Author Topic: How To Promote Tourism - उत्तराखंड मे पर्यटन को कैसे बढाया जा सकता है?  (Read 82181 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सचिन से की उत्तराखंड के आपदाग्रस्त बच्चों की चर्चा
वरिष्ठ भाजपा नेता और उत्तराखंड से राज्यसभा सदस्य तरुण विजय ने भारत रत्‍‌न से अलंकृत किए जाने की घोषणा के बाद पहली बार राज्यसभा आए प्रसिद्ध क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को उत्तराखंड की जनता की ओर से बधाई दी। बातचीत के दौरान सचिन तेंदुलकर ने कहा कि वह उत्तराखंड को अपना दूसरा घर मानते हैं। तरुण विजय ने कहा कि मसूरी में उनके द्वारा घर बनाने और नियमित आने से वहां के पर्यटन को बढ़ावा मिला है। श्री विजय ने उनसे केदारघाटी के आपदाग्रस्त क्षेत्रों के बारे में भी चर्चा की और उस क्षेत्र के बच्चों की मदद की जरूरत बताई। इस पर सचिन तेंदुलकर ने कहा कि उत्तराखंड के बच्चों की सहायता को एक ठोस योजना बनाने की जरूरत है। इस संबंध में वह सांसद तरुण विजय से विमर्श करेंगे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Car rally, winter carnival to revive tourism in Uttarakhand
« Reply #81 on: December 24, 2013, 08:51:18 AM »
Car rally, winter carnival to revive tourism in Uttarakhand
To revive tourism in flood-hit Uttarakhand, the state tourism department with private and government agencies is organising a winter festival at Mussoorie and a car rally from Dehradun.

 However, the 850-km route for the car rally might give a tough time to the 36 automobiles participating in the event. The roads are still damaged since the floods.

 "The adventure is more when the roads are damaged," said an enthusiastic Tourism Minister Amrita Rawat as the car rallyists from across the country sped off from Dehradun toward Auli in Garhwal region in the first phase on Sunday. From Auli, the rallyists will drive towards Kumaon region tomorrow and turn back from Ramnagar the next morning to Dehradun. Uttarakhand adventure car rally is being organised to inspire confidence among tourists that the roads in the state are good and smooth and Uttarakhand is back on track as a premier tourist destination, said the state tourism department.

 Chief Minister Vijay Bahuguna, who flagged off the rally, has also announced a prize of Rs 5 lakh for the winner, Rs 3 lakh for the first runner-up and Rs 2 lakh for the second runner-up. He also announced a separate prize of Rs 1 lakh for the women's team that comes first.

 Apart from the car rally, the tourism department is organizing a three-day Mussoorie winter carnival from December 27. Tourists visiting the Queen of Hills will also witness the most charming unique phenomenon of nature, winterline, visible only at Mussoorie in India.

http://www.business-standard.com/article/politics/car-rally-winter-carnival-to-revive-tourism-in-uttarakhand-113122300882_1.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बिग-बी बन सकते हैं उत्तराखंड टूरिज़्म के ब्रैंड एंबैसडर

देहरादूनः सिलसिलेवार दुर्घटनाओं से बेपटरी हुई उत्तराखंड की टूरिज़्म इंडस्ट्री को फिर से दौड़ाने के लिए बिग-बी को बनाया जा सकता ब्रांड एंबैसडर है।

धार्मिक और पर्यटन के लिहाज से बेहतरीन कॉम्बिनेशन उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार केदारनाथ पर छह एपिसोड बनाकर इसकी ब्रैंडिंग पर विचार कर रही है।

उत्तराखंड के वैश्विक प्रचार के लिए सूफी गायक कैलाश खेर, प्रसून जोशी समेत छह  लोगों को नॉमिनेट करने पर विचार किया जा रहा है।

26 जनवरी से राज्य में हिमालय की नैसर्गिक खूबसूरत वादियों के दीदार करने के लिए देहरादून से हेलिकॉप्टर सेवा शुरू करने की भी तैयारी चल रही है। यह सेवा सहस्रधारा हेलिपैड से शुरू होगी। इसमें 10 हजार रुपये प्रति पैसेंजर के शुल्क पर यात्रियों को हिमालय दर्शन कराने के लिए अलग-अलग जगहों पर ले जाया जाएगा।
ज़ी मीडिया ब्‍यूरो

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think this is the welcome decision by Uttarakhand.

