Is isthiti par mujhe Hindi filmo ke ek gaana yaad haa raha hai :
Kaun Sunega, Kisko Sunayee..
lekin Chhup nahi rah sakte.
Our political leaders are just fighting for their political interest. Development is still too far from the reach of the people in the state.
If the pace of the development remains the same, i am sure even in 80 yrs Uttarakhand can not be developed state.
So what has after all changed ?
१) क्या उत्तराखंड के स्थायी राजधानी बन पायी ?
२) क्या उत्तराखंड से विस्थापन की दर कम हुयी
३) क्या उत्तराखंड में रोजगार के साधन जगे !
४) क्या उत्तराखंड के गावो तक सड़क मार्ग का विस्तार हुवा ?
५) क्या उत्तराखंड के पर्यटन का विकास हुवा ?
६) क्या उत्तराखंड के स्वाथ्य सुविधा मे सुधार हुवा ?
७) क्या उत्तराखंड के शिक्षा के स्थर मे सुधर हुवा ?
८) आखिर प्रशन, आखिर क्या बदला उत्तराखंड में
मेहता जी,
इन सातों सवालों का जबाब है नहीं, कुछ भी नहीं हुआ...हालत पहले से भी बदतर हो गई है। आठवें प्रश्न में मेरी ओर से यह जोड़ दीजिये कि आखिर क्या होगा उत्तराखण्ड का? विकास की आस लिये बच्चे बूढे़ सड़कों पर उतरे, कर्मचारियों ने नौकरी दांव पर लगा दी ४२ लोग शहीद हुये, मुजफ्फरनगर में अस्मत तक तार-तार हुई, अपने भविष्य की परवाह किये बिना छात्र शक्ति ने आंदोलन किया.....परिणिति....पहली सरकार ने कहा, हम नये हैं, पहली निर्वाचित सरकार राजनीतिक अस्थिरता और सत्तारुढ़ दल की आपसी कलह में उलझी रही...अब सत्तारुढ़ दल बदला तो पुरानी सरकार की ही विरासत को ढो रही है। ऎसे में उत्तराखण्ड का आम आदमी जो दो हली जमीन पर दिन भर हाड़-तोड़ मेहनत कर रहा है, उसका क्या होगा? बेरोजगारी बढ़ रही है, आम आदमी आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मर रहा है...आठ सालों में तीन सरकारों के राज में हम अपनी राजधानी निर्धारित नहीं कर पाये.....।
शिक्षा का स्तर, बेरोजगारी की दर, मूलभूत सुविधायें.....सब जस की तस हैं।