Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 54560 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Great work by Ramesh Chand ji. This practice should be adopted by each villager.


June 19 (ANI): A farmer in  Uttarakhand has    converted  five hectares of barren land into  a  lush  green forest.
  Ramesh Chand Gairola of Gholtir planted diverse species of  trees like    rosewood, sal, tun, walnut, peepal and many more plants  on his land   which had turned barren after being washed by floods  in 1971.
  Ramesh  has made this forest on his own without any support  from the   government.
  Earlier, Ramesh used to do farming on his land.
  "I had five acres of land here but all my land got eroded due  to floods    in  1971. The land became barren so I  decided  to  plant trees  here.    So I planted wild trees like  Rosewood,  Sal,  Tun, Walnut,  peepal   and many more plants. But the government has  not helped  me anyhow,"   said Ramesh Chand Gairola, caretaker  of  the forest.
  Not  only  wild trees, there are many fruit trees in  the  forest like   mango, pomegranate, and gooseberry.
  The locals are extending full support to Ramesh Chand Gairola and   appreciate his efforts.
  "With this jungle people have benefited in terms of  environment.  The    locals  should help Ramesh Chand so that  the  forest  grows well.  At    the age of 72 he is working to help the  society.  The government    should award him for his efforts," said  Devi  Prasad Thapliyal, a   villager.
  Ramesh  is  also  multiplying  and  distributing  the  seeds  and   saplings of forest trees and asking others to convert  wastelands into     thick  forests.  He  has  also  adopted  driving  as   his profession.    (ANI)
http://sify.com/news/uttarakhand-farmer-s-herculean-effort-turns-barren-land-into-green-forest-news-national-kgtvadccgbf.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Govt must start some kind of programmes promoting plantation in the state. Apart from this, water harvesting should be widely started.

There should be some kind of incentive programme at the village level so that people participate in such programmes.


Jitendra Singh Mehta

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                                                  हम वर्षावनों को कैसे बचा सकते हैं?


वर्षावन बहुत तेजी से गायब हो रहे हैं। अच्छी खबर यह है कि बहुत से लोग वर्षावनों को बचाना चाहते हैं। बुरी खबर यह है कि वर्षावन को बचाना बहुत आसान नहीं है। वर्षावन को बचाने के लिए और वन्य जीवन को बनाये रखने के लिए बहुत से लोगों को मिलजुल कर प्रयास करना होगा ताकि आपके बच्चे इसकी सराहना कर सकें और इसका आनंद उठा सकें। पूरी दुनिया में वर्षावन को और एक बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक तंत्र को बचाने के लिए "पेड़ों" के बारे में कुछ बिंदु जिन पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए:




  • दूसरों को पर्यावरण के महत्व के बारे में सिखाएं, और ये बताएं कि वे वर्षावन की रक्षा करने में कैसे मदद कर सकते हैं।
     
     2.जिस भूमि से वनों को कटा जा चुका है, वहां पर पेड़ लगाकर क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को फिर से सुधारने का     प्रयास करें



     3.लोगों को ऐसे तरीके से जीने के लिए प्रोत्साहित करें जिससे वातावरण को कोई नुकसान न पहुंचे।
     
   

     4.वर्षावन और वन्यजीवन की रक्षा के लिए पार्कों की स्थापना करें।
     

     5.उन कम्पनियों का समर्थन करें जो इस तरह से काम करती हैं कि वातारण को कम से कम क्षति पहुंचे।




                                                                 :) :) :) :)

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Dear Jitender,

The point suggested by you have merit. There is need to implement such suggestion on ground level also so that without losing time, we can save forest.


Devbhoomi,Uttarakhand

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इन हराम जादों पर लगाम लाने से भी बचेगी उत्तराखंड मैं वन संपदा


चंदन तस्करों का पर्दाफाश, लकड़ी समेत दो गिरफ्तार
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हल्द्वानी: वन विभाग को खुली चुनौती देकर हल्द्वानी के वन परिसरों से चंदन के पेड़ों को काटने वाले तस्करों का पर्दाफाश हो गया है। तिकोनिया वन परिसर के बाद मंगलवार की रात जज फार्म स्थित हाइटेक नर्सरी से चंदन का पेड़ कटने से हलकान वन विभाग को इस सफलता से कुछ राहत भी मिली है। हल्द्वानी रेंज अधिकारी सीएल आर्य के नेतृत्व में बीती रात घेराबंदी कर दो तस्करों को वन कर्मियों ने चंदन के गिल्टों के साथ पकड़ लिया और इस दौरान दो वन कर्मी चोटिल भी हो गये हैं।

