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आपके अनुसार विकास की दृष्टि से उत्तराखंड ने १०० % मैं से कितना विकास किया है ?

below 25 %
46 (69.7%)
50 %
11 (16.7%)
75 %
5 (7.6%)
100 %
2 (3%)
Can't say
2 (3%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: 9 November - उत्तराखंड स्थापना दिवस: आएये उत्तराखंड के विकास का भी आकलन करे  (Read 109804 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Today Uttarakhand completed 9 yrs but moot questions remains unanswered.

1) employment in hill areas
2) tourism
3) capital issue
4) migration etc etc.
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस

आज उत्तराखंड १३  साल  का हो  गया है लेकिन उत्तराखंड राज्य बनाने के मूल प्रशन अभी वैसे है! बेरोजगारी, पलायन, पहाड़ी क्षेत्रो का विकास, पर्टयन, स्थाई राजधानी गैरसैण आदि.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती राज्य स्थापना दिवस समस्त उत्तराखंड राज्य के निवासियों और सरकार को बधाई !
 
 राज्य बने साल-दो साल हुए थे, मसूरी में दूर गाँव के मजदूरों से साथ कोई मिला कि साहब अखबार में खबर छपवा दो तो इनका पैसा मिल जायेगा l  मोटर मार्ग से ऊपर के इलाकों तक जाने के खच्चर/पैदल रास्तों को ठीक किया था मजदूरों ने l
 
 एक लाख का ठेका विधायक के रिश्तेदार को मिला था, उसने पचास हज़ार में किसी को दे दिया, उससे किसी ने दस हज़ार में काम करने के लिए ले लिया !  जिसने लिया उसने मजदूर लगवा कर दरातियों से केवल पहाड़ी पैदल रास्ते पर थोड़ी-बहुत झाड़ियाँ कटवा दी थीं l मजदूरों को इस काम के पूरे दो हज़ार भी नहीं मिले थे l
 
 खबर फैक्स से भेजी जाती थी, सो मैं खुद देहरादून चला गया कि बैठ कर बनायेंगे कि ये कौन सा सपना पूरा किया जा रहा है सपनो के राज्य निर्माण का ?  सीनियर पत्रकार ने कलाई दिखाते हुए कहा कि उस विधायक ने ये घड़ी मुझे दी है और तुम उसके खिलाफ़ खबर लिखोगे ? एक विपक्षी नेता से कहा कि इस पर चर्चा करिए तो उन्होंने कहा कि यार वो मेरा रिश्तेदार है......
 
 तब से आज तक राज्य का लाख का बज़ट करोड़ों में हो गया है  लगे हाथ राजनेताओं और ठेकेदारों के  रिश्ते और मजबूत हो गए है, छोटे राज्यों के बड़े-बड़े फायदे हैं !
 
 फिर भी बधाई उनको जो, अभी भी लड़ रहे हैं और उनको भी जिनको अभी भी ये आशा है कि एक दिन पहाड़ का राज, पहाड़ के लोगों के ही पास होगा !
 
 साभार मित्र : धनञ्जय सिंह

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड को यूपी से अलग हुए 13 साल बीत चुके हैं। इन तेरह सालों में जहां एक तरफ उत्तराखंड को कई उपलब्धियां मिली हैं।



वहीं दूसरी ओर प्रदेश को कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ा है। ये हैं उत्तराखंड की 13 सालों की उपल‌िब्‍ध्यों और भविष्य में आने वाली चुनौतियां---

13 साल की उपलब्धियां
18 फीसदी तक पहुंची थी विकास दर
राज्य के गठन के समय विकास दर 1.19 के करीब थी जो वर्तमान में दस प्रतिशत के आसपास है। हालांकि एक समय यह 18 प्रतिशत तक भी पहुंची थी।

35 हजार करोड़ का पूंजी निवेश
गठन के साथ ही राज्य में करीब 35 हजार करोड़ का पूंजी निवेश हुआ था। 13 सालों में औद्योगिक क्षेत्र में विकास हुआ है। पूंजी निवेश में लगातार इजाफा हुआ है, हालांकि शुरुआती रफ्तार मद्धिम पड़ गई है।

जीईपी की पहल करने वाला पहला राज्य
सकल पर्यावरणीय उत्पाद को विकास का मानक बनाने को लेकर राज्य ने घोषणा कर देश में पहल की। अगर ऐसा हुआ तो राज्य को विकास के लिए और संसाधनों की मदद मिल सकेगी।

