Author Topic: Biggest Cloudburst incident in Kedarnath Uttarakhand-सबसे बड़ी आपदा उत्तराखंड में  (Read 22420 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Uttarakhand hills has been facing natural disaster every in rainy season but this on 16 June 2013 is cloud burst in famous Shrine Kedarnath where more than 2000 people feared to have lost there life apart of animal, mule etc.

There is heavy loss of men & material reported from Uttarkashi, Rudraprag, Pithoragarh, Almora, Nainital and other parts of Uttarakhand.

Merapahad express deep condolences for those who lost their life in this natural catastrophe. May God departed soul rest in peace.

We  pray almighty nowhere in the world such natural disaster takes place.

It is time for all of such to come forward and help to rehabilite the affected people there.
History of Natural Disasters in Uttarakhand.

वर्ष 1868 में चमोली जनपद में बिरही की सहायक नदी में भूस्खलन से भारी तबाही हुई और 73 लोग मरे।
19 सितम्बर 1880 नैनीताल में शेर का डाण्डा की पहाड़ी टूटने से 151 लोग मरे। इसी दौरान शारदा में आयी बाढ़ से बरमदेव नाम का पड़ाव बहा, कोसी की बाढ़ से भुजान से रामनगर तक की सारी उपजाऊ भूमि बह गई।
25 अगस्त 1894 को बिरही नदी में भूस्खलन के कारण एक वर्ष पूर्व बनी झील टूटी, अलकनंदा के किनारे श्रीनगर सहित बसे तमाम गाँव व पड़ाव तबाह।
7 अगस्त 1898 को नैनीताल नगर के कैलाखान क्षेत्र में हुए भूस्खलन से 29 लोगों की मृत्यु।
1924 में नैनीताल नगर की मनोरा पहाड़ी खिसकी और बीरभट्टी इलाके के मकानों को नुकसान।
1935 में तवाघाट क्षेत्र जबर्दस्त भूस्खलन के बाद दरगाँव की आबादी का उजड़ना शुरू।
1937 में गर्ब्यांग धँसना शुरू हुआ, जो अभी भी जारी है।
1951 पौड़ी के सतपुली कस्बे में नयार ने तबाही मचायी। 22 बसें बहीं, कई लोग लापता, खेती की जमीन को बहुत नुकसान।
8 सितम्बर 1967 को नानक सागर बाँध की दीवार टूटी, 35 गाँवों में बाढ़, कई लोग मरे।
20 जुलाई 1970 को बेलाकूची व कनौडि़या गाड़ में आयी बाढ़ से भारी तबाही। पातालगंगा के ऊपरी इलाके में बादल फटा, 70 लोगों की मृत्यु।
19 जुलाई 1970 दुबाटा-धारचूला के स्याणा नाले में आयी बाढ़ से 35 मकान तबाह, 12 लोग मरे।
1975 में गौला की भीषण बाढ़ से हल्द्वानी नगर के  बह जाने का खतरा उत्पन्न हो गया।
1976 कपकोट के बघर गाँव में भूस्खलन से 11 लोग व 45 पालतू जानवर मरे। लोहारखेत में भी 5 व्यक्तियों की मृत्यु।
1 जुलाई 1976 को चमोली जनपद में नंदाकिनी नदी में भूस्खलन व बाढ़ से भारी तबाही।
14 अगस्त 1977 को तवाघाट का सिसना गाँव भूस्खलन व बाढ़ से पूरी तरह तबाह। कई गाँवों में जबरदस्त भूस्खलन, सेना के जवानों सहित 44 लोग व 80 पालतू जानवरों की मृत्यु।
