Author Topic: COW Protection गौ संरक्षण  (Read 32500 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #20 on: August 21, 2010, 06:36:55 PM »
क्यों है गाय की महिमा ?
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प्राचीन काल से ही ऋषिमुनियों ने गाय को पूजनीय बताया है। ऐसा क्यों? गाय में ऐसा क्या है? आइए जानते हैं:
गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसके मल मूत्र तक पवित्र हैं। गाय का दूध तो रोगों में उपयोगी है ही उसका मूत्र और गोबर भी अत्यंत उपयोगी है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गाय का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है। गोमूत्र का एक पाव रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है।

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #21 on: August 22, 2010, 06:15:39 PM »
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक जीव को सम्मान दिया जाता है। पुराणों में ऐसी असंख्य किवदंतियां विद्यमान हैं, जहां पशु-पक्षियों का वर्णन देवता स्वरूप में किया गया है। गरुड़ देवता भगवान विष्णु के वाहन हैं, तो नाग शिव के गले का हार हैं। मां दुर्गा शेर पर सवार हैं, तो कार्तिकेय के साथ मयूर है।

इसी प्रकार इन शास्त्रों में गाय के महत्व को सवरेपरि माना गया है। गाय को माता कहा गया है। जिस प्रकार माता अपने बच्चों के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होती हैं, उसी प्रकार गाय भी अपने प्रत्येक स्वरूप में सर्वहितकारी हैं। पुरातन काल में इसे गौधन कहा जाता था।

स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गौमाता के भक्त थे। गोपाष्टमी का पर्व गौमाता व श्रीकृष्ण के प्रेम प्रतीक स्वरूप हर वर्ष मनाया जाता है। इसी दिन श्रीकृष्ण को गौ-चारण के लिए वन में भेजा गया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन कंस द्वारा भेजे गए मायावी राक्षसों का वध किया था, जिस कारण गोपाष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं। गोपाष्टमी वास्तव में गाय के प्रति हमारे सम्मान का प्रतीक पर्व है।
 
कृष्ण का गो-प्रेम :
भगवान श्रीकृष्ण का नाम गौमाता के साथ भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। श्रीकृष्ण गौमाता के अनन्य भक्त थे। वह स्वयं गायों को नहलाते। उन्हें चारा डालते तथा उनके पास बैठकर अपनी बांसुरी से मोहक धुनें सुनाते। वह गौमाता के साथ ऐसे बातें करते, जैसे यशोधा मैय्या से।
 
श्रीकृष्ण ने ही ब्रज वासियों को गोपाष्टमी मनाने के लिए प्रेरित किया। तभी यह यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन गौमाता का श्रंगार करके तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है। गौ को साक्षात नारायण जानकर सुख-समृद्धि की मनोकामना की जाती है।
 
महर्षि विश्वामित्र तथा कामधेनू :
महर्षि विश्वामित्र पहले परम पराक्रमी राजा थे। विश्वामित्र की वीरता का डंका सर्वत्र बजता था। एक बार राजा विश्वामित्र अपनी सेना सहित शिकार के लिए वन में गए। शिकार करते-करते वह थक गए। राजा ने वन में एक आश्रम देखा। उन्होंने सेना को आश्रम की ओर प्रस्थान करने का आदेश दिया।
 
आश्रम में महर्षि वशिष्ठ अपने शिष्यों सहित निवास करते थे। विश्वामित्र ने महर्षि को अपना परिचय देकर कहा- ‘ऋषिवर, मैं और मेरी सेना अत्यंत भूखे हंै। क्या आप हमारे लिए कुछ खाने-पीने का प्रबंध कर सकते हैं?’ महर्षि वशिष्ठ ने राजा विश्वामित्र का पूरा सत्कार किया तथा राजा समेत सारी सेना को नाना प्रकार के व्यजंन खिलाए। पूरी सेना तृप्त हो गई। विश्वामित्र को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जंगल में कैसे ऋषियों ने इतने सारे भोजन का प्रबंध किया होगा।
 
विश्वामित्र अपनी जिज्ञासा दबा न सके। उन्होंने वशिष्ठ से पूछ ही लिया। वशिष्ठ ने विश्वामित्र की बात सुन कर कहा- ‘यह सब हमारी माता की कृपा से संभव हो सका है।’
 