मंगलवार की रात हाइटेक नर्सरी से तस्करों ने चंदन के पेड़ को काट लिया था। विभागीय जानकारी के अनुसार पेड़ को गिल्टें में बदलकर उसे बगल की झाड़ी में छिपा दिया गया था। विभागीय टीम ने बुधवार की सुबह से ही निगरानी शुरू कर दी और देर रात गिल्टों को ले जाते हुए दो तस्करों शिवनगर आंवला-बरेली निवासी रामपाल पुत्र लीलाधर एवं श्रीनगर आंवला-बरेली निवासी कृष्णपाल पुत्र मीलाल को गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि तस्करों का एक साथी अंधेरे का फायदा उठाते हुए फरार हो गया। इन अपराधियों ने आरक्षित वन क्षेत्र से चंदन के तीन पेड़ काटे थे। मौके पर चंदन के छह गिल्टे, दो कुल्हाड़ी, एक आरा और चार बड़े बैग बरामद हुए। रात में दोनों को टांडा स्थित बंदी गृह में रखकर कड़ी पूछताछ की गयी जिसमें दोनों ने विगत लंबे समय से हल्द्वानी क्षेत्र में हो रही चंदन की चोरी की घटनाओं में संलिप्त होने की बात स्वीकार की। पकड़े गये तस्करों के विरूद्ध भारतीय वन अधिनियम 1927 एवं जैव विविधता अधिनियम 2002 की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर गुरुवार को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। वन विभाग की टीम में वन दरोगा उमेश चन्द्र आर्या, अजय रावत, किशन सिंह बिष्ट, राजेन्द्र सिंह नेगी, संदीप सूंठा, भूपेन्द्र सिंह नेगी, आशुतोष आर्या शामिल थे, जबकि वन रक्षक भूपेन्द्र सिंह नेगी व आशुतोष आर्या को बरामदगी के दौरान चोटें लगी हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6728592.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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U'khand Bags First Place for Environment Conservation
 
 The Planning Commission has ranked Uttarakhand at the first place among states for their efforts towards environment conservation, an official said today.

According to Environmental Performance Index (EPI), Uttarakhand has earned 0.8086 points, while Himachal Pradesh stands at the second place with 0.7308 EPI and Chandigarh follows with 0.7185 EPI, the official said.

The Planning Commission has decided that while granting Central assistance to states, weightage would be given for the endeavour towards environment conservation, he said.

Speaking about the achievement, Uttarakhand Chief Minister Ramesh Pokhriyal Nishank said he had been asking for green bonus from the Centre for a long time.

A considerable area of the state is under forest cover and often development projects suffer as due care needs to be taken to conserve forest wealth, he said.

Uttarakhand Principal Chief Conservator of Forests R B S Rawat said the forest cover in the state had shown considerable increase in the past ten years and this recognition by the Planning Commission would motivate the state

to take additional steps towards forest conservation.

In its study of environment conservation, the Planning Commission focused on five different categories, the first one being of forest conservation in which Uttarakhand bagged the first place among other states.

Total forest area, increase in the forest cover between the year 2003 and 2009 and efforts of different state governments towards environment conservation were some of the other indicators used by the commission for rating the states.     http://news.outlookindia.com/item.aspx?696646

विनोद सिंह गढ़िया

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कोई इनसे सीखे वन संरक्षण !
« Reply #106 on: November 23, 2010, 12:36:14 AM »
कोई इनसे सीखे वन संरक्षण !
नई टिहरी। गांव की सीमा पर लकड़ी से बना एक तराजू, करीब चालीस किग्रा के आकार का एक बड़ा पत्थर । जिस पर हर महिला को घास और लकड़ी का बोझ तुलवाना जरूरी है। एक तय मात्रा से अधिक लकड़ी-चारा कोई नहीं ले जा सकता। अधिक मात्रा मिलने पर घास-लकड़ी हटा दी जाती है। बाद में उसका नीलाम होता है। उससे अर्जित राशि वन विकास के काम पर लगाई जाती है।
यह तस्वीर है टिहरी जिले के प्रतापनगर के शुक्री गांव की। जब पर्यावरण पुरस्कार पाने का आधार नहीं था, तब करीब एक सौ साल पहले इस गांव के लोगों ने अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए बांज-बुरांश का जो मिश्रित वन लगाने का सपना देखा था, वह अब कई किमी तक घने जंगल का स्वरूप ले चुका है। तब ही यह नियम भी बनाया गया कि कोई भी महिला-पुरुष तयशुदा मात्रा से अधिक लकड़ी-चारा जंगल से नहीं लाएगा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इससे जंगल अत्यधिक दोहन से बच सकेगा एवं उसका संवर्द्धन हो सकेगा। करीब सौ साल पहले तय किए गए इस नियम का परिपालन ग्रामीण आज भी कर रहे हैं। शुक्री के तत्कालीन सयाणा गोकुल प्रसाद कुड़ियाल की अगुवाई एवं उमा दत्त और केवल राम के सहयोग से ग्रामीणों ने बांज -बुरांश की जो पौध लगाई थी वह अब करीब दो सौ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैला घना जंगल बन गया है। जंगल की देखरेख के लिए ग्रामीण अपने स्तर पर वन सेवक नियुक्त करते हैं। जिसका मानदेय प्रति परिवार से लिया जाता है। जिसमें कुछ नगदी के साथ ही फसल के समय एक-एक पाथा खाद्यान्न भी देते हैं। वन सेवक के रूप में तारा दत्त कुड़ियाल एवं मुंजरी देवी कुकरेती ने ताउम्र इस जंगल की सेवा की है। गांव की सीमा पर लकड़ी का तराजू जहां वन के संरक्षण में कारगर सिद्ध हुआ है, वहीं महिलाओं के ऊपर बोझ भी कम हुआ है। एक बार इस जंगल पर दूसरे गांवों के लोगों की भी नजर लग गई थी, तब तत्कालीन प्रधान स्व.ज्ञानानंद कुड़ियाल ने इसके लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।
वैशाखी देवी, दर्शनी देवी, भाना देवी का भी इस मिश्रित जंगल के संरक्षण में योगदान रहा है। प्रधान राजी देवी कहती हैं किहमें जो जंगल पूर्वजों ने सौंपा, उसे अब हम अगली पीढ़ी को सौंप रहे हैं। जंगल का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य भी है। मजेदार बात यह है कि वन के संरक्षण के लिए इस गांव को कभी कोई पुरस्कार नहीं मिल पाया है। किसी की नजर इस ओर गई ही नहीं।

