शायद हां,
शायद शब्द इसलिये जोडना पड़ा, क्योंकि उत्तराखण्ड बनने के बाद जैसा हमने देखा है कि विधायकगण राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिये हमेशा आपसी खींचतान में ही रहते हैं। कहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल भी सत्ता में आने पर इसी का शिकार न बन जाये।
जहां तक उक्रांद के सरकार बनने पर प्रदेश का विकास होने की बात है तो इससे मैं पूर्णतः सहमत हूं कि १००% विकास होगा। कारण यह है कि इनका हाईकमान प्रादेशिक हित की ही बात करेगा, किसी और राज्य में चुनाव में अपनी सीटें जिताने के लिये यह बिजली-पानी के लिये कोई समझौता नहीं करेगा। इस पार्टी का भविष्य इसी प्रदेश तक ही सीमित होगा, इनकी रीति-नीति, विचार आदि सभी उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होंगी। इनके नेताओं का राजनैतिक भविष्य इसी जनता पर आधारित होगा।
मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जैसे बड़े और राष्ट्रीय दल ही विकास और राज कर सकते हैं, उसी प्रकार राज्य का विकास क्षेत्रीय दल ही कर सकता है। क्योंकि क्षेत्रीयता में ही उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, हाईकमान वाली पार्टियां जिनका रिमोट कंट्रोल दिल्ली और कई अन्य धार्मिक संगठनों के मुख्यालय पर होता है और उन्हीं के इशारे पर काम करती हैं, लेकिन क्षेत्रीय दलों के सामने ऎसी कोई बाध्यता नहीं होती। जैसे आपने अभी हाल में ही देखा होगा कि परिसीमन से हमारी काफी सीटें पहाड़ से कम हो गई हैं, स्थानीय नेता उसका विरोध करना चाहते थे, लेकिन राष्ट्रीय दलों का नेशनल और अन्य स्टेट लेबल पर परिसीमन कराने का स्टैंड था, तो वे विरोध नहीं कर पाये। लेकिन उक्रांद के साथ ऎसा नहीं है, उसका एजेंडा और स्टैंड उत्तराखण्ड पर ही केन्द्रित और सीमित होगा।