Author Topic: How To Promote Tourism - उत्तराखंड मे पर्यटन को कैसे बढाया जा सकता है?  (Read 78005 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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May be good step.

उत्तराखंड में ट्रैकिंग फ्री

ओमप्रकाश भट्ट ॥ गोपेश्वर

 उत्तराखंड में पर्वतारोहियों को अब भारी भरकम माउंटेनियरिंग चार्ज नहीं देना पड़ेगा। यह बात मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने राज्य सरकार के पर्यटन विभाग के कार्यों की हालिया समीक्षा बैठक में कही। इतना ही नहीं राज्य में संचालित सरकारी डाक बंगले अब पर्यटकों के लिए भी खोल दिए जाएंगे। इन डाक बंगलों में बेहतर आवासीय सुविधा बहाल करने के लिए इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत संचालित किया जाएगा। इसमें लोक निर्माण विभाग से लेेकर सिंचाई विभाग के निरीक्षण भवनों को भी शामिल किया जाएगा। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को इस बाबत प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया।
 गढ़वाल और कुमाऊं मंडल होंगे एक
 साथ ही उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊं मंडल विकास निगम को एक निकाय के अंतर्गत लाने के लिए प्रस्ताव बनाने का निर्देश भी दिया। उन्होंने कहा कि इससे राज्य में पर्यटन की गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से संचालित किया जा सकेगा। साथ ही इससे राज्य के पर्यटन को गढ़वाल या कुमाऊं की बजाय उत्तराखंड पर्यटन के नाम से पहचान मिलेगी। मुख्यमंत्री ने गढ़वाल मंडल और कुमाऊं मंडल के गेस्ट हाउसों की दशा को चिंताजनक बताया और इन्हें कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखते हुए पीपीपी मोड में संचालित किए जाने की संभावना की स्टडी करने को कहा। उन्होंने इस बात कैबिनेट में एक प्रस्ताव लाने का निर्देश दिया।
 पर्यटन में निवेश पर विचार
 मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में पर्यटन की असीमित संभावनाएं हैं। पर्यटन के क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रक्रियाओं को सरल किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने निवेश के प्रस्तावों पर कार्रवाई के लिए समय सीमा निश्चित करने का निर्देश दिया। पीडब्ल्यूडी, सिंचाई और अन्य सरकारी विभागों के दगेस्ट हाउसों के बेहतर उपयोग और इनका विकास आय के स्रोत के रूप में करने के लिए इन्हें भी पीपीपी मोड में संचालित किए जाने पर बल दिया। मुख्यमंत्री ने राफ्टिंग सहित साहसिक पर्यटन पर लगाए गए विभिन्न करों की वसूली एक ही बिंदु पर करने और 'बीच कैम्पिंग नीति' कैबिनेट में लाने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित इको टूरिज्म बोर्ड को पर्यटन विभाग के अंतर्गत रखने पर विचार किया जाएगा। साथ ही उन्होंने पर्यटक गाइडों के लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।

तीर्थ   स्थलों   की   राह   में   सुविधाएं 
  इसके   अलावा   मुख्यमंत्री   ने   राज्य   के   पर्यटन   स्थलों   का   व्यापक   प्रचार  -  प्रसार   किए   जाने   की   आवश्यकता   पर   बल   दिया।   उन्होंने   नई   दिल्ली   में   पर्यटन   मॉर्ट   आयोजित   कर   देश   के   प्रमुख   ट्रेवल   एजेंटों   को   आमंत्रित   करने   का   निर्देश   दिया।   साथ   ही   मुख्यमंत्री   ने   चारधाम  ,  हेमकुंड   साहिब  ,  पिरान   कलियर   सहित   प्रदेश   के   प्रमुख   तीर्थ   स्थलों   की   बेहतर   सफाई   व्यवस्था   सुनिश्चित   करने   का   निर्देश   दिया।   इस   दौरान   सीएम   ने   बताया   कि   केदारनाथ   मार्ग   पर   जल्द   बायोडिग्रेडेबल   टॉयलेट   बनाए   जाएंगे।   चारधाम   मार्ग   पर   इस   तरह   के   टॉयलेट   के   निर्माण   के   लिए   मास्टर   प्लान   तैयार   किया   गया   है  ,  जिसके   तहत   हर  10  या  15  किमी   की   दूरी   पर   बेहतर   सुविधा   संपन्न   टॉयलेट   बनाए   जाएंगे।   इन   पर  24  करोड़   रुपये   का   बजट   प्रस्तावि  त है।


Source - Navbharat times.


विनोद सिंह गढ़िया

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अनदेखी का शिकार हैं पर्यटन स्थल

