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आपके अनुसार विकास की दृष्टि से उत्तराखंड ने १०० % मैं से कितना विकास किया है ?

below 25 %
46 (69.7%)
50 %
11 (16.7%)
75 %
5 (7.6%)
100 %
2 (3%)
Can't say
2 (3%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: 9 November - उत्तराखंड स्थापना दिवस: आएये उत्तराखंड के विकास का भी आकलन करे  (Read 109804 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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पांच जिलों की 940 सड़कें अभी तक क्षतिग्रस्त
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बरसात का मौसम बीते कई माह बाद भी क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत नहीं हो पाई है। ऐसे में अभी भी गढ़वाल मंडल के पंाच जिलों की 940 सड़कों में लोग जान जोखिम में डालकर सफर कर रहे हैं। लोनिवि ने सड़कों की मरम्मत को शासन से 26 करोड़ 74 लाख की मांग कर रहा है।

पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग व चमोली जनपद में 940 सड़कों की स्थिति बेहद खतरनाक है। आलम यह है कि इन सड़कों के पुश्ते ढहने के साथ ही कई जगह पर मलबे से रास्ते बनाए गए हैं और इन पर दौड़ रहे हल्के वाहन सवारियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। सबसे बुरी स्थिति जनपद टिहरी जनपद में है, जहां ग्रामीण हिस्सों को जाने वाली 317 सड़कें क्षतिग्रस्त हैं। पौड़ी में भी 315 सड़कें क्षतिग्रस्त हैं। लोक निर्माण विभाग मानता है कि इन सड़कों पर वाहन नहीं चलने चाहिए, लेकिन चालक फिर भी सड़कों पर वाहन दौड़ा रहे हैं।

इस संबंध में मुख्य अभियंता लोनिवि गढ़वाल वृत्त के कार्यालय में ग्रामीणों के पत्र भी पहुंचते हैं और डिवीजन लगातार धनराशि की मांग कर रहे हैं। शासन स्तर से धनराशि अवमुक्त न होने से विभाग अभी तक इन सड़कों की मरम्मत लिए धनराशि जारी नहीं कर पाया है।

पांच जनपदों में सड़कों की स्थिति

जिले क्षतिग्रस्त सड़कें मांगी धनराशि

उत्तरकाशी 200 6 करोड़ 25 लाख

टिहरी 317 7 करोड़ 55 लाख

पौड़ी 315 5 करोड़ 39 लाख

चमोली 78 6 करोड़ 45 लाख

रुद्रप्रयाग 30 1 करोड़ 10 लाख

कुल 940 26 करोड़ 74 लाख

Jagran news

Devbhoomi,Uttarakhand

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आठ लाख रुपये लगा दिए ठिकाने
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जिला मुख्यालय के अंतर्गत पुराने बस अड्डे से राजकीय बालिका इंटर कालेज के नव निर्मित भवन को जोड़ने के लिए पैदल मार्ग के निर्माण पर आठ लाख रुपये ठिकाने लगा दिए गए। नगर पालिका की ओर से बनाए गए इस मार्ग का मौजूदा समय में कोई अता-पता नहीं है।

जिले में सरकारी धन का किस तरह दुरूपयोग हो रहा है, इसका अंदाजा जिला मुख्यालय में राजकीय बालिका इंटर कालेज रुद्रप्रयाग के नव निर्मित भवन को जोड़ने वाले पैदल मार्ग की हालत को देखकर लगाया जा सकता है। मानकों को ताक पर रखकर लाखों रुपये खर्च कर बनाए गए पैदल मार्ग ने कार्यदायी संस्था नगर पालिका की भूमिका पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

वर्ष 2006-07 में राज्य वित्त के अंतर्गत पुराने बस अड्डे से कॉलेज के नव निर्मित भवन तक लगभग तीन सौ मीटर पैदल मार्ग स्वीकृत हुआ। इसकेलिए शासन से आठ लाख रुपये की वित्तीय स्वीकृति मिली। नगर पालिका ने वर्ष 2007-08 में उक्त पैदल मार्ग का निर्माण तो किया, लेकिन मार्ग की कटिंग तक पूरी नहीं की गई। मात्र सरकारी धन को ठिकाने लगाने का कार्य किया गया।

