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Your Opnion- क्या यु0 के0 डी0 उत्तराखंड मे बेहतर विकास कर सकती है ?

Yes
13 (54.2%)
No
4 (16.7%)
Can't Say
7 (29.2%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Can UKD Perform Better? - क्या यु0 के0 डी0 उत्तराखंड मे बेहतर विकास कर सकती है?  (Read 35912 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,

जैसा की आपको ज्ञात है उत्तराखंड राज्य को बनाने में उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) का बहुत बड़ा रोल रहा है ! उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़े हुए बहुत से कार्यकर्ताओं ने राज्य के विकास माग को पूरा करने के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दी थी ! अभी (UKD) ही मातृ क्षेत्रीय पार्टी है उत्तराखंड में !

लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद इस पार्टी को सरकार बनाने के बहुमत नही मिला ! अब तक के आठ सालो में उत्तराखंड में कांग्रेस एव भारतीय जनता पार्टी दोनों अपनी -२ सरकारे चला चुकी है लेकिन उत्तराखंड के विकास वही का वही है !

क्या UKD उत्तराखंड में यदि मौका मिले तो अच्छा विकास कर सकती है ?

आईये इस विषय पर चर्चा करे !

एस एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 I believe regional parties can always perform better in any state. Like in Uttarkhand, people have seen the govt of both BJP and Congress but they are yet to get desired level of development there.

UKD can definitely perform better there. Unfortunately, the party has not got a chance as yet. Since UKD has a lot of emotional issues are also connected and this is the party which has played a great role in formation of the state. The dream state of Uttarakhand martyr is yet to come.

The govt of national parties is any state basically commanded from their HQ where as the regional party has good knowledge even the minor issues.

UK’s people have to see the Govt of UK in coming time.   

पंकज सिंह महर

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शायद हां,
          शायद शब्द इसलिये जोडना पड़ा, क्योंकि उत्तराखण्ड बनने के बाद जैसा हमने देखा है कि विधायकगण राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिये हमेशा आपसी खींचतान में ही रहते हैं। कहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल भी सत्ता में आने पर इसी का शिकार न बन जाये।
       जहां तक उक्रांद के सरकार बनने पर प्रदेश का विकास होने की बात है तो इससे मैं पूर्णतः सहमत हूं कि १००% विकास होगा। कारण यह है कि इनका हाईकमान प्रादेशिक हित की ही बात करेगा, किसी और राज्य में चुनाव में अपनी सीटें जिताने के लिये यह बिजली-पानी के लिये कोई समझौता नहीं करेगा। इस पार्टी का भविष्य इसी प्रदेश तक ही सीमित होगा, इनकी रीति-नीति, विचार आदि सभी उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होंगी। इनके नेताओं का राजनैतिक भविष्य इसी जनता पर आधारित होगा।
        मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जैसे बड़े और राष्ट्रीय दल ही विकास और राज कर सकते हैं, उसी प्रकार राज्य का विकास क्षेत्रीय दल ही कर सकता है। क्योंकि क्षेत्रीयता में ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, हाईकमान वाली पार्टियां जिनका रिमोट कंट्रोल दिल्ली और कई अन्य धार्मिक संगठनों के मुख्यालय पर होता है और उन्हीं के इशारे पर काम करती हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों के सामने ऎसी कोई बाध्यता नहीं होती। जैसे आपने अभी हाल में ही देखा होगा कि परिसीमन से हमारी काफी सीटें पहाड़ से कम हो गई हैं, स्थानीय नेता उसका विरोध करना चाहते थे, लेकिन राष्ट्रीय दलों का नेशनल और अन्य स्टेट लेबल पर परिसीमन कराने का स्टैंड था, तो वे विरोध नहीं कर पाये। लेकिन उक्रांद के साथ ऎसा नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is in hand of people of Uttarakhand in time to come.


शायद हां,
          शायद शब्द इसलिये जोडना पड़ा, क्योंकि उत्तराखण्ड बनने के बाद जैसा हमने देखा है कि विधायकगण राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिये हमेशा आपसी खींचतान में ही रहते हैं। कहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल भी सत्ता में आने पर इसी का शिकार न बन जाये।
       जहां तक उक्रांद के सरकार बनने पर प्रदेश का विकास होने की बात है तो इससे मैं पूर्णतः सहमत हूं कि १००% विकास होगा। कारण यह है कि इनका हाईकमान प्रादेशिक हित की ही बात करेगा, किसी और राज्य में चुनाव में अपनी सीटें जिताने के लिये यह बिजली-पानी के लिये कोई समझौता नहीं करेगा। इस पार्टी का भविष्य इसी प्रदेश तक ही सीमित होगा, इनकी रीति-नीति, विचार आदि सभी उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होंगी। इनके नेताओं का राजनैतिक भविष्य इसी जनता पर आधारित होगा।
        मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जैसे बड़े और राष्ट्रीय दल ही विकास और राज कर सकते हैं, उसी प्रकार राज्य का विकास क्षेत्रीय दल ही कर सकता है। क्योंकि क्षेत्रीयता में ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, हाईकमान वाली पार्टियां जिनका रिमोट कंट्रोल दिल्ली और कई अन्य धार्मिक संगठनों के मुख्यालय पर होता है और उन्हीं के इशारे पर काम करती हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों के सामने ऎसी कोई बाध्यता नहीं होती। जैसे आपने अभी हाल में ही देखा होगा कि परिसीमन से हमारी काफी सीटें पहाड़ से कम हो गई हैं, स्थानीय नेता उसका विरोध करना चाहते थे, लेकिन राष्ट्रीय दलों का नेशनल और अन्य स्टेट लेबल पर परिसीमन कराने का स्टैंड था, तो वे विरोध नहीं कर पाये। लेकिन उक्रांद के साथ ऎसा नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होगा।