1978 में भागीरथी घाटी में भारी बरसात का कहर, जबरदस्त भूस्खलन, नदी में झील बनी, पुल टूटे, 25 लोग मरे। इसी वर्ष मसूरी की खानों के मलबे के बह जाने से समूची दून घाटी के सामने खतरा पैदा हुआ।
16-19 जून 1978 को अल्मोड़ा की कोसी ने तबाही मचायी, खेती की जमीन को बहुत नुकसान।
1979 मन्दाकिनी घाटी के कोन्था गाँव में भूस्खलन का कहर, गाँव तबाह, 50 लोगों की मृत्यु।
23 जून 1980 को उत्तरकाशी का ज्ञानसू कस्बा भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित, जमीन रौखड़ बनी, 45 लोग मरे।
9 सितम्बर 1980 को उत्तरकाशी के कनौडि़या गाड़ के सामने बन रही सड़क में हुए भूस्खलन के मलवे से 15 लोग जमींदोज।
1983 में बागेश्वर के कर्मी गाँव में भयात नाले में आयी बाढ़ से 37 लोग व 72 जानवर मरे, कई एकड़ खेती की जमीन बही व 18 घर, 8 पुल, 15 किमी. मार्ग ध्वस्त।
1984 में कपकोट के जगथाना में भारी तबाही, 9 लोगों व दर्जनों पालतू जानवरों की मृत्यु, खेत तबाह।
1990 में ऋषिकेश के नीलकण्ठ में जबर्दस्त भूस्खलन, 100 लोग मरे।
16 अगस्त 1991 चमोली के देवर खडेरा, पाण्डुली, पीपल, हाट गाँव व गोपेश्वर नगर में भारी बरसात, 29 लोगों व 28 पालतू जानवरों की मृत्यु, कई नाली जमीन तबाह।
जुलाई 1996 में पिथौरागढ़ के रैंतोली गाँव में बादल फटने व भूस्खलन से 19 लोग मरे।
11 अगस्त 1998 को ऊखीमठ से लगे 10-12 गाँवों में भूस्खलन, 69 लोगों व तकरीबन 400 पालतू पशुओं की मृत्यु।
17-18 अगस्त 1998 को मालपा के भूस्खलन में कैलाश यात्रियों सहित कुल 261 लोगों की मृत्यु।
17 अगस्त 2001 को चमोली के फाटा में बादल फटने से 21 लोग मरे।
10 अगस्त 2002 को बूढ़ाकेदार में 28 लोग मलबे में दबकर मरे।
29 अगस्त 2003 सरनौल में अतिवृष्टि से 207 पशु मरे।
जुलाई 2004 में विष्णुप्रयाग में आयी तबाही से 16 लोगों की मृत्यु। उत्तरकाशी के कालिन्दी में भूस्खलन में 6 लोग मरे। 
26 अगस्त 2004 को सितारगंज में बाढ़ से 9 लोग मरे।
30 जून 2005 को गोविन्दघाट में बादल फटने से 11 लोगों की मृत्यु।
12 जुलाई 2007 को गैरसैण के पत्थरकटा में बादल फटने से 8 लोगों व 19 पशुओं की मृत्यु।
6 सितम्बर 2007 को धारचूला के बरम गाँव में भूस्खलन से 15 लोग मरे।
8 अगस्त 2009 को मुनस्यारी के ला, चाचना व बेडूमहर में बादल फटने से 43 लोग मरे।
12-13 अगस्त 2010 को भटवाड़ी कस्बे में तेज बारिश के कारण जमीन खिसकी, 167 मकानों की नींव धँसी।
18 अगस्त 2010 को सौंग-सुमगढ़ में 18 स्कूली बच्चे दफन।
18 सितम्बर 2010 को बादल फटने से अल्मोड़ा नगर से लगे देवली, बाल्टा, बाड़ी, पिल्खा व जोश्यूड़ा गाँवों में 36 लोगों की मृत्यु।

http://www.nainitalsamachar.in/history-of-uttarakhand-natural-disaster/

M S Mehta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the shocking photo of Kedarnath after cloud burst.





