Author Topic: How To Save Forests? - कैसे बचाई जा सकती है वनसम्पदा?  (Read 54569 times)

Anil Arya / अनिल आर्य

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प्रदेश के वनों से संचित कार्बन का विवरण
प्रजाति संचित कार्बन
चीड़ 30768.40
साल 15546.96
बांज 3049.20
अन्य 9306.85
कुल 58671.41
टन में
जंगलों में चीड़, बांज और साल का राज
देहरादून। उत्तराखंड के 65 फीसदी से अधिक क्षेत्रफल में जंगल है। इनमें सबसे अधिक क्षेत्रफल चीड़, बांज (ओक) तथा साल के पेड़ हैं। जिससे न केवल देश दुनिया को प्राण वायु मिल रही है बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी ये पेड़ बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
वन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सबसे अधिक 16.15 प्रतिशत चीड़ के जंगल है। चीड़ के पेड़ से जल स्रोतों को संरक्षित करने में मदद मिलती है। भूजल स्तर को भी नियंत्रित करने में आसानी होती है।
15.69 प्रतिशत बांज (ओक) के जंगल हैं। इससे भी जल स्रोतों को संरक्षित करने और भूजल स्तर को ऊपर करने में मदद मिलती है। साल के जंगल 12.82 फीसदी है। यह पर्यावरण के साथ ही वन्यजीवों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। साल के पेड़ के नीचे कई प्रजातियां खुद ही उग आती है। पूरे राज्य में 44 फीसदी से अधिक जंगल चीड़, बांज और साल के ही है। इसके अलावा 25 फीसदी जंगल मिश्रित/विविध के है, जिससे देश और दुनिया के लोगों को प्राण वायु मिल रही है। इन जंगलों को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने को लेकर समय रहते कदम उठाने की जरूरत है, जिससे उत्तराखंड की हरियाली कायम रहे।
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Anil Arya / अनिल आर्य

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बुग्याल को संरक्षित करने में सरकार मदद करे
आली-वेदनी बगजी बुग्याल संरक्षण समिति ने की मांग, अपने स्तर पर ही कार्य कर रहे ग्रामीण
• अमर उजाला ब्यूरो
देहरादून। बुग्यालों को संरक्षित करने में सरकार मदद करे। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में बुग्याल खत्म हो जाएंगे, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ेगा। चमोली के लोहाजंग की आली-वेदनी बगजी बुग्याल संरक्षण समिति के अध्यक्ष दयाल सिंह पटवाल ने सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में यह मांग की। उन्होंने कहा कि इसको लेकर लगातार पत्राचार किया जा रहा है, लेकिन कोई भी सुनने के लिए तैयार नहीं है।
पटवाल ने बताया कि समिति और ग्रामीणों की ओर से बिना किसी मदद के बुग्यालों को संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है। ग्रामीणों की ओर से किए जाने वाले कार्य को प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक डा.आरबीएस रावत तक सराहना कर चुके हैं, लेकिन आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कोई तैयार नहीं है। ऐसे में बुग्यालों का अस्तित्व खत्म होते जा रहा है। उन्होंने कहा कि ठोस नीति न होने का नतीजा है कि ग्रामीण हजारों की संख्या में कीड़ा जड़ी निकालने की आड़ में छावनी के तौर पर पलायन कर चुके हैं। इससे ऐसे क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग तथा प्रदूषण का बढ़ना स्वाभाविक है। दुर्लभ वन्यजीवों को संरक्षित करना भी एक चुनौती बन गया है। उन्होंने कहा कि इसको लेकर स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूहों को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित नहीं किया गया तो भविष्य में स्थिति चिंताजनक हो जाएगी।
•समिति का आरोप कोई सुनने को तैयार नहीं उनकी मांग.
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Anil Arya / अनिल आर्य

