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How To Promote Tourism - उत्तराखंड मे पर्यटन को कैसे बढाया जा सकता है?
Bhishma Kukreti:
पांडवों का वनवास हेतु उत्तराखंड भ्रमण और स्थानीय टूरिस्ट गाइड का महत्व
(महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 14
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Medical Tourism History ) -14
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--119 )
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 119
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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महाभारत माहाकाव्य में उल्लेख है कि दुर्योधन के प्रेरणा से ग्रसित हो धृतराष्ट्र ने सम्राट युधिष्ठिर को द्यूतक्रीड़ा हेतु हस्तिनापुर बुलाया। द्यूतक्रीड़ा में पांडव सब कुछ हार गए , द्रौपदी चीरहरण हुआ को 12 वर्ष का वनवास व 13 वे वर्ष में अज्ञातवास हेतु वनों में जाना पड़ा।
पांडवों ने द्रौपदी के साथ वनवास भोगने बगैर कुंती उत्तराखंड की ओर कूच किया। पुरोहित धौम्य के साथ पांडव गंगा तट पर प्रमाणकोटि महान बट वृक्ष के समीप गए (वनपर्व 1 /41 )
तदनुसार पांडव सरस्वती तट पर काम्यक वन में कुछ समय रहे , वहां से वे द्वैत वन गए और फिर काम्यक वन आ गए। ऋषि धौम्य पांडवों के साथ रहकर यज्ञ -योग , पितृ श्राद्ध व अन्य कर्मकांड कार्य सम्पन कराते रहते थे (वनपर्व 25 /3 ) .
इसी दौरान अर्जुन दिव्यास्त्र लेने तपस्या करने उत्तराखंड चले गए (वनपर्व 37 /39 ) . वहां अर्जुन गंधमाधन पर्वत से आगे इन्द्रकील पर्वत में इंद्र से मिले। फिर इंद्र की आज्ञा से गंगा तट पर भगवान शिव की तपस्या से पाशुपातास्त्र प्राप्त किया (वनपर्व 20 /20 -21 ) . फिर सदेह पंहुचकर स्वर्ग से इंद्र से दिव्यास्त्र प्राप्त किये
उत्तराखंड में स्वर्ग , दियास्त्र व पाशुपातास्त्र
यह लेखक स्वर्ग और नर्क को केवल कल्पना मानता है। स्वर्ग का यहां पर अर्थ है दुर्गम स्थल जहां अस्त्र निर्माण शाला हो। उत्तर -पूर्व गढ़वाल और उत्तर पश्चिम कुमाऊं में ताम्बे की खाने, ताम्बा प्राप्त करने की भट्टियां व टकसाल सैकड़ों साल तक रही हैं और ब्रिटिश काल में जाकर ही बंद हुईं। मेरा मानना है कि अर्जुन ने इन अणु शालाओं पर जाकर ताम्बे के अस्त्र (दूर फेंके जाने वाले घातक युद्ध उपकरण ) व शस्त्र (बाण आदि ) प्राप्त किये। संभवतया अर्जुन को अस्त्र शस्त्र डिजाइन व निर्माण ज्ञान भी था तभी वह अकेला इन्द्रकील पर्वत गया। महाभारत काल में बाणों आदि में विष भी लगाया जाता था और तब विष केवल वनस्पति से ही प्राप्त होता था। महाभारत में हर बार घोसित किया गया है कि बांस -रिंगाळ के बाण प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। इसका तातपर्य यह भी है कि अर्जुन धनुष, बाण , भाला , गदा आदि बनवाने इन पर्वत श्रृंखलाओं में गया। इन वन श्रृंखलाओं में धातु ही नहीं , विष व अन्य वनस्पति के हथियार हेतु कच्चा माल भी उपलब्ध था और इन्हे बनाने हेतु सिद्धहस्त कारीगर भी उपलब्ध थे।
