Author Topic: Burninig Issues of Uttarakhand Hills- पहाड़ के विकास ज्वलन्तशील मुद्दे  (Read 32924 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
March 18 at 9:57pm ·

बल हर दा,

हम तो वैसे ही जी रहे थे जैसे उत्तराखंड की नियति थी,
कुर्सी सँभालते ही काहे इतने बड़े बड़े दावे किये ?

आखिर तुम्हारे राज में सुखी कौन हो ??
तुम्हारे राज में हो रहे नित नये कुकर्मों पर तो इतना ही कहा जा सकता है.....

देख ली तेरी खुदाई, बस मेरा दिल भर गया,
तेरी रह्मत चुप रही, मैं रोते-रोते मर गया !!

वो बहारें नाच उठी थीं, झूम उठी थीं बदलियाँ,
अपनी क़िस्मत याद आते ही मेरा दिल डर गया !!

मेरे मालिक क्या कहूँ, तेरी दुआओं का फ़रेब,
मुझ पे यूँ छा गया, कि मुझको घर से बेघर कर गया !!

(गीत फिल्म किनारे-किनारे से , गीतकार न्याय शर्मा)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
March 17 at 10:20pm ·

बल भैजी,

पुराने समय में कहा जाता था कि जिस राज्य का राजा (मुख्यमंत्री) और उसके मंत्रीमंडल के सदस्य (मंत्री) दुखी हो तो समझ लेना चहिये कि उस राज्य की प्रजा सुखी है और उसे अपने राजा के राज में कोई कष्ट नही है !

अब देखिये कि पुरानी बातें भी समय के साथ साथ उलटने लगी हैं, अब तो कहा जाने लगा है कि जिस राज्य का राजा (मुख्यमंत्री) और उसके मंत्रीमंडल के सदस्य (मंत्री) सुखी हो समझ लें कि उस राज्य की प्रजा के भाग में दुख के सिवा और कुछ नही है !

ऐसा ही कुछ अपने राज्य के राजा (मुख्यमंत्री) और उसके उसके मंत्रीमंडल के सदस्यों (मंत्रियों) के ठाठ को देखकर भी लगता है ! राज्य की जनता को जहां एक अदद रोडवेज की उत्तम बस को तरसना पड़ रहा है, वही राजा (मुख्यमंत्री) और उसके उसके मंत्रीमंडल के सदस्यों (मंत्रियों) के पैर उड़नखटोले से नीचे नही पड़ रहें है !

काश इस राज्य की सड़कों को भी उनके श्री क़दमों ने कभी नापा होता तो नेताला में सड़क किनारे का हैंडपंप यूँ नंगा न रहता ?

 

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