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राज्य के 88 चाल-खालों की बदलेगी तसवीर
वन विभाग ने बनाया प्रस्ताव, कैंपा से बजट
देहरादून। आरक्षित वन क्षेत्र में आने वाले चाल-खालों की सूरत बदलेगी। इसको लेकर वन विभाग की ओर से उत्तराखंड के खत्म हो चुके 88 चाल-खालों को चिह्नित किया गया है। इसके लिए कैंपा मद से बजट जारी किया जाएगा।
चाल-खाल की कई लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। इसको ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने खत्म हो चुके चाल-खालों को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया गया है। उदाहरण के तौर पर कुमाऊं के नैनीताल के हनुमान गढ़ी में एक चाल-खाल की तसवीर भी बदली गई है। इसी तर्ज पर अन्य चिह्नित चाल खालों को संवारा जाएगा। इसमें सबसे अधिक कुमाऊं के चाल-खाल शामिल हैं। बताया जा रहा है कि इसके तीन फायदे होंगे। पहला यह कि स्थानीय लोगों को स्थानीय लोगों पेयजल के तौर पर इसका उपयोग करेंगे। दूसरा वन्यजीवों के लिए तथा तीसरा जल संवर्द्धन किया जाएगा। प्रमुख वन संरक्षक डॉ. आरबीएस रावत ने बताया कि पर्यावरण के लिहाज से चाल खाल बेहद महत्वपूर्ण है। विभाग की ओर से चिह्नित 88 चाल खालों का जीर्णोद्धार करने के लिए होमवर्क कर लिया गया है। प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। कैंपा मद से बजट जारी किया जाएगा।
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Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Wild forest is a big risk in Uttarakhand.

This must be controlled.


Anil Arya / अनिल आर्य

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कटवा दिए 22 हजार पेड़
सभी चीड़ के वृक्ष थे, नैनीताल वन प्रभाग में हुआ कारनामा
प्रेम प्रताप सिं
देहरादून। नैनीताल वन प्रभाग में चुपके-चुपके लगभग 22 हजार चीड़ के पेड़ कटवा दिए गए। इसके बाद 1810 घनमीटर लकड़ी की निकासी करा दी गई। उत्तराखंड वन विकास निगम की जांच में इस प्रकरण का खुलासा हुआ है। निगम के प्रबंध निदेशक ने मामले को प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत को अगवत करवाया है। उन्होंने जांच मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं एससी पंत को सौंपी है।
उत्तराखंड के जंगलों में पुराने पेड़ों का कटान सरकारी एजेंसी वन विकास निगम के अलावा कोई दूसरी एजेंसी नहीं कर सकती। लेकिन नैनीताल वन प्रभाग में चीड़ के लगभग 22 हजार हरे पेड़ काट दिए गए। निगम के स्थानीय अधिकारियों को इसकी भनक तब लगी, जब रानीबाग चौकी से 1810 घनमीटर लकड़ी की निकासी की जा चुकी थी। इसके बाद निगम के प्रबंध निदेशक अनिल कुमार दत्त को जानकारी दी गई। दत्त ने बैरियर से रिकार्ड मंगवा कर जांच की। जांच के अनुसार यह मामला इसी वर्ष जनवरी से मई के बीच का है। प्रमुख वन संरक्षक आरबीएस रावत ने बताया कि इस प्रकरण की जांच मुख्य संरक्षक कुमाऊं एससी पंत से कराई जा रही है। साथ ही लकड़ी कटान पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है। http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

विनोद सिंह गढ़िया

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पर्यावरण बचाने को जगाई अलख
एक हेक्टेयर में देवकी लघु वाटिका बनाई



बागेश्वर। पर्यावरण संरक्षण के सरकारी शोर से दूर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो खामोशी से पर्यावरण बचाने के लिए योगदान कर रहे हैं। मंडलसेरा निवासी किशन सिंह मलड़ा ने भी अपने प्रयासों से एक हेक्टेयर भूमि में देवकी वाटिका बनाकर मिसाल कायम की है। इस वाटिका में औषधीय पौधों के साथ ही चौड़ी पत्ते वाले और व्यावसायिक पौधों की कई प्रजातियां मिल जाएंगी। मलेड़ा ने वर्ष 2007 में राज्य आंदोलनकारी शहीद स्मारक शांति वन की भी स्थापना की थी।
25 फरवरी 1968 में हिम्मत सिंह मलड़ा के घर जन्मे किशन आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पौधरोपण का शौक उन्हें 1984 में मंडलसेरा में एक पीपल के पेड़ में लगी आग के बाद जगा। उसी स्थान पर उन्होंने पीपल का नया पौधा रोपा। वही पौधा आज पूरे क्षेत्र में शीतल हवा दे रहा है। इसी से उत्साहित होकर उन्होंने 1990 में घर में नर्सरी बनाकर पौधरोपण किया। 1992 में अपनी माता के नाम से देवकी लघु वाटिका बनाई। वाटिका को संवारने में उन्हें दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। वह पौधरोपण करते, जंगली जानवर पौधों को नुकसान पहुंचा देते। धुन के पक्के मलड़ा इससे विचलित नहीं हुए। नतीजा, आज वाटिका लहलहा रही है।
वाटिका में इस समय आंवला, हरड़, बहेड़ा, कटहल, तेज पत्ता सिवाई, मूंगा रेशम, दाड़िम, अनार, अष्टबेरी, घृतकुंवारी, छोटी मूसली, एलोबेरा, अश्वगंधा, अकरकरा, कौर, खीना, बांज, फल्यांट, मनीपुरी, नीम, तिलौंज, फरस्यां, छुईमुई, च्यूरा, लोकाट, रीठा, बेड़ू, तुन, श्रीराम सुगंधा, बैंस, मोरस, शहतूत के हजारों पौध शान से खड़े हैं। इसके अलावा मलड़ा ने 1993 में रुद्राक्ष का पौध भी लगाया था, जो अब पल्लवित हो रहा है, इससे बीज तैयार किया जाता है। मलड़ा द्वारा तैयार रुद्राक्ष के पौधों को कई धार्मिक स्थलों में लगाया गया है। 10 हेक्टेयर भूमि में स्थापित शहीद शांति वन में वह निजी प्रयासों से पौध लगा रहे हैं।