चंपावत जिले में पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं के बावजूद कई स्थल पर्यटकों की नजरों से ओझल हैं। यहां चंद एवं कत्यूरी राजवंशों के अलावा आजादी के दौर के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों की भरमार होने के बाद भी पर्यटकों की आमद बेहद सीमित है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की मत्स्य आखेट एवं रिवर राफ़्ंटग प्रतियोगिताओं के आयोजन से विश्व पर्यटन मानचित्र में स्थान बनाने वाले पंचेश्वर जैसे महत्वपूर्ण स्थल भी पर्यटकों की आमद बढ़ाने में नाकाम साबित हो रहे हैं। बताते चलें कि जिले में पर्यटन स्थलों के नाम पर स्वामी विवेकानंद के अनुयायियों की ओर से स्थापित अद्वैत आश्रम मायावती, मां पूर्णागिरि धाम, गुरुद्वारा श्रीरीठासाहिब, अंग्रेजों का बसाया एबटमाउंट और पाषाण युद्ध के लिए प्रसिद्ध देवीधुरा की बग्वाल की ही कुछ हद तक पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है।
दरअसल खस्ताहाल सड़कों एवं बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण जिले के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थलों में पर्यटकों के कदम कम ही पड़ते हैं। जिसके लिए यह उदाहरण ही काफी होगा कि चंद राजाओं की राजधानी रहे चंपावत में ही इंसाफ के देवता के रूप में प्रसिद्ध गोलू देवता का मूल मंदिर है। लेकिन चंपावत के मूल मंदिर से ज्यादा पर्यटकों और श्रद्धालुओं की आवाजाही गोलू मंदिर की अल्मोड़ा जिले के चितई एवं नैनीताल जिले की घोड़ाखाल शाखाओं में उमड़ती है। इसके अतिरिक्त खेतीखान में आजादी के दौर में 1934 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री समेत कई दिग्गज सेनानी रहे थे, मगर इस स्थान को भी पर्यटन मानचित्र पर लाने के प्रयास नहीं किए गए। जानकारी के अभाव में कुमाऊं में रेलवे स्टेशन से सबसे कम दूरी वाला श्यामलाताल सरोवर भी पर्यटकों की नजरों से ओझल है। पर्यटन विभाग के मुताबिक जिले में रीठासाहिब और मायावती आश्रम में आने वाले तीर्थयात्रियों को मिलाकर हर वर्ष औसतन 47 से 50 हजार तक सैलानी आते हैं। जिला पर्यटन अधिकारी एसएस यादव का कहना है कि टनकपुर-पिथौरागढ़ एनएच के पूरी तरह दुरुस्त हुए बगैर यहां पर्यटकों को आकर्षित किया जाना बेहद कठिन है।

साभार : अमर उजाला

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand has huge of tourism but Govt has failed to promote the tourism at national and international so far.

    प्रकृति मेहरबान, 'नाराज' मेहमान
   गौरव नौड़ियाल, पौड़ी: जहा तक नजर दौड़े, वहां तक हिमालय की तकरीबन 17 अलग-अलग चमकती चोटियां, दूर पहाड़ियों पर छितराए धूमिल से दिखते छोटे-छोटे पहाड़ी गांव और घने देवदार और बांझ के जंगलों की चादर के नीचे बसी पर्यटन नगरी अपने अप्रितम प्राकृतिक सौंदर्य के बावजूद भी पर्यटकों को रिझाने में कामयाब नहीं हो पा रही है।
 पिछले छह वर्षो में पौड़ी पहुंचे अकेले विदेशी पर्यटकों के आगमन पर नजर दौड़ाएं तो बेहद निराशाजनक आंकड़ा सामने आता है। पिछले छह वर्षो में महज 728 विदेशी पर्यटक ही पौड़ी का दीदार करने आए। जबकि इस वर्ष 48 विदेशी सैलानियों ने ही पौड़ी का दीदार किया। भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य के बावजूद पर्यटन नगरी से मुंह मोड़ रहे पर्यटकों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पर्यटक किस कदर पर्यटन नगरी में मौजूद सुविधाओं से आहत हैं।
 पर्यटकों की पहली पसंद जनपद का कोटद्वार जोन है, जबकि दूसरा श्रीनगर। पौड़ी पर्यटकों की आखिरी पंसद है। इसके पीछे यात्रा पड़ाव के तर्क को भी जोड़ा जाए तब भी प्रतिवर्ष पौड़ी पहुंचने वाले पर्यटकों की आमद में लगातार गिरावट आ रही है।
 जनपद पंहुचे पर्यटक:
 वर्ष     जोन       भारतीय         विदेशी
 2007  पौड़ी       82,780          60
   -   कोटद्वार    2,32,632       15,869
   -   श्रीनगर     2,22, 475        186
 2008  पौड़ी       85,447           53
   -   कोटद्वार    2,86,824       16,237
   -   श्रीनगर     20,2486          306
 2009  पौड़ी       90,960           32
   -   कोटद्वार    32,1936        21,168
   -   श्रीनगर     2,47,974          339
 2010  पौड़ी      37, 616          131
   -   कोटद्वार    3,45,000       23,719 
   -   श्रीनगर     1,44,613        2,178
 2011  पौड़ी      48,714           404
   -   कोटद्वार    3,14000        18,406
   -   श्रीनगर     2,91000         4735
 सितंबर 2012 तक
   -    पौड़ी      56,900           48
   -   कोटद्वार    2,37,300        6766
   -   श्रीनगर     2,49,800        2302
 नोट- आंकड़े पर्यटक विभाग से लिए गए हैं
 पौड़ी में प्राकृतिक सुंदरता के बावजूद पर्यटकों की कमी के पीछे मुख्य वजह मूलभूत सुविधाओं की कमी है। पौड़ी में पर्यटकों को बेहत्तर सुविधाएं देने के लिए पर्यटन विभाग के द्वारा रांसी में गेस्ट हाउस सहित हट भी प्रस्तावित हैं।
 पीके गौतम, जिला पर्यटन अधिकारी


(Dainik Jagran)

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 संरक्षण के अभाव में खंडहर हो रही एतिहासिक धरोहर Updated on: Sun, 02 Dec 2012 10:19 PM (IST)            संरक्षण के अभाव में खंडहर हो रही एतिहासिक धरोहर
 