‘माता की कृपा से?’ विश्वामित्र बोले। वशिष्ठ ने विश्वामित्र को बताया कि उनके पास एक गाय है, जिसका नाम कामधेनू है। उससे जो कुछ मांगा जाए, वह तुरंत हाजिर कर देती हैं।
 
विश्वामित्र ने गाय देखने की इच्छा जाहिर की। वशिष्ठ ने उन्हें गौमाता के दर्शन करवा दिए। गाय को देखकर विश्वामित्र का मन बेईमान हो गया। वह बोले, ‘महर्षि, आप को चाहिए कि यह गाय राजा को भेंट कर दें।’
 
वशिष्ठ ने असमर्थता प्रकट कर दी। इस पर विश्वामित्र को क्रोध आ गया। वह बोले- ‘अगर आप हमें अपनी इच्छा से गाय नहीं देगें, तो हम इसे जबरन ले जाएंगे।’
 
आश्रम के शिष्य व विश्वामित्र की सेना आमने सामने डट गईं, परंतु कहां शाही सेना और कहां कुछ छात्र। महर्षि वशिष्ठ गौमाता के पास गए तथा अपनी रक्षा की प्रार्थना की। तभी गौमाता के कानो का आकार बढ़ने लगा तथा उसमें से एक सुसज्जित सेना निकली। उसने विश्वामित्र की सेना को खदेड़ दिया।
 
विश्वामित्र की शाही सेना को जान बचाकर भागना पड़ा। विश्वामित्र ने राजमहल पहुंचकर अपने मंत्रियों को बुलाया तथा युद्ध की तैयारी करने को कहा। एक मंत्री बोला- ‘राजन, वशिष्ठ ऋषि है। उनके तप का तेज बहुत ज्यादा है। उनके तप का सामना करना शाही फौज के वश का कार्य नहीं है।’ विश्वामित्र को बड़ा अचरज हुआ।
 
उन्होंने सोचा कि अगर एक ऋषि के तप का बल उनसे ज्यादा है, तो उन्हें भी तपस्या कर बल प्राप्त करना चाहिए। विश्वामित्र अपने राजपाठ को अलविदा कहकर तप करने जंगल में निकल पड़े। बाद में ब्रहार्षि विश्वामित्र कहलाए। ऐसी है गौमाता की महिमा।
 
33 करोड़ देवी देवताओं का वास :
धर्मशास्त्रों में अनेक स्थानों पर वर्णन आता है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ता है, धर्म का नाश होता है, तो पृथ्वी परम पिता परमेश्वर के पास गौमाता के रूप में पहुंचती है तथा पाप का बोझ कम करने की प्रार्थना करती हैं। गौमाता की पुकार सुनकर प्रभु पाप का अंत करने के लिए स्वयं अवतरित होते हैं और पापियों का विनाश करके धर्म की पुन:स्थापना करते हैं। अत: गौमाता हमारे लिए परम आदरणीय है।
 
गौमाता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास कहा गया है। गौमाता के शरीर का शायद ही कोई भाग ऐसा हो, जिस पर किसी देवता का वास न हो। इस प्रकार गौमाता संपूर्ण ब्रहमांड अथवा साक्षात नारायण का साक्षात स्वरूप हैं। इसी लिए शास्त्रों मंे कहा गया है कि मात्र गौमाता की पूजा-अर्चना करने से सृष्टि के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आराधना का फल मिलता है।
 
गौमाता की सेवा करने वाले को अंत में वैकुंठ की प्राप्ति होती है। वह आवागमन के चक्कर से छूट जाता है। जिस घर में गौमाता का वास होता है, वहां 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं। गौमाता की सेवा करने वाले को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। घर परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। धर्म का वास होता है।
 
परंतु वर्तमान परिपेक्ष्य में विडंबना यह है कि पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव तेजी से हमारे समाज पर बढ़ रहा है। जिस गाय की महिमा का गुनगान करने हमारे धर्म शास्त्र थकते नहीं, वहीं गौमाता आज दुर्दशा का शिकार हो रही हैं। हमारी संस्कृति में गौमाता का पूजन देवी-देवता भी करते आए हैं। गोपाष्टमी के दिन नई पीढ़ी को साथ लेकर गौमाता की पूज करनी चाहिए, ताकि अपनी सांस्कृति को जीवित रखा जा सके।

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #22 on: August 22, 2010, 06:50:43 PM »
गाँधी जी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व :

