This is the condition of roads.
सुभाष भट्ट, देहरादून
उत्तराखंड राज्य बने बारह साल पूरे होने जा रहे हैं, मगर विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पर्वतीय क्षेत्र के चहुंमुखी विकास की उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। करीब 63 फीसदी वनक्षेत्र से आच्छादित उत्तराखंड में सड़कों के निर्माण व विस्तार की सैकड़ों योजनाएं जहां सख्त वन कानून के मकड़जाल में उलझी हैं, वहीं तंत्र की लापरवाही के चलते पुरानी खस्ताहाल सड़कों तस्वीर भी नहीं सुधर पा रही है। विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा मार्गो की खराब हालात इसका उदाहरण हैं।
कहते हैं किसी भी क्षेत्र में विकास का सफर सड़कों के जरिए तय होता है, मगर नवोदित राज्य उत्तराखंड में विकास तो दूर सड़कों के निर्माण की योजनाएं भी कागज से जमीन तक का सफर पूरा नहीं कर पा रही। खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण व विस्तार की सैकड़ों योजनाएं ऐसी हैं, जो सख्त वन कानून के चलते अधर में लटकी हैं, मगर राज्य गठन के बारह साल भी विकास की राह रोक रही इस तकनीकी अड़चन का कोई स्थायी समाधान नहीं तलाशा जा सका है। अकेले लोक निर्माण विभाग की 3804.73 किलोमीटर लंबी सड़कें वनभूमि हस्तांतरण के इंतजार में वर्षो से लटकी पड़ी हैं।
करीब 1298 करोड़ रुपये लागत की इन 524 सड़कों में आधी से अधिक स्वीकृति के छह साल बाद भी जमीन पर नहीं उतर पाई हैं। वनभूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव वर्षो से देहरादून, लखनऊ व दिल्ली के बीच हिचकोले खा रहे हैं। इनमें 358 सड़कें ऐसी हैं जिनको स्वीकृति मिले छह से दस साल बीत चुके हैं, मगर फारेस्ट क्लीयरेंस न मिलने से उनका निर्माण लटका है। राज्य सेक्टर की 1055, जिला सेक्टर की 419, शेड्यूल कास्ट सबप्लान की 186, ट्राइब सबप्लान की 125 व पांच अन्य योजनाएं (कुल 1789) ऐसी हैं, जो अलग-अलग स्तर पर सालों से लंबित हैं।
खंड स्तर पर बनाए जाने वाले प्रकरणों के चलते सर्वाधिक 399 योजनाएं अधर में हैं, जबकि 289 योजनाओं का सर्वे ही नहीं हो पाया है। नोडल अधिकारी स्तर पर 69 व केंद्र सरकार में 99 योजनाओं की फाइलें धूल फांक रही हैं। जिलाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी व मुख्य वन संरक्षक स्तर पर भी कई योजनाएं लंबित हैं। मृग विहार क्षेत्र की 28 लंबित योजनाएं वन कानून के पेंच में उलझी हुई हैं। नतीजा यह कि पिछले दस साल में स्वीकृत 524 सड़कों की लागत फारेस्ट क्लीयरेंस के इंतजार में 1297.97 करोड़ से बढ़कर 2097.60 करोड़ रुपये जा पहुंची है।
यानी, इन सड़कों को धरातल पर उतारने में अब 797.98 करोड़ रुपये (61.47 फीसद) का अतिरिक्त खर्च करना होगा। जाहिर है राज्य गठन के वक्त जिन दुर्गम क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की उम्मीद जगी थी, वो आज भी दुनिया से अलग-थलग पड़े हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की तलाश में इन क्षेत्रों से युवा पीढ़ी लगातार शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
इनसेट..
फारेस्ट क्लीयरेंस के इंतजार में लटकी सड़कें..
स्वीकृति वर्ष-सड़कें-लंबाई-स्वीकृत लागत
2002-1-15 किमी-316.00
2003-2-80 किमी-1300.20
2004-57-524.2 किमी-8781.16
2005-81-567.42 किमी-9215.97
2006-217-1432.80 किमी-28894.27
2007-6-23.08 किमी-504.80
2008-103-756.93 किमी-64397.31
2009-41-302.50 किमी-12256.16
2010-15-96.80 किमी-4055.98
2011-1-6.0 किमी-75.60
-------------------------
योग-524-3804.73 किमी-129797.45
------------------------
(नोट: लागत लाख रुपये में)http://www.jagran.com/