Author Topic: Affiliation Issue With BCCI For Uttarakhand - उत्तराखंड का बी. सी.सी. ई.  (Read 14145 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dear Friends,
The Maharashtra State Information Commission has summoned the Board of Cricket Control in India (BCCI) for not providing information on the issue of affiliation to Uttarakhand on my application filed under the RTI. The Maharashtra State Information Commission has asked the Board to submit the information on 1 June.
I am looking for help in this regards from Uttarakhandis living in Mumbai. As it is not possible for me to attend the hearing, can anyone of you go and represent me. It is a simple process and you just have to collect the papers submitted by BCCI at the Maharashtra State Information Commission on 1 June at 11.30 am. If anyone of you is interested please call me at: 09411141339 or email at rajugusain@gmail.com
Seeking information under the RTI Act, I filed an application to BCCI on 30 March, 2009. I failed to get any communication from the Board even after 30 days. On 4 May 2008, I filed a complaint with the Maharashtra State Information Commission over the BCCI’s behaviour.
Incidentally, in September last year, the BCCI granted affiliated membership to Meghalaya, Nagaland and Arunachal. It also provided associate membership to the Chhattisgarh State Cricket Association and Bihar Cricket Association at the BCCI's AGM held in Mumbai. Uttarakhand was denied membership as more than one association had applied for affiliation.
Regards,
Raju Gusain
Dehradun
Uttarakhand

हेम पन्त

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Mussoorie:  NK Sharma, member of the BCCI and coach of the Gujarat Cricket Association, here on a visit, said today that since becoming a state, Uttarakhand had failed to get recognition for its cricket association. Due to this, cricket in the state had fallen behind. He further said that in sports, there ought not to be any personal interests or politics, and only the future of the children ought to be considered.

Source : GarhwalPost.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is true.. There is only Mr Raju Gusai who has taken-up this issue strongly with BCCI. This issue should be strongly taken with BCCI together and Uttarakhand gets its bearth for the same.

Mussoorie:  NK Sharma, member of the BCCI and coach of the Gujarat Cricket Association, here on a visit, said today that since becoming a state, Uttarakhand had failed to get recognition for its cricket association. Due to this, cricket in the state had fallen behind. He further said that in sports, there ought not to be any personal interests or politics, and only the future of the children ought to be considered.