  जाका, चम्पावत : जिले में ऐतिहासिक धरोहरें संरक्षण के अभाव में जीर्णशीर्ण हो रही हैं। लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी पुरात्वात्विक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण इमारतें, किलों और देवालयों को मूल स्वरूप में नहीं लाया जा सका है। मुख्यालय के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का सुधलेवा कोई नहीं है। यहां कई स्थल और किले तो पुरातत्व विभाग के संरक्षण में नहीं है। जिसके कारण इन ऐतिहासिक स्थलों को दुरुस्त करना तो दूर सहेजना तक मुश्किल है। मालूम हो कि कुमाऊं की उत्पत्ति का नगर चम्पावत माना जाता है। कला, संस्कृति, रहन-सहन और विभिन्न सरोकार यहां पुष्पित व पल्लवित हुए। सातवीं सदी के आसपास इलाहाबाद से आए चंद वंशीय राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया। यहां से पूरे कुमाऊं गढ़वाल समेत तराई भावर तक अपना साम्राज्य फैलाया। इस दौरान नगर के शीर्ष भाग में राजबुंगा किला का निर्माण कर पूरे उत्तराखंड की हुकूमत चलाई। बालेश्वर मंदिर समूह के अलावा रानी चौपड़, विभिन्न नौलों धारों धर्मशालाओं का निर्माण हुआ।  तमाम ऐतिहासिक धरोहरें जिला मुख्यालय में हैं। जूप, चैकुनी, तल्ली मादली में ऐतिहासिक शिव मंदिर स्थापित है। खेतीखान का सूर्य मंदिर लोहाघाट का वाणासुर किला, झालीमाली, ब्यानधुरा, घटोत्कच्छ मंदिर, हिडंबा की स्थली जनपद की पुरात्वात्विक श्रेणी को मजबूती देते हैं। परंतु इनके संरक्षण की पहल को ठोस रूप नहीं मिल पा रहा है। दूनकोट किले के अब मात्र अवशेष शेष हैं। जनपद में केवल आधा दर्जन देव स्थलों को ही पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लिया है। चंद राजाओं का राजबुंगा किला संरक्षण की श्रेणी में नहीं है। बालेश्वर मंदिर समूह में लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उसका संरक्षण अधूरा छोड़ दिया गया है। 2005 के आसपास कार्य शुरू हुआ। लेकिन, उसे मूल स्वरुप में वापस नहीं लाया जा सका है। मंदिरों के शिलाखंड बिखरे हैं, जीर्णोद्धार का कार्य बजट के अभाव में ठप है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी कहते हैं कि स्वीकृत बजट का उपयोग कर अगले बजट के लिए डिमांड रखी गई है।
(Source - Dainik Jagran)

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 कब होगा गुफाओं की घाटी का विकास Updated on: Sun, 02 Dec 2012 10:19 PM (IST)            कब होगा गुफाओं की घाटी का विकास
   जाका, गंगोलीहाट : पाताल भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर और कोटेश्वर सहित 21 शिवस्थल वाले गुफाओं की घाटी का घोषणा के बाद भी विकास नहीं हो सका है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर, कोटेश्वर जैसी गुफाएं अभी भी गुमनाम हैं।
 स्कंध पुराण के मानस खंड में दारुका वन क्षेत्र में 21 शिवस्थलों का वर्णन किया गया है। जिसमें अभी तक सभी शिव स्थलों का पता नहीं चल सका है। पुराणों में उल्लखित दारुका वन पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट, बेरीनाग सहित सरयू नदी के दूसरी तरफ अल्मोड़ा जनपद का जागेश्वर क्षेत्र है। जिसमें जागेश्वर धाम समेत गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर अपनी विशिष्टताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन दोनों स्थानों को छोड़ दिया जाए तो अभी तक सभी 21 शिव स्थलों का पता नहीं चल सका है।
 गंगोलीहाट क्षेत्र में पाताल भुवनेश्वर गुफा अपनी विशेषताओं के लिए जानी जाती है। इसे शिव स्थल के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अतीत में ही अस्तित्व में आइ मुक्तेश्वर, बाणेश्वर, शैलेश्वर, कोटेश्वर गुफाएं अभी भी विकास की बाट जोह रही हैं। स्थानीय लोगों की आस्था की केंद्र ये गुफाएं पयर्टन का माध्यम नहीं बन सकी हैं। हालांकि पाताल भुवनेश्वर गुफा इन सबमें सबसे बड़ी और विशेषताओं वाली है। लेकिन, अन्य गुफाएं भी पौराणिक महत्व की हैं।
 हाल के वर्षो में इस क्षेत्र में तीन अन्य गुफाएं प्रकाश में आइ। जिसमें टिम्टा नामक स्थान पर महेश्वर गुफा, भूलीगांव में भोलेश्वर गुफा और भंडारीगांव में तामेश्वर गुफा शामिल है। हाल ही में प्रकाश में आयी तीनों गुफाएं गुमनामी में हैं। स्थानीय जानकारों का मानना है कि इस क्षेत्र में अभी कई गुफाएं हैं जो प्रकाश में नहीं आ सकी हैं। क्षेत्र में आठ गुफाओं के प्रकाश में आने के बाद इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन की संभावनाएं बताई गयी। जिसे देखते हुए वर्ष 1998 में क्षेत्र को गुफाओं की घाटी के रुप में विकसित करने की जनप्रतिनिधियों द्वारा घोषणा भी हुई। उस समय इस दिशा में पहल होने की संभावना भी नजर आ रही थी। इस बीच उत्तराखंड राज्य बनने तथा प्रदेश को पर्यटन प्रदेश बनाने के दावे हुए। जिससे गुफाओं का विकास तथा वहां तक पर्यटकों के पहुंचने की आस जगी थी। राज्य गठन के बारह वर्ष हो चुके हैं। लेकिन, गुफाओं की घाटी जस की तस है। पर्यटन में अभी तक पाताल भुवनेश्वर को छोड़ कर अन्य गुफाओं का कहीं भी जिक्र नहीं होता है। ऐसे में पर्यटन प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे खोखले नजर आ रहे हैं।
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 महाकाली मंदिर और पाताल भुवनेश्वर गुफा स्थित होने से गंगोलीहाट व बेरीनाग का विशेष महत्व है। यहां पर कई स्थल ऐसे हैं जो प्रकाश में नहीं आए हैं। इन स्थलों को पर्यटन मानचित्र में लाने के प्रयास किए जाएंगे। इससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा।
 नारायण राम आर्य, विधायक