Bhishma Kukreti

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पूर्व महाभारत काल  में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास पारिकल्पना -5


   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -   5                 

  Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--110   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 110   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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       पूर्व महाभारत काल में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म
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  महाभारत काल से पहले किरात , द्रविड़ , खस आदि जातियां उत्तराखंड में आ बसीं थीं और उन्होंने अवश्य ही उत्तराखंड में मेडकल टूरिज्म विकसित किया।   धार्मिक विश्वास (आत्मबल हेतु , ऑटोसजेसन ) हेतु इन जातियों  ने कई देवताओं की कल्पना कर इन्हे पूज्य बना डाला जैसे वेदकाल में आर्य जाति  ने भी  किया।  किरात , द्रविड़ , खस जातियों के देवताओं में अधिकाँश देवता आज भी पूजे जाते हैं जैसे जाख , जाखणी , नाग , नगळी , भटिंड , गुडगुड्यार , विनायक , कुष्मांड , कश्शू , महासू , जयंत , मणिभद्र घंटाकर्ण आदि देवी देवता  (डा डबराल , उ. इ . पृष्ठ 210 )।  इससे पता चलता है कि समाज में मनोचिकित्सा आम घटनाएं थीं।  मनोचिकत्सा भी मेडिकल टूरिज्म का ही हिस्सा होता है।
     इतिहास मौन है कि फोड़े या अन्य बीमारी पर कई जड़ी बूटी उपयोग कैसे शुरू हुआ होगा।  कोल , किरात खस , द्रविड़ जातियों ने अवश्य ही कई जड़ी बूटियों से दवा प्रयोग शुरू किया होगा और बाद में चरक व अन्य संहिताओं में वे संकलित हुयी होंगी। कुछ दवाइयां संकलित भी नहीं हुयी होंगी किन्तु श्रुति माध्यम से आज तक चल ही रही हैं
 पशु -पक्षी अंगों से दवाईयां व ऊर्जा प्राप्ति हेतु भी अन्वेषण , परीक्षण हुए ही होंगे।
     पशु -पक्षियों की हड्डियों , सींगों , खुरों , चोंच, दांतों  से ना केवल हथियार , औजार बने होने अपितु सर्जरी -छेदन में भी नित नए परीक्षण व अन्वेषण हुए ही होंगे।  बनस्पति काँटों का भी मेडिकल में उपयोग होता रहा होगा और स्थान विशेषज्ञ  से उस विशेष स्थान में मेडिकल टूरिज्म बढ़ा ही होगा।
  द्रविड़ भाषा  के कई ग्राम नाम व शरीरांग नामों  से अंदाज लगाया जा सकता है प्राचीन द्रविड़ जाति ने शरीर विज्ञान व औसधि विज्ञान में हिमालय में कई परीक्षण किये होंगे व मडिकल टूरिज्म को कई नए आयाम दिए होंगे।
  ताम्र युग या महाभारत काल में गढ़वाल -कुमाऊं में ताम्बे  की खान मिलने से औषधि विज्ञान में भी क्रान्ति आयी जैसे ताम्बे की भष्म से आयुर्वेद या जड़ी बूटी में उपयोग। ताम्बे की सुई से सर्जरी ,  छेदन आदि भी मेडकल अन्वेषण ही थे।   ताम्बे के बर्तन में पानी रखना आदि ने भी उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म को विकसित ही किया होगा
गंगाजल ने मेडिकल टूरिज्म से धार्मिक टूरिज्म का रूप दिया होगा।  अलकनंदा , भगीरथी , व अन्य उत्तराखंडी नदियों की विशेषताओं पर परीक्षण हुए होंगे व उन चिकित्सा विशेषताओं का प्रचार प्रसार में ना जाने कितने साल व काम हुआ होगा।  यह सोचने की आवश्यकता नही कि महाभारत काल से पहले गंगा जल का  चिकत्सा वा धार्मिक कार्य हेतु विपणन हुआ होगा तभी तो महाभारत में गंगा स्नान का उल्लेख हुआ है।
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            लगातार परीक्षण से ही मेडिकल टूरिज्म विकसित होता है
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 खस जाति अशोक काल में अशोक हेतु गंगा जल ,मधुर आम्र,  नागलता -टिमुर ले जाते थे से पुष्टि होती है कि कॉल , किरात , ,  शकादि , खस जातियों ने उत्तराखंड की बनस्पतियों व पशुओं पर स्वास्थ्य रक्षा हेतु कई परीक्षण किये होंगे। फिर इन परीक्षणों को प्रयोग किया होगा और फिर इन जड़ी बूटियों के प्रचार व निर्यात हेतु कई तरह के माध्यम अपनाये होंगे।
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       मलारी संस्कृति में मेडिकल टूरिज्म
 