मौजूदा समय में न रास्ते का पता नहीं है। निर्माण के अगले वर्ष ही यह मार्ग जगह-जगह पर क्षतिग्रस्त हो गया था। जबकि इस पर अभी तक आवाजाही भी शुरू नहीं हो पाई थी। जहां पैदल मार्ग का निर्माण की किया गया है, वह पूरा स्लाडिंग एरिया हैं। बारिश होते यहां पत्थरों व मलबे का गिरना शुरू हो जाता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8511788.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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बूंद-बूंद को तरसे दो हजार परिवार
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सिविल लाइंस क्षेत्र के करीब दो हजार परिवार दो दिन से पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। नलकूप नंबर दो की मोटर फुंकने से पिछले दो दिन से क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति बाधित है, लेकिन जिम्मेदार महकमे गहरी नींद में सोए नजर आ रहे हैं। हालांकि अधिकारी रविवार तक नलकूप चालू हो जाने की संभावना जता रहे हैं।

दरअसल, सिविल लाइंस गांधी वाटिका के दो वाटर टैंक नलकूप संख्या एक, दो व तीन से भरे जाते हैं। नलकूप नंबर एक की विद्युत मोटर पिछले दो दिन से खराब पड़ी हुई है, जिसके चलते दोनों वाटर टैंक में जरुरत के मुताबिक समय से पानी नहीं भर पा रहा है। नतीजा यह कि सिविल लाइंस क्षेत्र में पेयजल संकट गहरा गया है। बीती रात जल संस्थान के नलकूप संख्या दो व तीन भी रात नौ से सुबह चार बजे तक बंद रहे। कारण यह कि बीती रात बिजली घर नंबर छह की दो इनकमिंग मशीनें खराब हो गई थीं, जो सुबह जाकर चालू हो पाई।

इसके बाद ही नलकूपों से गांधी वाटिका के दोनों वाटर टैंक भरने का काम शुरू हो सका। इस बीच लोग पानी के लिए तरसते रहे। जल संस्थान के अधिकारी नलकूप नंबर एक रविवार तक शुरू होने की संभावना जता रहे हैं। लिहाजा, रविवार को भी लोगों को पेयजल किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8515901.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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36 साल में बनी सिर्फ 17 किमी



  हर दो साल में आधा किमी से भी कम सड़क का हुआ निर्माण घाट (चमोली)। जनपद में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों को सड़क मार्ग से जोड़ने का सपना पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है। लोनिवि ने 1975-76 में घाट विकास खंड के गांवों को थराली से जोड़ने के लिए घाट-थराली मोटर मार्ग की स्वीकृति दी।


इस सड़क के निर्माण के पीछे  न केवल क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने की मंशा थी, बल्कि यहां की सुरम्य वादियों और पर्यटन स्थलों की ओर पर्यटकों का ध्यान खींचना भी था। लेकिन लोनिवि के अधिकारियों की उदासीनता के चलते 36 सालों में अब तक सिर्फ 17 किमी सड़क का ही निर्माण हो पाया है।


 जिस क्षेत्र में विभाग ने हिल कटिंग कर सड़क निर्माण किया भी है, वह पैदल जाने लायक भी नहीं है। घाट की क्षेत्र पंचायत प्रमुख ममता गौड़ एवं थराली की ब्लाक  प्रमुख महेशी देवी कहती हैं कि सड़क निर्माण कार्य पूर्ण करने को लेकर वे कई बार विभागीय अधिकारियों को कह चुकी हैं, लेकिन इस ओर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।


 उन्होंने कहा कि ग्रामीणों के पास अब आंदोलन ही एकमात्र विकल्प बचा हुआ है। दूसरी ओर, लोनिवि कर्णप्रयाग के एई बीएस पुंडीर का कहना है कि सड़क निर्माण के बीच कई चट्टानें आ रही हैं। इसलिए अब मार्ग का एलाइमेंट भी बदलना पड़ सकता है। इसमें कुछ कार्य थराली डिवीजन के पास भी है। जल्दी ही सड़क का एलाइमेंट चेंज कर कार्य शुरू कर दिया जाएगा।


Source Amarujala


It is true that uttarakhand development is very-2 poor. It is even below 20%.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य बनाने के 12 साल भी आज विकास की दृष्टि से बहुत दयनीय है! इन मुद्दों के आधार पर यह राज्य बना था वह अभी भी वही के वही है! बेरोजगारी, पलायन, रोजगार के साधन आदि महतवपूर्ण मुद्दों पर विकास नहीं हुवा है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the condition of roads.