महात्मा गांधी एक मनीषी थे। वह भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। उनका स्पष्ट मत था कि भारत को पश्चिम का अनुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी संस्कृति. विरासत व मूल्यों के आधार पर विकास की राह पर आगे बढना चाहिए। गांधी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखा है – अंग्रेजों के विकास माडल को अपनाने से भारत, भारत नहीं रह जाएगा और भारत सच्चा इंगलिस्तान बन जाएगा।

गांधी जी का यह स्पष्ट मानना था कि देश में ग्राम आधारित विकास होने की आवश्यकता है। ग्राम आधारित विकास के लिए भारत जैसे देश में गाय का कितना महत्व है, उनको इस बात का अंदाजा था। गांधी जी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गांधी जी कहते थे कि जो हिन्दू गौ रक्षा के लिए जितना अधिक तत्पर है वह उतना ही श्रेष्ठ हिन्दू है। गौरक्षा के लिए गांधी जी किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे।
गांधी जी ने अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखा – “ गाय अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप है।"

महात्मा गांधी ने गाय को अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप बताया है। उनका मानना था कि गौ रक्षा का वास्तविक अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। उन्होंने 1921 में यंग इंडिया पत्रिका में लिखा “ गाय करुणा का काव्य है। यह सौम्य पशु मूर्तिमान करुणा है। वह करोड़ों भारतीयों की मां है। गौ रक्षा का अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। प्राचीन ऋषि ने, वह जो भी रहा हो, आरंभ गाय से किया। सृष्टि के निम्नतम प्राणियों की रक्षा का प्रश्न और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर ने उन्हें वाणी नहीं दी है। ”

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #23 on: August 27, 2010, 08:04:26 AM »

                देश का सबसे बड़ा गोमूत्र प्रशोधन संयंत्र हुआ तैयार
          उत्तरकाशी।  गोमूत्र का अर्क बनाने के लिये देश का सबसे बड़ा प्रशोधन   संयंत्र उत्तरकाशी के समीप तेखला गांव में बनकर तैयार हो गया है। आज   योगगुरु स्वामी रामदेव इसका विधिवत उद्घाटन करेंगे। इस संयंत्र में हर दिन   पांच हजार लीटर अर्क तैयार किया जाएगा।
 पतंजलि योगपीठ की ग्रामोद्योग योजना के तहत उत्तरकाशी नगर क्षेत्र में   तेखला के समीप इस संयंत्र ने आकार लिया है। ग्रामीण स्तर पर रोजगार के   साधनों को विकसित करने की दिशा में यह अनूठी पहल मानी जा रही है। इस   संयंत्र से वर्तमान में तीस गांव जुड़े हैं। अर्क तैयार करने के लिये इन   गांवों के ग्रामीणों से पांच रुपये प्रतिलीटर की दर से गोमूत्र खरीदा जा   रहा है। पतंजलि गोविज्ञान व जड़ी-बूटी कृषि अनुसंधान संस्थान की देखरेख में   तैयार यह संयंत्र देश का सबसे बड़ा संयंत्र है। इससे पहले गंगोत्री क्षेत्र   में ही संस्थान ने दो सौ लीटर क्षमता तक के छोटे संयत्र स्थापित किये थे,   लेकिन अब बड़ा संयंत्र होने से अब ग्रामीणों को एक ही जगह पर गोमूत्र   पहुंचाने में आसानी होगी। उद्घाटन के बाद जल्द ही क्षेत्र के सौ गांवों को   इससे जोड़ा जाएगा। पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि   ग्रामस्तर पर ग्रामीणों की जीवनशैली के अनुरूप रोजगार की अनेक संभावनाएं   हैं, लेकिन इसके लिये उन्हें प्रेरित करने के साथ ही सहयोग करना होगा।   उन्होंने बताया कि इस प्रशोधन सयंत्र के बाद देश भर में ग्रामोद्योग योजना   का संचालन किया जाएगा। इसके लिये ठोस रूपरेखा तैयार की जा रही है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6677460.html

   

        

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #24 on: August 27, 2010, 12:05:09 PM »
गौ मूत्र प्रशोधन संयंत्र जब सुचारू रूप से कार्य करना प्रारंभ कर देगा तो इससे संपूर्ण विश्व लाभान्वित होगा | इसका मुख्य लाभ उत्तराखंड को मिलेगा | उत्तराखंड में ग्रामोद्योग को बढावा मिलेगा | उत्तराखंड के लोगों के आय के साधनों में वृद्धि होगी और लोग गौ माता की महत्ता को जानेंगे |