     ताम्र युग में मलारी संस्कृति अध्ययन से पता चलता है मृतकों पर कोई  वानस्पतिक रस , पेस्ट व भूमि तत्व लागए  जाते थे।  मलारी लोग सोना , कांस्य पात्र , रंगीन पाषाण , भोज्य सामग्री आयात करते   थे और बदले में पशु , ऊन , खालें , तो निर्यात करते ही थे अपितु समूर , कस्तूरी व कई प्रकार की जड़ी बूटियां निर्यात करते थे (अदला बदली ). (डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -२ पृष्ठ 234 )
    समूर , कस्तूरी व जड़ी बूटियां निर्यात (अदला बदली ) का साफ़ अर्थ है मेडिकल टूरिज्म।  यह मेडिकल टूरिज्म आंतरिक भी हो सकता है और बाह्य टूरिज्म भी।
     



Copyright @ Bhishma Kukreti   6 /2 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

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Bhishma Kukreti

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पांडवों का वनवास हेतु उत्तराखंड भ्रमण और स्थानीय टूरिस्ट गाइड का महत्व


(महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  14


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   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )  -14               

  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--119 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 119   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   महाभारत माहाकाव्य में उल्लेख है कि दुर्योधन के प्रेरणा से ग्रसित हो धृतराष्ट्र ने सम्राट युधिष्ठिर को द्यूतक्रीड़ा हेतु हस्तिनापुर बुलाया। द्यूतक्रीड़ा में पांडव सब कुछ हार गए , द्रौपदी चीरहरण हुआ  को 12 वर्ष का वनवास व 13 वे वर्ष में अज्ञातवास हेतु वनों में जाना पड़ा।
               पांडवों ने द्रौपदी के साथ वनवास भोगने बगैर कुंती उत्तराखंड की ओर  कूच  किया। पुरोहित धौम्य के साथ पांडव गंगा तट पर प्रमाणकोटि महान बट वृक्ष के समीप गए (वनपर्व 1 /41 )
            तदनुसार पांडव सरस्वती तट पर काम्यक वन में कुछ समय रहे , वहां से वे द्वैत वन गए और फिर काम्यक वन आ गए।  ऋषि धौम्य पांडवों के साथ रहकर यज्ञ -योग , पितृ श्राद्ध व अन्य कर्मकांड कार्य सम्पन कराते रहते थे (वनपर्व 25 /3 ) .
                  इसी दौरान अर्जुन दिव्यास्त्र लेने तपस्या करने उत्तराखंड चले गए (वनपर्व 37 /39 ) . वहां अर्जुन गंधमाधन पर्वत से आगे इन्द्रकील पर्वत में  इंद्र से मिले।  फिर इंद्र की आज्ञा से गंगा तट पर भगवान शिव की तपस्या से पाशुपातास्त्र प्राप्त किया (वनपर्व 20 /20 -21 ) . फिर सदेह पंहुचकर स्वर्ग से इंद्र से दिव्यास्त्र प्राप्त किये
                           उत्तराखंड में स्वर्ग , दियास्त्र व पाशुपातास्त्र
               
