चन्द्रशेखर करगेती
March 18 at 9:57pm ·
बल हर दा,
हम तो वैसे ही जी रहे थे जैसे उत्तराखंड की नियति थी,
कुर्सी सँभालते ही काहे इतने बड़े बड़े दावे किये ?
आखिर तुम्हारे राज में सुखी कौन हो ??
तुम्हारे राज में हो रहे नित नये कुकर्मों पर तो इतना ही कहा जा सकता है.....
देख ली तेरी खुदाई, बस मेरा दिल भर गया,
तेरी रह्मत चुप रही, मैं रोते-रोते मर गया !!
वो बहारें नाच उठी थीं, झूम उठी थीं बदलियाँ,
अपनी क़िस्मत याद आते ही मेरा दिल डर गया !!
मेरे मालिक क्या कहूँ, तेरी दुआओं का फ़रेब,
मुझ पे यूँ छा गया, कि मुझको घर से बेघर कर गया !!
(गीत फिल्म किनारे-किनारे से , गीतकार न्याय शर्मा)