(dainik jagran).

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CAG raps Uttarakhand for failing to promote tourism
« Reply #75 on: December 17, 2012, 04:14:17 PM »
 
CAG raps Uttarakhand for failing to promote tourism[/t][/t]
Shishir Prashant / New Delhi/ Dehradun Dec 17, 2012, 00:54 IST[/t][/t]
  The Comptroller and Auditor General ( CAG) has censured the Uttarakhand government for failing to promote Ayush tourism as a potential source of revenue in the hill state, where Kolkata-based Emami’s project has also hit a roadblock.
The government, in September 2007, had set a target to establish one Ayush Gram in each of the 13 districts of Uttarakhand to enhance sustainability of rural economy under the 11th Plan period (2007-12) in accordance with the national policy.he government approved (January 2009) guidelines for establishment of Ayush Grams involving facilities based on Indian systems of medicines through public-private partnership (PPP) mode.

The CAG noted that the government’s Ayush department failed to achieve the target.
“Thus the objective of promoting Ayush tourism in the state as a potential source of revenue could not be achieved despite lapse of more than four years,” CAG noted in its latest report for the previous financial year ended March 31.
Though the department had invited proposals for all the 13 districts, it received only eight proposals. Out of these, only two proposals were found suitable, CAG said.
The department entered into an agreement with Kolkata-based Emami Ltd for setting up the first Ayush Gram at Bhawali in Nainital district in August, 2010. The department handed over the land for 35 years’ lease to the company. According to the agreement, Emami submitted a bank guarantee of Rs 50 lakh along with upfront payment of Rs 2.5 crore.
Under the agreement, the department was responsible to create minimum infrastructure which it could not complete till October last year, due to which the first Ayush Gram at Nainital district could not be established.
“Audit scrutiny revealed that the process of acquiring land was in progress in seven districts, action was still to be initiated in the remaining four districts and no action was initiated for creation of Ayush G


http://www.business-standard.com
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This is fact. Uttarakhand Govt has been failed to promote tourism in the state. Be it BJP and Congress Govts ..

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मुनस्यारी को  स्कीइंग स्थल बनाने हेतु सामजिक दबाब आवश्यक                                                                                                  डा. बलबीर  सिंह रावत