बना रहा जंगल का रकबा
राज्य गठन के बाद वनों की अवैध कटान को लेकर सवाल जरूर उठे लेकिन इन 13 सालों में 63 प्रतिशत का आंकड़ा जस का तस रहा। कई राज्यों में तेजी से घटते वनों के रकबे के मुकाबले यहां की स्थिरता संतोषजनक है।

एजूकेशन हब की बनी पहचान
13 सालों में राज्य ने एजुकेशन हब के रूप में पहचान को और मजबूती दी। छह विश्वविद्यालय खुले। यहां के� नए-पुराने पब्लिक स्कूलों ने परंपरा को आगे बढ़ाते हुए देश-विदेश में पहचान को बरकरार रखा।

99 फीसदी स्थानों पर बिजली
ऊर्जा प्रदेश में बिजली की सप्लाई सभी स्थानों पर सुनिश्चित नहीं हो पाई है परंतु गांवों तक बिजली के तार बिछाने का काम लगभग पूरा है। आंकड़ों के मुताबिक 99 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

ऋण-जमा अनुपात 58 फीसदी
बैंकिंग के क्षेत्र में गठन के समय ऋण जमा अनुपात सिर्फ 22 प्रतिशत था जो 58 प्रतिशत तक हो गया है। वहीं वित्तीय समावेश के तहत प्रदेश के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य बैंकिंग नेटवर्क से जुड़ा है।

बिजली का उत्पादन बढ़ा
राज्य गठन के समय उत्तराखंड से करीब 800 मेगावाट का उत्पादन होता था। जो बढ़कर करीब 3500 मेगावाट हो गया है। हालांकि आत्मनिर्भरता के लिए काफी प्रयास करने होंगे।

साक्षरता बढ़ी
साक्षरता दर महिलाओं और पुरुषों, दोनों में बढ़ी है। साक्षरता दर करीब 80� प्रतिशत तक पहुंच गई है। राज्य गठन के वक्त यह दर काफी कम थी।

मृत्युदर भी काफी कम हुई
शिशु मृत्यु दर कम करने में राज्य ने काफी प्रयास किया है। 2000 में यह 52 था जो घटकर 30 पहुंच गया है। हालांकि पहाड़ी जिलों में स्वास्थ्य सेवाएं अब भी काफी लचर स्थिति में हैं।

वार्षिक प्लान चौगुने से ज्यादा
राज्य गठन के समय वार्षिक प्लान लगभग 2 हजार करोड़ था। जो अब बढ़कर 8 हजार 8 सौ करोड़ हो गया है। इंफ्रास्ट्रक्चर में भी काफी विकास हुआ है लेकिन प्रगति के पथ पर राज्य को बहुत दूर जाना है।

खाद्य सुरक्षा देने वाला राज्य
खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू कर देश के चुनिंदा राज्यों में शामिल हुआ है। लेकिन इसके लाभ से पूरे राज्य को संतृप्त करना बाकी है। इसलिए यह एक बड़ी चुनौती भी है।

राजस्व में भी चौगुने से ज्यादा वृद्धि
राज्य गठन के समय राजस्व मात्र 8 सौ करोड़ था जो वर्तमान में करीब 33 सौ करोड़ हो गया है। देश में सबसे पहले 2005 में वैट लागू करके राज्य ने अपनी आर्थिक दशा बेहतर बनाई। वर्तमान में कुल राजस्व का 70 प्रतिशत हिस्सा वैट से मिलता है।

राज्य के समक्ष 13 चुनौतियां
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्निर्माण
पर्वतीय जनपदों में प्राकृतिक आपदा का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ है जो थमता नहीं दिख रहा है। बीते वर्षों से सबक न लेने के कारण जून 2013 में आई त्रासदी ने पहाड़ों को झकझोर दिया है।



आपदा के बाद पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास की कार्ययोजना को धरातल पर लाने में हो रही देरी एक बड़ी चिंता है।

पलायन से वीरान होते पहाड़
पर्वतीय प्रदेश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि पहाड़ों से रोजी-रोटी की तलाश में वहां की आबादी बढ़ी संख्या में मैदानों और दूसरे राज्यों में जा रही है। सीमित संसाधनों और दिशाहीन विकास के चलते सभी पहाड़ी जनपद पलायन की जद में हैं। सरकार के विकास को लेकर कोरे दावों से जनता का विश्वास उठ चुका है।