मुझे आशा है कि उत्तराखंड के लोग हमारी धरोहर "गौ माता" की महत्ता को जानेंगे और गौ माता की महत्ता को संपूर्ण विश्व में प्रचारित-प्रसारित करेंगे |
 

विनोद सिंह गढ़िया

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COW Protection : गौ संरक्षण
« Reply #25 on: August 27, 2010, 11:15:57 PM »
प्रदेश में गाय एवं गौ वंश का काफी सम्मान है, यहाँ मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक कर्म-काण्डों में गौमाता काम आती है, लेकिन आज प्रदेश में गाय एवं उसका वंश अल्पसंख्यक सा नजर आने लगा है | जिसप्रकार प्रदेश को "देवभूमि" का दर्जा प्राप्त है एवं गाय के बिना सब कर्म-काण्ड अधूरे से लगते हैं उसके हिसाब से आज यहाँ गाय की  बड़ी दयनीय स्थिति प्रतीत होती है |
हमें इस बात पर चिंतन करना होगा कि आज देवभूमि में ऐसी स्थिति क्यों आ गयी, कहीं हम इसके दोषी तो नहीं..........?
 
 मैं कहूँ तो हम ही इस स्थिति  के जिम्मेदार हैं क्योंकि आज हर व्यक्ति आराम से रहना चाहता है, मेहनत करना ही नहीं चाहता | पहाड़ों से पलायन भी इस स्थिति में काफी हद तक अपने भूमिका निभा रहा है | आदमी सोचते हैं कि गाय तो दूध एक गिलास देती है, पालने में क्या फायदा , उन्हें यह मालूम नहीं कि एक गिलास दूध ही अमृत के सामान है |
 
सभी को पवित्र करने वाली गाय आखिर अपवित्र क्यों.....................? जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके उद्धार लिए गौ माता का दान किया जाता है, क्रिया-कर्म करने वाले ब्राह्मण को गाय घर ले जानी पड़ती है, परन्तु ब्राह्मण द्वारा कभी-कभी गाय को घर नहीं ले जाया जाता और  कोई दूसरा  आदमी भी गाय को घर में रखने को तैयार नहीं, आखिर वे क्यों गाय को अपवित्र मानते हैं जो कि बिलकुल गलत है ..............सभी को पवित्र करने वाली आखिर अपवित्र कैसे हो जायेगी  ..............?
 
 
आज पहाड़ में  पशु ( गौवंश) बहुत अधिक इधर-उधर घूमते दिखाई देते हैं, उन्हें लोग आवारा पशु कहते हैं, पहले तो मुझे इस बात का दुःख होता है कि इन्हें "आवारा" क्यों कहा जाता है, देवभूमि में ऐसी स्थिति क्यों ...............? मैंने इन पशुओं को नजदीक से देखा है, इनकी आखों में विवशता (बेवस-कुछ नहीं कर पाना) देखी हैं .....आखिर ऐसी विवशता क्यों ..........? क्या हम इस विवशता का कुछ हल नहीं निकल सकते .........?
 
आज हर देवभूमि वासी को इस समस्या को समझना होगा, इस स्थिति से निबटने के लिए खुद कुछ कदम आगे बढाने होंगे | हमें लोगों को जागरूक करना होगा |
 
सरकार को भी इस समस्या का समाधान करना होगा, हर गाँव  में एक गौशाला का निर्माण करना होगा, हर वर्ष आदर्श गौ ग्राम को पुरस्कृत कर जन-जागरूकता फैलाना होगा | गौशाला का निर्माण गौ संरक्षण के लिए कारगर कदम होगा, इससे न केवल गौ संरक्षण ही होगा अपितु  गाँव के बेराजगार को रोजगार मिलेगा, अच्छी मेहनत के द्वारा वह दूध व्यवसाय कर सकता है, गोबर से कम्पोस्ट खाद बनाकर बाज़ार में बेच सकता है और जैसा कि आप गौमूत्र के बारे में जानते हैं कि गौमूत्र भी खरीदा जा रहा है, वह गौ मूत्र बेचकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकता हैं |

अतः हमें गौ संरक्षण के लिए एक ठोस कदम उठाना होगा ताकि उत्तराखंड एक आदर्श प्रदेश बन सके और देवभूमि कहलाता रहे |
 