राशि के हिसाब से देते हैं पौधे

बागेश्वर। मलड़ा लोगों को पौधे ऐसे ही नहीं दे देते बल्कि उन्होंने इसके लिए नई तरीका निकाला है। यानी, पहले उस व्यक्ति की राशि पूछते हैं और फिर राशि के हिसाब से फलदायी पौधा उसे देते हैं। पूछने पर उन्होंने कहा कि राशि के हिसाब से रोपित पौधा नर्सरी तथा रोपने वाले के लिए वरदान साबित होता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Good step.

वनों की सुरक्षा को आगे आए जनमानस
Oct 30, 06:44 pm
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पोखरी : सात दिवसीय खादी पर्यटन औद्योगिक किसान विकास मेला के दूसरे दिन पर्यावरण वन एवं जीव संरक्षण गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में वन सुरक्षा के लिए आमजनमानस से आगे आने का आह्वावन किया गया।

गोष्ठी में वन विभाग व वन पंचायत सरपंचों ने भाग लिया। वनों की सुरक्षा एवं पेड़ों के कटान को रोकने की कारगर पहल पर जोर देते हुए कहा कि कानून का पाठ पढ़ाने से तथा कविता व भाषणों से जागरूक तो किया जा सकता है, लेकिन इन बातों से धरातल पर जंगल नहीं बचाए जा सकते। जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग व जनता का आपसी सामंजस्य होना चाहिए। गोष्ठी को वन पंचायत सरपंच संगठन के अध्यक्ष बलवन्तसिंह रावत, सचिव शिशुपालसिंह बतर्वाल, प्रधानाचार्य पीएस नेगी, व्यापार मंडल के अध्यक्ष महेन्द्र प्रकाश सेमवाल, मुरली दीवान, ज्येष्ट प्रमुख मंदोधरीदेवी, श्रवण सती आदि ने संबोधित किया। अध्यक्षता ब्लॉक प्रमुख अनिता नेगी ने की। कार्यक्रम का संचालन वन क्षेत्राधिकारी अलकनन्दा वन प्रभाग पोखरी के बृजमोहन भारती ने किया।

विनोद सिंह गढ़िया

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अनपढ़ बुजुर्ग को पौधों में कलम और मिट्टी की पहचान में महारत हासिल

पर्यावरण संरक्षण का नारा देने वाले, गोष्ठियों और सेमिनारों में पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले धरातल पर इस दिशा में क्या करते हैं ये तो पता नहीं लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो पर्यावरण का अर्थ तो नहीं जानते लेकिन उनके काम किसी भी पर्यावरण प्रेमी के लिए मिसाल हो सकते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं चंतोला निवासी 74 वर्षीय प्रयाग राम। अनपढ़ प्रयाग भले ही ठीक से पर्यावरण शब्द बोल न पाएं लेकिन पिछले 27 साल से वह पर्यावरण संरक्षण के काम में लगे हैं। उन्होंने एक बड़े क्षेत्र में अपनी मेहनत से विभिन्न प्रजाति के पौधों से एक बड़ी वाटिका तैयार कर ली है। इससे उस इलाके में प्राकृतिक जल स्रोतों में पानी बढ़ गया है। शुद्ध वातावरण के साथ गांव में पानी का सूखा भी खत्म हो गया है। धीरे-धीरे नाशपाती तथा गुलाब की कलम करने में प्रयाग को महारत हासिल हो गई। करीब 27 साल पहले प्रयाग राम ने गांव में बड़ी नर्सरी बनाने की ठानी। मिट्टी के गुण के आधार पर पौधे लगाने शुरू किए और आज वह एक उपवन के मालिक हैं। यहीं उन्होंने अपनी कुटिया भी बना ली है। इस उपवन में आंवला, दालचीनी, बुरांश, बांस, क्वैराल, बांज, फल्यांट, रामबांस के पौधे लगे हुए हैं। चौड़ी पत्तीदार पेड़-पौधों के कारण पास में ही स्थित चंतुआधारा का जल स्रोत बढ़ गया है। इससे उस क्षेत्र में रह रहे 40 परिवारों की पानी की समस्या भी हल हो गई है। बरसाती नाला चंतोला में अब हर वक्त पानी रहता है।
प्रयाग ने 25 साल पहले खुद रामबांस, रिंगाल तथा पालीथिन से पालीहाउस तैयार किया। उस पालीहाउस में वह पौध तैयार करते हैं। उनके उपवन के पेड़ों से नरबोली, तुसरेड़ा के ग्रामीणों को चारापत्ती भी मिलती है। प्रयाग राम के इस काम को प्रशंसा तो बहुत मिली लेकिन माली हालत में सुधार नहीं हुआ है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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It is has become very important now to safe the forest. Every year we are losing a large part of forest due to wild fire, land slide and other issues. Villagers must be educated about the importance of trees.

