मां-बाप को पाने के लिए कार्तिकेय बना 'गणेश'
दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश
भगवान शिव ने अपने पुत्रों गणेश और कार्तिकेय को ब्रह्मांड की परिक्रमा करने को कहा था। कार्तिकेय ने अपने मयूर वाहन पर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा की और गणेश ने माता-पिता के चरणों में ही पूरे संसार का वास मानते हुए उनकी परिक्रमा कर पिता का दिल जीता था। मगर, यहां हम जिस कार्तिकेय का जिक्र कर रहे हैं, वह एक ऐसी अनूठी परीक्षा से गुजरा है जिसमें उसने अपने बिछड़े माता-पिता को पाने के लिए केदारनाथ मंदिर की परिक्रमा की। गणेश बने इस कार्तिकेय को शिव का अभी अधूरा आशीर्वाद मिला है। उसके खोए पिता तो मिल गए, मगर मां के आने का अभी उसे इंतजार है।
बर्रा कानपुर उत्तर प्रदेश निवासी सौरभ भट्ट, पत्नी रश्मि भट्ट, पुत्री आस्था और आठ वर्षीय पुत्र कार्तिकेय के साथ केदारनाथ दर्शन को आए थे। 15 जून को वह केदारनाथ में ही एक होटल में ठहरे थे। सुबह बाबा केदार के दर्शन को पूरा परिवार आतुर था, लेकिन अगली सुबह जो कुछ हुआ वह इस परिवार के लिए कहर से कम नहीं था। बदहवास दौड़-भाग रहे लोगों के साथ यह परिवार भी बिखर गया। कार्तिकेय को जब होश आया तो वह मलबे में दबा हुआ था।
हिमालयन हॉस्पिटल में भर्ती कार्तिकेय ने बताया कि करीब तीन घंटे बाद एक अंकल ने मुझे मलबे से बाहर निकाला। आसपास देखा तो सब कुछ बदला हुआ था। यह देख वह कुछ समझ नहीं पा रहा था कि यहां आखिर एक ही रात में ऐसा क्या हो गया। जहां एक रात पहले आस्था का सैलाब था वहां हर तरफ तबाही का खौफनाक मंजर था।
उसने बताया कि वह अंकल उसे एक पहाड़ी पर ले गए। मुझे ज्यादा चोटें तो नहीं आई थी, मगर कई घंटे तक मलबे में दबे होने के कारण मेरा शरीर बुरी तरह दर्द कर रहा था। मेरे शरीर पर कपड़े भी नहीं थे। किसी ने रहम खाकर मुझे एक तौलिया दिया, जिससे मैने ठंड से बचने के लिए अपने तन को ढक लिया। बारिश के बीच ठंड की परवाह न करते हुए मैं मम्मी, पापा और बहन को तलाशने निकल पड़ा। मगर, यहां मौजूद लोगों ने मुझे नीचे नहीं जाने दिया। पूरा दिन और रात मैं अन्य लोगों के साथ पहाड़ी पर परिजनों का इंतजार करता रहा। मगर, कोई नहीं आया।
दूसरे दिन एक अंकल के साथ मैं दोबारा केदारनाथ मंदिर पहुंचा। मंदिर के पूरे चक्कर लगाने के बाद भी मम्मी, पापा और बहन आस्था कहीं नहीं मिले। मैं रोता रहा और लोगों से पूछता रहा। लेकिन वहां भी सभी लोग अपनों की तलाश में भटक रहे थे। वहां मेरे जैसे कई लोग थे, जिन्हें इस आपदा ने जख्म दिए। दूसरी पहाड़ी पर भी कुछ लोग थे, वो अंकल मुझे वहां भी ले गए। मुझे रोता देख सभी लोग मुझे पूछ रहे थे। तभी एक आंटी ने बताया कि कुछ आगे एक व्यक्ति अपने बेटे को भी ढूंढ रह हैं। मैं वहां पहुंचा और जोर-जोर से पापा को आवाज लगाई। कुछ देर में पापा मुझे मिल गए। उन्हें देखकर मेरी जान में जान आई और मैं फूट-फूटकर रोने लगा।
सौरभ भट्ट ने बताया कि उनकी पत्नी और बेटी अब तक लापता हैं। चार दिन और रात हम उसी पहाड़ी पर रहे और फिर कई किमी पैदल चलकर गौरीकुंड से कई किमी ऊपर एक स्थान पर पहुंचे। सात दिन बाद शनिवार को हमें लेने सेना का हेलीकाप्टर पहुंचा। कार्तिकेय की आंखों में आंसुओं का सैलाब है, मगर उसे उम्मीद है कि भगवान उसे उसकी पूरी दुनिया जरूर लौटाएंगे।
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