Source : GarhwalPost.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There is no progress on this case.. Though, Mr Raju Gusai alone had taken-up this issue. This needs a huge support from sportsperson, public and Govt so that BCCI can take decision o n this.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड मूल के क्रिकेट खिलाड़ी देश  भर में धूम मचा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां आज तक क्रिकेट का बुनियादी ढांचा तक खड़ा नहीं हो पाया है. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, आइपीएल के पहले शतकवीर पीयूष पांडे, दिल्ली के आइपीएल खिलाड़ी उन्मुक्त चंद के साथ ही दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब समेत अनेक राज्‍यों की टीमों में उत्तराखंड मूल के खिलाड़ी खेल रहे हैं, लेकिन विडंबना देखिए कि उत्तराखंड की क्रिकेट अकादमियों को अब तक बीसीसीआइ की मान्यता नहीं मिल पाई है.
राज्‍य में क्रिकेट की एक मान्यता प्राप्त एसोसिएशन तक नहीं है. इसलिए उत्तराखंड की टीम रणजी ट्राफी जैसी क्रिकेट सीरीज तक में भाग लेने से वंचित है. काफी समय से बीसीसीआइ के अधिकारी उत्तराखंड का दौरा कर आश्वस्त कर रहे हैं, लेकिन यह भी हवाई वायदों से ज्यादा कुछ नहीं है.
महेंद्र सिंह धोनी मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के ल्वाली गांव के हैं तो पीयूष पांडे बागेश्वर और उन्मुक्त चंद पिथौरागढ़ से ताल्लुक रखते हैं. गढ़वाल एक्सप्रेस के नाम से विख्यात यहीं के पवन सुयाल दिल्ली से और राबिन बिष्ट राजस्थान से रणजी के लिए खेलते हैं.
मगर उत्तराखंड की यह क्रिकेट पौध अपने गृह राज्‍य से नहीं खेल सकती क्योंकि भाजपा और कांग्रेस  सहित अन्य दलों के नेता भी अपनी-अपनी एसोसिएशन लेकर क्रिकेट के खैरख्वाह होने का दावा कर रहे हैं. सबको अपनी दुकान चलानी है और सब बीसीसीआइ की राज्‍य एसोसिएशन से संबद्धता की राह में रोड़ा बने हुए हैं. नतीजतन यहां क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता सियासत की भेंट चढ़ गई है.
इस सबके बावजूद राज्‍य के क्रिकेट-प्रेमी खिलड़ियों ने हार नहीं मानी है. उनका संघर्ष जारी है और राज्‍य के युवाओं की क्रिकेट के प्रति दीवानगी साफ  नजर आती है. मैदानों की तो बात ही जाने दीजिए, यहां पहाड़ों पर भी आपको अगर कोई खेल दिखाई देगा तो वह क्रिकेट ही है.
क्रिकेट के लिए यहां लोगों के जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई बार दूरदराज क्षेत्रों में आयोजित स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली टीमों की संख्या 100 के आंकडे़ को पार कर जाती है. इस समय राज्‍य के 20 से अधिक खिलाड़ी दूसरे राज्‍यों की टीमों से जूनियर व सीनियर क्रिकेट टीम में खेल रहे हैं.
लड़के ही नहीं, उत्तराखंड की लड़कियां भी क्रिकेट में नाम कमा रही हैं. अल्मोड़ा की एकता बिष्ट राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य हैं और इस समय ऑस्ट्रेलिया के साथ विशाखापत्तनम में श्रृंखला खेल रही हैं. अकेले पंजाब की महिला क्रिकेट टीम में उत्तराखंड की चार लड़कियां खेल रही हैं.
इन उपलब्धियों के बावजूद यहां के युवा उत्तराखंड टीम से क्यों नहीं खेल सकते? वे दूसरे राज्‍यों में जाकर खेलने को विवश क्यों हैं? इस राज्‍य में क्रिकेट की शुरुआत 1937 में देहरादून से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के गठन के साथ हुई. फिर यह एसोसिएशन पहले देहरादून और बाद में नैनीताल में गठित की गई.
देहरादून की डिस्ट्रिक्ट लीग को इस साल 61 साल पूरे हो गए हैं, जबकि नैनीताल की क्रिकेट लीग भी लगातार आयोजित होती रही है. भारतीय टीम के कई सितारे इससे पूर्व देहरादून में आयोजित होने वाले गोल्ड कप में खेल चुके हैं. खुद भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दो बार गोल्ड कप में झारखंड की टीम से भाग लिया है.
इसके अलावा आर.पी. सिंह, सौरभ तिवारी, मोहम्मद कैफ, वीरेंद्र सहवाग, संजीव शर्मा, अजय शर्मा, विजय दाहिया, सौरभ तिवारी, जोगेंद्र शर्मा, रितेंदर सोढ़ी आदि भी इसमें भाग ले चुके हैं.
राज्‍य के क्लबों और एसोसिएशनों से जुड़े खिलाड़ी इस समय पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और दिल्ली जैसे राज्‍यों से खेल रहे हैं. यह सिर्फ  बीसीसीआइ की मान्यता न मिलने के कारण है कि इन खिलाड़ियों को दूसरे राज्‍यों से खेलना पड़ रहा है.
बीसीसीआइ से मान्यता के सवाल पर दोनों प्रमुख एसोसिएशनों का रुख अलग है. उत्तराचंल क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव चंद्र्रकांत आर्य कहते हैं कि सन्‌ 2000 में हमने रजिस्ट्रेशन के साथ बीसीसीआइ में मान्यता के लिए आवेदन किया था जिसके बाद 2001 में रत्नाकर शेट्टी, शरद दिवाकर और शिवलाल यादव की तीन सदस्यीय एफलिएशन कमेटी ने देहरादून का दौरा भी किया था.
2004 में दोबारा दौरा हुआ, लेकिन नए राज्‍यों को मान्यता देने के सवाल पर बीसीसीआइ में ही आपसी मतभेद थे. साथ ही वह यह चाहती है कि हम एक दूसरे एसोसिएशन (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) को भी थोड़ा प्रतिनिधित्व दें.
2011 में बीसीसीआइ की गवर्निंग काउंसिल ने इस मामले को सितंबर, 2012 तक के लिए टाल दिया. आर्य को उम्मीद है कि तब तक मान्यता मिल जाएगी. लेकिन दूसरी ओर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ  उत्तराखंड के सचिव पी.सी. वर्मा का कहना है कि उन्होंने मान्यता के सवाल पर सीधे शशांक मनोहर से बात की थी, लेकिन यह सब बीसीसीआइ की बहानेबाजी है. वह जब चाहेगी, तभी मान्यता मिलेगी.
राज्‍य की दूसरी चार एसोसिएशनों को तो बीसीसीआइ पहले ही टरका चुकी है. मान्यता के सवाल पर 2009 में मुंबई और 2010 में दिल्ली में हुई बैठकों में भी इन दोनों एसोसिएशनों को ही बुलाया गया. लेकिन यूसीए का मानना है कि उसका दावा ज्यादा मजबूत है. आर्य कहते हैं, ‘यूसीए इकलौती ऐसी एसोसिएशन है, जिसके पास पूरे राज्‍य में अपनी बॉडी है. हम बीसीसीआइ की गाइडलाइन के मुताबिक ही काम करते हैं.’
बीसीसीआइ के कहने पर यूसीए ने सीनियर लेबल क्रिकेट बंद कर अब अंडर 14, 16, 19 और 22 पर फोकस करना शुरू कर दिया है. बकौल आर्य बीसीसीआइ सबसे अधिक पत्र व्यवहार भी उनसे ही करती है. लेकिन सीएयू के सचिव वर्मा भी बीसीसीआइ के पत्र दिखाते हैं.
इस धकमपेल से साफ जाहिर है कि उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है.
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो देखने के लिए जाएं http://m.aajtak.in पर.