सैकड़ों गांवों का पुनर्वास
राज्य में सरकार ने पौने तीन सौ गांव चिन्हित किए हैं जिन्हें विस्थापित कर पुनर्वास करना है। कई बरसों से इन गांवों के विस्थापन के लिए करोड़ों रुपये केंद्र से मांग रही है। हैरानी इस बात की है जब योजना आयोग ने पुनर्वास और विस्थापन की कार्ययोजना मांगी तो राज्य सरकार देने में असमर्थ रही।

युवाओं को रोजगार के अवसर
राज्य में रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए अब तक न कोई ठोस नीति बनी न इस दिशा में पर्याप्त प्रयास हुए। राज्य में लगभग 6.6 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं। बेराजगारी दर राज्य में 4.9 फीसदी है, लेकिन यह संख्या लगातार बढ़ रही है।

कमजोर आधारभूत ढांचा
राज्य में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, रेल, बिजली, पेयजल, शहरी विकास, संचार आदि को विकसित करने में सर्वाधिक जोर देना होगा। पर्वतीय जनपदों में मूलभूत सुविधाओं का टोटा लगातार बना हुआ है। नियमित पेयजल और बिजली की समस्या को पार पाने के साथ डॉक्टर, मास्टर को पहाड़ चढ़ाना होगा।

औद्योगिक विकास को गति देना
राज्य में उद्योगों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन, हायर एजूकेशन, आईटी, फूड प्रासेसिंग और बायोटेक्नोलाजी की अपार संभावनाएं है। इस क्षेत्रों के लिए सरकार ने सिडकुल वन और टू तो लांच किए लेकिन निवेशकों को आकर्षित करने के लिए बेहतर सड़क, रेल, हवाई मार्ग आदि ढांचागत सुविधाएं विकसित करना बाकी है।

कृषि और बागवानी

कृषि क्षेत्र में राज्य बेहद कमजोर साबित हुआ है, जबकि चार एग्री एक्सपोर्ट जोन चिन्हित हैं। तराई के क्षेत्रों में गन्ना उत्पादन घटा है। हार्टीकल्चर को राज्य में प्रसारित करने के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया। पहाड़ों में फ्लोरीकल्चर और औषधीय पौधों की खेती की अपार संभावनाएं तलाश जाना अभी बाकी है।

पर्यटन एवं तीर्थाटन को बढ़ावा
राज्य में न केवल पर्यटन बल्कि तीर्थाटन की संभावनाएं मौजूद हैं। चार धाम यात्रा मुख्य आकर्षण होने के बावजूद राज्य सरकारी की अनदेखी झेल रहा है। हरिद्वार व ऋषिकेश में धार्मिक पर्यटन के तौर पर सुविधा संपन्न बनाना जाना जरूरी है। पर्यटकों के लिए साहसिक खेलों के स्थान चिन्हित कर उन्हें विकसित करना होगा।

अछूता ऊर्जा का क्षेत्र
ऊर्जा प्रदेश के तौर पर उत्तराखंड को विकसित किये जाने की बात सरकारें करती रही हैं, लेकिन अब तक यह मुद्दा विवादों में अधिक रहा है। जलविद्युत योजनाओं में 30 हजार मेगावाट क्षमता के दोहन में महज चार हजार मेगावाट जेनरेट हो पा रहा है।

आयुष प्रदेश की सपना
उत्तराखंड को आयुष प्रदेश बनाने को लेकर राजनीतिक तौर पर कई दावे हुए लेकिन अभी तक इसमें कामयाबी नहीं मिली है। आयुष ग्राम स्थापित करने की योजना नाकाम रही है।

बार्डर एरिया डेवलपमेंट
राज्य की लंबी सीमा चीन और नेपाल से जुड़ी हुई है। इस सीमा के साथ क्षेत्रों को मूलभूत सुविधा संपन्न बनाने के बढ़ी जरूरत है। केंद्र से इसके लिए विशेष पैकेज की मांग लंबे अरसे से हो रही है लेकिन उसकी मजबूत पैरवी की जरूरत है।

12 ग्रीन बोनस को हासिल करना
राज्य का दो-तिहाई हिस्से में जंगल हैं। प्रदेश की ओर से लगातार एक हजार करोड़ रुपये के ग्रीन बोनस की मांग की जा रही। अब जीईपी को मापक बनाकर उत्तराखंड के योगदान को मापने की बात उठ रही है, लेकिन उसको लागू करना आसान नहीं है।