                          पिथौरागढ़ में स्तिथ   मुनस्यारी पर्वत श्रृंखलाएं  और इधर उधर फैलीं हलके ढालों वाली , बर्फ से ढकी पहाड़ियां।  लगता है जैसे उन्हें खुली बाहों से बुला रही हों, जिन्हें अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों को चरम तक ले जा कर, उन शक्तियों से परिचित होने का जूनून है। जी हाँ, स्कीइंग ऐसे कुछेक गिने चुने साहसिक खेलों में से एक है जो खिलाड़ी से उस सब का सामना करवाता है, जिस से उसे अपने पूरे शरीर के सभी अंगों का पूरा जोर लगाने के लिए इतनी अनगिनत संभावनाए देता है कि बिस्वास करने के लिए देखना ही पडेगा। मुन्सियारी , यानी हिम का घर, उत्तराखंड राज्य के  पिथौरागढ़ जिले में,गौरी गंगा के तट पर , 2,200 मित्र की ऊचाई पर बसा कस्बा है। एह रमणीक स्थान भारत, चीन और नेपाल की सीमाओं के बीच, पांच हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियों, पंचुली , की सुनहरी गोद में बैठा हुआ, एक तेजी से उभरता हुआ प्र्यट्टन स्थल है। यहाँ से बिभिन्न ग्लेसियरों तक ट्रेकिंग के छ: रास्ते हैं जिनकी सम्मिलित लम्बाई 59 किलोमीटर है। हर साल गर्मियों में सितम्बर  तक यहा पर ट्रेकिंग में जाने वालों की भीड़ लगी होती है। यह स्थान दिल्ली से सड़क मार्ग से 612 किलोमीटर दूर है। काठगोदाम रेल स्टेशन से 261 किमी , नैनीताल से 288 किमी और नैनी सैनी हवाई अड्डे से केवल 128 किलोमीटर दूर है। यहाँ पर ठहरने , खाने पीने का अच्छा प्रबंध है , अभी पांच सितारा होटल तो नहीं हैं, लेकिन कुमाऊँ विकास मंडल इस दिशा में सक्रिय है। सभी मेहमान यहाँ से खुश हो कर जाते हैं, क्योंकि, स्थानीय लोगों की हार्दिक मेजवानी उन्हें गदगद करने के लिए भरसक प्रयत्न करती है। यह स्थान उन बिरल स्थानों में से है जहां आप, रेल, सड़क और हवाई मार्गों का एह ही यात्रा में आनंद ले सकते हैं और प्रकृति की शीतल गोद में अपनी क्षन्ताओं की स्वयं ही वोह परीक्षा ले सकते हैं जो आप को  न तो कोई जिम , और न कोई अन्य खेलकूद दे सकता है।
                                                        मुन्सियारी के हिमाच्छादित क्षेत्र हर श्रेणी के स्कियेर को हर प्रकार के ढलान देता है। नवसिखियों को हलके, सीख चुके लोगों को थोड़ा तेज, घुमावदार और सुरक्षित ढाल , और साहसिक खेल का आनंद लेने वालों को , तेजी, आकस्मिक आश्चर्य , तुरंत split second में निर्णय लेने , तथा बीच में रास्ता अचानक बदलने की और इन कारणों से उत्पन्न मुश्किलों में ठन्डे दिमाग से, अकेले ही ,सही निर्णय लेने का अभ्यास करने की अपार संभावनायें देता है . यह वे सभी गुण हैं जो एक बड़े व्यावसायिक संस्थान को उत्कृष्ट तरीके से चलाने के लिए आवश्यक हैं। इस लिए यह केवल शरीर ही नहीं, दिमागी शक्ति का भी वर्धक खेल है।                     मुनस्यारी को अंतराष्ट्रीय स्तर का स्कीइंग स्थान हेतु आन्दोलन आवश्यक
               उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में औद्योगीकरण में पर्यटन उद्योग का महत्व सर्वाधिक है और स्कीइंग सरीखे खेल को बढाना एक आवश्यकता है। पहाड़ों के विकास हेतु डेवलपमेंट स्तागेस मुनस्यारी जैसी जगह का स्कीइंग खेल हेतु विकास एक महत्वपूर्ण कदम है :मुनस्यारी को स्कीइंग स्थान हेतु निम्न आवश्यकताएं हैं 1-
1- मुनस्यारी स्कीइंग हेतु बिजिनेस मॉडेल बनाना व फण्ड/फाइनेंस/संसाधनों का   का समुचित प्रबंध  व विपणन रणनीति 
2-तकनीकी अनुकूलन- मुनस्यारी क्षेत्र को स्कीइंग हेतु विकसित करना (कंटूरिंग,स्मूथिंग, लैंड स्केपिंग, बुल्डोजिंग  आदि ), 3- नौन  स्कीइंग पर्यटन का विकास जैसे- जो स्कीइंग नही करते उनके लिए कई तरह के लुभावने तरीके अपनाना 5- स्थानीय लोंगों व  पिथौरागढ़ के प्रवासियों क ओ इस पर्यटन उद्यम में लाना  6- टूरिज्म को नया आयाम देना इसके लिए पहाड़ी समाज को सरकार पर अत्यधिक दबाब बनाना आवश्यक है।मेरी राय है कि  शुरुवात इन्टरनेट के सोसल मीडिया से की  जाय और प्रत्येक सोसल ग्रुप को मुनस्यारी स्कीइंग विकास की आवाज उठानी चाहिए . लेखकों को चाहिए कि वे उत्तराखंड के समाचार पत्रों में मुनस्यारी स्कीइंग विकास की बातें स्थाने पत्र पत्रिकाओं में उठायें स्थाने जनता   को  जगाया  जाय जो जिला परिषद, विधायकों व सांसदों पर भारी दबाब बनाएं
 
dr.bsrawat28@gmail.com डा. बलबीर  सिंह रावत
 
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पर्यटन विकास की उम्मीदों पर ग्रहण

जागरण ब्यूरो, देहरादून: गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के दोनों ओर 4179.50 वर्ग किमी क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित कर केंद्र ने इस मनोरम घाटी में पर्यटन विकास के लिहाज से भी राज्य सरकार के हाथ बांध दिए हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के बाद अब भागीरथी घाटी में पर्यटन विकास की मौजूदा व भावी परियोजनाओं के भविष्य पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। हाल में ही प्रारंभ 50 करोड़ लागत की निर्मल गंगोत्री मेगा पर्यटन सर्किट व करीब नौ किमी लंबे प्रस्तावित बार्सू-दयारा बुग्याल रोपवे पर भी तलवार लटकी दिख रही है।
 भागीरथी के उद्गमस्थल गौमुख से लेकर उत्तरकाशी तक करीब 100 किमी लंबी इस नदी घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अपने में पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं को समेटे हुए है, जबकि पवित्र गंगोत्री धाम भी देशी-विदेशी श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। पर्यटन-तीर्थाटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र के इको सेंसिटिव जोन घोषित होने से यहां पर्यटन विकास की उम्मीदें अब टूटती नजर आ रही हैं। वजह यह है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में इस क्षेत्र में गैर हरित उपयोग पर लगभग पूरी तरह पाबंदी लगाई गई है।
 इको सेंसिटिव जोन के लिए बनने वाली आंचलिक महायोजना में भले पर्यटन, तीर्थ यात्रा व स्थानीय उपयोग के लिए पैदल मार्गो के विकास को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है, मगर सीमित पैदल मार्गो के सहारे पर्यटन व तीर्थाटन विकास की उम्मीदें कैसे अंजाम तक पहुंचेंगी यह बड़ा सवाल बन गया है। इको सेंसिटिव जोन के धारक क्षमता अध्ययन के आधार पर ही पर्यटन महायोजना बनाई जाएगी, जिसमें नई पर्यटन गतिविधियों, विकास या मौजूद पर्यटन क्रियाकलापों के विस्तार को भी बेहद सीमित दायरे में बांधा जाना तय है।
 यानी, मौजूदा अवस्थापना सुविधाओं के विस्तार की संभावना को तो बेहद सीमित कर ही दिया, नई अवस्थापना सुविधाओं के विकास की संभावना भी लगभग क्षीण कर दी गई हैं। सवाल उठना लाजिमी है आखिर अब हाल में प्रारंभ हुई 50 करोड़ लागत की निर्मल गंगोत्री मेगा सर्किट योजना का भविष्य क्या होगा। दयारा बुग्याल में पर्यटन विकास की उम्मीद जगा रहा रोपवे प्रोजेक्ट धरातल पर उतर पाएगा या नहीं। मनेरी में जलक्रीड़ा के जरिए पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने की उम्मीदें भी परवान चढ़ पाएंगी या नहीं।
 इनसेट..
 क्या है निर्मल गंगोत्री मेगा सर्किट..
 -हर्षिल में इको-टूरिज्म विकास।
 -पंचयारीगाड-मंदाकिनी घाट का विकास
 -गंगोत्री में इको-टूरिज्म विकास।
 -लांका में पार्किंग, गेस्ट हाउस निर्माण।
 -भैरोघाट में पर्यटक आवास गृह निर्माण।
 -गंगोत्री मंदिर का विकास, सौंदर्यीकरण।
 -सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट।
 -गंगोत्री में एलइडी लाईटिंग।
 -लाइट एंड साउंड शो की व्यवस्था। 
 -फुटपाथ सेल्टर, व्यू प्वाइंट्स, ड्रेनेज आदि की व्यवस्था।
 इनसेट
 प्रस्तावित योजनाएं..
 -बार्सू दयारा बुग्याल रोपवे प्रोजेक्ट।     
 -मनेरी में जलक्रीड़ा स्थल विकास।