विनोद सिंह गढ़िया

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अधर में लटकी उत्तराखंड की क्रिकेट

उत्तराखंड राज्य गठन को 11 वर्ष पूरे हो गए है लेकिन देश के प्रमुख खेल क्रिकेट को आज तक राज्य में मान्यता नही मिल पाई है। जिस कारण यहां के खिलाड़ियों का भविष्य अधर में लटक गया है। 2005 तक राज्य में महिला क्रिकेट को मान्यता थी, वह भी बीसीसीआइ ने भंग कर दी। इससे संकट और गहरा गया है। हालांकि प्रदेश में कुछ क्रिकेट संगठन अपनी गतिविधियां चला रहे है लेकिन वह भी खिलाड़ियों को गुमराह ही कर रहे है। इससे उदयमान खिलाड़ियों के समक्ष पलायन की स्थिति आ रही है। राज्य में सभी खेल संगठनों को मान्यता मिल चुकी है। लेकिन सबसे प्रमुख खेल अभी भी आपसी खींचतान के कारण अधर में लटका हुआ है। इससे सर्वाधिक नुकसान यहां के उभरते क्रिकेट खिलाड़ियों का हो रहा है। जो खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर या महेंद्र सिंह धौनी बनने का सपना संजोए है। राज्य में क्रिकेट को मान्यता न मिलने के कारण यहां के क्रिकेटरों का भविष्य अधर में लटक गया है। स्वतंत्र संगठन होने के कारण प्रदेश में क्रिकेट को मान्यता सीधे बीसीसीआइ द्वारा दी जाती है। जबकि अन्य खेल संगठनों को ओलंपिक संगठन के द्वारा मान्यता दी जाती है। राज्य में मान्यता के लिए बीसीसीआइ के समक्ष यहां के क्रिकेट संघों की प्रभावी पहल न होने के कारण ही अभी तक यह मामला लटका हुआ है। हालांकि प्रदेश में अभी आधा दर्जन क्रिकेट संगठन अलग-अलग नाम से चल रहे है। कुछ संगठन अपनी गतिविधियां जारी रखने के लिए कभी-कभार खिलाड़ियों का ट्रायल कराकर प्रतियोगिताएं भी कराते है। लेकिन वह भी यहां के क्रिकेटरों को गुमराह कर रहे है। क्योंकि जब तक बीसीसीआइ की मान्यता नहीं मिलती तब तक खिलाड़ियों को यहां से आगे बढ़ने का मौका नही मिल सकता। यही कारण है कि उत्तराखंड के कई खिलाड़ी वर्तमान में अन्य राज्यों से खेलने के लिए मजबूर हो रहे है। इधर राज्य में महिला क्रिकेट संघ को पूर्व से मान्यता दी गई थी, इससे कुछ आस जगी थी, लेकिन 2005 में बीसीसीआइ ने उसे भी भंग कर दिया। इस संबंध में हाई कोर्ट में मामला लंबित चल रहा है।

सभी संगठनों को एक मंच पर आना होगा : मेहता

उत्तराखंड ओलंपिक संघ व क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष राजीव मेहता का कहना है कि राज्य के क्रिकेट संघों को एक मंच पर आना होगा तभी बीसीसीआइ से मान्यता मिल सकेगी। उन्होने कहा कि अभी बीसीसीआइ के पास राज्य में मान्यता के लिए उत्तरांचल क्रिकेट एसोसिएशन, क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (प्रथम), यूनाइटेड क्रिकेट एसोसिएशन व क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (द्वितीय) आदि संगठनों के आवेदन पत्र बीसीसीआइ के पास लंबित है। मान्यता को लेकर कई संगठनों द्वारा दावा किए जाने के कारण बीसीसीआइ ने मामले को लंबित कर दिया है।