http://epaper.amarujala.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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To save it really a big challenge. Deforestation has increased in hill areas. Various factors are responsible for the increasing trend. 

Increasing population is one of the reasons.  Govt must start some kinds of incentive programme for saving plants and

Devbhoomi,Uttarakhand

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सड़क के लिए हरे वृक्षों का किया कत्ल
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  चम्बा, जागरण कार्यालय: सरकारी विभागों की कार्यशैली यह है कि यदि वह अपनी मनमानी पर उतर आएं तो कुछ भी कर सकते हैं। ऐसा ही कारनामा लोक निर्माण विभाग चम्बा ने कर दिखाया है, जिसमें उन्होंने बिना निविदा निकाले व वन विभाग की अनुमति के बगैर सड़क कटान करके हरे पेड़ों को काट डाला।
मामला चंबा प्रखण्ड के अंतर्गत अटल आदर्श ग्राम डडूर को जाने वाली सड़क का है। विभाग की ओर से हाल ही में उक्त सड़क  को तीन किमी की वित्तीय स्वीकृति मिली थी, लेकिन लोनिवि चम्बा ने ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने की दृष्टि से बिना निविदा निकाले सड़क कटान करवा दिया। इतना ही नहीं वन विभाग की बिना अनुमति के  चीड़ के दर्जनों हरे पेड़ों पर डोजर चलवा दिया। इससे ग्राम पंचायत दिखोल गांव के लोग आक्रोश में हैं। उनका कहना है कि जहां रोड काटी गई है वह सिविल वन भूमि है तथा उसमें जो पेड़ लहलहा रहे हैं वह उनका संरक्षित किया हुआ जंगल है, लेकिन लोनिवि ने नियम कानूनों को ताक पर रख कर दर्जनों हरे पेड़ों को कटवा दिया।


 ग्रामीणों की सूचना पर विगत दिन वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे और उन्होंने स्थलीय निरीक्षण कर उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट प्रेषित कर दी है, जिसमें कहा गया है कि इस कार्य के लिए विभाग से अनुमति नहीं ली गयी है।


ग्राम प्रधान मुस्सा कुमार, युद्धवीर सिंह तोपवाल, संजय सिंह नेगी आदि का कहना है कि सड़क का कटान खाली भूमि पर होना चाहिए न कि जंगलों को काटकर सड़क बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सड़क बनाने वालों ने रात में डोजर चलाया और उनक ा संरक्षित किए पेड़ों को जड़ से उखाड़ दिया।



इस संदर्भ में वन विभाग के रेंज अधिकारी नत्थीलाल डोभाल का कहना है कि मौके से 21 चीड़ के पेड़ों के कटा होना पाया गया है, जो कि वन अधिनियम का उल्लघंन है। उन्होंने कहा कि इसकी रिपोर्ट डीएम को भेजी गयी है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7405699.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Summer is approaching fast. Every year heavy loss occurs to the forest of Uttarakhand due to the wild fire. In addition to Govt efforts, NGO and other organizations should come forward to save the forest.

Uttarakhand forest are prone to fire due to most of the parts is covered of Pines trees and its leafs easily catch fire.


 

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