सुभाष भट्ट, देहरादून
 उत्तराखंड राज्य बने बारह साल पूरे होने जा रहे हैं, मगर विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पर्वतीय क्षेत्र के चहुंमुखी विकास की उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। करीब 63 फीसदी वनक्षेत्र से आच्छादित उत्तराखंड में सड़कों के निर्माण व विस्तार की सैकड़ों योजनाएं जहां सख्त वन कानून के मकड़जाल में उलझी हैं, वहीं तंत्र की लापरवाही के चलते पुरानी खस्ताहाल सड़कों तस्वीर भी नहीं सुधर पा रही है। विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा मार्गो की खराब हालात इसका उदाहरण हैं।
 कहते हैं किसी भी क्षेत्र में विकास का सफर सड़कों के जरिए तय होता है, मगर नवोदित राज्य उत्तराखंड में विकास तो दूर सड़कों के निर्माण की योजनाएं भी कागज से जमीन तक का सफर पूरा नहीं कर पा रही। खासतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण व विस्तार की सैकड़ों योजनाएं ऐसी हैं, जो सख्त वन कानून के चलते अधर में लटकी हैं, मगर राज्य गठन के बारह साल भी विकास की राह रोक रही इस तकनीकी अड़चन का कोई स्थायी समाधान नहीं तलाशा जा सका है। अकेले लोक निर्माण विभाग की 3804.73 किलोमीटर लंबी सड़कें वनभूमि हस्तांतरण के इंतजार में वर्षो से लटकी पड़ी हैं।
 करीब 1298 करोड़ रुपये लागत की इन 524 सड़कों में आधी से अधिक स्वीकृति के छह साल बाद भी जमीन पर नहीं उतर पाई हैं। वनभूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव वर्षो से देहरादून, लखनऊ व दिल्ली के बीच हिचकोले खा रहे हैं। इनमें 358 सड़कें ऐसी हैं जिनको स्वीकृति मिले छह से दस साल बीत चुके हैं, मगर फारेस्ट क्लीयरेंस न मिलने से उनका निर्माण लटका है। राज्य सेक्टर की 1055, जिला सेक्टर की 419, शेड्यूल कास्ट सबप्लान की 186, ट्राइब सबप्लान की 125 व पांच अन्य योजनाएं (कुल 1789) ऐसी हैं, जो अलग-अलग स्तर पर सालों से लंबित हैं।
 खंड स्तर पर बनाए जाने वाले प्रकरणों के चलते सर्वाधिक 399 योजनाएं अधर में हैं, जबकि 289 योजनाओं का सर्वे ही नहीं हो पाया है। नोडल अधिकारी स्तर पर 69 व केंद्र सरकार में 99 योजनाओं की फाइलें धूल फांक रही हैं। जिलाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी व मुख्य वन संरक्षक स्तर पर भी कई योजनाएं लंबित हैं। मृग विहार क्षेत्र की 28 लंबित योजनाएं वन कानून के पेंच में उलझी हुई हैं। नतीजा यह कि पिछले दस साल में स्वीकृत 524 सड़कों की लागत फारेस्ट क्लीयरेंस के इंतजार में 1297.97 करोड़ से बढ़कर 2097.60 करोड़ रुपये जा पहुंची है।
 यानी, इन सड़कों को धरातल पर उतारने में अब 797.98 करोड़ रुपये (61.47 फीसद) का अतिरिक्त खर्च करना होगा। जाहिर है राज्य गठन के वक्त जिन दुर्गम क्षेत्रों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की उम्मीद जगी थी, वो आज भी दुनिया से अलग-थलग पड़े हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की तलाश में इन क्षेत्रों से युवा पीढ़ी लगातार शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
 इनसेट..
 फारेस्ट क्लीयरेंस के इंतजार में लटकी सड़कें..
 स्वीकृति वर्ष-सड़कें-लंबाई-स्वीकृत लागत
 2002-1-15 किमी-316.00
 2003-2-80 किमी-1300.20
 2004-57-524.2 किमी-8781.16
 2005-81-567.42 किमी-9215.97
 2006-217-1432.80 किमी-28894.27
 2007-6-23.08 किमी-504.80
 2008-103-756.93 किमी-64397.31
 2009-41-302.50 किमी-12256.16
 2010-15-96.80 किमी-4055.98
 2011-1-6.0 किमी-75.60
 -------------------------
 योग-524-3804.73 किमी-129797.45
 ------------------------
 (नोट: लागत लाख रुपये में)http://www.jagran.com/