यदि तब उत्तराखंड में अस्त्र शस्त्र अणु शालाएं (अणसाळ ) थीं तो उत्तराखंड में विशेष टूरिज्म भी था याने धातु टूरिज्म। स्वीडन में कई प्रकार के युद्ध हथियार बनाये जाते हैं तो स्वीडन मे युद्ध सामग्री खरीदने वाले स्वीडन में यात्रा करने के कारण विशेष टूरिज्म निर्मित हुआ है। टूरिज्म हो तो स्वयं ही मेडिकल टूरिज्म स्थापित होता जाता है। मनुष्य गत चेतना हमेशा कहीं भी जाने हेतु सुरक्षा के बारे में सोचती है। यदि शरीर सुरक्षा का अंदेशा होता है तो मनुष्यगत चेतना मन , बुद्धि व अहम में कई बहाने बनाती है और टूर न करने की सलाह देताी है।
अर्जुन को दुर्गम रास्तों में चलने व अपने स्वास्थ्य हेतु प्राथमिक चिकित्सा का भी ज्ञान था। मेरा दृढ विचार है कि दिव्यास्त्र का अर्थ है जो अस्त्र -शस्त्र सरलता से प्राप्त न हों। विशेष, दुर्लभ व असामान्य अस्त्र शस्त्र लेने उत्तराखंड की उत्तरी पहाड़ियों में जाना पड़ा था।
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धौम्य व इंद्र टूरिस्ट गाइड भी थे
पांडवों ने वनवास हेतु उत्तराखंड चुना तो उसके पीछे कई कारण भी थे। सर्वपर्थम कुलिंद राज व अन्य छोटे बड़े राजा पांडवों के हितैषी नायक थे। दूसरा धौम्य ऋषि गढ़वाल के बारे में विज्ञ विद्वान् थे। पांडवों द्वारा ऋषि धौम्य को साथ ले जाना वास्तव में अपने लिए एक स्थानीय गाइड ले जाना भी थे।
महाभारत में उल्लेख नहीं है कि कैसे अर्जुन उत्तरी गढ़वाल (इंद्रकील पर्वत ) पंहुचा। निसंदेह धौम्य ऋषि ने एक या कई टूरिस्ट गाइडों का इंतजाम भी अर्जुन हेतु किया होगा।
इंद्रजीत पर्वत में इंद्र अर्जुन को पाशुपातास्त्र लेने शिव के पास भेजता हैं। इससे साफ़ पता चलता है कि इंद्र दिव्यास्त्रों का ट्रेडर्स या निर्माता था और शिव दिव्यास्त्रों का निर्माता था जो इंद्र जैसे प्रतियोगी को अपने अस्त्र निर्माण शाला नहीं देखने देता था ना ही उन्हें दियास्त्र ट्रेडिंग हेतु देता था। या हो सकता है इंद्र व शिव में समझौता रहा होगा कि वे अलग अलग विशेष अस्त्र -शस्त्र बनाएंगे और एक दूसरे के ग्राहक एक दूसरे के पास भेजेंगे।
वनपर्व में धौम्य व इंद्र के टूरिस्ट गाइड जैसे कायकलाप
वनपर्व से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऋषि धौम्य आज के पंडों जैसे टूरिस्ट गाइड था व इंद्र ट्रेडिंग टूरिस्ट गाइड था।
धौम्य व इंद्र के चरित्र से साफ़ पता चलता है कि उन्होंने टूरिस्ट गाइड की सही भूमिका निभायी।
दोनों ने स्थानीय स्थलों व अन्य जानकारी बड़ी ईमानदारी से पांडवों को दिया।
जब आवश्यकता पड़ी स्थान विशेष की जानकारी भी दी। जैसे धौम्य द्वारा इन्द्रकील पर्वत की जानकारी अर्जुन को देना (यद्यपि महाभारत मौन है ) व इंद्र द्वारा अर्जुन को दिव्यास्त्र शिव के पास भेजना।
दोनों के कायकलाप बतलाते हैं कि वे ज्ञान /सूचना देते वक्त पक्षहीन थे।
दोनों सूचना देने में व्यवहारकुशल थे।
धौम्य व इंद्र ने पांडवों की कमजोरी और अज्ञानता का कभी भी नाजायज फायदा नहीं उठाया।
यद्यपि महाभारत मौन है किन्तु हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि धौम्य व इंद्र ने पांडवों को नुकसानदेय या विकट परिस्थितियों के बारे में भी बताया होगा जिससे पांडव सावधानी वरत सकें।
अवश्य ही धौम्य व इंद्र ने पांडवों को स्वास्थ्य संबंधी सूचना भी दी होगी।
Copyright @ Bhishma Kukreti 15 /2 //2018
संदर्भ -
शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -2 , पृष्ठ 314 -315
Tourism and Hospitality Marketing Management History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …
References
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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========स्वच्छ भारत , स्वस्थ भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========
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Bhishma Kukreti:
उत्तराखंड पर्यटन विकास हेतु भारतीय शहरों व उनकी भोजन संबंधी पहचान को पहचानना
Understanding Indian cities famous for their street food items
भोजन पर्यटन विकास -15
Food /Culinary Tourism Development 15
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 399
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -399
आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती
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भोजन किस तरह किसी स्थल को प्रसिद्धि दिला सकता है यह किसी से छुपा नहीं है। मोदी नगर के निकट हों तो जैन जल जीरा याद आ ही जाता है। आंध्रा या तेलंगाना में हों तो बिरयानी (विशेषकर मांशाहारी ) यद् आ ही जाता है। मुम्बई आओ और बड़ा पाँव न चखा तो समझिये मुम्बई आये ही नहीं।
उत्तराखंड के शहरों व कस्बों ही नहीं गाँवों को भी किसी विशेष भोजन से जोड़ना ही सही ब्रैंडिंग मानी जाएगी।
अतः किस शहर या कस्बे या गांव को किस भोजन से जोड़ना उचित होगा के लिए प्रथम भारत के प्रमुक शहरों व उनसे जुड़े भोजन को पहचानना आवश्यक है।
निम्न शहर निम्न भोजन से जुड़े हैं -
शहर ---------- भोजन नाम जिससे शर की पहचान /छवि निर्मित हुयी है
अमृतसर -------- लंगर - गुरूद्वारे में सामूहिक भोजन, न जलेबी
अलीपे /केरल - ---------फ्राइड करीमन मच्छी
अहमदाबाद -----दबेली (सैंडविच ) , ढोकला , फाफड़ा
आगरा --------------पेठा
इंदौर -----------पोहा व दाल बाटी
कुर्ग , -----कर्नाटक पांडी करी
कोच्ची -------इडली बड़ा आदि / सी फ़ूड
कोल्हापुर ----कोल्हापुरी चिकन व कोल्हापुरी हड्डी रस्सा
कोलकत्ता --------- रसोगुल्ला व माछ रस्सा , चाइनीज भोजन
गोआ ------- फेनी , प्राउन , केकड़ा जलचर जंतु भोजन /सी फ़ूड
चंडीगढ़ ----------नान बटर चिकन , पंजाबी भोजन
चेन्नई ----------------मुर्कुस व दक्षिण भारतीय इडली डोसा
जगन्नाथपुरी ------ बाराकुडा फिश फ्राई
जयपुर कचोरी
जोधपुर -----राजस्थानी थाली
तवांग अरुणाचल ---------थुकपा
दिल्ली -------------- बटर चिकन व छोले भटूरे
धर्मशाला --------------फ्राइड मोमोज व तिबती भोजन
पटना -------------लिट्टी चोखा
पॉन्डिचेरी---------- फ्रेंच भोजन
पुष्कर ---------दाल बाटी
पुणे ------उसल पाव
बंगलोर --------------मांशाहारी भोजन व दक्षिण शाकाहारी
बनारस -----------------पान , लस्सी , रबड़ी
बागा कोंकण ---------लैम्ब राविओली
मथुरा ---------------पेड़ा
मैसूर ---------------मैसूर पाक
मुंबई ---------बड़ा पाँव , पाँव भाजी
लखनऊ -----------कबाब , बिरयानी कोरमा। कुल्फी
शिलॉन्ग ----------- पोर्क बेली रोस्ट
श्रीनगर कश्मीर--------- मटन रोगन जोश
वाइजैक ---------------- बिरयानी
हापुड़ --------------पापड़
हैदराबाद ------------- कबाब व बिरयानी
उत्तराखंडियों को अपने गाँव को किसी भोजन या अनाज , फल आदि से जोड़ना आवश्यक है।
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