13 कर्मचारियों की स्थानांतरण नीति
राज्य में लगभग दो लाख नियमित कर्मचारी हैं इनके सुगम दुर्गम में स्थानांतरण को लेकर हर साल विवाद की स्थिति बनी रहती है। कर्मचारी पहाड़ चढ़ना नहीं चाहते और सरकार उनको स्थानांतरित करने में हमेशा असहाय दिखती है। मैदान-पहाड़ में कर्मचारी तैनाती को लेकर ठोस और तर्कसंगत स्थानांतरण नीति जरूरी है।

http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-news-dun/13-years-of-uttarakhand/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस की समस्त उत्तराखण्डवासियो को शुभकामनाएं,

’घास-लखड़ा हो, बोण अपड़ा हो,
परदेस क्वी न जोउ, सबि दगड़ा हो,
शिक्षा हो-दिक्षा हो, जख रोजगार हो,
क्वी भैजी-भुला न बैठ्यूं बेकार हो,
यनू उत्तराखण्ड चयेनू छ।


सुप्रभात दोस्तों,
उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस पर ढेर सारी शुभकामनाएं,
आप सब जानते हो की पिछले १४ सालो में हमने क्या पाया और क्या खोया,
शायद कुछ पाने से कही ज्यादा हमने खो दिया,
बोली-भाषा,रीती-रिवाज,वार-त्यौहार,संस्कृति,अपने पहाड़ और बहुत कुछ………
उम्मीद है आने वाला समय हमारे लिए कुछ अच्छे संकेत लेके आएगा,
इसके लिए हमे भी एक-जुट होना पड़ेगा,और विकास का भागीदार बनना पड़ेगा,
पलायन एक मात्र रास्ता नहीं है आज पहाड़ को जरुरत है हम सब की एक नई सोच की,कुछ करने की, आखिर हम कब तक सिर्फ पलायन का रोना रोते रहेंगे,
हम ऐसी सरकार ही क्यों बनाते है जो आज तक शहीदो के सपनो को साकार नहीं बना पाई,
अब भी समय है वरना १४ साल तो चले १४ और चले जायेंगे,और उन १४ सालो के बाद अगर यही हाल रहा तो शायद ही पहाड़ो में कुछ बच पायेगा,
अब भी खेत-मकान सब बंजर हो चुके है और यही हाल रहा तो परिणाम और बुरे हो सकते है,
ये समय है हम सब को अपनी जिम्मेदारी निभाने का,
चकबंदी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई भी शायद सरकार समझ पायेगी,आखिर हमारी भी एक बहुत बड़ी आस है सरकार से,
जागना होगा और बहुत जल्द जागना होगा आखिर सोते हुए १४ साल बहुत हो गए
१७ का चुनाव भी नजदीक आ रहा है,एक क्रांति तो लानी ही पड़ेगी,
खासकर युवावो को तो अपना भविष्य सोचना ही होगा इन पहाड़ो में,

जय भारत जय उत्तराखंड

बोली -भाषा,रीती-रिवाज,और संस्कृति पहाड़ो की
विलुप्त हुँदा बार त्यौहार,कैमा सुणो पहाड़ो की।
१४ साल कु उत्तराखंड,पर खैर अभी तक कम नि ह्वे,
पलायन कु रूणू रुंदी पर,कोशिश भी त कुछ नई ह्वे।
रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य व्यवस्था,हाल जन्या तनी अभी,
१४ साल त चली गी पर,सार त लग्या छो अभी भी।
हाल अगर जू इनि राला त,खाली ह्वे जाला यु पहाड़,
अभी भी बक्त च,सम्भली जाओ,फिर न बुल्या मेरु पहाड़।

विकास ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Heartiest Congratulations to all Members on occasion of Uttarakhand State Foundation Day . Uttarakhand has become 14 yrs old today but the "Dream State of Uttarakhand" people of UK is still too far.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर विशेष प्रस्तुति :

शहरीकरण की होड़ में सिमट गए आजीविका के स्रोत
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पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के ही काम नहीं आते, दोनों अपनी गति से मैदान की ओर चले जाते हैं I 14 साल पहले भी ये सवाल थे और आज भी स्थिति वैसी है हालात यह हैं कि पहा के गाँव पलायन से खाली होते जा रहे हैं I वीरान मकान पहाड़ की पहचान बन चुके हैं I साल के 12 महीने शाक-सब्जी से गुलजार रहने वाले खेत बंजर हो गए हैं I बुजुर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के अच्छे दिन आने की बजाय दूर चले गए हैं I
उत्तराखंड में जंगली जानवरों के आतंक तथा शिक्षा-स्वास्थ्य समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोग अपने गाँव छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं I आज गावों में वही बुजुर्ग बचे हैं जो माटी का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं, या आर्थिक रूप से कमजोर वे परिवार जिनके पास शहर जाने के भी पैसे नहीं हैं.