खीमसिंह रावत

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नही
क्योंकि करनी और कथनी में अन्तर होता है / उत्तराखंड की मांग यु के डी ने की और उसी की बदौलत
राज्य बना है/ क्या कारण है कि उत्तराखंड में ही यु के डी सरकार बनाने लायक सीट भी नही जीत पाती /
यु के डी जनाधार बनाने में असफल रही है/ हमारे सामने कितने उदाहरण है/ असम गण परिसद, तेलगु देशम, क्षेत्रीय पार्टियाँ शासन में आई / दुबारा जनता ने ठुकरा दिया /

 कांग्रेस व बी जे पी के लोग भी तो pahadi ही है यु  के डी के आने से ये jarur हो सकता है कि विकास कि गति थोडी ठीक हो जाय,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ha yah staya hai ki UKD seat nahi jeet payee. Ek dhurbhgya use prime leader have expired.

नही
क्योंकि करनी और कथनी में अन्तर होता है / उत्तराखंड की मांग यु के डी ने की और उसी की बदौलत
राज्य बना है/ क्या कारण है कि उत्तराखंड में ही यु के डी सरकार बनाने लायक सीट भी नही जीत पाती /
यु के डी जनाधार बनाने में असफल रही है/ हमारे सामने कितने उदाहरण है/ असम गण परिसद, तेलगु देशम, क्षेत्रीय पार्टियाँ शासन में आई / दुबारा जनता ने ठुकरा दिया /

 कांग्रेस व बी जे पी के लोग भी तो pahadi ही है यु  के डी के आने से ये jarur हो सकता है कि विकास कि गति थोडी ठीक हो जाय,


पंकज सिंह महर

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नही
क्योंकि करनी और कथनी में अन्तर होता है / उत्तराखंड की मांग यु के डी ने की और उसी की बदौलत
राज्य बना है/ क्या कारण है कि उत्तराखंड में ही यु के डी सरकार बनाने लायक सीट भी नही जीत पाती /
यु के डी जनाधार बनाने में असफल रही है/ हमारे सामने कितने उदाहरण है/ असम गण परिसद, तेलगु देशम, क्षेत्रीय पार्टियाँ शासन में आई / दुबारा जनता ने ठुकरा दिया /

 कांग्रेस व बी जे पी के लोग भी तो pahadi ही है यु  के डी के आने से ये jarur हो सकता है कि विकास कि गति थोडी ठीक हो जाय,



खीम दा,
      मुद्दा पहाड़ी होने का नहीं है, मुद्दा है राजनैतिक रुप से नीति और रीति को पहाड़ी बनाने का। मैने पहले भी कहा कि राष्ट्रीय दलों के कुछ मुद्दे ऎसे होते हैं जिनपर उनका राष्ट्रीय स्तर का एजेंडा होता है और उन पार्टियों को राज्यों में भी कार्डिनेशन करना पडता है। जैसे परिसीमन का ही मुद्दा आया, कांग्रेस और भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर नये परिसीमन का एजेंडा था, तो यहां के नेतागण मन मसोस कर चुप ही रहे, जब कि नुकसान उन्हीं का हुआ।  कई बार ऎसा भी होता है किसी मामले पर दूसरा राज्य भी मांग कर रहा हो और हमारा राज्य का उसमें कुछ घाटा हो, तो भी  अपने दल की सरकार के नाम पर समझौता हो जाता है, इसका ताजा-ताजा परिणाम अभी हमने देखा है।

उक्रांद के साथ ऎसा कुछ नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड दोनों ही उत्तराखण्ड का विकास ही होगा और उत्तराखण्ड तक ही वह पार्टी सीमित है।

हेम पन्त

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पंकज दा का कहना सही है. क्षेत्रीय पार्टी होने के कारण यू.के.डी. राष्ट्रीय मुद्दों से नहीं उत्तराखण्ड के मुद्दों से प्रभावित होती है. यू.के.डी. का आलाकमान दिल्ली में नहीं, गैरसैंण या देहरादून से संचालन करेगा तो शायद कोई अग्रवाल जी जैसा आदमी उत्तराखण्ड के जनमानस की भावनाओं के विपरीत विकास कार्य बन्द नहीं करा पायेगा.

jagariya/जगरिया

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महाराज अगर आज यू०के०डी० की सरकार होती तो नैनो का मदर प्लांट गुजरात नहीं जाता, यहीं लगता, लेकिन गुजरात के चुनावों को देखते हुये वोटरों को लुभाने के लिये वहां इसकी ज्यादा जरुरत थी, सो खंडूरी जी को कहना पड़ा कि महाराज हमारे पास जमीन नहीं थी करके।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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jagraia ji.

Time will come.. when UKD will also get a chance to form Govt in UK.

महाराज अगर आज यू०के०डी० की सरकार होती तो नैनो का मदर प्लांट गुजरात नहीं जाता, यहीं लगता, लेकिन गुजरात के चुनावों को देखते हुये वोटरों को लुभाने के लिये वहां इसकी ज्यादा जरुरत थी, सो खंडूरी जी को कहना पड़ा कि महाराज हमारे पास जमीन नहीं थी करके।

 

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