            यह लेखक स्वर्ग और नर्क को केवल कल्पना मानता है।  स्वर्ग का यहां पर अर्थ है दुर्गम स्थल जहां अस्त्र निर्माण शाला हो।  उत्तर -पूर्व गढ़वाल और उत्तर पश्चिम कुमाऊं में ताम्बे की खाने, ताम्बा प्राप्त करने की भट्टियां व टकसाल सैकड़ों साल तक रही हैं और ब्रिटिश काल में जाकर ही बंद हुईं।  मेरा मानना है कि अर्जुन ने इन अणु शालाओं  पर जाकर ताम्बे के अस्त्र (दूर फेंके जाने वाले घातक युद्ध उपकरण ) व शस्त्र (बाण आदि ) प्राप्त किये।  संभवतया अर्जुन को अस्त्र शस्त्र डिजाइन व निर्माण ज्ञान भी था तभी वह अकेला इन्द्रकील पर्वत गया। महाभारत काल में बाणों आदि में विष भी लगाया जाता था और तब विष केवल वनस्पति से ही प्राप्त होता था।  महाभारत में हर बार घोसित किया गया है कि बांस -रिंगाळ के बाण प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।  इसका तातपर्य यह भी है कि अर्जुन धनुष,  बाण , भाला , गदा आदि बनवाने इन पर्वत श्रृंखलाओं में गया।  इन वन श्रृंखलाओं में धातु ही नहीं , विष व अन्य वनस्पति  के हथियार हेतु कच्चा माल भी उपलब्ध था और इन्हे बनाने हेतु सिद्धहस्त कारीगर भी उपलब्ध थे।
     यदि तब उत्तराखंड में अस्त्र शस्त्र  अणु शालाएं (अणसाळ ) थीं तो उत्तराखंड में  विशेष टूरिज्म भी था याने धातु टूरिज्म।  स्वीडन में कई प्रकार के युद्ध हथियार बनाये जाते हैं तो स्वीडन मे  युद्ध सामग्री खरीदने वाले स्वीडन में यात्रा करने के कारण विशेष टूरिज्म निर्मित  हुआ है।  टूरिज्म हो तो स्वयं  ही मेडिकल टूरिज्म स्थापित होता जाता है।  मनुष्य गत चेतना हमेशा कहीं भी जाने हेतु सुरक्षा के बारे में सोचती है।  यदि शरीर सुरक्षा  का अंदेशा होता है तो मनुष्यगत चेतना मन , बुद्धि  व अहम में कई बहाने बनाती है और टूर  न करने की सलाह देताी  है।
   अर्जुन को दुर्गम रास्तों में चलने व अपने स्वास्थ्य हेतु प्राथमिक चिकित्सा का भी ज्ञान था।  मेरा दृढ विचार है कि दिव्यास्त्र का अर्थ है जो अस्त्र -शस्त्र सरलता से प्राप्त न हों।   विशेष, दुर्लभ  व असामान्य अस्त्र शस्त्र लेने उत्तराखंड की उत्तरी पहाड़ियों में जाना पड़ा था।
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                        धौम्य व इंद्र   टूरिस्ट गाइड भी थे
       
 पांडवों ने  वनवास   हेतु उत्तराखंड चुना तो उसके पीछे कई कारण भी थे।  सर्वपर्थम कुलिंद राज व अन्य छोटे बड़े राजा पांडवों के हितैषी नायक थे।  दूसरा धौम्य ऋषि गढ़वाल के बारे में विज्ञ विद्वान् थे।  पांडवों द्वारा ऋषि धौम्य को साथ ले जाना वास्तव में अपने लिए एक स्थानीय गाइड ले जाना भी थे।
        महाभारत में उल्लेख नहीं है कि कैसे अर्जुन उत्तरी गढ़वाल (इंद्रकील पर्वत ) पंहुचा।  निसंदेह धौम्य ऋषि ने एक या कई टूरिस्ट गाइडों का इंतजाम भी अर्जुन हेतु किया होगा।
         इंद्रजीत पर्वत में इंद्र अर्जुन को पाशुपातास्त्र लेने शिव के पास भेजता  हैं।  इससे साफ़ पता चलता है कि इंद्र दिव्यास्त्रों का ट्रेडर्स या निर्माता था और शिव दिव्यास्त्रों का निर्माता था जो इंद्र जैसे प्रतियोगी को अपने अस्त्र निर्माण शाला नहीं देखने देता था ना ही उन्हें दियास्त्र ट्रेडिंग हेतु देता था।  या हो सकता है इंद्र व शिव में समझौता रहा होगा कि वे अलग अलग विशेष अस्त्र -शस्त्र बनाएंगे और एक दूसरे के ग्राहक एक दूसरे के पास भेजेंगे।

                          वनपर्व में धौम्य व इंद्र के टूरिस्ट गाइड जैसे कायकलाप

             वनपर्व से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऋषि धौम्य आज के पंडों जैसे  टूरिस्ट गाइड था व इंद्र ट्रेडिंग टूरिस्ट गाइड था। 
   धौम्य व इंद्र के चरित्र से साफ़ पता चलता है कि उन्होंने टूरिस्ट गाइड की सही भूमिका निभायी।
  दोनों ने स्थानीय स्थलों व अन्य जानकारी बड़ी ईमानदारी से पांडवों को दिया।
    जब आवश्यकता पड़ी स्थान विशेष की जानकारी भी दी।  जैसे  धौम्य द्वारा इन्द्रकील पर्वत की जानकारी अर्जुन को देना (यद्यपि महाभारत मौन है ) व इंद्र द्वारा अर्जुन को दिव्यास्त्र शिव के पास भेजना।
    दोनों के कायकलाप बतलाते हैं कि वे ज्ञान /सूचना देते वक्त पक्षहीन थे।
    दोनों सूचना देने में व्यवहारकुशल थे।
  धौम्य व इंद्र ने पांडवों की कमजोरी  और अज्ञानता का कभी भी नाजायज फायदा नहीं उठाया।
 यद्यपि महाभारत मौन है किन्तु हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि धौम्य व इंद्र ने पांडवों को नुकसानदेय या विकट परिस्थितियों  के बारे में भी बताया होगा जिससे पांडव सावधानी वरत सकें।
    अवश्य ही धौम्य व इंद्र ने पांडवों को स्वास्थ्य संबंधी सूचना भी दी होगी।