मुझे देख रहे है, महज़ चार टूटी-फूटी दीवारें और कुछ बिखरा सा सामान, आँगन में उगे घास बया कर रहा हें कब से खाली पडा ये ये आँगन ! ना न घर मत कहिये मुझे, में अब महज़ इक ढेर हूँ अब यादों की, जाने कितने सपने दबे है मेरे तले ! हाँ में घर था भी, सपने बुने जाते थे यहाँ, जाने आप कितने लोग मेरे इस गोद रूपी आँगन में खेल कर बड़े हुए है, कितनी बार गिरे-संभले, यही तो चलना सिखा आपने ! ये दीवारें बयान कर रही है अपने पीछे छुपे दर्द को, ये बुला रही है तुम्हें, ये आँगन जहाँ कभी तुम खेला करते थे, आज सूने पढ़े है आके फिर से रंग भर दो इनमे खुशिओं के !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देवसिंह रावत

आओ जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए इन आस्तीन के सांपों से उत्तराखण्ड बचाओ

इसी सप्ताह उत्तराखण्ड राज्य गठन हुए 14 वर्ष पूरे हो जायेंगे। राज्य गठन के शहीदों व आंदोलनकारियों की पावन स्मृति व संघर्ष को शतः शतः नमन् करते हुए आशा करते हैं उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस पर राज्य गठन सभी शहीदों व समर्पित आंदोलनकारियों को शतः शतः नमन