धन्यवाद
 
विनोद सिंह गड़िया   

विनोद सिंह गढ़िया

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #26 on: September 01, 2010, 10:18:25 AM »
गोमूत्र प्रशोधन संयंत्र का शुभारंभ किया योग गुरु रामदेव ने

उत्तरकाशी। गोमूत्र प्रशोधन संयंत्र का शुभारंभ करते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि गाय के दूध के साथ ही गोमूत्र और गोबर भी मानव जीवन में बहुपयोगी है। पतंजलि ग्रामोद्योग के तहत पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीणों से गोमूत्र के साथ ही तमाम पारंपरिक जैविक उत्पाद बाजार भाव से अधिक दर पर खरीदकर उनकी आजीविका को मजबूत आधार देने का प्रयास किया जा रहा है।
मानव सेवा मिशन द्वारा शुरू की गई मुहिम को आगे बढ़ाते हुए पतंजलि योग पीठ द्वारा तेखला उत्तरकाशी में देश के सबसे बड़े ५००० लीटर क्षमता वाले गोमूत्र प्रशोधन संयंत्र की स्थापना की गई। पूर्व में यहां विभिन्न गांवों में २००-२०० लीटर क्षमता के १० संयंत्र स्थापित किए जा चुके हैं। उद्घाटन मौके पर बाबा रामदेव ने कहा कि पहाड़ की जड़ी-बूटी एवं जैविक उत्पाद यहां के लोगों की आर्थिकी का मजबूत आधार बन सकते हैं। देश के ६०० गांवों में शुरू की गई पतंजलि ग्रामोद्योग योजना के तहत गांवों को स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाबा ने बताया जल्द ही उत्तरकाशी में पतंजलि सेवा केंद्र एवं औषधालय शुरू किया जा रहा है तथा जड़ी-बूटी कृषिकरण को बढ़ावा देकर इसे ग्रामीणों की आर्थिकी का आधार बनाया जाएगा। मौके पर मौजूद आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि गोमूत्र के अर्क से मोटापा कम करने के साथ ही लीवर संबंधी रोगों का उपचार होता है। इससे कैंसर की बीमारी के उपचार पर शोध किया जा रहा है।
ग्रामीणों की आय का जरिया बना गोमूत्र
उत्तरकाशी। पतंजलि गो विज्ञान एवं जड़ी-बूटी कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक स्वामी हरिदास ने बताया कि ग्रामीणों से पांच रुपये प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदा जा रहा है। संस्थान द्वारा गंगोरी में संचालित विद्यालय में तो गरीब बच्चों से फीस के रूप में गोमूत्र ही लिया जा रहा है। पिछले तीन माह में यहां से करीब ८० हजार लीटर गोमूत्र पतंजलि योग पीठ को आपूर्ति किया जा चुका है। इससे ग्रामीणों को अच्छी आय हो रही है।

गोमूत्र व गोबर से तैयार हो रहे उत्पाद

उत्तरकाशी। तेखला गंगोरी स्थित कार्यशाला में गोमूत्र का शोधन कर इससे गो अर्क तैयार करने के साथ ही गोमूत्र व गोबर आदि के उपयोग से फिनायल, अगरबत्ती, धूपबत्ती, मच्छर ऑयल, मच्छर अगरबत्ती हवन सामग्री आदि का निर्माण किया जा रहा है।

http://www.amarujala.com/city/Utter%20Kashi/Utter%20Kashi-2445-17.html

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #27 on: September 08, 2010, 06:10:52 AM »
कागजों तक सिमटा गो संरक्षण
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रुद्रप्रयाग। जिले में गो वंश संरक्षण कागजों तक ही सिमट कर रह गया है। सरकार हो या फिर स्वयं सेवी संस्थाएं सभी के प्रयास मात्र खानापूर्ति तक सिमट कर रह गए हैं। इसका अंदाजा जिला मुख्यालय में गायों की दुर्दशा को देखकर लगाया जा सकता है।

