मेरा गांव जनपद पिथौरागढ़ की बाराबीसी पट्टी के देवलथल में अवस्थित है, ग्राम सभा का नाम उड़ई है, जिसमें एक छोटा सा गांव है, खोला। जंगल के नजदीक बसा यह गांव कभी भरा-पूरा रहता था, लगभग ३५-३६ परिवार यहां पर रहते थे। लेकिन जंगल और पानी के नजदीक होना इस गांव के लिये अभिशाप हो गया, क्योंकि यहां तक आज तक सड़क नहीं पहुंची। बिजली भी यहां ७ साल पहले ही पहूंची, जब कि उप तहसील देवलथल से यह मात्र ३ कि०मी० है, जिसमें १ कि०मी० की सीधी चढ़ाई है।
१९८० से ही इस गांव में पलायन शुरु हो गया, बच्चों की पढ़ाई और दुर्गम खेती और कम उपज के चलते २-३ परिवारों ने यहां से बनबसा-चकरपुर-खटीमा-झनकट आदि सस्ती और उपजाऊ क्षेत्रों की ओर पलायन किया। जहां पर इससे भी कम मेहनत में ज्यादा अनाज उत्पादित होता था। धीरे-धीरे यह एक चलन बन गया और सक्षम लोग धीरे-धीरे पलायन के मजबूर होते रहे, आज यह स्थिति है कि इस छोटे से गांव से १६ परिवार स्थाई रुप से उक्त क्षेत्र में पलायन कर चुके हैं। एक परिवार बरेली, एक परिवार लखनऊ, एक परिवार कुछ दूर खनाली नामक गांव में पलायित हो चुके हैं। कुल मिलाकर १९ परिवार इस गांव से स्थाई रुप से पलायित हो चुके हैं। एक परिवार फिलहाल देवलथल कस्बे में रह रहा है और २-३ परिवार पलायन के लिये तैयार हैं। इस गांव में अब वह ही बच गये हैं, जिनके रोजगार का कोई सहारा नहीं है, जो कहीं और भूमि लेने में अक्षम हैं।