आज 9 नवम्बर को उत्तराखण्ड राज्य गठन का 15वां स्थापना दिवस है। 14 साल पूरे हो गये। परन्तु राज्य गठन की जिन जनांकांक्षाओं को ले कर मैं और मेरे तमाम साथी इस आंदोलन में दिन रात समर्पित थे इस राज्य गठन के 14 सालों पर अगर एक नजर फेरता हॅू तो मुझे झलावा की अलावा कोई दूसरा कुछ नहीं मिलता है। यह विश्वासघात किसी दूसरे नहीं नहीं अपितु हमारे उन नेताओं ने किया जो इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बन कर जनांकांक्षा ओं का निर्ममता से गला घोंटने व प्रदेश के संसाधनों की बंदरबांट करने में लगे रहे। राज्य गठन के लिए छह साल तक संसद की चैखट पर हमारा ऐतिहासिक सफल संघर्ष में सेकडों धरने, प्रदर्शन, रैलियां, गिरफ्तारियां की लम्बी श्रृंखला किसी चलचित्र की तरह हमारे मन मस्तिष्क में राज्य गठन जनांदोलन को साकार कर रही है।
आज जिस मुजफरनगर काण्ड के दंश से अपमानित हो कर हमने इस राज्य गठन को जीवन मरण का प्रश्न बना दिया था, उस मुजफरनगर काण्ड के दोषियों को सजा देने के बजाय इन 14 सालों की सरकाारों ने उनको शर्मनाक संरक्षण देने का काम किया। इससे शर्मनाक बात किसी स्वाभिमानी व सभ्य समाज के लिए दूसरी और क्या हो सकती।
प्रदेश की राजधानी गैरसैंण का सर्वसम्मत मुद्दे को प्रदेश के हुक्मरानों ने आस्तीन का सांप बनकर प्रदेश के सपनों को डंसने का काम करके जबरन देहरादून को ही प्रदेश की राजधानी थोपने का काम किया। गैरसैंण राजधानी बनाने के मामले में देखना है जो हरीश रावत ने जगाने का काम किया वह साकार कर पाते हैं या नहीं।
वहीं प्रदेश में मूल निवास प्रमाणपत्र बनाने के नाम पर जो अंधा कृत्य प्रदेश के हुक्मरानों ने किया उसे झारखण्ड के आलोक में देखा जाय तो इनकी नासमझी व उत्तराखण्ड से किया गया खिलवाड साफ नजर आयेगा।
प्रदेश की जनता की राजनैतिक शक्ति व भविष्य को प्रदेश के पदलोलुपु व निहित स्वार्थ में डूबे हुक्मरानों ने पर्वतीय प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन थोप कर बज्रपात किया। इसका दण्ड प्रदेश को लम्बे समय तक चूकाना पडेगा। यह प्रदेश गठन की अवधारणा की निर्मम हत्या के समान है।
प्रदेश की जल जमीन, जंगल आदि संसाधनों की जो अंधी बंदरबांट की जा रही है वह शर्मनाक है। परन्तु जिस प्रदेश की सुरक्षा के लिए राज्य गठन आंदोलन के दिनों से एकमत बन गया था कि इस देश के सीमान्त प्रदेश की सुरक्षा के लिए यहां पर माफियाओं से बचाने के लिए हिमाचल की तर्ज पर भू कानून लागू करने को यहां की तमाम सरकारों ने नजरांदाज करके भू माफियाओं को बढावा देने का काम किया।
इस सीमान्त प्रदेश में उप्र में विकास से वंचित रहे पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की गंगा बहाने के बजाय राज्य गठन के बाद प्रदेश के हुक्मरानों की उदासीनता व सौतेले व्यवहार के कारण आज पर्वतीय क्षेत्रों के विद्यालय, चिकित्सालय सहित सरकारी कार्यालय मृतप्रायः हो गये है। इस मैदानी मानसिकता से ग्रसित होने के कारण अध्यापक व चिकित्सक पर्वतीय क्षेत्रों में काम करने के बजाय देहरादून व नैनीताल जैसे कस्बाई क्षेत्रों में अपना स्थानांतरण कराने में जुटे रहते है। शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार के साथ विकास के अभाव में पर्वतीय क्षेत्रों से खतरनाक पलायन हो रहा है।
प्रदेश में हिमालयी विकास की नये संकल्प से वैज्ञानिक ढंग से विकास करने के बजाय यहां पर भू, जल व जंगल माफियाओं का अभ्याहरण बनाने पर यहां के हुक्मरान जुटे है। गांवों में बिजली, पानी, शिक्षा व चिकित्सा उपलब्ध कराने के बजाय यहां के हर शहर हर गांव को शराब का गटर बनाया जा रहा है। यहां पर प्रकृति से अंधा खिलवाड करके यहां पर घाटी की घाटी को जल समाधि दे कर पर्यावरण को बांधों का जाल बना कर रोंदा जा रहा है। सदियों से प्रकृति के रक्षक रहे उत्तराखण्डियों को विस्थापित किया जा रहा है। यहां पर बांधों, बाघों व बेलगाम भ्रष्ट नौकरशाही से आम जनता का जीना दूश्वास किया जा रहा है। हालत इतनी शर्मनाक है कि जिन बुरे कामों में लगे लोगों को समाज के प्रतिष्ठित लोग अपने समीप तक नहीं फटकने देते थे वे इन 14 सालों में प्रदेश के गणमान्य प्रतिष्ठित ही नहीं अपितु भाग्य विधाता तक बन गये है। पार्टिया व नेता इतने बेशर्म हो गये हैं इसी कारण दागदार लोग भी ग्राम प्रधान, विकास खण्ड प्रमुख, विधायक, मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री बनने के लिए कमर कसे नजर आते है।
प्रदेश में भ्रष्टाचार का यह अंधा आलम है कि यहां के विकासखण्ड के अदने से कर्मचारी से लेकर प्रदेश के उच्च नौकरशाहों, ग्राम प्रधान से लेकर प्रदेश के विधानसभा के भाग्य विधाताओं के पास इन 14 सालों में अकूत सम्पतियां अर्जित हो गयी है। प्रदेश में बीस से चालीस हजार से अधिक एनजीओ प्रदेश में भ्रष्टाचार की आंधी ही चला रहे है।
प्रदेश का सबसे बडी त्रासदी यह है कि न तो प्रदेश के हुक्मरानों के पास न तो राज्य के त्वरित विकास की समग्र सोच है व नहीं इच्छा शक्ति। कुल मिला कर सत्ता की बंदरबांट करने के अलावा कोई दूसरा उद्देश्य इनके पास नहीं है।
राज्य गठन आंदोलनकारियों का राज्य के विकास व निर्माण में सहयोग लेने के बजाय अब तक की तमाम सरकारों ने राज्य गठन के समर्पित आंदोलनकारियों की उपेक्षा व अपमान ही किया। यही नहीं राज्य गठन आंदोलनकारियों के सम्मान करने के नाम पर जो कृत्य प्रदेश की सरकारों ने किया वह नितांत अपमानित करने का ही कार्य है। आंदोलनकारियों को पुलिस, जेल के चक्कर कटवा कर कदम कदम पर अपमानित किया जा रहा है। हाॅं अपने प्यादों को आंदोलनकारी बनाने की अंधी होड हर सरकार में बेशर्मी से चली, उससे समर्पित आंदोलनकारी खुद को अपमानित महसूस कर रहे है।
हाॅं अब थोडी सी आश वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत से दिखाई दे रही है वह गैरसैंण मामले में कुछ सकारात्मक कदम बढा रहे है। कुछ उदण्ड नौकरशाही को पटरी पर ला रहे हैं। प्रदेश हिमाचल की तर्ज पर विकास की राह पर चले। इसके लिए जरूरी है नेतृत्व का परमार की तरह विकास की ठोस नीव रखने की कुब्बत होना तथा जनता व कर्मचारियों में प्रदेश के विकास की सकारात्मक लगन होना। तभी प्रदेश आग े बढेगा। जनता को इन आस्तीन के सांपों के हथकण्डों को जब तक निर्ममता से रौंदने का साहस नहीं जुटायेगी, तब तक प्रदेश में राज्य गठन की जनांकांक्षाये पूरी नहीं हो सकती। सरकार तो उप्र में भी चल रही थी और उत्तराखण्ड में भी परन्तु अपनी सरकार जो प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करे ऐसी सरकार अभी आयी नहीं।
राज्य स्थापना दिवस के दिन अपने राज्य गठन के शहीदों की स्मृति को नमन् करते हुए राज्य गठन के तमाम साथियों को बधाई देना चाहता हॅू कि आपके संघर्ष ने उत्तराखण्ड विरोधी राजनैतिक नेतृत्व को राज्य गठन करने के लिए मजबूर किया। आशा है राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने में भी अपना दवाब प्रदेश की सरकारों पर निरंतर बनाये रखेंगे। शेष श्री कृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत् श्रीकृष्णाय् नमो।