Copyright @ Bhishma Kukreti  15 /2 //2018 


संदर्भ -

शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -2 , पृष्ठ 314 -315

Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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  उत्तराखंड पर्यटन विकास हेतु भारतीय शहरों व उनकी भोजन संबंधी पहचान  को पहचानना

Understanding Indian cities famous for their street food items
भोजन पर्यटन विकास -15
Food /Culinary Tourism Development 15 
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 399 
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -399
 
आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   
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 भोजन किस तरह  किसी स्थल को प्रसिद्धि दिला सकता है यह किसी से छुपा नहीं है।  मोदी नगर के निकट हों  तो जैन जल जीरा याद आ ही जाता है।  आंध्रा या तेलंगाना में हों तो बिरयानी (विशेषकर मांशाहारी )  यद् आ ही जाता है।  मुम्बई आओ और बड़ा पाँव न चखा तो समझिये मुम्बई आये ही नहीं। 
उत्तराखंड के शहरों व  कस्बों ही नहीं गाँवों को भी किसी विशेष भोजन से जोड़ना ही सही ब्रैंडिंग मानी जाएगी। 
अतः  किस शहर या कस्बे या गांव को किस भोजन से जोड़ना उचित होगा के लिए प्रथम  भारत के प्रमुक शहरों व उनसे जुड़े भोजन को पहचानना आवश्यक है।
 निम्न शहर निम्न भोजन से जुड़े हैं -
शहर ----------  भोजन नाम जिससे शर की पहचान /छवि निर्मित हुयी है   
अमृतसर  -------- लंगर - गुरूद्वारे में सामूहिक भोजन, न जलेबी   
  अलीपे /केरल  - ---------फ्राइड करीमन मच्छी   
अहमदाबाद  -----दबेली (सैंडविच ) , ढोकला , फाफड़ा
आगरा --------------पेठा
इंदौर -----------पोहा व दाल बाटी
कुर्ग , -----कर्नाटक पांडी करी
कोच्ची -------इडली बड़ा आदि / सी फ़ूड
कोल्हापुर  ----कोल्हापुरी चिकन व कोल्हापुरी हड्डी रस्सा
कोलकत्ता --------- रसोगुल्ला व  माछ रस्सा , चाइनीज भोजन
गोआ  ------- फेनी , प्राउन , केकड़ा जलचर जंतु भोजन /सी फ़ूड
चंडीगढ़ ----------नान बटर चिकन , पंजाबी भोजन
चेन्नई ----------------मुर्कुस व दक्षिण भारतीय इडली डोसा
जगन्नाथपुरी  ------ बाराकुडा फिश फ्राई
जयपुर कचोरी
जोधपुर -----राजस्थानी थाली
तवांग अरुणाचल ---------थुकपा
  दिल्ली --------------   बटर चिकन व छोले भटूरे   
धर्मशाला --------------फ्राइड मोमोज व तिबती भोजन
पटना  -------------लिट्टी चोखा
पॉन्डिचेरी---------- फ्रेंच भोजन
पुष्कर ---------दाल बाटी
पुणे  ------उसल पाव
बंगलोर  --------------मांशाहारी भोजन व दक्षिण शाकाहारी
बनारस  -----------------पान ,  लस्सी , रबड़ी
बागा  कोंकण ---------लैम्ब राविओली
मथुरा ---------------पेड़ा
मैसूर  ---------------मैसूर पाक
मुंबई  ---------बड़ा पाँव , पाँव भाजी
  लखनऊ -----------कबाब , बिरयानी कोरमा। कुल्फी   
शिलॉन्ग ----------- पोर्क  बेली रोस्ट
श्रीनगर कश्मीर--------- मटन रोगन जोश
वाइजैक ---------------- बिरयानी
हापुड़  --------------पापड़
हैदराबाद ------------- कबाब व बिरयानी
 उत्तराखंडियों को अपने गाँव को किसी भोजन या अनाज , फल आदि से जोड़ना आवश्यक है।   

Copyright @ Bhishma Kukreti ,2021 


 

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