(source dainik jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Tourism in Uttarakhand: How to touch everyone’s lifeBy Udya Pant
Tourism in Uttarakhand: How to touch everyone’s life

                                                                                         Udaya Pant
(One of my an old articles: still relevant)
 
 
‘Tourism touches everyone’s life’, is a very apt statement to describe the access to everyone to reap the benefits out of Tourism industry.  It has something for everyone and everything on offer.  Tourism promotes consumption and consumption in turn gives rise to employment of all kinds and opportunities to prosper.  Tourists consume services and facilities, as well as the consumer goods and thereby contribute towards tax collection, transport, housing, trading activities etc., by using services like tourist guides, accommodation, general services, conveyance, shopping and entertainment facilities, visits to areas of interests and so on.  No other industry reaches anywhere near the Tourism industry in its potential to touch everyone’s life.  Anyone can make a decent living by getting associated with tourism and related activities in a booming situation.
 
What do tourists expect?
 
It is very important to read the psyche of tourists.  No tourist likes to get disheartened at the end of the visit; and if so, it will have disastrous consequences of negative publicity and shrinking number of tourist arrivals.  All tourists want to have happy moments of experience for which they visit a place.  They expect a warm welcome, good infrastructure and facilities, hygienic surroundings and food, safe drinking water, hospitable and warm behaviour from most people they come in contact with, pleasing environmental surroundings, some sort of privacy (degree might vary), easy access to the place and around; and above all, something new or special to experience or witness.  This something new could be the unique selling proposition (USP) of the place.  To carve out a niche in the competing market your USP has to be further worked upon to make it more attractive each time a person makes a repeat visit.
 
Tourists Have Several Faces
 
            The tourism development is not only based on the USP of a place but is also on the intention of the visitor.  Earlier, a visitor was distinguished differently than a tourist.  These days tourism efforts are also directed towards the visitors of all kinds.  The economics for the local hosts is in any case is the same.  The visitors can be adventure and nature lovers, holiday tourists, pilgrim tourists, vagabonds, visitors on transit, education tours participants, school education related visitors, health and peace seeking visitors, film and photography related visitors, domiciles visiting their native places, research and survey visitors and so on.
 
Different Names but Motive should be one
 
            Whatever may be the name and class of visitors, the motive for the host is only one, i.e., to ‘sell’ their product to the satisfaction of both provider and consumer.  The concept of ‘atithi devo bhav’ is now archaic and does not serve any purpose beyond recognizing the hospitality and its quality at a decent and affordable price.  The cost benefit, income and sustainability, as well as the ‘spin-offs’ rule the game.  The disparities of income that tourism promotes should be counterbalanced by going beyond cities, hotels and resorts; so as to ‘reach out’ to the people and ‘service providers’ beyond those places.  The quality living and experience providing to the tourists entails that the government and community plough back part of the earnings in the infrastructure development for tourism.
 
Tourism Industry is a Risky Business
 
            Socio-economically speaking, tourism can be a risky business in several ways.  Economy-wise, tourism is as risky as the fashion industry.  In both these, people want a continuous quality and products improvement, provided with variety.  The law and order situation can also play a dominant role in particular geographical area.  Tourism in Kashmir is a telling example of both ‘high’ and ‘low’ situations.  Balanced development of industries and tourism, agriculture and farm products, can ensure the complimentary role for all of them.
 
            Tourism can also be risky, socially and sociologically.  The ‘exposure risk’ to tourism can devastate the local culture and traditions; which at one time attract the tourists. Once they diminish, what happens to USP, that tourists will look for?  Certain other negative aspects also fall under such ‘risk’, that are too common to mention here.
 
Where is Uttarakhand in Tourism?       
 
