क्यों बना ये उत्तराखण्ड ?
आज हमारे राज्य उत्तराखण्ड की 12वीं सालगिरह है, पूरा राज्य तो नही, लेकिन हां उत्सव मनाने वाले राष्ट्रीय राजनैतिक दलों के लोग हर रोज जरुर उत्सव मना रहे हैं, सो आश्चर्य नहीं आज भी मनाएंगे l ये लोग हर साल हर दिन उत्सव मनाते है, अपनी अमीरी का, अपनी राजनैतिक उपलब्धियों का, इस राज्य के आम आदमी के मान मर्दन का, वे उत्सव मानते है इस राज्य निर्माण के लिये आन्दोलन करने और आन्दोलन के दौरान निस्वार्थ शहीद होने वाले लोगों की बेवकूफियों का l विश्वास ही नही होता कि गरीबो और अति पिछ्डो की इस धरती पर अमीरी का नंगा नाच हर साल होते आ रहा है, फिर भी हम सब चुप है ! क्यों ?
कभी यह नाच कुम्भ के नाम पर भाजपा के सुसंस्कृत होने का दावा करने वाले निशंक जैसे नेता कर लेते तों कभी यह नाच राज्य पर लगभग जबदस्ती थोपे मुख्यमंत्री बहुगुणा और आध्यत्म में डूबे सांसद सतपाल महाराज जैसे लोग करते है तों कभी विनय पाठक जैसे कुलपति तों कभी राज्य के पूरी केबिनेट को पहाड़ में स्थित शहीदों के तीर्थ गैरसैंण के नाम पर हवाई सैर करवाकर वहाँ उत्सव मना लिया जाता है l ये देश का केवल एक मात्र राज्य है जहाँ आपदा आने पर मुख्यमंत्री पीड़ीतों को त्वरित सहायता पहुँचाने के बजाय जिन्दा रहने के लिये भजन करने की सलाह देते है l तों यहाँ हरक सिंह रावत जैसे विधायक भी है जिन्हें जनता तों दूर तथाकथित देवी-देवताओं का भी डर नहीं है, जिस मन्त्री पद को जूते की नौक पर रखने का दावा वे कर रहे थे, उसी मन्त्री पद को पाने की लिये देवी देवताओं की कसमों तक का सौदा कर डालते है l कुछ मन्त्री विधायक यहाँ ऐसे भी है, जिनके कर्म उन्हें आम इंसान तों कतई प्रमाणित नहीं करते, जब राज्य का लगभग पूरा पर्वतीय क्षेत्र आपदा में डूबा था,तब उन्हें उनके बीच मौजूद होना चाहिए था, लेकिन इन्होने लंदन सपाटे को ज्यादा तरजीह दी ! उनका अपने राज्य के आपदा से घिरे लोगो के बीच मौजूद होने के बजाय लंदन ओलम्पिक में मौजूद होना जरूरी था, भले ही राज्य में खेल संघों का आधारभूत ढांचा ही ना हो !
इसमे कोई शक़ नही कि राज्य बनने के बाद से ही उत्तराखण्ड ने विकास के साथ साथ घोटालों के भी कुछ नये रेकॉर्ड स्थापित किये, चाहे वह काँग्रेस हो या भाजपा राज्य रूपी निरीह बकरी को अच्छे से निचोड़ कर दुहा है, इसके बावजूद भी जितना विकास यहाँ हुआ है, वह विकास की स्वाभाविक दौड है और उसके लिये जनता की आवश्यकता कम खुद नेताओं की नाजुकता का परिणाम है, हाँ यह अलग बात है कि यह विकास की आँधी पिछले 12 सालो में राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के बजाय नेताओं के रहने के लिये सुगम तलहटी शहरों तक ही सीमीत रहा l इसमें कोई दो राय नहीं कि राज्य में सरकार भले ही किसी भी दल की रहे इतना विकास तो होना तय था l
सवाल इस बात का उठता है कि क्या इन 12 सालों में इससे ज्यादा विकास नही हो सकता था ? क्या राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में अस्पताल नहीं खुल सकते थे, उनमें डॉक्टर एवं सहायक स्टाफ तैनात नहीं किये जा सकते थे ? क्या राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में तकनीकि शिक्षण संस्थान नहीं खुल सकते थे, उनमें शिक्षक तैनात नहीं किये जा सकते थे ? राज्य के खस्ताहाल शिक्षा विभाग (स्कूली एवं उच्च ) को नहीं सुधरा जा सकता था ? राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में कृषि को बढ़ावा देने के लिये भूमि प्रबंधन में चकबंदी जैसे उपाय नहीं किये जा सकते थे ? राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार औद्योगिक नीति नहीं बनाई जा सकती थी ? राज्य की बर्बाद होती बागवानी को नहीं बचाया जा सकता था ? दिनों दिन कम होती कृषि भूमि को बचाने के लिये कोई कठोर कानून नहीं बनाए जा सकते थे ?