हिन्दू धर्म में मां का दर्जा रखने वाली गाय की जिला मुख्यालय में भारी दुर्दशा बनी हुई है, इससे धर्म के ठेकेदारों के लिए शर्म की बात है। गो माता के संरक्षण के लिए सरकार स्तर से तमाम दावे होते हैं और इसके साथ ही कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं, लेकिन गो वंश की सुरक्षा के लिए यहां सभी गलत साबित हो रहे हैं। गो माता की दुर्दशा का एक नमूना जिला मुख्यालय में भी देखा जा सकता है।
 यहां रोजाना बाजारों में डेढ़ दर्जन से अधिक गायों को आवारा घूमते देखा जा सकता है। सड़कों पर जहां-तहां पड़े होने से कई बार यह वाहनों की चपेट में आकर चोटिल हो जाती हैं और समय पर उपचार न मिलने से कई गाय तो मर भी जाती हैं। यही नहीं कूड़ा करकट व तमाम प्रकार की गंदगी खाने से भी बीमारी से इनकी मौत हो जाती है।

इस ओर न तो नगरपालिका का ध्यान जाता है और न ही स्वयंसेवी संस्थाओं का। दिलचस्प यह है कि गायों के संरक्षण के लिए जिला मुख्यालय के अंतर्गत गुलाबराय में गो-धाम का निर्माण भी किया है, लेकिन यह इस धाम में पर्याप्त जगह न होने की समस्या से गायों की संख्या लगातार कम हो रही है। विगत वर्ष धाम में 35 गाय थी, लेकिन अब 23 गाय मौजूद हैं। मात्र दो छोटे-छोटे हाल ही यहां उपलब्ध हैं।
 वहीं नगर पालिका की भूमिका इस ओर सबसे अधिक लापरवाह दिख रही है। पालिका ने अभी तक इस ओर कोई विशेष पहल नहीं की है। नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी वीपी थपलियाल का कहना है कि आवारा गायों को रखने के लिए गो धाम में पालिका द्वारा हाल का निर्माण किया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने गायों को बाजार में आवारा छोड़ा जाता है, उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी, जबकि गोपाल गोधाम के अध्यक्ष एसएन नौटियाल का कहना है कि गायों के रखने के पर्याप्त जगह न होना सबसे विकट समस्या बनी है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6700952.html

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Re: COW Protection गौ संरक्षण
« Reply #28 on: September 29, 2010, 06:15:39 AM »
गाय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करें: गोपालमणि
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कथा वाचक गोपालमणि महाराज ने कहा कि समय आ गया है कि हमें राजा दिलीप की तरह अपना सर्वस्व गो को समर्पित करना होगा। आज स्थिति यह है कि हमने गो को घर से ही नहीं, अपने दिलों से भी निकाल दिया है।

कोटद्वार में गो कथा यज्ञ में उन्होंने कहा कि गो व माता दिखने में भले ही छोटें हों, लेकिन इनका महत्व विराट है व दोनों के बिना सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय संस्कृति में गो को भी माता के समान ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज गाय को लोगों ने सिर्फ घरों से बल्कि दिल से भी निकाल दिया है।

जिस गाय का शरीर साक्षात देवालय है, उस गाय को जूठन व सड़ा-गला पकवान खिलाया जा रहा है। आज हजारों गाय प्रतिदिन कट रही हैं, लेकिन हम मौन हैं। यदि हम अब भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं, जब गो के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि हम सभी को गो रक्षा के लिए आगे आना होगा। साथ ही सरकार को भी गाय को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करना होगा।

इस मौके पर शिशुपाल नेगी, सर्वेश्वरी किमोठी, महावीर रावत, ज्योति भट्ट, ऋचा किमोठी, विद्यावती डोभाल, चंपा रावत, लक्ष्मी रावत आदि मौजूद रहे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6764047.html

विनोद सिंह गढ़िया

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भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय   
आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टी के आदिकाल में भूमध्य रेखा के दोनों ओर एक ही गर्म भूखंड उत्पन्न हुआ था | इसे भारतीय परंपरा में 'जम्बूदीप" नाम दिया जाता है | सभी स्तनधारी भूमि पर पैरों से चलने वाले प्राणी दोपाये,चौपाये जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में "अक्युलेट ममल" के नाम से जाना जाता है, वे सभी जम्बूदीप पर उत्पन्न हुए थे | इस प्रकार सृष्टी में सबसे प्रथम मनुष्य और गौ का इसी जम्बूदीप भूखंड पर उत्पन्न होना माना जाता है | इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि  भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय है | इसी मूल भारतीय गाय लगभग 8000 साल पहले भारत जैसा गर्म क्षेत्रों से यूरोप के ठण्डे क्षेत्रों में जाना माना जाता है | 

 

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