पर्यावरण बचाने को जगाई अलखएक हेक्टेयर में देवकी लघु वाटिका बनाई
बागेश्वर। पर्यावरण संरक्षण के सरकारी शोर से दूर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो खामोशी से पर्यावरण बचाने के लिए योगदान कर रहे हैं। मंडलसेरा निवासी किशन सिंह मलड़ा ने भी अपने प्रयासों से एक हेक्टेयर भूमि में देवकी वाटिका बनाकर मिसाल कायम की है। इस वाटिका में औषधीय पौधों के साथ ही चौड़ी पत्ते वाले और व्यावसायिक पौधों की कई प्रजातियां मिल जाएंगी। मलेड़ा ने वर्ष 2007 में राज्य आंदोलनकारी शहीद स्मारक शांति वन की भी स्थापना की थी।
25 फरवरी 1968 में हिम्मत सिंह मलड़ा के घर जन्मे किशन आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पौधरोपण का शौक उन्हें 1984 में मंडलसेरा में एक पीपल के पेड़ में लगी आग के बाद जगा। उसी स्थान पर उन्होंने पीपल का नया पौधा रोपा। वही पौधा आज पूरे क्षेत्र में शीतल हवा दे रहा है। इसी से उत्साहित होकर उन्होंने 1990 में घर में नर्सरी बनाकर पौधरोपण किया। 1992 में अपनी माता के नाम से देवकी लघु वाटिका बनाई। वाटिका को संवारने में उन्हें दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। वह पौधरोपण करते, जंगली जानवर पौधों को नुकसान पहुंचा देते। धुन के पक्के मलड़ा इससे विचलित नहीं हुए। नतीजा, आज वाटिका लहलहा रही है।
वाटिका में इस समय आंवला, हरड़, बहेड़ा, कटहल, तेज पत्ता सिवाई, मूंगा रेशम, दाड़िम, अनार, अष्टबेरी, घृतकुंवारी, छोटी मूसली, एलोबेरा, अश्वगंधा, अकरकरा, कौर, खीना, बांज, फल्यांट, मनीपुरी, नीम, तिलौंज, फरस्यां, छुईमुई, च्यूरा, लोकाट, रीठा, बेड़ू, तुन, श्रीराम सुगंधा, बैंस, मोरस, शहतूत के हजारों पौध शान से खड़े हैं। इसके अलावा मलड़ा ने 1993 में रुद्राक्ष का पौध भी लगाया था, जो अब पल्लवित हो रहा है, इससे बीज तैयार किया जाता है। मलड़ा द्वारा तैयार रुद्राक्ष के पौधों को कई धार्मिक स्थलों में लगाया गया है। 10 हेक्टेयर भूमि में स्थापित शहीद शांति वन में वह निजी प्रयासों से पौध लगा रहे हैं।
राशि के हिसाब से देते हैं पौधेबागेश्वर। मलड़ा लोगों को पौधे ऐसे ही नहीं दे देते बल्कि उन्होंने इसके लिए नई तरीका निकाला है। यानी, पहले उस व्यक्ति की राशि पूछते हैं और फिर राशि के हिसाब से फलदायी पौधा उसे देते हैं। पूछने पर उन्होंने कहा कि राशि के हिसाब से रोपित पौधा नर्सरी तथा रोपने वाले के लिए वरदान साबित होता है।