लेकिन राज्य बनने के बाद इन 12 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जो आम आदमी को सुविधाओं के अभाव में तिल-तिल कर मरने से बचा सके l इस राज्य में आज भी जीवन यापन और जीवन बचाने, दोनों के लिए लोगों को पलायन ही करना पड़ता है l ये वही राज्य है जहाँ पहाड़ के एक जिला मुख्यालय के एक अस्पताल में फिजिसियन और सर्जन डॉक्टर तैनात करवाने के लिये विधायक को आमरण अनशन करना पड़ता है ! पर इस तरह का कदम हर विधायक नहीं उठा सकता, पार्टी व्हीप के आगे जनता के हित नगण्य है ! राज्य की दुर्दशा को बयान करने को ये बानगी भर है, इस प्रदेश को पर्दे के पीछे से चला रहे नौकर जो खुद को नौकर के बजाय किसी शाह से कम नही समझते है, उनके आंकडो की बाज़ीगरी इस गरीब राज्य को अमीर लोगों के लिये स्वर्ग साबित कर रही है ! यानी राज्य बनने के बाद से अमीर और अमीर हो रहा है और गरीब और ज्यादा गरीब l पता नही कब इस अमीर धरती पर रहने वाले मूल गरीब लोगों के दिन फिरेंगे l राजनेताओं के पोस्टरों और प्रचार के होर्डिंगस से अटे पड़े इस प्रदेश में कैसे यह धरती लोगों को देवभूमि नजर आती है इस पर शोध किया जाना अभी बाकी है !
इस राज्य में दिन तो फिलहाल उन लोगों के फिरे हुये हैं, जिन्होने राज्य स्थापना के समय यहाँ आने की इच्छा तक़ नही ज़ाहिर की थी, या जिन्होंने राज्य बनाए जाने का विरोध किया था, या जिन्होने उत्तरप्रदेश को अपनी प्राथमिकता बताया था और मज़बूरी में यहाँ आये थे l हद तो यहाँ तक़ है कि वे लोग अब यहाँ से वापस भी नही जा रहे है l राज्य उनके लिये वृद्धाश्रम साबित हो रहा है l वे रिटायर होकर भी मलाई खा रहे है और इस राज्य के लिये दशको तक लड़ाई लड़ने वाले हरिया, रमुवा, कलुवा, दीपुली, रामुली, भागुली, भागीरथी, जाने कौन-कौन फाके की जिंदगी जीने को मजबूर है l पता नही ऎसे में कैसे उत्सव मनाया जा सकता है, जब हम गरीब परिवारो के मामले में रिकार्ड बना रहे है ? टिहरी जैसे ऐतिहासिक शहर को बिजली के लिए झील में डुबोने के बावजूद राज्य के ग्रामीण इलाको में आज भी बिजली नहीं पहुंचा पायें है ! बिजली के दाम भी कम नही है और उसके बाद भी गर्व से कहो कि ये उर्जा प्रदेश है ? कमाल है ! उत्सव पर उत्सव !
मै तो हैरान हूं आम आदमी की तरह सिर्फ उत्सव के नाम पर होने वाले अमीरी और फिज़ूलखर्ची की तमाशें की चकाचौंध में कराहती गरीबों की बद्दुआ सुनता हूं, अगले साल फिर एक और सरकारी उत्सव के इंतज़ार में उम्र का एक साल बरबाद कर देता हूं ! पता नही कब तक़ राज्य के पिछड़े और दूरदराज के क्षेत्र में अमीरों का यह नंगा नाच होता रहेगा ? राज्य के दयनीय हालातो को देखते हुए कविवर दुष्यंत की एक कविता याद आती है..
हालाते जिस्म सूरते जां , और भी ख़राब ,
चारों तरफ ख़राब , यहाँ और भी ख़राब |
नजरों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे ,
होंठों में आ रही है जुबाँ और भी ख़राब |
पाबंद हो रही है रवायत से रोशनी ,
चिमनी में घुट रहा है धुंआ और भी ख़राब |
मूरत संवारने में बिगडती चली गई ,
पहले से हो गया जहाँ और भी ख़राब |
रोशन हुए चिराग तो आँखें नहीं रहीं ,
अंधों को रोशनी का गुमां और भी ख़राब |
आगे निकल गए हैं घिसटते हुए कदम ,
राहों में रह गए हैं निशां और भी ख़राब |
सोचा था उनके देश में महंगी है जिन्दगी ,
पर जिन्दगी का भाव वहां और भी ख़राब |
अब तों लगने लगा है क्यों बना होगा ये निगोड़ा उत्तराखण्ड ?
(विचार आभार : संजय महापात्र, रायपुर, छत्तीसगढ़ के एक मित्र)