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How do you rate Uttarakhand progress during these 9 yrs ?

Below 25 % Development
21 (43.8%)
25 % Development
11 (22.9%)
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4 (8.3%)
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Poor Performance
12 (25%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Development Survey Of Uttarakhand - उत्तराखंड राज्य के विकास का सर्वेक्षण  (Read 37473 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This news is evident, how much we have done the development

पानी को दर-दर भटक रहे हैं ग्रामीण
 
अगस्त्यमुनि (रुद्रप्रयाग)। विकासखंड के दूरस्थ गांव तिल्लू, जहंगी व गणेशनगर क्षेत्र में दो साल से पेयजल संकट चल रहा है। इससे क्षेत्र के विद्यालयों में मिड-डे मील पकाने में भी दिक्कत हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि विभागीय लापरवाही से पेयजल लाइन के क्षतिग्रस्त होने से यह परेशानी हो रही है।

विकासखंड अगस्त्यमुनि के सुदूरवर्ती गांव तिल्लू, जहंगी के साथ गणेशनगर क्षेत्र के लिए बनी पेयजल योजना के लिए विभाग ने किसी कर्मचारी की तैनाती नहीं की गई है। इससे पेयजल लाइन कई स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गई है। उपभोक्ता पीने के पानी को कई किमी दूर से लाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में ही विभाग को इस संबंध में अवगत कराने के बावजूद भारी भरकम बिल भेजे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि रखरखाव के लिए पेयजल लाइन पर विभाग अपना कर्मचारी रखता तो, पेयजल संकट कम हो सकता था। प्रधान जहंगी व प्रधान संघ के ब्लाक अध्यक्ष विक्रम सिंह नेगी का कहना है कि विभाग ने एक माह के भीतर पेयजल संकट दूर नहीं किया, तो ग्रामीणों को साथ लेकर जनांदोलन शुरू करेंगे। इससे क्षेत्र के विद्यालयों में मिड-डे मील पकाने के लिए भी पानी नहीं मिल पा रहा है।

हेम पन्त

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Uttarakhand is ahead of UP in many fields. Plz read  it...

Source : http://timesofindia.indiatimes.com/home/sunday-toi/special-report/Bijli-and-sadak-Not-a-problem/articleshow/5332035.cms
A young Uttarakhand seems to have learnt the 'art of living' faster than expected. Once known for its money order-based economy, Uttarakhand poses a stiff challenge in many ways to its parent state, Uttar Pradesh. The single biggest difference is the quality of life. A good measure of this is the gap in per capita income - Rs 34,000 per annum in Uttarakhand and just Rs 18,000 in UP. The new state also fares better on other growth indicators. Nearly 70% of its 16,000 villages are electrified and connected by motorable roads. This, despite the fact that most of these villages are high up in the mountains.

Major industrial houses have set up shop in the region, thanks to the excellent law and order situation and the Centre's special industrial package for the state. This offers a customs duty and income tax rebate on capital investment and will last till next year.

Healthcare, once almost non-existent in the region, is improving. Since 2000, two medical colleges have come up; four more are planned within the next three years. More than Rs 40,000 crore is to be invested in the power sector and that's in addition to the Tehri Hydel Project.

The new state's annual budget is pegged at more than Rs 6,000 crore in this financial year, a six-fold jump on 2000. Uttarakhand has also been able to sustain and increase revenue-generation - from Rs 300 crore to around Rs 3,500 crore annually. The state now has 60 MLAs instead of the 22 who represented the region in undivided UP. Administrative decentralization is also proceeding apace with the state counting 78 tehsils, nearly 30 more than before.

Small wonder locals say true independence for them came with statehood in 2000 rather than in August 1947.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अगर विकास का सर्वेक्षण किया जाय इन १० सालो में तो स्थिति बहुत ही ख़राब है!  कही लगता ही नहीं है कि पहाड़ी क्षेत्रो में उत्तराखंड बनाने के बाद को परिवर्तन आया हो !

you can give details of your areas here!