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मां-बाप को पाने के लिए कार्तिकेय बना 'गणेश'दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश
 भगवान शिव ने अपने पुत्रों गणेश और कार्तिकेय को ब्रह्मांड की परिक्रमा करने को कहा था। कार्तिकेय ने अपने मयूर वाहन पर पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा की और गणेश ने माता-पिता के चरणों में ही पूरे संसार का वास मानते हुए उनकी परिक्रमा कर पिता का दिल जीता था। मगर, यहां हम जिस कार्तिकेय का जिक्र कर रहे हैं, वह एक ऐसी अनूठी परीक्षा से गुजरा है जिसमें उसने अपने बिछड़े माता-पिता को पाने के लिए केदारनाथ मंदिर की परिक्रमा की। गणेश बने इस कार्तिकेय को शिव का अभी अधूरा आशीर्वाद मिला है। उसके खोए पिता तो मिल गए, मगर मां के आने का अभी उसे इंतजार है।
 बर्रा कानपुर उत्तर प्रदेश निवासी सौरभ भट्ट, पत्नी रश्मि भट्ट, पुत्री आस्था और आठ वर्षीय पुत्र कार्तिकेय के साथ केदारनाथ दर्शन को आए थे। 15 जून को वह केदारनाथ में ही एक होटल में ठहरे थे। सुबह बाबा केदार के दर्शन को पूरा परिवार आतुर था, लेकिन अगली सुबह जो कुछ हुआ वह इस परिवार के लिए कहर से कम नहीं था। बदहवास दौड़-भाग रहे लोगों के साथ यह परिवार भी बिखर गया। कार्तिकेय को जब होश आया तो वह मलबे में दबा हुआ था।
 हिमालयन हॉस्पिटल में भर्ती कार्तिकेय ने बताया कि करीब तीन घंटे बाद एक अंकल ने मुझे मलबे से बाहर निकाला। आसपास देखा तो सब कुछ बदला हुआ था। यह देख वह कुछ समझ नहीं पा रहा था कि यहां आखिर एक ही रात में ऐसा क्या हो गया। जहां एक रात पहले आस्था का सैलाब था वहां हर तरफ तबाही का खौफनाक मंजर था।
 उसने बताया कि वह अंकल उसे एक पहाड़ी पर ले गए। मुझे ज्यादा चोटें तो नहीं आई थी, मगर कई घंटे तक मलबे में दबे होने के कारण मेरा शरीर बुरी तरह दर्द कर रहा था। मेरे शरीर पर कपड़े भी नहीं थे। किसी ने रहम खाकर मुझे एक तौलिया दिया, जिससे मैने ठंड से बचने के लिए अपने तन को ढक लिया। बारिश के बीच ठंड की परवाह न करते हुए मैं मम्मी, पापा और बहन को तलाशने निकल पड़ा। मगर, यहां मौजूद लोगों ने मुझे नीचे नहीं जाने दिया। पूरा दिन और रात मैं अन्य लोगों के साथ पहाड़ी पर परिजनों का इंतजार करता रहा। मगर, कोई नहीं आया।
 दूसरे दिन एक अंकल के साथ मैं दोबारा केदारनाथ मंदिर पहुंचा। मंदिर के पूरे चक्कर लगाने के बाद भी मम्मी, पापा और बहन आस्था कहीं नहीं मिले। मैं रोता रहा और लोगों से पूछता रहा। लेकिन वहां भी सभी लोग अपनों की तलाश में भटक रहे थे। वहां मेरे जैसे कई लोग थे, जिन्हें इस आपदा ने जख्म दिए। दूसरी पहाड़ी पर भी कुछ लोग थे, वो अंकल मुझे वहां भी ले गए। मुझे रोता देख सभी लोग मुझे पूछ रहे थे। तभी एक आंटी ने बताया कि कुछ आगे एक व्यक्ति अपने बेटे को भी ढूंढ रह हैं। मैं वहां पहुंचा और जोर-जोर से पापा को आवाज लगाई। कुछ देर में पापा मुझे मिल गए। उन्हें देखकर मेरी जान में जान आई और मैं फूट-फूटकर रोने लगा।
 सौरभ भट्ट ने बताया कि उनकी पत्नी और बेटी अब तक लापता हैं। चार दिन और रात हम उसी पहाड़ी पर रहे और फिर कई किमी पैदल चलकर गौरीकुंड से कई किमी ऊपर एक स्थान पर पहुंचे। सात दिन बाद शनिवार को हमें लेने सेना का हेलीकाप्टर पहुंचा। कार्तिकेय की आंखों में आंसुओं का सैलाब है, मगर उसे उम्मीद है कि भगवान उसे उसकी पूरी दुनिया जरूर लौटाएंगे।



