नई पीड़ी इस प्रथा को ज्यादे महत्व नही देती है और यह अब बदल चुका है. !

दूसरा बदलाव हमारे संस्कृति मे यह आ गया है कि नई पीड़ी जनेवू नही पहनती है और केवल विशेष धार्मिक कार्यो मे है लोगो जनेवू पहनते है !

हेम पन्त

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आज से कुछ 5-7 साल पहले तक भी लोग आपसी सहयोग से शादी-विवाह, घर का लैन्टर डालना, कहीं दूर से घास-लकडी मिल जुल कर लाना आदि काम सामूहिक रूप से करते थे. लेकिन अब यह माहौल काफी बदल चुका है. इसका सबसे बडा कारण जो मैं समझता हूँ वो यह है कि लोगों में आपसी द्वेष बढा है, और वह सब काम पैसे से कराने लगे हैं. पंकज दा का कहना भी उचित है, राजनीति ने भी गांवों मे घुसकर लोगों के बीच दीवारें खडी कर दी हैं

महर जी,

गाँव मे विरादरी का भी बुरा हाल है. भाईचारा चीज बहुत कम हो रही है. ! कोई किसी की मदद करने नही आते लोग और पैसो से काम कराने लगे है जो की बहुत दुखद बाद है !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The major change that has taken place in our society is that people have left doing agriculture. Thoso who have source of income are migrating from hills or shifting some where in better places.

 

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