सत्यदेव सिंह नेगी

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हर उत्तराखंडी 17 हजार का ऋणी
देहरादून (एसएनबी)। राज्य सरकार पर बकाए कर्ज और वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर इस समय प्रदेश के हर व्यक्ति पर करीब 17,379 हजार रूपये का कर्जदार है। विधानसभा के सत्र में राज्य सरकार ने स्वीकार किया है। हालांकि सरकार ने सदन में प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर्ज की जानकारी तो नहीं दिया है, लेकिन प्रदेश सरकार पर बकाए कर्ज का जो आंकड़ा बताया गया है उसके मुताबिक प्रति व्यक्ति पर आने वाले कर्ज का हिस्सा इतना ही होगा। दरअसल सरकार का जवाब बसपा के सुरेन्द्र राकेश द्वारा इस संबंध में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए ससंदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने सदन में यह जानकारी दी। राकेश ने सरकार से पूछा थी कि वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) व अन्य बाह्य सहायतित योजनाओं के लिए वित्तीय संस्थाओं से लिए गए ऋण का वित्त विभाग द्वारा अनुश्रवण किया जाता है। इस पर हां में जवाब देते हुए पंत ने बताया कि वास्तव में उक्त योजनाओं के लिए वित्तीय संस्थाओं से मिलने वाला ऋण सीधे राज्य सरकार को नहीं मिलता है, बल्कि केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत धनराशि का 90 फीसद रकम अनुदान के रूप में राज्य सरकार को दिया जाता है और शेष धनराशि राज्य सरकार बाजार से उठाती है। इस पर उक्रांद के पुष्पेश त्रिपाठी ने सरकार से अनुपूरक प्रश्न के जरिए जानकारी मांगी कि इस समय प्रदेश सरकार पर कितना कर्ज बकाया है और वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर प्रति व्यक्ति के हिस्से कितना कर्ज पड़ेगा। इस पर पंत ने बताया कि 31 मार्च 2009 तक के उपलब्ध आंकड़े के मुातबिक कुल 14753.73 करोड़ रूपये का कर्ज है, जिसमें आंतरिक ऋण के रूप में 12442.26 करोड़ व केंद्र से मिले कर्ज व अग्रिम के रूप में 424.04 करोड़ और अल्प बचतें व भविष्य निधियों आदि के मद का 1887.43 करोड़ रूपये भी शामिल हैं। हालांकि पंत ने प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर्ज का आंकड़ा बताने को टाल गए। इस पर त्रिपाठी ने सरकार की जमकर खिंचाई करते हुए कहा कि अगर सरकार यह आंकड़ा नहीं बता पा रही तो यह सीधे तौर पर कार्यपालिका की लापरवाही है। हालांकि पंत द्वारा बताये गए कर्ज के योग को 2001 की जनगणना के आधार पर निर्धारित जनंसंख्या की तुलना करें तो प्रति व्यक्ति पर 17.379 रूपये कर्ज का हिस्सा बैठेगा।
सौजन्य राष्ट्रीय सहारा

हलिया

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कोइ  बिकास-सिकास नहीं हो रहा है हो महाराज.  गाँव की हालत वैसी ही ठैरी जैसे बीस साल पहले थी.  न कोइ पीने के पानी की नई योजना न कोइ सिंचाई की, बाटा-घाटा भी वैसे ही ठैरे अब रोड की बात कर लो, वही रोड है जो बीस-पच्चीस साल पहले थी, पहले कुछ रोडवेज वाली बस चलती थी अब तो जीप वालों का ही सहारा है.  अस्पताल, दवाईघर पहले भी नहीं ठैरा अब भी नहीं ही है फिर. पोस्ट आफिस भी पहले की ही जैसा पोस्टमैन अकेला ही चलाता है|  रहा स्कूल तो वो दो तीन खुल गए लेकिन महाराज बच्चों को पढ़ायेगा कौन मास्साब तो ठैरे नहीं कहीं एक बहनजी है तो कहीं एक मास्साब, एक से पांच तक सभी को एक ने ही पढाना ठैरा.  अब बताओ बिकास किस बात का?

हलिया

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मेरे जैसे हलियौं  के बारे में सोचा किसी सरकार-वरकार ने.  ऐडीओ / बीडीओ साब ने कभी खबर ली खेती बाडी की? बड़ी-बड़ी बातें करते हैं हो रेडियो-टी वी पर, कहाँ हैं वो आधुनिक खेती की बातें करने वाले मेरे सामने लाओ.  पहले एक ग्राम सेवक होता था तो गाँव में रहता था और उन्नत खेती की बात करता तो था, अब महाराज वो भी ग्राम बिकास अधिकारी हो गया है भल अब तो शहर में ही रहेगा | 





 

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