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हवा में लटकीं उत्तराखंड की रोपवे परियोजनाएं
शिशिर प्रशांत / देहरादून October 15, 2010
पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से उत्तराखंड सरकार ने एक के बाद एक कई रोपवे परियोजनाएं तैयार करने की घोषणाएं तो कर डाली हैं, मगर इनमें से कई सारी परियोजनाओं की राह में रोड़े अटके हुए हैं। नौकरशाही अड़चनों और पर्यावरण संबंधी मंजूरियों के लिए लंबा इंतजार और जमीन अधिग्रहण की लंबी प्रक्रियाओं की वजह से कई परियोजनाओं का काम फिलहाल अटका पड़ा है।
राज्य सरकार ने जिन रोपवे परियोजनाओं की घोषणा की है उनमें मसूरी-देहरादून रोपवे परियोजना खासी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बनने से इन दोनों जगहों की दूरी सिमटकर महज 40 मिनट की रह जाएगी। मतलब कि महज 40 मिनटों में मसूरी से देहरादून या फिर देहरादून से मसूरी पहुंचा जा सकेगा। वहीं राज्य के धार्मिक केंद्रों जैसे केदारनाथ, यमुनोत्री और पूर्णागिरि में भी रोपवे परियोजनाएं तैयार की जानी हैं। पर्यावरण और वन संबंधी मंजूरियां हासिल करने के बाद पिछले साल राज्य के पर्यटन विभाग ने मसूरी रोपवे परियोजना के लिए निजी कंपनियों से बोलियां मंगाई थीं। इस परियोजना को 700 से 800 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया जाना था। इस परियोजना के लिए जो 2 बोलियां मिली थीं उसे तो सरकार ने ठुकरा दिया मगर आगे की कार्यवाही पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका है।
इस परियोजना के लिए उत्तराखंड इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना कंपनी (यूआईपीसी) प्राइवेट लिमिटेड ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक यह परियोजना एक प्रमुख पर्यटन आकर्षण बन कर उभर सकती है। फिलहाल मसूरी और देहरादून की बीच की दूरी 35 किमी है और इसे सड़क मार्ग के जरिए एक घंटे में पूरा किया जा सकता है।
इस रोपवे परियोजना की क्षमता इतनी होगी कि इसके जिरए एक घंटे में 1100 यात्रियों को इस पार से उस पार ले जाया जा सकेगा। इस पूरे रास्ते में केबलकार 4 जगहों पर दो से तीन मिनट के लिए रुका करेगी जहां मनोरंजन पार्क और बजट होटल बनाए जाने का प्रस्ताव है।
वहीं दूसरी ओर अगर यमुनोत्री, केदारनाथ और पूर्णागिरि रोपवे परियोजनाओं की बात करें तो यूआईपीसी अब तक इस पर कोई काम नहीं कर पाई है।
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