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Mahi Singh Mehta added 3 new photos.
9 hrs ·

उत्तराखंड के 14 साल, क्या खोया क्या पाया?
(Amar Ujala Analysis )
1) 18% तक पहुंची विकास दर, अब दस से नीचे 2) न ऊर्जा हब बना और न ही पर्यटन हब

14 साल की यात्रा में उत्तराखंड ने बहुत कुछ हासिल किया पर राज्य गठन की अपेक्षाओं को पूरा करने की चुनौती से पार नही पा पाया। प्रदेश ने 18 प्रतिशत की विकास दर हासिल की पर पहाड़ पर डॉक्टर, शिक्षक, कर्मचारियों को नहीं पहुंचा पाया। अब विकास दर नौ प्रतिशत है और कम होने से रोकने की चुनौती सामने है।

प्रति व्यक्ति औसत आय 90 हजार तक पहुंची पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों का 47 प्रतिशत आंकड़ा कम नहीं हुआ। केदारनाथ की जून 2013 की आपदा के जख्म अभी भरे जाने हैं और आपदाओं की यह चुनौती अब और बड़ी होकर सामने है।

राज्य गठन के समय प्रदेश की आर्थिक स्थिति खास अच्छी नहीं थी। विकास दर कुल तीन प्रतिशत थी। प्रदेश में उद्योग, बैंक की उपस्थिति न के बराबर थी। पहाड़ में सड़कों का नेटवर्क बेहद सीमित था। पहाड़ को पनिसमेंट पोस्टिंग के नाम से जाना जाता था। पहाड़ की आर्थिकी मनि आर्डर पर निर्भर थी।

इन 14 सालों में इसमें बदलाव आया। 2008 में 18 प्रतिशत की विकास दर को छूने के बाद अब वर्तमान में प्रदेश की विकास दर करीब 10 प्रतिशत है। प्रति व्यक्ति 22 हजार से बढ़कर 90 हजार के आसपास है। जीडीपी करीब 94 हजार करोड़ रुपये की है। प्रदेश में अब करीब 150 भारी उद्योग हैं। जीडीपी में उद्योगों का योगदान 18 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया है।

पर इसके साथ ही चुनौतियों का अंबार भी खड़ा हो गया है। विकास दर ग्लोबल मंदी और सरकार के अपने खर्च से पिसकर करीब नौ प्रतिशत पर पहुंच गई है। उद्योग आए पर पहाड़ इनसे अछूता ही रहा। कृषि में विकास दर दो प्रतिशत पर आकर अटक गई है। हालांकि प्रदेश की जनसंख्या का 70 प्रतिशत आज भी खेती पर आजीविका के लिए निर्भर है।