Ajay Pandey

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in uttarakhand the development would not be done by the elected government the money of village development will be distributed on village panchayat members the village panchayat members would not be use the money on development of roads on villages and development of hospitals and villages and done drinking water facilities in villages of uttarakhand on pithoragarh the conference will be done on this how can migration be a curse on uttarakhand so the novelist professor martin price will said today the migration from villages is done by uttarakhand villagers on its main cause the roads are not developed and not hospital facilities and not drinking water and  sanitation so the villagers migrate from uttarakhand  this is the views of novelist professor martin price on pithoragarh in a conference i will like to remind that the migration is caused by these main causes and the roads will not be constructed on villages and not constructed hospitals on villages and not done drinking water and sanitation in villages and street light would not be apply on villages for security of villagers from forest animals in uttarakhand so the population will not be increased on 9th november the uttarakhand state will make by done marches and rallies and battles for making this uttarakhand state and uttarakhand state will be heaven so that the development conditions will not be faster in uttarakhand no facilities and no development will done by elected government if elected government will want to increase the development in uttarakhand first of all they would done the main facilities in uttarakhand villages that is most important for uttarakhand villagers and villages uttarakhand is surplus state in trade and development sector and uttarakhand has most of the natural resources that must be preserved by the government uttarakhand has natural wealth and it is surplus state on all hills so the basic facilities are made by elected government for healthy and happy living of villagers at last on this foundation day of uttarakhand i want to say that the elected government should done basic and important facilities in villages of uttarakhand for healthy and happy living of villagers by taking these steps uttarakhand will be a  developed state and not backward state on the cause of development .
jai bharat jai uttarakhand
thanking you and namaskaar
ajay pandey
k 4/56 gali no 27b west ghonda gangotri vihar delhi 110053
phone no 9013284643

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे ९ नवम्बर राज्य स्थापना दिवस -
 अलग उत्तराखंड राज्य बनने के  १२ साल के बाद के सूरते हालत ---------
 
 हालाते जिस्म सूरते जां , और भी ख़राब ,
 चारों तरफ ख़राब , यहाँ और भी ख़राब |
 
 नजरों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे ,
 होंठों में आ रही है जुबाँ और भी ख़राब |
 
 पाबंद हो रही है रवायत से रोशनी ,
 चिमनी में घुट रहा है धुंआ और भी ख़राब |
 
 मूरत संवारने में बिगडती चली गई ,
 पहले से हो गया जहाँ और भी ख़राब |
 
 रोशन हुए चिराग तो आँखें नहीं रहीं ,
 अंधों को रोशनी का गुमां और भी ख़राब |
 
 आगे निकल गए हैं घिसटते हुए कदम ,
 राहों में रह गए हैं निशां और भी ख़राब |
 
 सोचा था उनके देश में महंगी है जिन्दगी ,
 पर जिन्दगी का भाव वहां और भी ख़राब |
 
 - दुष्यंत कुमार-

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Devendra Singh Kotliya उत्तराखंड का स्थापना दिवस, गैरसैंण में राजधानी की स्थापना, पलायन की समस्या, भूमि-अधिग्रहण क़ानून, स्थाई निवास प्रमाण-पत्र का मुद्दा, सत्ता-पक्ष व विपक्ष् के द्वारा एक दुसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप, जांच समितियों का गठन, अखबारों की खबरें, टी॰ व्ही॰ चैनलों पर सनसनी, आदि-आदि... तमाम चीजें हैं जिन्हें ये राजनेता और सरकारें जनता के सामने ताश के पत्तों की तरह परोसती हैं | जनता इन्हें समेटती है, जोडती है, किसी क्रम में लगाती है | और इस तरह से जनता एक "खेल" में शामिल हो जाती है |
 हम में से हर कोई अपने आप को खिलाड़ी समझता है व तरह-तरह की चालें चलता है | किसी को लगता है कि वो जीत रहा है और दूसरे को लगता है कि वह पिछड़ रहा है | लेकिन क्या वास्तव में इस खेल के असली खिलाड़ी हम हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि असली खिलाड़ी कोई और ही है ? क्या हम सभी दूसरों के हाथों की कठपुतलियाँ नहीं बने हुए हैं ? अगर शतरंज के मोहरे अपने आप को खिलाड़ी समझ बैठें तो क्या वो खिलाड़ी बन सकते हैं ? हमें खेल के मोहरों और असली खिलाड़ियों के बीच के इस अंतर को समझना होगा, तभी हम असली खेल को समझ सकेंगे

 

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