A big compaign is required to be introduced. Be it musical programme, plays, skits etc.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Save Tiger & other wild animals leads to safe forests.

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देहरादून। देश में पहली बार भालुओं (बियर) की गिनती शुरू हो गई है। यह गिनती भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया तथा प्रत्येक राज्यों के वन विभाग के सहयोग से हो रही है। फरवरी 2012 तक गणना का कार्य पूरा होगा। इसके अगले छह माह के भीतर भालुओं को संरक्षित करने को लेकर विस्तृत नीति तैयार होगी।
भारत में स्लोथ, ब्लैक, ब्राउन तथा सन चार प्रकार के भालू पाए जाते हैं। इसमें से ब्लैक और ब्राउन भालू हिमालयन बेल्ट में मिलते हैं। जबकि स्लोथ भालू का वास स्थल मैदानी क्षेत्र है। सन भालू की मौजूदगी नार्थ ईस्ट में पाई गई है। 2006 में किए गए एक अनुमान के मुताबिक देश में 9000 स्लोथ भालू, 600 ब्लैक तथा 500 ब्राउन भालू थे। जबकि, नार्थ ईस्ट में सन भालुओं की केवल मौजूदगी बताई गई थी। भालुओं के बढ़ते अवैध शिकार को देखते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पहली बार नवंबर 2011 से गणना कराई जा रही है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के डा.एस सत्य कुमार ने बताया कि भालुओं की गणना का कार्य फरवरी 2012 तक चलेगा। 31 मार्च तक देश के सभी राज्यों से आंकड़े एकत्रित किए जाएंगे। 30 अप्रैल तक भालुओं को संरक्षित करने और उनके कल्याण को नीति को लेकर ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा। 15 जुलाई तक प्रत्येक राज्यों में बैठक करके स्थानीय वन विभाग द्वारा नीति मंजूर कराई जाएगी। इसके बाद अक्टूबर 2012 में राष्ट्रीय स्तर पर भालुओं को संरक्षित करने को लेकर नीति तैयार की जाएगी।

नवंबर 2012 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस
इंटरनेशनल बियर एसोसिएशन की ओर से 2012 में दिल्ली में भालुओं पर अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया जाएगा। इसको लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है।

उत्तराखंड में ब्लैक और स्लोथ भालू
उत्तराखंड में ब्लैक और स्लोथ भालू पाए जाते हैं। इनकी संख्या भी काफी कम है। इनको संरक्षित करने को लेकर भी राज्य स्तर पर कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद अक्सर भालुओं के शिकार के मामले सामने आते हैं।

पित्ताशय के लिए शिकार
भालुओं का शिकार उनके पित्ताशय के लिए किया जाता है। यह यौनवर्धक दवाएं बनाने में काम आता है। बताया जाता है कि यूरोपियन देशों में इसकी बड़ी खपत है, लेकिन भारत में भी इसका बड़ा बाजार है। तमाम दवा निर्माता कंपनियां भी चुपके तरीके से इसका उपयोग कर रही हैं, जिन पर अभी तक कोई ठोस नियंत्रण नहीं है।

इसलिए बनेगी नीति....
- भालू और मानव संघर्ष रोकने के लिए
- भालू को संरक्षित करने के लिए
- अवैध शिकार को रोकने के लिए
- भालुओं के वास स्थलों को बचाने के लिए

(Source - Amar Ujala)

 

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