By - Chandra Shekhar Kargeti.
इतिहास से कब सीखेंगे उत्तराखंडी ?
बचपन ने एक कहानी पढ़ी थी l जो आज भी मुझे उत्तराखण्ड के राजनैतिक परिप्रेक्ष में बड़ी प्रासंगिक लगती है l पुराने समय की बात है, मुगल सेना भारत पर आक्रमण करने को तैयार थी, शाम का समय था, दोनो तरफ की सेनाएँ अल-सुबह शुरू होने वाली लड़ाई के लिए मैदान में पड़ाव डाल चुकी थी, दोनों तरफ के गुप्तचर अपने-अपने काम यानि सेनाओं से सम्बंधित सूचनाओं, यथा सैनिको की संख्या, हथियारों के प्रकार, व्यूह रचना आदि-आदि की सूचनाओं की सुरागकसी में लगे हुए थे l
राजा और सुल्तान भी ऊँचे स्थानों पर अड्डा जमाये अपनी और विरोधी सेना की हर एक पल की हरकत पर नजर रख रहे थे, सुल्तान जब रात को अगले दिन की रणनीति पर चर्चा के लिए अपने सिपहसलारों के साथ बैठा तो उसने अपने सिपहसलारों से यह जानने का प्रयास किया कि आखिर भारत के राजा और उसकी सेना की कमजोरी क्या है, जिसकी फ़ायदा उठा कर उसे युद्ध में हराया जा सके ? गुप्तचरों ने सुलतान को बताया कि राजा बहुत ही निर्भीक और बहादुर लड़ाका है, वह अकेला ही हजारों पर भारी है, उसकी बहादुरी और व्यूह रचना का कोई सानी नहीं है, उसकी सेना में सैनिकों गिनती में जरुर कम है पर वे जोरदार लड़ाका हैं, उसका एक-एक सैनिक सुल्तान के सौ सैनिकों के बराबर है l
सुल्तान यह सब जानकर बैचेन हो उठा, अपने तम्बू से बाहर आकर फिर रात के अँधेरे में राजा के सैनिकों के पड़ाव को और देखने लगा, उसे दिखाई देता है कि राजा की सेना के पड़ाव में कई-कई जगह आग की लपटों के इर्द गिर्द कुछ आदमी दिखाई देतें हैं, वह इस बारे में गुप्तचर से पूछता है, कि यह सब क्या है, गुप्तचर सुल्तान को बताता है कि ये सब अपने अपने लोगों के लिए खाना बना रहें l सुल्तान पूछता है कि ये अलग-अलग खाना क्यों बना रहें हैं ? गुप्तचर बताता है कि राजा की सेना में सैनिक अलग-अलग जगह से, अलग-अलग जाति धर्म और अलग-अलग विचार के हैं, जो एक दूसरे के हाथ लगा भोजन-पानी गृहण नहीं करते हैं l गुप्तचर का इतना कहना था कि सुल्तान के चेहरे पर विजयी मुस्कान फ़ैल गयी, और वह कहने लगा कि अब मेरी जीत बगैर लड़े ही हो गयी है, कल मैंदान में हमारी सेना केवल दिखाने को लड़ेगी, हमारी जीत तो इनके अलग-अलग चूल्हों ने ही तय कर दी है l इतिहास गवाह है, हुआ भी वैसा ही है, जब जब राजाओं की सेना के अलग अलग चूल्हे जले, हार हमेशा राजा की सेना की ही हुई, जो आज तक होती आ रही हैं l
कोमोबेश राजा की सेना सी स्थिति आज हम आम उत्तराखंडियों की भी हैं, हम भले ही कांग्रेस-भाजपा जैसे संस्कृति का घोर विरोध-प्रतिरोध कर रहें हों,उनके कामों से त्रस्त हों, लेकिन यह विरोध प्रतिरोध हम अपने आस-पास में केवल दिखाने भर को करते हैं, हमने इस राज्य की बागडोर सुल्तान रूपी कांग्रेस-भाजपा को तो उसी दिन सौंप दी थी, जब राज्य निर्माण के पश्चात एक विचार के होने के बावजूद पूंजीपति ताकतों के धूर विरोधी विचारों के रहें हमारे अग्रज आंदोलनकारियों ने अपने अहम और आपस के छोटे मोटे मतभेदों और आयातित उसूलों के कारण राज्य में अपने समर्थकों के साथ छोटे-छोटे अलग-अलग मंचों का निर्माण कर लिया था, उन्होंने अपने आपको एक सीमीत दायरे में समेट कर अपनी ताकत को लगभग खत्म सा कर दिया हैं, आपस में अछूतपन भी इतना पैदा कर लिया कि एक दूसरे से सहमति तो दूर एक मंच पर बैठने पर भी आपत्तियाँ करने लगे l
उत्तराखंड के लोगो की दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों में बनी सैकड़ों अलग-अलग सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के झंडाबरदारों ने भी इस कोढ़ में खाज का काम किया, इन संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं ने कांग्रेस-भाजपा के तात्कालिक फायदों के लिए इन संस्थाओं के मंचों का उपयोग बखूबी किया, इन्होने इनके नेताओं को माला पहना कर अपने लोगो में इतना महिमा मंडित किया कि प्रवासियों को भी इनके अलावा और कोई नहीं सुझाता l कांग्रेस-भाजपा तो जानती ही है कि जब तक उत्तराखंडियों के मंच रूपी इन अलग-अलग चूल्हों से धुँवा उठता रहेगा, सुल्तान की जीत की तरह इनकी भी हर चुनाव में निर्बाध जीत जारी रहेगी l किसी राज्य की सत्ता लपकने को और जो कुछ चाहिए होता है वह इन संस्थाओं के माध्यम से पूरा हो ही जाता है