            States like Uttaranchal are in the process of emerging as big players in the domestic tourism industry.  The State has everything that can be possible to offer to the tourists of any age, *, class or nationality.  It has the potential to offer value added products to all.  They already have the natural beauty in the forms of flora-fauna, landscapes, water-bodies, serene climate and the majestic Himalayas.  The holiday tourism and pilgrim tourism is reasonably well developed; water-sports and adventure tourism in place, old and news education institutions with good track-record exist, variety in weather and climate, mystical history and a rich culture.  The ethnic food, organic farming, local fruits and vegetables, rivers and spring water; and hospitable people attract the tourists easily.  Just like in Rajasthan, where we find a fort on every second hill-top, Uttaranchal has temples and other places of worship in every second hill-top.  At times the hill-tops are named as gods.  The man-nature relationship in Uttaranchal is as old as history.  The ideal sites for eco-tourism exist in abundance.
 
            So far, we have not seen the things to happen, that will make Uttaranchal a number one tourism state, in spite of the above mentioned several ‘plus factors’.  The impact of ‘change’ that is witnessed all over has also affected the culture and traditions of Uttaranchal.  The ‘hospitality’ that existed in mind and action both, is now on the verge of translating into commercial relations. The infrastructure development is limited to few cities and places.  Tourism as a major industry is also limited to such areas, while the common man is struggling with their day-to-day needs, under inefficient systems and management.  The resources are not adequate to provide a one to one relationship between common man and the visitors.  Moreover, no USP’s have been focused upon by the stakeholders.  The potential has not been exploited in the right way.  The government sets apart a very small budgetary allocation for tourisms in spite of the fact that the tourists contribute towards taxes collected by consuming goods and services to a large extent.
 
What should be the Road Map?
 
            While there is no single road-map for excelling in tourism, we may suggest the following core areas for a strategic approach:
 
a)     Access is something that is a core issue.  Without getting late any further, we must establish air-link and rail-link in the state – in a big way.  It is significant to note that the British had surveyed for a rail-link upto Bageshwar; but after 57 years of independence also, we have not got it in place.  Railways are synonymous with economic development of the regions all over India and other developing countries.  In countries like Switzerland, rail journey through the picturesque landscapes in the hills and valley is a major tourism factor.
 
In line with North-East India, we must provide affordable/subsidized air journey (possibly use ATR aircraft) to both the local inhabitants and the visitors.  Perhaps, our governments and leaders never pressed for it.  The lone air-strip in Pithoragarh was never operated due to bad policies and management.  Air routes to pilgrim places and tourist locations like Chamoli, Uttarkashi and Pithoragarh will also be economically viable.  These are the nodal places of pilgrim tourist routes.

b)    Accommodation with clean, hygienic surroundings and safe drinking water in smaller places may be provided, by both public and private sector, with value added packages.  Incentives in the form of soft loan, subsidy, tax-holiday may be provided to entrepreneurs.  The interference of local police, inspectors etc. should be the least; and the reputed members of community may be empowered (without making them a nuisance) to see and report that no notorious activities or misuse of facility is being done.  Low-cost, affordable accommodation should target the domestic tourists. The best tourist places in South East Asia (Thailand, Indonesia, and Malaysia) have the cheapest and world class accommodation in Hotels.  This is one reason that tourist arrivals, there, are maximum.
 
c)     Toilets and wayside amenities is a problem for tourists all over India.  Tourists, particularly women have to really plan and find it difficult to ease themselves on the way.   The clean toilets for public use (could be pay-and-use) should be prescribed for all petrol pumps, restaurants, besides the government providing the community toilets at public places – well maintained by corporates/banks or communities.
 
d)    Guides and Escorts service should be available with the communities at fixed rates for the services.  ‘Tourism police’ that is now in place, in places like Kerala, Rajasthan, Delhi, can also be engaged by employing multi-skilled workers.  The Tourism Police can double as guides and should be trained and skilled in hospitality, courtesy and professional knowledge of history, culture, places of interest, cuisines, flora and fauna etc. Even in good ‘law and order’ situation they have a useful role to play.
 
e)     Family accommodation is something very popular in Europe as an alternative to provide low cost accommodation and meals, with a family atmosphere to the visitors.  For this purpose, part of the house is put up as a tourist facility where almost every member of the family puts in efforts and provides services to the tourists   While the tourists get a home away from home along side the tourism, the members of the family either get full time or a part time job by running such facilities.  This is very important not only from the view point of providing employments at the site of the individuals, but is also a very effective measure to stop the tendency of migration in search of employment.  Once reasonable means of livelihood are provided at the village/town, people tend to stop moving away and assisting the umbilical cord.   What is important is to ensure that such tourist facility is not only reasonably priced but is also competitive in terms of hygiene, good environmental surroundings, pleasant atmosphere and choice of meals to suit the specific requirement of the visitors.
 
f)     Rural tourism in the picturesque surroundings must be promoted by incentivising efforts of the village entrepreneurs.  The economics of the rural tourism is same as in the preceding para; but packaging will be in the rural surroundings and ambience, wherein city-dwellers could spend peaceful holiday in a rural set up and experience amidst the rich traditions and culture of the village life.  There would be enough takers for such offers, once the infrastructure facilities are put in place.  A walk through the green fields and tasting the seasonal fruits direct from the trees is always add to the fun for little ones, but there have to be varying attractions for keeping them occupied and building around.  This would also bridge the gap between education and exposure of the rural children and city dwellers.  Nature and adventure is a core factor for mountaineous region like Uttaranchal.  Every place in the highlands is a potential site for trekking and mountaineering in the state.  While there are identified trekking and adventure routes, the same can also be located in the local area for holiday makers.
 