http://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-10501462.html

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14 घंटे रेंगकर पूरा किया पहाड़ियों का सफरजागरण संवाददाता, ऋषिकेश: भानमल  गेंहू की मशीन में एक हाथ कटवा बैठा था। इस हालत में भी केदारघाटी में आई आपदा के बीच भानमल ने पत्नी सोनी देवी के साथ 14 घंटे पथरीली पहाड़ियों पर बैठकर और रेंगकर सफर तय किया। कई बार उनका हौसला कमजोर पड़ा, लेकिन उन्होंने इसे टूटने नहीं दिया और उनका यही हौसला आज यह सब मंजर बयां करने के लिए उन्हें जिंदा रखे है। लसडावन लिमबाड़ा जिला चित्तौड़ राजस्थान निवासी भानमल और उनकी पत्नी सोनी देवी 15 जून को केदारनाथ के दर्शन करने के बाद गौरीकुंड आ गए थे। बाबा केदार के दर्शन के बाद उनका मन काफी प्रसन्न था। बाबा केदार के दर्शनों की मुराद जो पूरी हो गई थी। लेकिन, इसके बाद जो हुआ वह यह दंपती ताउम्र नहीं भूला सकते। इस दंपती की बुजुर्ग आंखें भी केदार घाटी में हुए प्रलय को कैद किए हुए है। भानमल का हालांकि एक हाथ कटा है, मगर हिम्मत पूरी है। इस उम्र में भी शरीर की अपंगता ने भानमल के इरादों को नहीं तोड़ा। यही कारण है कि भानमल व उनकी पत्नी सुरक्षित ऋषिकेश पहुंचकर रिलीव सेंटर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। भानमल के मुताबिक 16 जून की सुबह पांच बजे जब जमकर पानी बरसने लगा तो चारों तरफ तबाही का मंजर था। इसे देखते ही उनके रोंगटे खड़े हो गए। अपनी पूरी जिंदगी में उन्होंने ऐसी प्रलय नहीं देखी। मकान घरौंदों की तरह पानी में बह रहे थे। इसमें रह रहे लोग भी पानी में समाते दिखे। गाड़ियां भी पानी के साथ बह रही थी। बरसते पानी में मैं पत्नी के साथ पहाड़ी की ओर भागा। तीन रात और दो दिन पहाड़ी में ही बिताए। इस दौरान खाने को कुछ नहीं था। भूखे प्यासे ही वहां जान की सलामती के लिए बैठे रहे। जब वापस लौटे तो पुलिया टूट चुकी थी। 16 व 17 जून को 14 घंटे पहाड़ी से पहाड़ी चलते रहे। इसे चलना भी नहीं कहा जाएगा, बल्कि खाई में गिरने का डर था। इसलिए सरक-सरक कर कभी कोहनी के बल तो कभी बैठकर 14 घंटे का सफर तय किया। भानमल के मुताबिक किसी तरह गौरीगांव पहुंचे, जहां दो रात थाने में बिताई। गौरीगांव से हेलीकाप्टर ने हमें गुप्तकाशी तक छोड़ा। वहां से गाड़ी में बैठकर ऋषिकेश पहुंचे। http://www.jagran.com/uttarakhand/dehradun-city-10501196.html