2003 में राज्य स्थापना दिवस पर आयोजित व्याख्यान में न्यायविद डॉ. एलएम सिंघवी ने कहा था कि अपेक्षाओं पर खरा उतरना प्रदेश की सबसे बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश के सामने यह चुनौती अब भी बनी हुई है। 2010 से पहले राज्य के कई हिस्से सूखे से प्रभावित रहे। 2010 के बाद लगातार मौसम बदलाव और आपदाओं का हमला जारी है। जून 2013 की केदारनाथ आपदा ने पिछले सारे रिकार्ड ही तोड़ डाले। 2005 में आपदा प्रबंधन एक्ट लागू होने के बाद भी प्रदेश का आपदा प्रबंधन तंत्र पटरी पर नही है। चार धाम यात्रा 2013 से पहले अव्यवस्थित थी और 2013 के बाद करीब-करीब ठप।

प्रदेश में करीब 27 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता हैं। पर 14 साल में इसमें से केवल साढ़े तीन हजार मेगावाट का उत्पादन ही हो पाया। पुनर्वास का मसला जस का तस है और 14 साल में प्रदेश इस समस्या को नहीं सुलझा पाया।

2001 से अब तक दस हजार किलोमीटर रोड नेटवर्क बढ़ा पर क्वालिटी रोड नहीं मिली। रेल नेटवर्क में एक इंच भी इजाफा नहीं हुआ। अब कर्णप्रयाग-ऋषिकेश रेल नेटवर्क से उम्मीद है। लोगों की अपेक्षाएं थीं कि हर गांव को साफ पानी, बिजली और हर युवा को रोजगार मिलेगा। इस समय रोजगार कार्यालयों में ही पांच लाख से अधिक बेरोजगार हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस की समस्त उत्तराखण्डवासियो को शुभकामनाएं,

’घास-लखड़ा हो, बोण अपड़ा हो,
परदेस क्वी न जोउ, सबि दगड़ा हो,
शिक्षा हो-दिक्षा हो, जख रोजगार हो,
क्वी भैजी-भुला न बैठ्यूं बेकार हो,
यनू उत्तराखण्ड चयेनू छ।

सुप्रभात दोस्तों,
उत्तराखंड राज्य के स्थापना दिवस पर ढेर सारी शुभकामनाएं,
आप सब जानते हो की पिछले १४ सालो में हमने क्या पाया और क्या खोया,
शायद कुछ पाने से कही ज्यादा हमने खो दिया,
बोली-भाषा,रीती-रिवाज,वार-त्यौहार,संस्कृति,अपने पहाड़ और बहुत कुछ………
उम्मीद है आने वाला समय हमारे लिए कुछ अच्छे संकेत लेके आएगा,
इसके लिए हमे भी एक-जुट होना पड़ेगा,और विकास का भागीदार बनना पड़ेगा,
पलायन एक मात्र रास्ता नहीं है आज पहाड़ को जरुरत है हम सब की एक नई सोच की,कुछ करने की, आखिर हम कब तक सिर्फ पलायन का रोना रोते रहेंगे,
हम ऐसी सरकार ही क्यों बनाते है जो आज तक शहीदो के सपनो को साकार नहीं बना पाई,
अब भी समय है वरना १४ साल तो चले १४ और चले जायेंगे,और उन १४ सालो के बाद अगर यही हाल रहा तो शायद ही पहाड़ो में कुछ बच पायेगा,
अब भी खेत-मकान सब बंजर हो चुके है और यही हाल रहा तो परिणाम और बुरे हो सकते है,
ये समय है हम सब को अपनी जिम्मेदारी निभाने का,
चकबंदी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई भी शायद सरकार समझ पायेगी,आखिर हमारी भी एक बहुत बड़ी आस है सरकार से,
जागना होगा और बहुत जल्द जागना होगा आखिर सोते हुए १४ साल बहुत हो गए
१७ का चुनाव भी नजदीक आ रहा है,एक क्रांति तो लानी ही पड़ेगी,
खासकर युवावो को तो अपना भविष्य सोचना ही होगा इन पहाड़ो में,

जय भारत जय उत्तराखंड

बोली -भाषा,रीती-रिवाज,और संस्कृति पहाड़ो की
विलुप्त हुँदा बार त्यौहार,कैमा सुणो पहाड़ो की।
१४ साल कु उत्तराखंड,पर खैर अभी तक कम नि ह्वे,
पलायन कु रूणू रुंदी पर,कोशिश भी त कुछ नई ह्वे।
रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य व्यवस्था,हाल जन्या तनी अभी,
१४ साल त चली गी पर,सार त लग्या छो अभी भी।
हाल अगर जू इनि राला त,खाली ह्वे जाला यु पहाड़,
अभी भी बक्त च,सम्भली जाओ,फिर न बुल्या मेरु पहाड़।

‪#‎विकास‬ ध्यानी

 

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