विनोद सिंह गढ़िया

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धौनी, उन्मुक्त, एकता के राज्य में अपनी क्रिकेट टीम ही नहीं

इंडिया की मुख्य क्रिकेट टीम और अंडर-19 टीम की बागडोर इस वक्त उत्तराखंड मूल के महेंद्र सिंह धौनी और उन्मुक्त चंद के हाथों में है। अल्मोड़ा की एकता बिष्ट भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य हैं लेकिन इस राज्य में आज तक बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त क्रिकेट एसोसिएशन का गठन नहीं हो सका है। राज्य में इस समय छह क्रिकेट एसोसिएशन बना दी गई हैं और सभी एसोसिएशनों के पदाधिकारी खुद को असली होने का दावा करते हैं। इस विवाद के चलते बीसीसीआई ने उत्तराखंड की किसी एसोसिएशन को मान्यता नहीं दी है। इससे राज्य के उभरते खिलाड़ियों का अहित हो रहा है। यही कारण है कि अल्मोड़ा की एकता बिष्ट उत्तराखंड के बजाय उत्तर प्रदेश की ओर से खेलने को मजबूर हुई। एकता उप्र की महिला क्रिकेट टीम की कप्तान भी हैं।
उत्तराखंड राज्य के गठन को 12 साल हो चुके हैं लेकिन इस राज्य में आज तक बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त एसोसिएशन नहीं है। देश में शायद ही दूसरा राज्य है जहां बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त क्रिकेट एसोसिएशन नहीं हो। दरअसल राज्य बनने के बाद से यहां क्रिकेट से जुड़े अलग-अलग गुटों में बंटे लोगों ने अब तक छह एसोसिएशनें बना ली हैं। इन एसोसिएशनों में राजनैतिक दलों के नेताओं का भी अच्छा खासा हस्तक्षेप है। सभी एसोसिएशनें खुद को असली बताती हैं ऐसी स्थिति में बीसीसीआई में उत्तराखंड की छवि भी खराब हो रही है। राज्य सरकार की ओर से भी एक सर्वमान्य एसोसिएशन बनाने के लिए पहल नहीं की जा रही है। मान्यता प्राप्त एसोसिएशन न होने के साथ ही राज्य में राष्ट्रीय स्तर के मानकों का कोई स्टेडियम भी नहीं है।इसका खामियाजा खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है।
बीसीसीआई से मान्यता नहीं मिलने के कारण उत्तराखंड की क्रिकेट टीम रणजी ट्राफी सहित अन्य राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पा रही है। राज्य में अब तक अंडर-16, अंडर-19 और अंडर-22 की क्रिकेट प्रतियोगिताएं भी नहीं हो पा रही हैं। जिससे राज्य के खिलाड़ी पिछड़ रहे हैं। इसी कारण अल्मोड़ा की क्रिकेट खिलाड़ी एकता बिष्ट को उत्तर प्रदेश की टीम से जुड़ना पड़ा। एकता बिष्ट भारतीय महिला क्रिकेट टीम की एक मजबूत खिलाड़ी हैं और अगले माह से शुरू होने जा रहे महिला विश्वकप टीम के लिए भी उनका चयन हो चुका है। मान्यता प्राप्त एसोसिएशन न होने के साथ ही राज्य में राष्ट्रीय स्तर के मानकों का कोई स्टेडियम भी नहीं है। राज्य में एकमात्र स्पोर्ट्स कालेज है।
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य एकता बिष्ट के कोच और क्रिकेट प्रशिक्षक लियाकत अली खान का कहना है कि क्रिकेट एसोसिएशन नहीं होने के कारण खिलाड़ियों को उचित प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। उनका कहना है कि राज्य में गठित की गई सभी एसोसिएशनों लोगों को एक सर्वमान्य एसोसिएशन बनाकर क्रिकेट को आगे बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बीसीसीआई से उत्तराखंड को मान्यता देने की पैरवीदेहरादून: गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज ने बीसीसीआई उपाध्यक्ष व सांसद राजीव शुक्ला को पत्र लिखकर उत्तराखंड को बीसीसीआई से मान्यता देने का अनुरोध किया है। श्री महाराज ने कहा कि उत्तराखंड की क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई की मान्यता न मिलने से यहां के युवाओं केा आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिल रहा है। यदि उत्तराखंड की क्रिकेट एसोसिएशन को बीसीसीआई मान्यता दे दे तो यहां की अंडर-14, 16 और 19 की प्रतिभाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना कौशल दिखाने का मौका मिल सकेगा
http://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-10884705.html

 

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