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लोगों पर गिरते-गिरते बचा हेलीकॉप्टरजागरण संवाददाता, देहरादून: पुलिस की जरा सी चूक उस वक्त आठ लोगों की जान पर भारी पड़ती, जब एक हेलीकॉप्टर संतुलन खोने से लड़खड़ा गया था। दरअसल, जब राहत सामग्री लेकर एक हेलीकॉप्टर उड़ रहा था तो उस वक्त हेलीपैड के किनारे काफी भीड़ जमा थी। इसी दौरान हेलीकॉप्टर का संतुलन गड़बड़ा गया और वह हेलीपैड किनारे जमीन से कुछ ही ऊपर लड़खड़ाने लगा।
 इस दौरान सात लोग हेलीकॉप्टर के ठीक नीचे आ गए। इन्हें बचाने एक पुलिस कर्मी दौड़ा तो वह भी वहीं फंसा रह गया। इसके बाद नायब तहसीलदार ने हेलीपैड किनारे से भीड़ को न हटा पाने पर हेलीपैड समन्वयक सीओ स्वतंत्र कुमार से नाराजगी व्यक्त की, लेकिन उल्टे वह झल्ला कर बोल पड़े कि किस-किस को तो हटाएं। खैर, गनीमत रही कि पायलट ने सूझबूझ दिखाते हुए हेलीकॉप्टर को पहले जनता के ऊपर से हटाया और फिर संतुलन बनाकर उड़ान भरी। गंभीर यह कि इस घटना के बाद भी लोगों का हेलीपैड तक पहुंचने का सिलसिला जारी रहा और पुलिस कुछ नहीं कर पाई।
 पांच मिनट थमा रहा मोदी का काफिला
 गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला जब सहस्रधारा हेलीपैड की तरफ बढ़ रहा था तो जाम लगने से उनके वाहन थम गए। हेलीपैड के बाहर बेतरतीब खड़े वाहनों के चलते यह नौबत आई। मोदी के साथ तैनात कमांडो व एसपीजी के जवानों ने जाम खुलवाया। गंभीर यह कि इस दौरान पुलिस का कोई जवान वहां तैनात नहीं था।http://www.jagran.com/


Gourav Pandey

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केदारनाथ धाम की तबाही के बाद की  तस्वीरें।






Gourav Pandey

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किसी चमत्कार से कम नहीं केदारनाथ मंदिर का बचना

गांधी सरोवर से आए सैलाब की रफ्तार का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि केदारनाथ मंदिर के बाहर लगे लोहे का बैरिकैटर टेढ़ा मेढ़ा हो गया। मंदिर का चबूतरा तक ध्वस्त हो चुका है। लेकिन वही सैलाब आस्था की सबसे बड़ी नींव यानी केदारनाथ मंदिर को हिलाने में नाकामयाब रहा।

शिव में आस्था रखने वाले इसे चमत्कार मानते हैं कि जब सैलाब आया तब करीब 40 फुट का एक पत्थर आकर मंदिर के पास ठहर गया। सैलाब का पानी इस पत्थर से टकराकर दो हिस्सों में बंट गया। जिससे मंदिर पर सैलाब का सीधा असर नहीं पड़ा और मंदिर सुरक्षित खड़ा रहा। मंदिर की छत पर लगी आस्था की पताका आसमान पर अब भी लहरा रही है।

एक टीवी चैनल ने मंदिर के अंदर का दृश्य दिखाया है। इस दृश्य में मंदिर के अंदर सैलाब ने जो तबाही फैलाई है उसके निशान अब भी दिख रहे हैं। शंकराचार्य की मूर्ति को क्षति पहुंची है। लेकिन मंदिर के अंदर मौजूद नंदी की प्रतिमा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।

मंदिर के बाहर भी नंदी की प्रतिमा है, वह भी सुरक्षित है। ताज्जुब की बात तो यह है कि 16 तारीख से शिवलिंग की पूजा नहीं हुई है फिर भी शिवलिंग के माथे पर बेलपत्र मौजूद हैं। शिवलिंग का आधा भाग मलवे में दबा है, मानो शिव समाधि में लीन बैठे हों।

http://www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/how-kedarnath-temple-safe-from-flood/

 

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