g)    Packaging of the facilities is the key to attract all members of the family at any time.  While the father is attending the conference in a hill station, the children should be offered with some entertainment facilities or educational visits coupled with fun.  At the same time, the women members of the family can be taken around to the places where handicrafts, artifacts are made.  The more senior and mature members of the family can be taken around to see culture, tradition and problems of the population in and around the area.  The crux of the matter is the fact that add-on’s have to be made available in any tourism facility.
 
h)     Health Tourism is getting increasingly popular.  Uttaranchal has the best of climate and best of Ayurvedic Universities located there.  While we see that headway has been made by Swamies and Saints by spreading yoga and pranayam through aggressive advertisement, little efforts have been made by the government or the tourism entrepreneurs on the region.  One can see people enthusiastically glued to television channels to view and learn the techniques of yoga and pranayams; and people raring to attend the camps organized by such people. The health tourism, by adopting ayurveda, naturopathy, yoga and pranayams, can attract millions and millions of tourists in Uttaranchal.  I think priority should be given to these areas and incentives be given to set up such centers, while the government takes care of the publicity part.  If nothing else is possible, the Swamies of Rishikesh should be requested to set up their branch network at different places.  This will not only increase the health consciousness but would also bring tourists to rejuvenate their bodies and souls while holidaying in Uttaranchal.
 
i)      Round the Year Tourism is of utmost priority.  So far we only see tourists visit Uttaranchal on seasonal basis.  This is one reason because tourism has not really taken off as core activity in the state.  Something similar used to happen in Austria where tourism in the hills was only seasonal, during the summer.  The local population migrated in search of jobs and few people were left behind to take care of the economy.  However, towards the late 70’s and 80’s, the entrepreneurs decided to set up winter tourism facilities with private sector initiatives.  The efforts of the private sector were duly recognized and facilitated by the government; and soon winter sports, skiing and other activities started flourishing in highlands of Austria.  This not only made tourism a round the year activity in Austria, but also reversed the trend of migration.  Instead of mountain people migrating to the plains, the plain people started migrating to the hills.  The net impact of this was increased business and employment opportunities in the hills and a quality living.  Since then this ‘reverse migration’ continues in Austria and even in Switzerland.  The village living and mountain living are considered more prestigious than living in city and the plains.  This was made possible because equal or better facilities in terms of health, infrastructure, schools, entertainment, waste-disposal, transport, access and related areas were made available in such locations.  Uttaranchal has a lot to learn from these experiences which are self-explicit.  Once you make tourism a round-the-year activity, tourist arrival will be ensured.  What is required is to plan and process the product in an innovative manner.
 
j)      Pilgrim tourism alone can be a big tourism factor in the state apart from Hindu tourist places of Mansarovar route, Badrinath, Kedarnath, Gangotri, Yamunotri, Hardwar and Rishikesh; there are innumerous historical temples and places of worship in the state.  The Sikh shrines of Hemkund Sahib and Ritha Sahib are located in the state, while the Ponta Sahib Gurudwara is next door in Himachal.  The pilgrim tourists do not, any more, like to stay in make-shift accommodation provided by Dharamshalas etc.  They are willing to pay for good accommodation and consume other facilities en-route and at the destination.
 
k)     Catch Domestic tourists, they are your best bet. It is an irony that we have not taken good note of the domestic tourists.  Again, the pilgrim tourists traveling in groups and as a family could be provided additional comfortable stay by synchronizing other facilities on offer.  For example at the end of their pilgrimage, in the foot hills or midway, they could be offered meditation and health rejuvenation centres.  The products for this purpose have to be affordable and of top quality.  Targeting domestic tourists can provide enough tourist traffic at the familiar site.  Besides,   it will be a deemed forex earning, if out bound tourists turn to Indian locations.
 
l)      Miscellaneous activities like setting up of way side amenities,  jungle lodges and log huts, fairs and festivals, sports and films, holiday tourism, conference and convention facilities,  souvenir shops, water and adventure sports etc. would also require strengthenment and importance.  The tourism requires good law and order conditions, gender sensitization and USPs in terms of boarding and lodging.  The existing facilities will have to reconditioned for all these.  Above all, to sell the products an aggressive publicity and public relations is a prerequisite.
 
m)   To find funds for facilities and infrastructure development will not be difficult, if the funds collected are ploughed back in the industry.  A ‘Tourism Cess’ at varied rates may be levied on the city/station professionals (Lawyers, Doctors, Architects,  etc.), shopkeepers, vendors, practicing barbers, restaurants and hotels, travel agencies, transporters, taxi-owners/buses and so on.  Al these are indirect and direct beneficiaries of tourism and tourist arrivals.  The funds collected should go to local Tourism Boards, who should also get grants from government. They will look after the local matters other than major investment schemes; and should be self-sustaining, financially, in the long term.

n)     Private Sector initiatives and ‘Public-Private Partnership’ (P3) should be tapped for high-cost infrastructure development.  P3 is particularly important in a shrinking resources position of the government, for basic amenities in the state.  This would require tremendous support from the government and dedicated professional facility and monitoring.  ‘Sky is not longer a limit, as we find people going beyond the skies’.
 
These are few issues that will help participation of majority of population and them benefiting out of tourism.  ‘Tourism industry is a gold mine for all, only if you dig deeper and remove the mud, to find the gold.  Once you find the ‘gold’, buyers will never be a problem’.

अन्नू रावत (9871264699)

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attractive topic!!
Uttarakhand Tourism Uttarakhand most effictive way to make money for the people has become!!

 

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